Genetic engineering for disease resistance in plants: Recent progress and future perspective

विश्व की बढ़ती जनसंख्या, जो वर्तमान समय में 7.3 बिलियन से बढ़कर 2050 तक कम से कम 9.8 बिलियन हो जाने की सम्भावना है, उन्हे खिलाने के लिए, आधुनिक कृषि में विकास की सभी सम्भावनावो को तलाशने की जरुरत होगी जिससे पर्याप्त पोषक तत्व और उनके खद्दान्न की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। यह लक्ष्य काफी गम्भीर और चुनौती पूर्ण भी है क्योंकि फसलों को विभिन्न बीमारियों से काफी नुकसान होता है।

उदाहरण के तौर पर, जीवाणु संबंधी और फफूंद रोगजनकों द्वारा फसल की पैदावार में लगभग 15% की कमी आती है और वायरस से पैदावार में अनुमानतः 3% की कमी आती है । कुछ फसलों जैसे आलू के लिए, सूक्ष्मजीवीय संक्रमण से होने वाली हानि 30% से अधिक होने का अनुमान रहता है। रासायनिक घटको के उपयोग के विकल्प के रूप में, सूक्ष्मजीवीय संक्रमण के प्रतिरोध को बढ़ाने के लिए शोधकर्ता पौधों की आनुवंशिक संरचना को बदल रहे हैं।

पारंपरिक प्रजनन विधि, फसल सुधार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन आम तौर पर यह एक लंबी और श्रम प्रधान प्रक्रिया है जिसमें फसलों की बड़ी आबादी के साथ-साथ इनके कई पीढ़ियों की परीक्षा की आवश्यकता होती है। आनुवंशिक अभियांत्रिकी (जेनेटिक इंजीनियरिंग), जो प्रत्यक्ष रूप से एक जीव की आनुवंशिक सामग्री में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करके परिवर्तन को संदर्भित करता है, पारंपरिक प्रजनन के साथ तुलना में इसके कई फायदे हैं।

सबसे पहले, यह न्यूनतम अवांछित परिवर्तन के साथ विशिष्ट जीन में संशोधन, या ठीक-समंजन कर फसल की पैदावार को सक्षम बनाता है। परिणामस्वरूप, पारंपरिक प्रजनन के तुलना में फसलों का कृषि संबंधी वांछित लक्षण का प्रदर्शन कम पीढ़ियों में प्राप्त किए जा सकते हैं ।

दूसरा, आनुवंशिक अभियांत्रिकी, प्रजातियों में विभिन्नताओं के बावजूद आनुवंशिक सामग्री के अन्तर्विनिमय को सम्भावित करता है। इस प्रकार, आनुवंशिक सामग्रियों का दोहन जिन प्रक्रिया के लिए किया जा सकता है, वह प्रजातियों के भीतर उपलब्ध जीन तक ही सीमित नहीं रह जाता है।

तीसरा, पौधे के आणविक परिवर्तन के दौरान आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा वनस्पतीय फसलों जैसे कि केला (मूसा स्पे.), कसावा (मनिहट एस्कुलेंटा), और आलू (सोलनम ट्यूबरोसम) में नए जीनो के समावेश की अनुमति देता है। ये सभी विशेषताएं रोगजनकों के खिलाफ प्रतिरोध को बढ़ाने के लिए आनुवंशिक अभियांत्रिकी को और भी शक्तिशाली बनाती हैं।

पौधों में आनुवंशिक अभियांत्रिकी के ज्यादातर मामले पारंपरिक ट्रांसजेनिक दृष्टिकोण या हाल ही में विकसित जीनोम-संपादन प्रौद्योगिकियों पर निर्भर करता हैं । पारंपरिक ट्रांसजेनिक तरीके में, जीन जो वांछित एग्रोनोमिक लक्षण को एन्कोड करते हैं या दृच्छिक स्थानों पर जीनोम में आणविक परिवर्तन के माध्यम से डाले जाते हैं । इन विधियों में आमतौर पर बाहरी डीएनए वाली किस्में उत्पन्न होती हैं । इसके विपरीत, जीनोम संपादन में, पौधे के अंतर्जात डीएनए में विभिन्न लंबाई एवं निर्धारित लक्ष्यों पर परिवर्तन जैसे कि डीएनए के विलोपन, सम्मिलन और प्रतिस्थापन की अनुमति देता है।

संपादन के प्रकार के आधार पर, उत्पाद में बाहरी डीएनए हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता है । संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के कुछ अन्य क्षेत्रों, अर्जेंटीना, और ब्राज़ील, में जीनोम संपादित किये गये ऐसे पौधे जिनमें बाहरी डीएनए नहीं होते हैं, पारंपरिक प्रजनन द्वारा उत्पादित पौधों के बराबर माना जाता है, जो उन्हें ट्रांसजेनिक पौधों के लिए बनाये गये अतिरिक्त विनियामक उपाय से छूट देता है।

