Pesticides and Insecticides scenario in India

भारत में सत्तर के दशक में हरित क्रांती के पश्चात सघन खेती का दौर शुरू हुआ जिसने फसलो की संकर किस्मो की बुआई की जाने लगी। इन संकर किस्मो मेंं कीट तथा रोगो के प्रति सहिष्णुता कम होने से इन पर कीट तथा रोगो का असर ज्यादा होता है अतः इन पर कीटनाशी तथा रोगनाशी दवाओ का ज्यादा बार छिडकाव करना पडता है तथा ज्यादा बार इस्तेमाल करना पडता है ।

इसके अलावा कीटो  में कीट नाशियो  के प्रति प्रतिबंधक शक्ती निर्माण होती है। इसलि‍ए फसलो पर हर बार नयी कीटनाशी तथा रोगनाशी दवाओ का ज्यादा बार छिडकाव करना पडता है तथा ज्यादा बार इस्तेमाल करना पडता है।  

भारत में कीटनाशी दवाओ का उत्पादन १३९ ०००  मेट्रिक टन प्रति वर्ष है जिसने से २१९ मेट्रिक टन  कीटनाशी दवाये तकनिकी ग्रेड कि है ,जब कि आज बाजार में ४००० दवाये उपलब्ध है। भारत में कीटनाशी दवाओ का इस्तेमाल ४१.८३३ मेट्रिक टन है ।  भारत में निर्मित कुल कीटनाशी तथा रोगनाशी दवाओ का ५० प्रतिशत हिस्सा देश में ही इस्तेमाल होता है तथा बाकी निर्यात होता है।

टाटा स्ट्रॅटेजी नामक संस्था द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत मे निर्मित कुल दवाओ मे से ६० प्रतिशत  कीटनाशी दवाये है , फफूंदनाशी दवाये १८ प्रतिशत , खरपतवार दवाये १६ प्रतिशत , जैव कीट नाशी दवाये ३ प्रतिशत तथा अन्य दवाये २ प्रतिशत है ।

रेषाधारी फसल  कपास में कुल किट नाशी दवाओ का  कम से कम ५६ % भाग खर्च होता है।  फलो  सब्जी , मसाला , तिलहन फसलो  पर  कुल कीटनाशी दवाओ का  कम से कम ५६ % भाग खर्च होता है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार कीटनाशी तथा रोगनाशी दवाओ के इस्तेमाल में १.२ से लेकर २.६  प्रतिशत तर्क वृध्धी हो चुकी है तथा इसमे निरंतर बढोतरी हो रही है । इसके कारण वनस्पती जगत , प्राणी जगत , मानव जगत तथा वातावरण में कई समस्याये  पैदा हो रही है अतः यह एक अत्यंत चिंता का विषय है I

भारत के ज्यादा तर किसान अनपढ या कम पढे लिखे है । उनमे से ज्यादा तर किसानों को कीटनाशी तथा रोगनाशी दवाओ का सही मात्रा तथा समय पर  छिडकाव के बारे में सही जानकारी नही होती अतः ज्यादातार किसान कीटनाशी तथा रोगनाशी दवाओ का ज्यादा छिडकाव करते है  तथा ज्यादा बार इस्तेमाल करते है I

राज्य अनुसार कीटनाशी तथा रोगनाशी दवाओ का इस्तेमाल

राज्य अनुसार कीटनाशी तथा रोगनाशी दवाओ के इस्तेमाल को लेकर किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के आंध्र प्रदेश में कीटनाशी / रोगनाशी दवाओ का  इस्तेमाल  सर्वाधिक यानी २४ प्रतिशत है।

इसके बाद महाराष्ट्र में १३ % , पंजाब में ११ % , मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ में ८ % , कर्नाटक तथा गुजरात में ७ % , तामिळनाडू , हरयाणा और पश्चिम बंगाल में ५ % तथा अन्य राज्यो में रोगनाशी दवाओ का  इस्तेमाल १५ % होता है I

कीटनाशी दवा मै इस्तेमाल कि जानेवाली मात्रा

एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में औसतन ०.६ किलोग्रॅम कीटनाशी दवा प्रति हेक्टर कि मात्रा में इस्तेमाल होती है। लेकिन भारत कि अपेक्षा दुनिया के दुसरे देशो में ज्यादा मात्रा में कीटनाशी दवाए इस्तेमाल होती है।

तायवान में १७ किलोग्रॅम कीटनाशी दवा प्रति हेक्टर ,चीन में १३  किलोग्रॅम कीटनाशी दवा प्रति हेक्टर, जापान में १२   किलोग्रॅम कीटनाशी दवा प्रति हेक्टर, अमरिका तथा कोरिया में ७ किलोग्रॅम कीटनाशी दवा प्रति हेक्टर और इंग्लंड तथा फ्रांस में ५ किलोग्रॅम कीटनाशी दवा प्रति हेक्टर इस्तेमाल होती हैI

चारा फसलो पर इस्तेमाल कि जानेवाली फफूंदनाशी दवाए 

थायरम , मानेब , झायनेब , बाविस्टीन , बाविस्टीन , रिडोमिल , मेटा सिटॉक्स , कार्बनडेनझीम, केराथेंन तथा ऑक्सिकार्बोक्सिन  इ.

