7 major viral and bacterial diseases of goats and their vaccination program

कुछ सामान्य लक्षणों को देखकर बीमार पशु की पहचान की जा सकती है जैसे बीमार पशु सुस्त दिखाई देने लगता है या पशु खाना पीना कम या पुर्णत: बंद कर देता हैl बकरियों में होने वाली कुछ संक्रामक बीमारियाँ जानलेवा हो सकती हैं इसलिए इनके बारे में उचित जानकारी रखनी चाहिए l

बीमार पशु के लक्षण :

बीमार पशु में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते है जिससे सचेत होकर तुरंत उपचार शुरू कर देना चाहिए-

  • बीमार पशु सुस्त दिखाई देने लगता है।
  • जुगाली कम कर देता है या फिर बंद कर देता है।
  • पशु खान-पान में कमी या पुर्णत: बंद कर देता है
  • सांस की गति तेज हो जाती है l
  • झुंड से अलग अलग या पीछे पीछे चलता है।
  • उसकी चंचलता में कमी आ जाती है।
  • बालों की चमक खो जाती है ।
  • आँखो की हलचल कम हो जाती है तथा चमक भी कम हो जाती है।
  • जल्दी थक जाता है और बैठ जाता है।
  • बुखार के कारण शरीर गरम प्रतीत होता है
  • गोबर पतला या कभी कभी ठोस करता है
  • पेशाब में बदबू आने लगती है।
  • कुछ बीमारीयों में मुह से लार आती है

पशुओं में बुखार/ ज्वर का पता लगाना:

विभिन्न पशुओं के शरीर का सामान्य तापमान 100-103 डिग्री फैरेनहाईट  के बीच रहता है l इससे अधिक तापमान को पशुओं में ज्वर (बुखार) कहा जाता है l विभिन्न जीवाणु या विषाणु जन्य रोग तथा बीमारियों में शरीर के तापमान में वृद्धि हो जाती है l शरीर का तापमान पता चलने से पशु का तुरंत उपचार संभव होता है तथा होने वाला नुकसान कम हो जाता है l

  1. सर्वप्रथम पशु को किसी स्थान पर बांध लें l
  2. उसकी पूँछ को एक हाँथ से पकड़ कर उठा लें या एक तरफ कर दें l
  3. थर्मामीटर का उपयोग करने से पहले उसे ठीक से साफ करेएवं हाथ से हल्के से झटकें ताकि पारा नीचे आये l
  4. थर्मामीटर के अगले सिरे को पशु के गुदा द्वार में धीरे से घुसा दें l एवं उसे थोड़ा सा तिरछा कर दें ताकि थर्मामीटर का अगला सिरा अग्नाशय की अंदरूनी सतह (म्युकोसा) के संपर्क में आ जाये l
  5. थर्मामीटर को लगभग १-२ मिनट तक ऐसे ही रखें l
  6. अब थर्मामीटर को बाहरनिकाल के उसकी रीडिंग को पढ़ें (निम्न चित्र को देखें)l  डिजिटल थर्मामीटर में स्वतः ही तापमान प्रदर्शित हो जाता है l
  7. किसी प्रकार की शंका में शारीर का तापमान १०-१५ मिनट बाद दुबारा भी ले सकते है l
  8. उपयोग के पश्चात थर्मामीटर के अगले सिरे को को रुई या अन्य कपड़े से साफ करें l

बकरियों में होने वाले प्रमुख विषाणु एवं जीवाणु जनित रोग:-

1. पी.पी. आर. (बकरी प्लेग):