विनियामक नीतियों में अंतर के बावजूद दोनों, पारंपरिक ट्रांसजेनिक तकनीक और जीनोम संशोधन, फसल सुधार के लिए नायाब और शक्तिशाली उपाय बने हुए हैं।

समय के साथ पौधों ने सूक्ष्मजीवीय रोगजनकों के खिलाफ बहुस्तरीय रक्षा तंत्र को विकसित किया है | उदाहरण के लिए, पूर्वनिर्मित शारीरिक और शारीरिक बाधाओं और उनके सुदृढीकरण से संभावित रोगजनकों को कोशिका के भीतर पहुंच पाने से रोकने में सक्षम हो पाया है।

रोगजनकों के माध्यम से प्रतिरक्षा हेतु प्लाज्मा झिल्ली-बाध्य और अन्त: कोशिकिय रिसेप्टर्स के धारणा पर रोगजनकों द्वारा या तो सीधे शारीरिक रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से रोगजनक-व्युत्पन्न इम्युनोजेन्स के साथ मेजबान पौधों में लक्ष्यों के संशोधनों के द्वारा रक्षा प्रतिक्रिया को आरम्भ करते हैं।

पादप-व्युत्पन्न रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स और अन्य यौगिक, प्रत्यक्ष विषहरण द्वारा या विषाणु कारकों की गतिविधि के निषेध के माध्यम से रोगजनकता को काफी हद तक दबा सकते हैं । पौधों ने विकस के क्रम में वायरल रोगजनकों के आक्रमण और वायरल आरएनए के विघटन के लिये आरएनए हस्तक्षेप (आरएनएआई) को भी नियुक्त किया है।

दूसरी तरफ, मेज़बान पौधों की रक्षा प्रतिक्रियाओं की रणनीति को दूर करने के लिए सफल रोगजनकों का विकास भी हुआ है । उदाहरण के लिए, कई रोगजनक जीवाणु और कवक, कोशिका-दीवार-अपघटन के एंजाइमों का उत्पादन और स्राव भी करते हैं । रोगजनक, मेजबान पौधों के कोशिकीय द्रव्य में प्रभावकारक तत्व का समवेश कर उनको संवेदनशील बना सकते हैं ।

इन में से कुछ प्रभावकारक तत्व, मेजबान पौधों के रक्षा शक्ति को दबाकर उसके संवेदनशीलता को भी बढ़ा देता है । पौधों की आरएनएआई-आधारित सुरक्षा का मुकाबला करने के लिए, लगभग सभी वनस्पतीय वायरस, आरएनएआई के वायरल शामक का उत्पादन करते हैं । कुछ वायरस, मेजबान पौधों के आरएनएआई प्रणाली का भी अपहरण कर लेते हैं और मेजबान पौधों के जीन को चुप करा कर वायरल रोगजनन को बढ़ावा देते हैं ।

मेज़बान पौधे और सूक्ष्म जीव के बीच सम्पर्क के कुछ पहलू रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए आनुवंशिक अभियांत्रिकी में उपयोग के लिये अवसर प्रदान करते हैं । उदाहरण के लिए, जीन जो एक प्रोटीन को कुटलेखित करती है यदि वह कवकीय विष को तोड़ने में सक्षम हो, या कोशिका-भित्ति नाशक एंजाइमों की गतिविधि को रोकता हो, तो उसको पौधों में समावेश किया जा सकता है ।

पौधों को रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स या यौगिक संश्लेषित और स्रावित करने के लिए तैयार किया जा सकता है जिससे वह रोगजनको के सीधे हमले को रोकने में सक्षम हो सकते हैं। एक मजबूत वायरल प्रतिरक्षा के लिए आरएनएआई तकनीकी का उपयोग वायरल आरएनए को लक्षित करके उसके विघटन के लिये किया जा सकता है। प्राकृतिक या अभियांत्रित प्रतिरक्षा रिसेप्टर्स जो कि एक रोगज़नक़ के विभिन्न उपभेदों को पहचान सके उसे अलग-अलग या संयोजन में लाकर एक मजबूत और व्यापक रोग प्रतिरोध के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।

आवश्यक रक्षा-प्रतिरक्षा से सम्बंधित जीनो का पुनर्सन्योजन रक्षा प्रतिक्रियाओं की प्रभाविकता को बढाने के लिये किया जा सकता है। अतिसंवेदनशील मेजबान पौधों में रोगजनकों द्वारा लक्ष्यों में हेरफेर कर उसके पहचानने के शक्ति को मिटाने अथवा उसे संशोधित कर रोगग्रस्त करने के लिये किया जाता है।

