Improved cultivation of groundnut 

भारत में दलहन, तिलहन, खाद्य व नकदी सभी प्रकार की फसलें उगायी जाती है। तिलहनी फसलों की खेती में सरसों, तिल, सोयाबीन व मूँगफली आदि प्रमुख हैं। मूँगफली गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू तथा कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाई जाती है। अन्य राज्य जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में भी यह काफी महत्त्वपूर्ण फसल मानी जाने लगी है। राजस्थान में इसकी खेती लगभग 3.47 लाख हैक्टर क्षेत्र में की जाती है जिससे लगभग 6.81 लाख टन उत्पादन होता है।

राजस्थान के बीकानेर जिले में लूणकरनसर में अच्छी किस्म की मूँगफली का अच्छा उत्पादन होने के कारण इसे राजस्थान का राजकोट कहा जाता हैं। मूंगफली एक ऐसी फसल है जिसका कुल लेग्युमिनेसी होते हुये भी यह तिलहनी के रूप मे अपनी विशेष पहचान रखती है। जिसका वानस्पतिक नाम अरेकीस हाइपेजिया है, जो की हमारे खाने में तेल के रूप में एक अहम् स्त्रोत है, जो की इसके उत्पादन का करीब 80 फीसदी हिस्सा तेल के रूप में इस्तेमाल होता है।

मूँगफली के दाने मे 48-50 % वसा और 22-28 % प्रोटीन तथा 26% तेल पाया जाता हैं। यह आयरन, नियासिन, फोलेट, कैल्शियम और जि़ंक का अच्छा स्रोत हैं। मूँगफली की खेती 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। मूंगफली की खेती करने से भूमि की उर्वरता भी बढ़ती है। यदि किसान मूंगफली की आधुनिक खेती करता है तो उससे किसान की भूमि सुधार के साथ किसान कि आर्थिक स्थिति भी सुधर जाती है। मूंगफली का प्रयोग तेल के रूप मे, कापडा उधोग एवं बटर बनाने मे किया जाता है जिससे किसान अपनी आर्थिक स्थिति मे भी सुधार कर सकते है।

मृदा एवं इसकी तैयारी

मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है फिर भी इसकी अच्छी तैयारी हेतु जल निकास वाली उपजाऊ एवं पोषक तत्वों से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है। मूंगफली की खेती के लिए बुवाई से पूर्व 2-3 बार खेत की अच्छी तरह से देशी हल या कल्टीवेटर से अच्छी तरह से जुताई करे, ताकि मिट्टी भुरभुरि हो जाये फिर इसके बाद पाटा चलाकर बुवाई के लिए खेत तैयार करें।

बीज दर

मूंगफली की बुवाई हेतू बीज की मात्रा 80-100 किग्रा/हे. रखना चाहिए। यदि कोई मूंगफली की बुवाई कुछ देरी से करना चाहता है तो बीज की मात्रा को 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ा लेना चाहिये।

बुवाई का समय

मूंगफली की बुवाई का समय जून के दुसरे पखवाडे से जुलाई के आखरी पखवाडे तक होता हैं। आमतौर पर मूंगफली की बुवाई मानसून की शुरुआत के साथ की जाती है। लेकिन जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, प्री-मानसून की बुवाई मई के अंतिम सप्ताह में या जून के पहले सप्ताह में प्री-बुवाई सिंचाई के साथ की जानी चाहिए।

जलवायु

मूंगफली की वानस्पतिक वृद्धि का इष्टतम तापमान 26 से 30 के बीच है। उत्पादन वृद्धि अधिकतम 24-27 है। यह बढ़ते मौसम के दौरान अच्छी तरह से वितरित वर्षा के 50 से 125 सेमी प्राप्त क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ता है, धूप की प्रचुरता और अपेक्षाकृत गर्म तापमान।

मूंगफली की उन्नत किस्में

  • फैलने वाली किस्में:- आर एस-1, एम-335, चित्रा, आर जी-382 (दुर्गा), एम-13 और एम ए-10 आदि. 
  • मध्यम फैलने वाली किस्में:- एच एन जी-10, आर जी-138, आर जी-425, गिरनार-2 और आर एस बी-87 आदि.
  • झुमका किस्में:- डी ए जी-24, जी जी-2, जे एल-24, ए के-12 व 24, टी जी-37ए और आर जी-141 आदि.