यह बीमारी बकरियों एवं भेड़ों में होती है l यह एक अत्यधिक संक्रामक एवं घातक विषाणु जन्य रोग है l नवजात बच्चों में इस रोग के  प्रकोप से उनकी मृत्यु हो जाती है l इस रोग से ग्रसित होने वाली बकरियों में से 40 से 70 प्रतिशत बकरियां मर जाती हैं l इसके मुख्य लक्षण तेज बुखार (104-106F), दस्त, आँख व नांक से पानी आना,सर्दी, मुंह में छाले होना इत्यादी हैं l इस रोग का कोई उपचार नहीं है l परन्तु द्वितीयक लक्षणों का उपचार कर पशु को बचाने का प्रयास किया जा सकता है l इसलिए इस रोग के लिए पहले से टीकाकरण करवा लेना चाहिए l

बकरी प्लेग रोग से ग्रसित

चित्र: बकरी प्लेग रोग से ग्रसित पशु

2. खुपका-मुंहपका (ऍफ़.एम. डी.):

यह भी एक विषाणु जन्य संक्रामक रोग होता है l इस रोग में तीव्र ज्वर(104-106F) होकर मुंह, जीभ, तालू, व खुरों के बीच में छाले हो जाते हैं l समय के साथ छाले फूटने से घाव निर्मित हो जाता है l मुंह से झाग एवं लार गिरने लगती है l मुंह में घाव के कारण अत्यधिक दर्द के कारण पशु खाना-पीना बंद कर देता है और चलने में भी असमर्थ हो जाता है l

गाभिन बकरियों में गर्भपात की सम्भावना बढ़ जाती है l छोटे बच्चों की बिना किसी लक्षण के अचानक मृत्यु हो जाती है l वयस्क बकरियों में मृत्यु दर काफी कम (2-5%) होती है लेकिन रोग का उत्पादन में बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है l इस रोग का कोई विशेष उपचार नहीं है फिर भी लक्षणों के आधार पर उपचार किया जा सकता है l

मुंह व  खुरों में हुए घावों की एंटीसेप्टिक के घोल से धुलाई करनी चाहिए l बीमार बकरी के मुंह को फिटकरी के 2-3 % घोल से साफ़ करके घावों में बोरोग्लिसरीन 2-3 बार लगाना चाहिए l  पैरों के घाव को 2% पोटेशियम परमैगनेट के घोल से साफ़ करने के बाद उसमें पोविडीन आयोडीन पाउडर या हिमेक्स क्रीम लगाना चाहिए l

बीमार पशु को नरम व सुपाच्य भोजन खिलाना चाहिए l  इस रोग से बचाव के लिए भी टीका उपलब्ध है अतः समयानुसार टीकाकरण करवा लेना चाहिए l

3. बकरी चेचक :

यह बकरियों में होने वाला विषाणु जन्य संक्रामक रोग है l यह रोग बकरियों की सभी उम्र के पशुओं में हो सकता है  लेकिन छोटे बच्चों ज्यादा प्रभावित होते हैं l इस रोग में पहले तीव्र ज्वर (104-107F) होता है फिर 2-3 दिन बाद  पशु के कान, होंठ, थूथन व बाल रहित स्थानों की चमड़ी पर फफोले या दाने निकल आते हैं l

रोग बढ़ने पर आँखे लाल हो जाती हैं, नाक से पानी आने लगता है और न्युमोनिया भी हो जाता है l रोगी बकरी की भूख कम हो जाती है और 2 से 3 दिन बाद मृत्यु हो जाती है l रोकथाम हेतु बीमार बकरियों को अलग स्थान पर रख देना चाहिए l इसके बचाव के लिए टीकाकरण करवाना चाहिए l

4. मुँहा रोग:

यह एक विषाणु जन्य रोग है जिसमें पूरे मुंह में और थनों में दाने बन जाते हैं l बाद में ये दाने कड़े पड़ जाते हैं जिन्हें दबाने पर अत्यंत दर्द होता है l जीवाणु संक्रमण के कारण इनमें मवाद भी बन सकता है l बकरी खाना पीना बंद कर देती है l और इलाज ना मिलने पर मृत्यु हो जाती है l