इसी तरह, मेजबान पौधे द्वारा चारा प्रोटीन, जो रोगजनकों को फंसाने का काम करते हैं, उन्हें आनुवंशिक अभियांत्रिकि के माध्यम से संशोधित कर रोगजनक विशिष्टता के कारकों के पहचान में परिवर्तित किया जा सकता है। अंतर्निहित पौधा एवं रोगज़नको के बीच आणविक तंत्र के संबंध में ज्ञान वृद्धि और जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति ने पौधों में सूक्ष्मजीवीय रोगजनकों के प्रतिरोध के अभियांत्रिकी के लिए कई नये अवसर उपलब्ध कराए है।

आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता में हुये प्रगति के हाल के मुख्य अंश

रोगज़नक़-व्युत्पन्न प्रतिरोध और आरएनएआई

लंबे समय से शोधकर्ताओं ने देखा है कि वायरल रोगजनकों से प्राप्त जीन व्यक्त करने वाले ट्रांसजेनिक पौधे अक्सर रोगज़नक़ और उससे संबंधित उपभेदों से प्रतिरक्षा प्रदर्शित करते हैं । इन परिणामों के कारण ये परिकल्पना है कि मूल-प्रकार के या उत्परिवर्ती वायरल प्रोटीन जीन की अस्थानिक अभिव्यक्ति वायरल जीवन चक्र के साथ हस्तक्षेप कर सकते हैं |  हाल के अध्ययनों से पता चला है कि यह प्रतिरक्षा आरएनएआई द्वारा मध्यस्थित है, जो पौधों में एंटीवायरल रक्षा हेतु एक प्रमुख भूमिका निभाता है ।

आरएनएआई की सक्रियता, वायरस प्रतिरोध के अभियंत्रिकी के लिए एक प्रभावी दृष्टिकोण साबित हुई है क्योंकि वाइरस अपने जीवन चक्र को पूरा करने के लिये मेजबान पौधों के कोशिकिय मशीनरी पर निर्भर रहते हैं । अधिकांश पौधों में पाये जाने वले वायरस का आनुवंशिक जानकारी एकल-सूत्र आरएनए के रूप में होते हैं। द्विसूत्रिय आरएनए (डीएसआरएनए) अक्सर वायरल जीनोम की प्रतिकृति के दौरान आरएनए-निर्भर आरएनए पोलीमरेज़ द्वारा दोहराव वाले मध्यवर्ती स्थिति में बनता है और, मेजबान पौधों में आरएनएआई को ट्रिगर करता है ।

ट्रांसजेनिक वायरल आरएनए के अति-अभिव्यक्ति से अक्सर द्वीसुत्रीय आरएनए का गठन होता है, जो आरएनएआई को भी ट्रिगर करता है। इस प्रक्रिया को अक्सर सहदमन कहा जाता है। अब तक के सबसे मौजूदा मामलों में वायरल रोगजनकों के प्रतिरोध के साथ आनुवंशिक रूप से अभियंत्रित एवं अनुमोदित फसलों की खेती के लिए इस रणनीति का उपयोग करते हुए ही किया गया है । इस दृष्टिकोण का उपयोग करके बनाई गई विशेष रूप से, ट्रांसजेनिक स्क्वैश और पपीता की किस्में संयुक्त राज्य अमेरिका में 20 से अधिक वर्षों से व्यावसायिक रूप से उगाए जा रहे हैं।

खेतों से प्राप्त डेटा के अनुसार उस बीमारी के प्रति आरएनएआई-तकनिकी के माध्यम से प्राप्त प्रतिरोध के अत्यधिक टिकाऊ होने का संकेत मिलता है । आरएनएआई की रणनीति से विकसित स्क्वैश की किस्में जो कई वायरल जाति के प्रतिरोधी हैं, उसके निर्माण में भी प्रभावी रही है। इन किस्मों को जीन स्टैकिंग (यानी दो विशिष्ट आरएनएआई, जो विभिन्न वायरस को लक्षित करता है, की ट्रांसजेनिक अभिव्यक्ति) द्वारा उत्पादित किया गया था ।

द्वीसुत्रीय आरएनए का ज्ञान जिसमें यह आरएनएआई को प्रभावी रूप से प्रेरित करता है, ट्रांसजीन की संकेतीकरण, द्वीसुत्रीय आरएनए के उल्टे दोहराने के क्रम में डिजाइन के लिए भी अभिप्रेरित करता है । इस रणनीति का उपयोग एक ट्रांसजेनिक कॉमन बीन के किस्म को विकास करने के लिए किया गया था जिसमें डीएनए वायरस ‘बीन गोल्डन मोज़ेक वायरस’ के लिए प्रतिरोध का प्रदर्शन सफलता पूर्वक किया गया।

