Medicinal Uses of Seed Spices: A view

बीजीय मसालें एक वर्षीय शाकीय पौधे होते हैं जिनके बीजों का प्रयोग मसालों के रूप में किया जाता है। इनके बीजों का प्रयोग साबुत एवं पिसा हुआ दोनों रूपों में करते हैं। इनके बीजों से प्राप्त वाष्पशील तेल का प्रयोग खाद्य पदार्थों को स्वादिष्ट, सुवासित एवं मनमोहक बनाने में किया जाता है।

बीजीय मसालें स्वाद एवं खुशबू बिखेरने के अलावा कई औषधीय गुण भी रखते हैं। इनमें विभिन्न औषधीय गुण जैसे पाचन, अग्निवर्धक, वातानुलोमक, कातहर आदि गुण पाये जाते हैं। इनका प्रयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में किया जाता है जिससे इनका उपयोग काफी बढ़ रहा है।  विभिन्न बीजीय मसालों का औषधीय गुण फसलवार नीचे वर्णित है-

Medicinal properties of coriander seeds1. धनिया के बीजों के औषधीय गुण 

गुण : मूत्रल, दीपन, पाचक, वातानुलोमक, संग्राही, दाहशामक एवं पिपासाघन् एवं ग्राही।

उपयोग

  • इसका प्रयोग आमाजीर्ण, ज्वरजन्यदाह, आध्मान, उदरदौर्बल्य, कुपच के कारण होने वाले अतिसार, नेत्र रोग, वमन, शूल, श्वास रोग, आदि में होता है। धनिया के शीत कषाय, मिश्री तथा मधु को मिलाकर देने से ज्वर में होने वाले दाह एवं प्यास में आराम मिलता है।
  • इसके क्वाथ को छानकर नेत्र बिन्दु के रूप में डालने से नेत्राभिष्यंद में लाभ होता है। फल का चूर्ण मिश्री के साथ मिलाकर देने से जीर्ण प्रतिश्याय में लाभ मिलता है। इसके क्वाथ में मिश्री मिलाकर देने से रक्तार्भ में लाभ होता है।
  • वातनाड़ी शूल तथा जोड़ो के दर्द में इसके तेल का प्रयोग किया जाता है।
  • सरदर्द तथा भिलावे से उत्पन्न दाह पर कच्ची धनियाँ का लेप उपयोगी होता है।
  • चेचक के कारण शरीर में इकट्ठा हुई गर्मी निकालने के लिए जब बीमारी ठीक हो जाए तब धनिया एवं जीरा के बीजों को चार गुणा जल में भिगोंकर रात भर रखा रहने दें। प्रातः इसको मसलकर छान लें तथा इसमें मिश्री मिलाकर पिलाएँ, इससे अंदर की गर्मी शान्त हो जाती है।
  • धनिया तथा सोंठ के क्वाथ में एरण्ड के जड़ का चूर्ण मिलाकर पिलाने से आँव में लाभ होता है।
  • धनिया, इलाइची तथा काली मिर्च का चूर्ण, घी तथा मिश्री मिलाकर सेवन करने से भूख प्रदीप्त होता है तथा भोजन के प्रति रूचि बढ़ती है।
  • इसके शीत कषाय का उपयोग अनुपान या सहपान के रूप में स्वप्नेह एवं श्वेत प्रदर में किया जाता है।
  • इसके फल के कल्क का लेप व्रण में से बहते रूधिर पर नियंत्रण करता है।
  • धनिया, अडूसा, आँवला, कालीद्राक्षा तथा पित्त पापड़ा को मिलाकर तथा थोड़ा कूटकर मिट्टी के बर्तन में पानी के साथ रात भर के लिए रख देते है। प्रातः छानकर पिलाने से दाह एवं तृषा में लाभ मिलता है।
  • धनिया, लौंग, सोठ एवं निशोथ का चूर्ण बनाकर गर्म जल के साथ सेवन अजीर्णता, अग्निमांध, श्वास, विषम ज्वर आदि रोगों में लाभकारी होता है।
  • पित ज्वर एवं अंतर्दाह में धनिया एवं चावल को जल में भिगोंकर तथा दूसरे दिन इसी जल में उबालकर पतली कांजी बनाकर सेवन करने से लाभ होता है।
  • धनिया तथा गोक्षुर के फलों का क्वाथ घी मिलाकर पिलाने से मूत्रघात में आराम मिलता है।
  • धनिया, सोंठ, मिश्री तथा नागरमोथा में से प्रत्येक का आधा तोला लेकर, इन सबको मिला कर तथा इसे 32 तोला जल में मिलाकर क्वाथ बनाये और जब क्वाथ आठ तोला हो जाये तब उताकर किसी भी गर्भवती को या अन्य किसी व्यक्ति को जिसे उल्टी होती है, पिलाने से तुरन्त उल्टी बंद हो जाती है।
  • लू लगने पर धनिये को जल में भिगोकर, मसलकर इसमें मिश्री मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए।
  • विषैले फोड़े, पुराने घाव तथा सूजन में यव के आटे के साथ धनिया की पुल्टिस काफी उपयोगी होता है।
  • इसके अलावा इसका प्रयोग मसाले के रूप में अनेक औषधियों को सुगन्धित करने के लिए तथा विरेचक औषधियों से मरोड न हो, इसलिए भी इसका प्रयोग करते है।

Medicinal properties of cumin seed2. जीरेे के बीजों के औषधीय गुण 

गुण : यह उत्तेजक, पाचक, वातानुलोमक, रूचिकर, बल्य, वेदनाहर, संग्राही, मूत्रविरजनीय होता है।