चारा फसलो पर इस्तेमाल कि जानेवाली कीटनाशी दवाए 

कार्बोफुरोन,एंडोसल्फान , मॅलाथिऑन , क्लोरपायरीरिफॉस , डायमेथोयेट, मेथोमिल , पॅराथिऑन , परमेक्टीन बेन्झोएट तथा ऍसिफेट इ.

देश के विभिन्न भागो से इकठठा किये गये सब्जीयो के नमुनो कि  प्रयोगशाला में जांच करणे पर ज्ञात हुआ कि उनमें मॅलॅथिऑन , मोनोक्रोटोफॉस , डायक्रोटोफॉस,क्लोरपायरीफॉस, फोरेट  तथा सायपरमेथ्रीन आदी कीटनाशी दवाओ के अंश इतनी मात्रा में  पाये गये जो मानव के स्वास्थ्य के लिये खतरनाक है।

उसी  प्रकार देश के विभिन्न भागो से इकठठा किये गये फलो के नमुनो कि  प्रयोगशाला में जांच करणे पर ज्ञात हुआ कि उनमें सायफ्लूथ्रिओन, अल्ड्रीन  तथा सायपरमेथ्रीन आदी कीटनाशी दवाओ के अंश इतनी मात्रा में  पाये गये जो मानव के स्वास्थ्य के लिये खतरनाक हैI 

अनाज के नमुनो कि  प्रयोगशाला में जांच करणे पर ज्ञात हुआ कि उनमें फेनीट्रोथीम , ट्रिझोफॉस ,क्विनॉलफॉस , डायक्लोरव्हॉस तथा इथिओन आदी कीटनाशी दवाओ के अंश इतनी मात्रा में  पाये गये जो मानव के स्वास्थ्य के लिये खतरनाक हैI 

मसाला फसलो के नमुनो कि  प्रयोगशाला में जांच करणे पर ज्ञात हुआ कि उनमें क्विनॉलफॉस  है। दूध के नमुनो में क्लोरपायरीफॉस, इंडोसल्फान , लिन्डेन तथा कुछ कीटनाशी दवाये जैसे डी .डी .टी. और बी .एच ,सी ,जिन को बेचने पर  सरकार ने पाबंदी लगा दी है  उनके अंश भी पाये गये हैI

कीटनाशी दवाओ का  मिट्टी पर बुरा असर

क्लोरपायरीफॉस, फेनवरलेट जैसी  कीटनाशी दवाओ के ज्यादा इस्तेमाल से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जिवाणू जैसे रायझोबियम ,अझाटोबॅक्टर  , पी .एस .बी  इ . तथा केंचूये  तथा अन्य मर जाते है जिससे उनके लाभ नही मिल पाते और मिट्टी धीरे धीरे खराब हो जाती है I

कीटनाशी दवाओ का  पौधो पर बुरा असर

२ -४ -डी जैसे खरंपतवार दवा  के छिडकाव से कपास के पत्ते टेढेमेंढे हो जाते है और फसल उत्पादन कम हो जाता है। इसके अलावा फसल पर आनेवाले मित्र किट जैसे लेडी बर्ड बीटल ( जो माहू नामक रस चूसक  किट को खाते है ) वह मर जाते है .इससे फसल पर शत्रू किट जैसे माहू नामक रस चूसक  किट का प्रकोप बढ जाता है और फसल उत्पादन कम हो जाता है I

कीटनाशी दवाओ का  पशुओ पर बुरा असर

कुछ कीटनाशी दवाये जैसे ऑरगॅनोकेमिकल्स  के निर्माण में सिसा , कॅडमीयम तथा  पारा जैसे रसायन इस्तेमाल होते  है  यह रसायन जब कारखानो से  जाया पानी बाहर छोड दिया जाता है तब वह आसपास कि मिट्टी में समा जाते है और उस मिट्टी में जो फसल  उगाई जाती  है उसमे प्रवेश पाते है 

जब पशु ऐसा दूषित चारा ग्रहण करते है तब उनको इन रसायनो कि विषाक्तता हो जाती है और पशु के स्वास्थ्य पर बुरा असर पडता है । इन रसायनो के अंश चारे के जरीये पशु के खून में तथा खून के जरीये  दूध में आ जाते है। जो मानव ऐसे दूषित दूध को ग्रहण करते है उन के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पडता है।

भोपाल त्रासदी में राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिको के दल ने  के वहा के ग्रसित पशुओ का  सर्वेक्षण  किया तो पाया कि उनकेस्वास्थ्य पर बुरा असर तो पडा ही था लेकिन खतरनाक बात यह पायी कि उन पशुओ  के डी .एन .ए . में भी बदलाव पाये गये .