बीजीएमवी में एक्सुत्रीय डीएनए इसकी आनुवंशिक सामग्री के रूप में होता है जो मेजबान पौधों में द्वीसुत्रीय डीएनए में परिवर्तित हो जाता है। वायरल प्रतिलिपि को लक्षित करते हुए लघु आरएनए हस्तक्षेप को उत्पन्न करने के लिये, बीजीएमवी के जीन एसी 1 के प्रतिकृति के हिस्से की सेंस और एंटीसेंस अनुक्रम को सीधे एक इंट्रॉन-स्प्लिसिड हेयरपिन आरएनए अभिव्यक्ति कैसेट में क्लोन करके किया गया था।

बीजीएमवी प्रतिरोधी बीन को ब्राज़ील में 2011 में नियंत्रण मुक्त किया गया और किसानो को फसल उगाने के लिए अनुमति दिया गया । आज की तारीख में डीएनए वायरस के प्रतिरोध के लिये आनुवंशिक रूप से इंजीनियर यह एकमात्र फसल का उदाहरण है जो नियंत्रण मुक्त है।

सूक्ष्म (माइक्रो) आरएनए जो की एक अंतर्जात नॉनकोडिंग आरएनए होता है, की खोज ने वायरल प्रतिरोध के लिए आनुवंशिक अभियांत्रिकी की आगे शोध के लिए मार्ग प्रशस्त किया। सूक्ष्म आरएनए तंत्र को आरएनए वायरस के प्रतिरोध के लिये अभियांत्रिकी में सूक्ष्म आरएनए - एन्कोडिंग जीन में विशिष्ट न्यूक्लियोटाइड को प्रतिस्थापित कर उसके लक्ष्यीकरण विशिष्टता को बदल दिया जाता है।

ऐसे कृत्रिम सूक्ष्म आरएनए एक व्यापक श्रेणी के पादप विषाणु रोगजनकों के प्रतिरोधकता के लिये अभियांत्रिकी में उपयोग किया जाता है जैसे कि ‘शलजम मोज़ेक वायरस’, ‘ककड़ी मोज़ेक वायरस’, ‘आलू वायरस एक्स’, और ‘आलू वायरस वाई’ इत्यादि। उपरोक्त परिणाम दर्शाते हैं कि कृत्रिम- सूक्ष्म आरएनए - आधारित एंटीवायरल रणनीतियाँ बहुत ही कारगर हैं। इस रणनीति से इंजीनियर किये गये रोग प्रतिरोधी फसलों का निकत भविष्य में खेतों में परीक्षण की प्रतीक्षा है।

क्रिस्पर- कैस तकनिकी से वायरल रोगजनकों को सीधे तौर पर लक्ष्य करना

हाल के वर्षों में, बैक्टीरियल व्युत्पन्न गुच्छेदार नियमित रूप से छोटे पैलिंड्रोमिक दोहराव (क्रिस्पर)- क्रिस्पर से जुड़ी (कैस) पौधों के वायरस के खिलाफ प्रतिरोध अभियांत्रिकी के लिए एक आशाजनक दृष्टिकोण और तकनीक साबित हुई है। कई जीवाणु प्रजातियों में, क्रिस्पर- कैस एंटीवायरल के रूप में रक्षा मशीनरी का कार्य करता है। इस प्रक्रिया में, एक आरएनए-निर्देशित न्यूक्लियेज (अक्सर एक कैस प्रोटीन) सब्सट्रेट वायरल डीएनए या आरएनए के विशिष्ट लक्ष्य स्थानों में दरार उत्पन्न करता है, जिससे उनका क्षरण होता है।

दरार की विशिष्टता क्रिस्पर आरएनए और लक्ष्य डीएनए या आरएनए अणुओं के बीच आधार पूरकता द्वारा नियंत्रित होती है। अनुक्रम-विशिष्ट न्यूक्लियेज गतिविधि वाले ऐसे कई कैस प्रोटीन की पहचान की गई है। उदाहरण के लिए, स्ट्रेप्टोकोकस प्योगेनेस (एसपी कैस9) से आरएनए-निर्देशित एंडोन्यूक्लियेज कैस9, प्राकृतिक रूप से द्विसुत्रीय डीएनए में विराम को प्रेरित करता है और लेप्टोट्रिचिया शाही (एलएसएचकैस13ए) या लेप्टोट्रीचिया वेडी (एलडब्लुएकैस13ए ) से आरएनए निर्देशित आरएनएज, कैस13ए आरएनए को लक्षित करता है ।