बीज उपचार

बीज की बुवाई करने से पहले बीज का उपाचार करना बहुत ही लाभकारी होता है। इसके लिए थाईरम 2 ग्राम  और काबेंडाजिम 50% धुलन चूर्ण के मिश्रण को 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहियें। इस उपचार के बाद (लगभग 5-6 घन्टे ) अर्थात बुवाई से पहले मूंगफली के बीज को राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करना चाहिये |

कल्चर को बीज मे मिलाने के लिए आधा लीटर पानी मे 50 ग्राम गुड़ घोलकर इसमे 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर का पुरा पेकेट मिलाये इस मिश्रण को  10 किलो बीज के ऊपर छिड़कर कर हल्के हाथ से मिलाये, जिससे बीज के ऊपर एक हल्की परत बन जाए।

इस बीज को छांयां में 2-3 घंटे सुखने के लिए रख दें |  बुवाई प्रात: 10 बजे से पहले या शाम को 4 बजे के बाद करें। जिस खेत में पहले मूंगफली की खेती नहीं की गयी हो उस खेत मे मूंगफली की बुवाई से पुर्व बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लेना बहुत ही लाभकारी होता है |

खाद एवं उर्वरक

मूंगफली की खेती में बुवाई से पहले खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 45-50 टन/ हेक्टेयर, मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। मूंगफली की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उचित मात्रा में पोषक तत्वों को समय से देना चाहिये। मूंगफली की फसल को प्रति हेक्टेयर 20 किलो नत्रजन, 30 किलो फास्फोरस, 45 किलो पोटाश, 200 किलो जिप्सम एवम 4 किलो बोरेक्स का प्रयोग करना चाहियें। फास्फोरस की मात्रा की पूर्ति हेतु सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करना चाहियें।  नत्रजन, फास्फोरस एवम पोटाश की समस्त मात्रा एवं जिप्सम की आधी मात्रा बुवाई के समय देना चाहिये। जिप्सम की शेष  आधी मात्रा एवम्‌ बोरेक्स की समस्त मात्रा को बुवाई के लगभग 22-23 दिन बाद देना चाहिये। ध्यान रहे रासायनिक उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही देना चाहिए।

कीट नियंत्रण    

मूंगफली में सफेद गीडार, दीमक, हेयरी कैटरपिलर आदि मुख्य कीट काफी नुकसान पहुँचाते है जिनकी रोकथाम के लिए निम्न उपाय करें 

सफेद गीडार की रोकथाम

  • मूंगफली में सफेद गीडार की रोकथाम के लिए मानसून के प्रारम्भ होते ही मोनोक्रोटोफोस05% का छिड्काव करना चाहिये।
  • बुवाई के 3-4 घंटे पुर्व क्युनालफोस 25 ई.सी. 25 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करके बुवाई करे।

दीमक की रोकथाम

दीमक की रोकथाम के लिए क्लोरपायरीफास रसायन की 4 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करे।

हेयरी कैटरपिलर की रोकथाम

हेयरी कैटरपिलर कीट का प्रकोप लगभग 40-45 दिन बाद दिखाई पड़ता है, इस कीट की रोकथाम के लिये डाईक्लोरवास 76% ई.सी. दवा एक लीटर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से पर्णीय छिड़काव करें।

रोग नियंत्रण

मूंगफली में कॉलर रोट, बड नेक्रोसिस तथा टिक्का रोग प्रमुख रोग है। जिनकी रोकथाम के लिए निम्न लिखित उपाय करें