इसके उपचार के लिए पोटेशियम परमेगनेट का गाढ़ा घोल दानों पर लगाना चाहिए l फिर दानों की सफाई कर उस्न्में पोविडीन आयोडीन का पाउडर या एंटीसेप्टिक क्रीम लगा देनी चाहिए l मवाद बनने से रोकने के लिए एंटीबायोटिक इंजेक्शन भी लगवाना चाहिए l

मुन्हा रोग से ग्रसित पशु

चित्र: मुन्हा रोग से ग्रसित पशु

5. आंत्रशोथ (एंटेरोटोक्सिमिया):

यह एक जीवाणु जनित रोग है जो क्लास्ट्रीडियम पर्फिर्न्जेंस नामक जीवाणु से होता है l यह जीवाणु सामान्य रूप से आंतो में ही पाया जाता है परन्तु जब पशु अधिक दाना या चारा खा लेता है तब यह जीवाणु सक्रीय हो जाता है l सक्रिय होने के बाद यह जीवाणु टाक्सिन या जहर बनाने लगता है l इससे पेट में तीव्र दर्द, जमीन में गिरकर घिसटना, लडखडाना, अफरा, काले रंग का दस्त आदि लक्षण दिखाई देते हैंl यह खतरनाक बीमारी है जिसमें 4 से 24 घंटे में पशु की मृत्यु हो जाती है l रोग से बचाव हेतु टीकाकरण किया जाना चाहिए l

6. कोलीबेसिलोसिस (दस्त रोग):

यह जीवाणु जनित (ई. कोलाई) संक्रामक रोग है जो नवजात बच्चों में अधिक होता है l इसमें तीव्र दस्त लगने लगते हैं जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है l बच्चे सुस्त और कमजोर हो जाते हैl उनका तापमान बढ़ जाता है l

उपचार ना मिलने पर बच्चों की मृत्यु हो सकती है l इसलिए जैसे ही दस्त लगें सर्वप्रथम बच्चों का दूध कम या बंद कर देना चाहिए l फिर उनको ओ आर. एस. घोल (50-100 मि.ली.) प्रति 2 घंटे में पिलाना चाहिए l एंटीबायोटिक का प्रयोग पशु चिकित्सक की सलाह पर करना चाहिए l

7. खुर पकना (फुट रॉट):

इस रोग में बकरी के खुरों के बीच में छाले पद जाते हैं जो बाद में फूटकर घाव बना देते हैं l इससे बकरियां लंगड़ाने लगती हैं l इसके उपचार के लिए बकरियों के खुरों को 1 % नीला थोथा (कॉपर सल्फेट) के घोल से धोकर कोई भी एंटीसेप्टिक क्रीम लगा देना चाहिए l इसके बचाव के लिए बकरियों के खुरों को बरसात के दिनों में कम से कम एक बार 1-2% नीला थोथा या 1% लाल दवा के पानी से धोना चाहिए l

बकरियों में टीकाकरण कार्यक्रम:

टीके का नाम

प्रारंभिक टीकाकरण

पुनः टीकाकरण

प्रथम टीका

बूस्टर टीका

खुरपका-मुंहपका रोग का टीका

3 से 4 माह की आयु में

पहले टीके के 4 सप्ताह बाद

प्रत्येक 6 माह में

बकरी प्लेग (पी.पी.आर.) का टीका

4 माह की आयु में

आवश्यक नहीं

4 वर्ष बाद

बकरी चेचक का टीका

3 से 5 माह की आयु में

प्रथम टीके के 3 सप्ताह बाद

साल में एक बार

आंत्र शोथ का टीका

3 माह की आयु में

प्रथम टीके के 2-3 सप्ताह बाद

साल में दो बार 3 सप्ताह के अंतर से

गलघोंटू का टीका

3 माह की आयु में

प्रथम टीके के 6 माह बाद

साल में एक बार

 


Authors:

दीपक उपाध्याय, मधु मिश्रा, पूजा तम्बोली, अनूप कुमार एवं अंजली एम. वी.

भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसन्धान संस्थान, झाँसी (उ.प्र.) २८४ ००३

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