फ्रंकिसेल्ला नोविसिडा के कैस9 (एफएनकैस9) से डीएनए और आरएनए दोनों को लक्ष्य किया जा सकता है । टोमैटो येलो लीफ कर्ल वायरस (टीवाईएलसीवी) जो जेमिनीविरिडी से संबंधित है उसमें एक-सुत्रीय वृत्ताकार डीएनए जीनोम होता है। एसपीकैस9 की अधिकता और कृत्रिम रूप से निर्मित किया गया मार्गदर्शक आरएनए जो कि टीवाईएलसीवी के विभिन्न क्षेत्रों को लक्षित करता है, तम्बाकु (निकोटियाना बेंटहैमिया) और टमाटर (सोलनम लाइकोपर्सिकम) में वायरस के लिए प्रतिरोधी क्षमता को प्रदान करता है।

इस दृष्टिकोण का एक संभावित कारण यह है कि मेजबान पौधों के कोशिका के भीतर डीएनए की मरम्मत होने से वायरल डीएनए अनुक्रम में परिवर्तन दरार वाली लक्ष्य के पास होने से हो सकता है। ये उत्परिवर्तन गाइड आरएनए द्वारा वायरल डीएनए को पहचानने में ढाल का काम करता हैं। टीवाईएलसीवी के खिलाफ उपयोग किए जाने वाले सभी गाइड आरएनए में लक्ष्यीकरण वाले मूल की प्रतिकृति के भीतर स्टेम-लूप अनुक्रम सबसे प्रभावी पाया गया जो कि संभवतः इस क्षेत्र में वायरस के व्यवहार्य बच निकलने वाली किस्मों की उत्परिवर्तन के कम घटना के कारण हो सकता है।

क्रिस्पर- कैस का उपयोग आरएनए वायरस के प्रतिरोध के अभियांत्रिकी के लिए भी किया जाता है, जिसमें अधिकांश ज्ञात पौधे वायरस रोगजनक होते हैं। उदाहरण के लिए, आरएनए-टारगेटिंग न्यूक्लीज कैस १३ ए की स्थिर अभिव्यक्ति और तम्बाकू (एन. बेंटहैमिना) में संबंधित गाइड आरएनए, शलजम मोज़ेक वायरस (आरएनए वायरस ) के प्रतिरोध को उत्पन्न करता है ।

इसी तरह, एफकैस9 का उपयोग तम्बाकू और अरबिडोप्सिस में आरएनए वायरस, ककड़ी मोज़ेक वायरस और तंबाकू मोज़ेक वायरस के खिलाफ प्रतिरोध इंजीनियर करने के लिए भी किया गया है।

हालांकि फसल प्रजातियों पर क्रिस्पर- कैस - आधारित एंटीवायरल प्रतिरोध का खेतीय परीक्षण नहीं किया गया है, परंतु प्रयोगशाला में हुये अध्ययनों ने एंटीवायरल तकनिक के रूप में इसकी क्षमता का प्रदर्शन और पहचान स्थापित कर चुका है। टिकाऊ प्रतिरोध सुनिश्चित करने के लिए, उपयोग में लाये जाने वाले विशिष्ट गाइड आरएनए से संभावित वायरल विकास पर विचार करना महत्वपूर्ण होता है।

प्रतिकृति के प्रसार के लिए आवश्यक जीनोमिक लक्ष्य को चुनना, वायरल रोगज़नक़ के निरंतर विस्तार को कम करने के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है। बिभिन्न गाइड आरएनए को एक साथ उपयोग करने से भी प्रतिरोध की मजबूती में सुधार हो सकता है।

इसके अलावा, यह अनुमान लगाया गया है कि कैस12ए (जिसे सीपीएफ1 के रूप में भी जाना जाता है) का उपयोग वायरल किस्मों की पलायन के घटना को कम कर सकता है क्योंकि क्रिस्पर- कैस12ए की वजह से उत्परिवर्तन का मूल गाइड आरएनए द्वारा लक्ष्य को नहीं पहचानने की संभावना कम हो जाती है। एंटीवायरस प्रतिरोध के लिए क्रिस्पर-कैस को बेहतर बनाने के भविष्य के प्रयास में प्रोकैरियोट्स में क्रिस्पर-कैस अनुकूली प्रतिरक्षा प्रणाली में स्पेसर अधिग्रहण मशीनरी का इस्तेमाल करके, पौधों में एडाप्टिव इम्युनिटी स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।

व्यापक और टिकाऊ प्रतिरोध के लिए प्रतिरोधी जीनो का उपयोग

1940 के दशक की शुरुआत में फ्लोर द्वारा फ्लैक्स और फ्लैक्स रस्ट कवक का उपयोग करके पादप-रोगज़नक़ बातचीत में आनुवंशिक अध्ययनों की शुरुआत करते हुए उत्कृष्ट "जीन-फॉर जीन" सिद्धांत की स्थापना की, जो बताता है कि किसी भी दिए गए पादप-रोगज़नक़ बातचीत का परिणाम काफी हद तक मेजबान पौधों से एक प्रतिरोध (आर) लोकस और रोगज़नक़ से मेल खाने वाले एविरुलेंस कारक (एवीआर) द्वारा निर्धारित किया जाता है (फ्लोर, १९७१) ।