कीटनाशी दवाओ का  पालतू  पशुओ पर बुरा असर

आजकल पालतू  पशुओ में बाह्य परजीवीयो के नाश हेतू इस्तेमाल होनेवाली दवाई जैसे क्लिनार आदी के छिडकाव के दौरान अगर पालतू  पशु के मुंह पर जाली नही लगाई तो वह खुद्द का बदन चाटते है तब इस दवाई के अंश पालतू  पशु के पेट में पहुच कर उसकेस्वास्थ्य पर भी बुरा असर पडता है

कीटनाशी दवाओ का  मानव  के स्वास्थ्य पर बुरा असर

सन १९८४ में मध्य प्रदेश स्थित भोपाल शहर में युनियन कार्बाइड नामक कीटनाशी दवाये बनाने वाली कंपनी के कारखाने से मिथाईल आयसो सायनेट नामक जहरीले रसायन का वायू का उत्सर्ग हो गया था जिसके प्रभाव से हजारो लोगो को अपनी जान से हाथ धोना पडा था तथा कई लोग बिमार हो गये .

पिछले चंद वर्षो से दुनिया भर मे तथा भारत मे कँसर के मरीजो कि तादाद लगातार बढती ही जा रही है और ऐसा माना जाता  है कि कीटनाशी दवाये ,. रासायनिक खाद्य  तथा अन्य रसायनो के बिना सोचे समझे लगातार बढते इस्तेमाल से यह हो रहा है ।

पंजाब मे कँसर के मरीजो कि तादाद लगातार बढती ही जा रही है क्योकी वहा कीटनाशी दवाये ,. रासायनिक खाद्य  तथा अन्य रसायनो के बिना सोचे समझे लगातार बढते इस्तेमाल से यह हो रहा है और नौबत यह आ चुकी है कि वहा  से रोजाना बिकानेर के लिये एक कँसर विशेष गाडी चलाई जा रही है जिसमे कँसर के मरीजो कि भरमार होती है ।

कीटनाशी दवाये ,. रासायनिक खाद्य  तथा अन्य रसायनो के बिना सोचे समझे लगातार बढते इस्तेमाल से मानव मे भेजे ( ब्रेन ) से तथा तंत्रिका प्रणाली  से संबंधित बिमारीया लगातार बढ रही है  तथा संप्रेरको का असंतुलन हो रहा है इसके  अलावा  विषाक्तता भी हो रही है .

ध्यान में रखने योग्य मुद्दे

जहां तक हो सके किट नाशी दवाओ का प्रयोग ना करे । जहां मुमकिन हो वहा समेकीत कीट प्रबंधन  प्रणाली का इस्तेमाल करे जिसने जाल -फस ल का प्रयोग, पक्षियो के बैठने हेतू व्यवस्था , जैविक कीट नियंत्रण प्रणाली आदी का इस्तेमाल करे , कीटनाशी दवाये जब जरुरत हो तभी इस्तेमाल करे , वैज्ञानिक द्वारा  जितनी मात्रा कि अनुशंसा कि गई है उतनी ही मात्रा में इस्तेमाल करे ।

नये विकसित कीटनाशी दवाओ का जो ज्यादा सुरक्षित है उनका इस्तेमाल करे करना चाहि‍ए। सामान्य जनता तथा किसानों में कीटनाशी दवाये , रासायनिक खाद्य  तथा अन्य रसायनो के बिना सोचे समझे लगातार बढते इस्तेमाल , उनका मिट्टी , फसले , मानव तथा पशु ओ के स्वास्थ्य पर बुरा असर. उनके  प्रति जागरूकता पैदा करना

सामान्य जनता तथा किसानों में के प्रति जागरूकता पैदा करना हिसके लिये प्रधानमंत्री द्वारा सुरू "मेरा गाव मेरा गौरव " कार्यक्रम अंतर्गत गाव गाव तक जानकारी पहुचाये .दूरदर्शन तथा रेडिओ कार्यक्रम , कृषी संबंधी प्रचार एवं प्रसार साहित्य (दैनिक , साप्ताहिक , मासिक द्वारा ) गांव-गांव तक जानकारी पहुचाये ।


Authors

पुष्पेंद्र कोली1, अमित कुमार सिंह2 तथा सुनील नीलकंठ रोकडे3

1,2वैज्ञानिक (कृषि रसायन), 3प्रधान वैज्ञानिक

भा. कृ. अ. प.- भारतीय चरागाह तथा चारा अनुसंधान संस्थान , झांसी , उत्तर प्रदेश, २८४००३

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