कॉलर रोट

  • बीजाई के बाद सबसे ज्यादा नुकसान कॉलर रोट व जड़गलन द्वारा होता हैं | इस रोग से पौधे का निचला हिस्सा काला हो जाता है व बाद में पौधा सूख जाता है | सूखे भाग पर काली फफूंद दिखाई देती है |
  • इसकी रोकथाम के लिये बुवाई से 15 दिन पहले 1 किग्रा ट्राइकोड्रमा पाउडर प्रति बीघा की दर से 50-100 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर दें व बुवाई के समय भूमी में मिला दें | बुवाई के समय 10 ग्राम ट्राइकोड्रमा पाउडर प्रति किलो की दर से बीज उपचारित करें |
  • गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करके खुला छोड़ने से भी प्रकोप कम होता है | खड़ी फसल में जड़गलन की रोकथाम के लिये 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें |

पीलिया रोग

  • बरसात शुरू होते समय फसल पीली होने लगती है व देखते ही देखते पुरा खेत पीला हो जाता है| यह रोग लौह तत्व की कमी से होता है | इसकी रोकथाम के लिये 75 ग्राम फेरस सल्फेट व 15 ग्राम साइट्रिक अम्ल प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें |   

बडनेक्रोसिस

  • इस रोग की रोकथाम के लिए किसान जून के चौथे साप्ताह से पूर्व बुवाई ना करें। फिर भी अगर इस रोग का प्रकोप खेत में हो जाता है तो रसायन डाईमेथोएट 30 ई.सी. दवा का एक लीटर एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

मूंगफली का टिक्का रोग

  • इस रोग के कारण पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं | इसकी रोकथाम के लिए खड़ी फसल में मैंकोज़ेब 2 किलोग्राम मात्रा का प्रति हैक्टेयर में 2-3 छिड्काव करना लाभकारी होता हैं|

मूंगफली की कटाई एवं खुदाई का समय

परिपक्वता के प्रमुख लक्षण हैं पत्ते का पीला पड़ना, पत्तियों का पकना और पुरानी पत्तियों का गिरना। फली परिपक्व तब होती है जब यह सख्त हो जाती है और जब कोशिकाओं के अंदरूनी तरफ गहरा रंग होता है। परिपक्वता से पहले कटाई करने से बीजों के सिकुड़ने के कारण उपज कम हो जाती है जब वे सूख जाते हैं। कटाई में देरी करने से बीजों को गुच्छों की किस्म में सुप्त होने के कारण दायर में ही अंकुरित किया जाता है। मूंगफली की खुदाई प्राय: तब करे जब मूंगफली के छिलके के ऊपर नसें उभर आये तथा भीतरी भाग कत्थई रंग का हो जाये | खुदाई के बाद फलियो को अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें।

सफाई एवं सुखाई

  • मूंगफली की कटाई के समय, फली में आमतौर पर 40% (गीला आधार) से अधिक नमी होती है और शारीरिक परिपक्वता में व्यापक रूप से भिन्न होती है। सुरक्षित भंडारण या विपणन के लिए नमी को 10% या उससे कम करने के लिए फली को साफ और सूखना पड़ता है।
  • ढलाई या अन्य प्रकार की गिरावट को रोकने के लिए सुखाने को तेजी से किया जाना चाहिए लेकिन गुणवत्ता को कम करने के लिए बहुत तेजी से नहीं। यह वांछनीय स्वाद, बनावट, अंकुरण और समग्र गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करेगा।

मूंगफली की उपज

मूंगफली की उपज उसकी उसकी किस्म और सस्य क्रियाओं पर निर्भर करती है सामान्यतया मूंगफली की उपज 15 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।


Authors:

रामकुमार1, विनय कुमार2, राम केवल3, जयप्रकाश वर्मा4

1(शोध छात्र) कीट विज्ञान एवं कृषि जंतु विज्ञान विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी (उ. प्र.), 221005

2(शोध छात्र) भा. कृ. अनु. प. - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा नई दिल्ली पूसा नई दिल्ली, 110012

3(सहायक प्राध्यापक) कीट विज्ञान एवं कृषि जंतु विज्ञान विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी (उ. प्र.), 221005

4अनुवांशिकी और पादप प्रजनन विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी (उ. प्र.), 221005

संवादी लेखक का ईमेल- This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

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