जब मेजबान पौधे में आर जीन और रोगज़नक़ में संज्ञानात्मक एवीआर दोनों मौजूद होते हैं, तो पादप-रोगज़नक़ बातचीत असंगत होता है और मेजबान पौधा रोगज़नक़ के लिए पूर्ण प्रतिरोध प्रदर्शित करता है। आर जीन-मध्यस्थता वाले प्रतिरोध की प्रभावशीलता को सबसे पहले गेहूं प्रजनन में ब्रिटिश वैज्ञानिक रोलैंड बिफेन द्वारा प्रदर्शित किया गया था।

उस समय से, कई आर जीनों को क्लोन किया गया है और एक ही प्रजाति की किस्मों के अलावा प्रजातियों और पीढीयो की सीमाओं के पार भी प्रवेश किया गया है। उदाहरण के लिए, मक्का (जिया मेज़) के आर जीन आरएक्सओ1 को चावल (ओरिजा सातिवा) में प्रवेश कराने से बैक्टीरियल लकीर रोगज़नक़ जैंथोमोनास ओरिजा पीवी ओरिजीकोला के लिए प्रयोगशाला के स्थितियों के तहत प्रतिरोध की क्षमता को विकसित किया गया।

ट्रांसजेनिक आलू में प्राकृतिक आर जीन आरबी या पीआइवीएनटी1.1 को व्यक्त करने से फाइटोफ्थोरा इंफेस्टेंस के लिए मजबूत प्रतिरोध पैदा होता है। विशेष रूप से, प्रोफेसर जेआर सिंपलोट द्वारा विकसित आरपीआइवीएनटी1.1 को व्यक्त करने वाले ट्रांसजेनिक आलू एक आनुवंशिक रूप से अभियांत्रित फसल का एकमात्र उदाहरण है जिसमें एक अविषाणु रोगज़नक़ के लिए बढ़ाये गये प्रतिरोधी क्षमता के कारण उसे वाणिज्यिक उपयोग के लिए अनुमोदित किया गया है।

एक सफल रोगजनक अक्सर मेजबान आर जीन के द्वारा पता लग जाने से बचते हैं। इस प्रकार, एकल आर जीन द्वारा प्रदत्त रोग प्रतिरोध का अक्सर खेतों में स्थायित्व का अभाव होता है क्योंकि रोगजनक, संबंधित एवीआर जीन को उत्परिवर्तित करके आर जीन के पहचान से बचने के लिए विकास कर सकता है। बेहतर स्थायित्व के लिए और प्रतिरोध के दायरा को व्यापक बनाने के लिए, कई आर जीनों को अक्सर एक साथ संलग्न कर दिया जाता है, जिसे आमतौर पर स्टैकिंग के रूप में जाना जाता है।

आर जीन को एकीकृत करने के लिए एक दृष्टिकोण पहले से मौजूद आर जीनो को क्रॉस-ब्रीडिंग के द्वारा एक साथ लाने से है। प्रजनन कर्ता तब वांछित आर जीन संरचना के साथ संतान की पहचान करने के लिए मार्कर-असिस्टेड चयन का उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, चावल में बैक्टीरियल ब्लाइट, बैक्टीरियल रोगज़नक़ जैंथोमोनास ओरिजा पीवी ओरिजी (ज़ू), के कारण होता है जो एशिया और अफ्रीका के कई हिस्सों में होने वाली एक गंभीर बीमारी है।

क्रॉस-ब्रीडिंग और मार्कर-असिस्टेड चयन के माध्यम से, तीन आर जीन जो चावल में बैक्टीरिया जनित बिमारी के प्रति प्रतिरोध प्रदान करते हैं, एक्सए21, एक्सए5 और एक्सए13 को जलमग्न नामक एक गहरे पानी वाले चावल की किस्म में पेश किया गया । इकट्ठा किए गए आर जीन के साथ परिणामी लाइन में परीक्षण किए गए आठ ज़ू आइसोलेट्स के लिए खेतों में उच्च स्तर के प्रतिरोध का असर देखने को मिला।

मार्कर चयन के माध्यम से जीन स्टैकिंग के विकल्प के रूप में, वैज्ञानिक एक प्लास्मिड पर कई आर जीन कैसेट को इकट्ठा कर सकते हैं और फिर पौध-परिवर्तन के माध्यम से एक एकल आनुवंशिक स्थान पर इस आर जीन क्लस्टर को प्रवेश करा सकते हैं। आणविक स्टैकिंग नामक यह दृष्टिकोण, चयन प्रक्रिया को सरल बनाता है, क्योंकि इस तरह से पेश किए गए सभी जीनों को एक एकल आनुवंशिक स्थान के रूप में संगठित किया जाता है।

