DWRB.137: Barley's high productive, anti yellow-rustic and six-line new variety

जौ का उपयोग प्राचीन समय से ही भोजन एवं पशु चारा के लिए किया जाता रहा है । पुरातन समय मैं जौ का उपयोग योद्धाओं द्वारा शक्ति विकास एवं पोषण के लिए किया जाता था । वर्तमान मैं भी जौ की फसल एक बहुविकल्पीय फसल है क्योंकि यह अन्य रबी खाधान्नों की अपेक्षा कम लागत मे तैयार हो जाती है एवं यह लवणीय और क्षारीय भूमि एवं शुष्क क्षेत्रों के लिए भी वरदान है।

DWRB.137: Barley's high productive, anti yellow-rustic and six-line new varietyजौ के निरंतर प्रयोग से  यह एक औषधि का भी काम करती है और इसके रोजाना उपयोग कुछ बिमारियों जैसे मधुमेह, कोलेस्ट्रोल मे कमी एवं मूत्र रोग मैं फायदा होता है ।

जौ के उत्पादन को बढाने और रोगरोधिता को उन्नत बनाने के क्राम मैं भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान में संकरण विधि (डी.डब्ल्यू.आर.बी.२८/डी.डब्ल्यू.आर.यु.बी.६४) द्वारा जौ की उच्च उत्पादक, रोगरोधी किस्म डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 को तैयार किया गया है ।

यह किस्म अत्याधिक उत्पादक एवं पीला रतुआ के लिए रोधी होने के साथ-साथ इसकी दाना गुणवत्ता भी अच्छी है । इन्ही गुणों को ध्यान मैं रखते हुए डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 को 56 वीं गेहूं एवं जौ कार्यशाला की बैठक मे चिन्हित किया गया ।   तत्पश्चात सी वी आर सी की ७९ वीं बैठक मैं गज़ट नंबर १३७९ (ई) दिनांक २७ मार्च २०१८ द्वारा डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 को अनुमोदित एवं जारी कर दिया गया ।

उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र मे डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 की औसत उपज ३७.९३ क्विंटल/है दर्ज की गयी तथा यह  अन्य जांचक किस्मों क्रमश: एच.यु.बी. 113, ज्योति, के 508 एवं आर.डी. 2552 से बेहतर पाई गई । डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 की औसत उपज अन्य जोंचक किस्मों क्रमशः एच.यु.बी.113 (5.00%), ज्योति (10.20%) एवं के 508 (10.05%) से अधिक पायी गई । मध्य मैदानी क्षेत्रों के समन्वित परीक्षणों मे डी.डब्ल्यू.आर.बी. 137 को लगातार तीन वर्षों तक 15 परीक्षण केन्द्रों पर परखा गया ।

इसे जांचक किस्मों क्रमश: बी.एच. 959, पी.एल. 751 एवं आर.डी. 2786 के साथ परखा गया एवं डी.डब्ल्यू.आर.बी. 137 की औसत उपज ४२.४९ किवंटल/है. पाई गई । डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 की दाना उपज अन्य सभी जांचक किस्में, जैसे पी.एल. 751 (9.01 %), बी.एच 959 (10.67%) और आर.डी. 2786 (5.46%) से अधिक थी ।

डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 रोगरोधिता मे पीला रतुआ के लिये अत्याधिक रोधी पाई गयी एवं अधिकतम रोग की इकाई 5 एम एस दर्ज जी गई । डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 एस.आर.टी. परीक्षणों मे भी पीला रतुआ की रेस 57, 24, एम, जी और क्यु के प्रति रोगरोधी पाई गई ।

डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 की बालियां सीधी, पीलापन लिए हुई हरी तथा सघन प्रकार की हैं एवं इसके दाने पीले और मोटे हैं । डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 के मध्य क्षेत्र मे औसत बाली आने के दिन 69, पकने के दिन 113 और पादप ऊँचाई 81 से.मी. पाए गए ।

उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र मे इसकी पादप ऊँचाई 88 से.मी. और परिपक्वता दिन 115 दर्ज किये गए । मध्य मैदानी क्षेत्र मे डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 के दानों का हेक्टोलीटर वजन 65.7 कि.ग्रा./ हेक्टोलीटर, 1000 दाना वजन 46 ग्राम दर्ज किया गया तथा इसके एवं प्रोटीन की मात्रा 12.7 प्रतिशत पाई गयी ।

इस किस्म का हजार दाना वजन, मोटे दानों का प्रतिशत उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र मे भी जांचक किस्मों से अधिक पाया गया । डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 के प्रमुख लक्षण निम्न प्रकार हैं-

तालिका:  डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 के प्रमुख लक्षण

लक्षण मध्य क्षेत्र उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र
उपज (क्विंटल/है) ४२.४९ ३७.९३
बाली आने के दिन (दिनों में) ६९ ७५
परिपक्वता दिन (दिनों में) ११३ ११५
पादप ऊँचाई (से.मी.) ८१ ८८
दाना हेक्टोलीटर वजन (कि.ग्रा./ हेक्टोलीटर) ६५.७ ५४.९३
1000 दाना वजन (ग्राम) ४७.० ४०.३७
मोटे दानो का प्रतिशत ८८.९ ७५.६३
दाना प्रोटीन की मात्रा (प्रतिशत सूखा विधि) १२.७ ११.०

अतः डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 जौ की एक उच्च उत्पादक एवं पीला रतुआ रोधी किस्म है । इसकी विशेषता है कि यह अन्य जौ की किस्मों की अपेक्षा पादप ऊँचाई मे छोटी है इसलिए पादप गिरने की अवस्था के लिये सहनशील है । डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 के दाने मोटे होने के कारण इस किस्म की माल्टिंग गुणवत्ता भी संतोषजनक है ।

इसलिए डी.डब्ल्यू.आर.बी.137 को मध्य मैदानी क्षेत्र (मध्यप्रदेश, गुजरात, कोटा एवं उदयपुर संभाग राजस्थान) एवं उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र (पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड) के किसान भाइयों द्वारा अन्य प्रचलित जौ की किस्मों की जगह अपनाना चाहिए जिससे उन्हें अधिक मुनाफा होने की पूर्ण संभावना है ।   


Authors

विष्णु कुमार, अजित सिंह खरब, दिनेश कुमार एवं जी.पी.सिंह

भा.कृ.अ.प.- आई.आई.डब्ल्यू.बी.आर., करनाल

Ema। l:v। shnupbg@gma। l.com

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