आणविक स्टैकिंग के फायदों के बावजूद, इसके माध्यम से पेश किए जाने वाले जीन की संख्या की सीमा को अक्सर डीएनए सम्मिलित करने की लंबाई द्वारा नियंत्रित किया जाता है जिसे वेक्टर में डाला जा सकता है। यदि डीएनए के टुकड़े को समान जीनोमिक लक्ष्य पर क्रमिक रूप से डाला जा सकता है तो यह सीमा समाप्त हो सकती है।

पौधों में जीनोम-संपादन प्रौद्योगिकियों में हाल की सफलताएं. विभिन्न फसल प्रजातियों में डीएनए के टुकड़ों के लक्षित लक्ष्य को संशोधन करने में सक्षम करती हैं। यह तकनीक कई आर जीन कैसेट को अनेको चक्र में एक ही स्थान में डालने की अनुमति देती है । जैसे-जैसे पौधों में जीनोम-संपादन प्लेटफॉर्म में सुधार होता है, लक्षित सम्मिलन की दक्षता, डीएनए आवेषण की आकार सीमा और अनुकुल पौधों की प्रजातियों की संख्या बढती जाती है। भविष्य में लक्षित जीन सम्मिलन में व्यापक स्पेक्ट्रम, टिकाऊ रोग प्रतिरोध और पौध-प्रजनन में सुविधा के लिए एक ही स्थान पर बड़ी संख्या में आर जीन और वायरल प्रतिरोध के अभियांत्रिकी के प्रगति के लिए नए अवसर प्रदान करेगी।

प्रतिरक्षा रिसेप्टर्स के ज्ञात प्रतिरूप को सुदृढ़ करके

पौधों में प्रतिरक्षा रिसेप्टर्स होते हैं जो रोगजनकों का अनुभव करते हैं और कोशिकिय रक्षा प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर करते हैं। प्रमुख प्रतिरक्षा कारकों को पहचानने वाले नये प्रतिरक्षा रिसेप्टर्स की खोज, पहले से ज्ञात प्रतिरक्षा रिसेप्टर जीन के प्रदर्शनों को समृद्ध करेगी। न्यूक्लियोटाइड-बाइंडिंग ल्यूसीन-समृद्ध दोहराव (एनएलआर) परिवार के प्रोटीन, पौधे और पशु साम्राज्यों में संरक्षित अन्त:कोशिकिय प्रतिरक्षा रिसेप्टर्स की एक प्रमुख श्रेणी में शामिल है।

एनएलआर-मध्यस्थित रक्षा का एक अलग पहचान है जिसकी शुरुआत योजनाबध्द कोशिका मृत्यु, जिसको अत्यंत अनुभुत (हाइपरसेंसिटिव) प्रतिक्रिया के रूप में भी जाना जाता है, से होती है जो रोगजनकों की गति को प्रतिबंधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अत्यंत अनुभुत प्रतिक्रिया का उपयोग मार्कर के रूप में किया जाता है, जिसका उपयोग विविध पौधों के जर्मप्लाज्म को जाँच करने में किया जाता है जिससे नये कार्यात्मक एनएलआर अथवा रोगजनको के प्रभावोत्पादक को पहचाना जा सके ।

जाँच के दौरान, मूल उग्रता कारकों को पौधे में एग्रो-घुसपैठ के माध्यम से पत्तियां में या तो क्षणिक रूप से व्यक्त जीन के रूप में या प्रयोगशाला में एक कार्यात्मक स्राव प्रणाली के साथ बैक्टीरियल उपभेदों में व्यक्त जीन के रूप में वितरित किया जाता है ।

एक बार जब एक विशेष रोगज़नक़ तनाव के प्रतिरोध के विभिन्न हदों को प्रदर्शित करने वाले जर्मप्लाज्म के संग्रह की पहचान कर ली जाती है, तुलनात्मक जीनोमिक्स उपकरण जैसे प्रतिरोध जीन संवर्धन अनुक्रमण का उपयोग एनएलआर जीन जो रोग समलक्षणो से जुड़े होते हैं उनके जीनोमिक विभिन्नताओं की पहचान करने के लिए किया जा सकता है । उदाहरण के लिए, रेनसेक तकनिकी को सफलतापूर्वक एंटी-पी इंफेस्टेंस की त्वरित पहचान और एनएलआर जीन आरपीआई-एमआर 3 आई की क्लोनिंग, एक जंगली आलू के रिश्तेदार सोलनम अमेरिकन से करने के लिये किया गया था। आरपीआई-एमआर 3 आई की आलू में ट्रांसजेनिक अभिव्यक्ति, ग्रीनहाउस परिस्थितियों में पी. इंफेस्टेंस के प्रति पूर्ण प्रतिरोध प्रदान करती है।

आलू अनुसंधान में उपयोग के अलावा, रेनसेक को स्टेम जंग कवक पक्सिनिया ग्रेमिनिस के खिलाफ गेहूं से एनएलआर प्रतिरोध जीन की क्लोनिंग में भी किया गया है। रोटी के लिये उपर्युक्त गेहूं की एक जंगली पूर्वज प्रजाति , एजिलेप्स टौस्की स्प. स्ट्रंगुलाटा का सर्वेक्षण लक्षण से जुडे होने के लिए रेनसेक का उपयोग कर चार स्टेम रस्ट (सीनियर) प्रतिरोध जीन के क्लोनिंग के लिये किया गया ।

यद्यपि इन नए पहचाने गए एनएलआर जीनों की क्षमता का मूल्यांकन खेतों में प्रयोग होने के बाद ही में पता चलेगा लेकिन उपरोक्त कुछ अध्ययनों से ये पता चलता है कि रेनसेक, एनएलआर जीन को तेजी से पहचानने के लिए एक शक्तिशाली उपक्रम है।

संवेदनशीलता वाले जीनो को संशोधित कर रोगजनकता को कम करना 

कई पादप रोगजनक संक्रमण प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए मेजबान पौधे के जीन को पराभूत कर लेता है और इन्ही लक्षित जीन को अक्सर संवेदनशीलता जीन के रूप में जाना जाता है। मेजबान पौधों में अतिसंवेदनशील जीनों का संशोधन या उसके निष्कासन से रोगजनकों द्वारा उनके हेरफेर को रोका जा सकता है और ये तकनीक प्रतिरोध को प्राप्त करने का एक प्रभावी उपाय हो सकता है। आरएनएआई और जीनोम एडिटिंग प्लेटफॉर्म अपेक्षाकृत सरल तरीके से अंतर्जात संवेदनशीलता के जीनो के कुशल संशोधन को सक्षम कर सकते हैं।

वायरल संक्रमण प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए कई पौधों की प्रजातियों में अत्यधिक संरक्षित यूकेरियोटिक अनुवाद दीक्षा कारक 4 ई (ईएलएफ 4ई) का हेरफेर किया जाता है। स्वाभाविक रूप से उपस्थित ईएलएफ 4ई के पुनरावर्ती जीन वायरल प्रतिरोध प्रदान करता है जो कि विशेष रूप से वायरल प्रोटीन के साथ प्रोटीन-प्रोटीन बातचीत को समाप्त करने के कारण हो पाता है।

‘स्वीट’ परिवार के जीन क्रॉस-मेम्ब्रेन शुगर ट्रांसपोर्टर्स को एनकोड करते हैं, जिनमें से कई रोग पैदा करने के लिए पादप रोगजनकों द्वारा उपयोग में लाये जाते हैं। अक्सर, जब स्वीट जीन सक्रिय होते हैं, तो अधिक चीनी को सेल के बाहर ले जाया जाता है और बैक्टीरिया को उपलब्ध कराया जाता है।। जीनोम-संपादन दृष्टिकोण के अलावा, आरएनएआई से चावल में स्वीट 11 जीन को रोक के एक ज़ू-तनाव के लिए प्रतिरोध को बढ़ाया गया।

संवेदंशील जीन अक्सर पौधों की प्रजातियों के बीच संरक्षित होता है। इसलिए, एक पौधे की प्रजातियों में अतिसंवेदनशील जीन का ज्ञान दूसरे पौधे की प्रजातियों में नए अतिसंवेदनशील जीन की खोज को सुविधाजनक बना सकता है।

रोगजनकों की रणनीतियों को विफल करने के लिए अतिसंवेदनशील जीन को संशोधित करना फसल सुरक्षा के मायने से काफी संभावनाएं रखता है। क्योंकि एक दिया गया जीन जो एक रोगज़नक़ के लिए संवेदनशीलता को स्वीकार करता है, दूसरे के प्रति प्रतिरोध प्रदान कर सकता है या अन्य आवश्यक जैविक कार्य कर सकता है, इसलिये संवेदनशीलता जीन को संशोधित करने के पूर्व संभावित दुष्प्रभावों का मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण होता है।

यह भी निर्धारित किया जाना आवश्यक होता है कि प्रयोगशाला अध्ययनों में चर्चा की गई उदाहरणों में मनाया गया प्रतिरोध का प्रदर्शन, क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार या खेतों में पौधे लगे हैं तो उनके प्रतिरोध मजबूत या टिकाऊ है या नहीं ।


 Authors:

डॉ. नवीन चंद्रा गुप्ता
भा. कृ. अनु. प. – राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली

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