उपयोग

  • इसका प्रयोग अतिसार, वमन, कुपचन, आध्मान, ज्वर, मूत्रजननेन्द्रिय संस्थान विकारों, सुजाक, अश्मरी, मूत्रावरोध आदि में किया जाता है। बच्चों के पाचन विकारों में यह अधिक लाभकारी होता है।
  • जीर्ण ज्वर में इसके फलों के चूर्ण को पुराने गुड़ में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है। इससे पाचन सुधरकर भूख बढ़ती है, पेशाब साफ होता है और दाह शांति भी होती है।
  • हिचकी में घी के साथ इसका धूम्रपान बहुत उपयोगी होता है।
  • अतिसार में जीरा को दही के साथ देने से लाभ होता है।
  • जीरकाद्यमोदक का उपयोग जीर्ण अतिसार, अपचन एवं अग्निमांध आदि रोगों में किया जाता है।
  • रतौंधी में जीरा, आँवला तथा कपास के पत्तों को शीतल जल में समभाग पीसकर सिर पर 21 दिन तक बाँधने से लाभ होता है।
  • श्वेत प्रदर एवं रक्त प्रदर जैसे रोगों में इसके बीजों का चूर्ण तथा मिश्री का चूर्ण चावल के धोवन में मिलाकर सेवन से लाभ होता है।
  • जीर्ण ज्वर में जीरे को गाय के दूध में भिगोंकर सुखा लें तथा इसका चूर्ण बनाकर मिश्री के साथ सेवन से शारीरिक दुर्बलता दूर होकर बल मिलता है।
  • मुखगत रोगों में पीसा हुआ जीरा को जल में मिला लें तथा इसमें चंदन घिसकर, इलायची चूर्ण तथा फूली हुई फिटकरी का चूर्ण मिला लें। इस जल से कुल्ला करने से मुखगत रोगों में लाभ होता है।
  • मलेरिया ज्वर में करेले के एक तोला रस में जीरे का चूर्ण मिला कर पिलाने से लाभ होता है।
  • बिच्छु के काटने पर जीरा, घी तथा काला नमक मिलाकर महीन पीस लें तथा थोड़ा गर्म कर दंश वाले स्थान पर लगाने से पीड़ा कम हो जाती है।
  • जिन प्रसूती महिलाओं को दूध कम आता हो उन्हें जीरे का सेवन करना चाहिए । इसके सेवन से स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ती है।
  • वात, कफ, ज्वर में जीरे का मधु के साथ सेवन करने के बाद छाछ पीकर धूप में खडे हो जाएं जब तक कि पसीना ना आ जाए। इससे ज्वर उतर जाता है।
  • छाती शूल में इसका प्रयोग किया जाता है।
  • जीरा के सेवन से मूत्र बढ़ता है तथा कृमियों का नाश होता है।
  • अत्यन्त दर्द करने वाले बाहर निकले हुए हरस (अर्श) पर जीरे को पीसकर पुल्टिस बनाकर बांधने से अर्श में होने वाला शूल ठीक होकर अर्श अंदर चले जाते है।
  • जीरा 4 रत्ती, खृनखराबा 2 रत्ती, कलमीशोरा 5 रत्ती, धनिया 5 रत्ती तथा गुलाब 2 भाग मिलाकर तैयार दवा के 10 रत्ती मात्रा सुजाक में प्रयोग करने से काफी लाभ होता है।
  • इसका बाह्य लेप पीड़ाहर होता है तथा यह अर्श, स्तन, अण्डकोष तथा उदर की पीड़ा पर लगाया जाता है। इसके क्वाथ से स्नान करने से खुजली दूर होती है।
  • इसे स्वरभंग एवं सर्प विष में भी उपयोगी बताया गया है।

Medicinal properties of fennel seeds3. सौंफ के बीजों के औषधीय गुण 

गुण : यह सुगंधित, पाचक, दीपन, चरपरा, वातानुलोमक, दाह प्रशमन, मूत्रविरंजनीय होता है।

उपयोग

  • इसका प्रयोग ज्वर, मूत्रदाह, तृषा, अतिसार, प्रवाहिका, विसूचिका, प्लीहा वृद्धि, कृमिघन्, वेदनास्थापक, मेधाबल्य, अम्लपित्तहर में किया जाता है। इसके अलावा आध्मान, खाँसी, श्वास रोग में भी लाभकारी है।
  • बार-बार खाँसी आने पर सौंफ तथा मिश्री का चूर्ण मुख में रखने से खाँसी में लाभ होता है।
  • इसका अर्क बच्चों के पाचन विकार जैसे आध्मान, शूल आदि में दिया जाता है और अन्य औषधियों के अनुपान के रूप में भी व्यवहार करतें हैं।
  • इसे पीसकर पीने से पेशाब की जलन दूर होकर पेशाब साफ होता है।
  • मुख के विकारों में सौंफ के दाने चबाने से लाभ होता है। इससे मुख की दुर्गन्ध भी चली जाती है।
  • सौंफ का क्वाथ या सौंफ एवं सौंठ को घी में सेंककर इसका चूर्ण बनाकर अतिसार में सेवन से काफी लाभ मिलता है।
  • पित्त ज्वर में सौंफ तथा मिश्री के क्वाथ से लाभ होता है।
  • माताओं में दुग्ध मात्रा बढ़ाने में उपयोगी होता है।
  • बच्चों के उदराध्मान एवं शूल में अति लाभकारी है।
  • सौंफ का शूल मृदुरेचक होता है।
  • सौंफ तथा इससे निकाला गया तेल दोनों ही उत्तेजक, सुगंधित तथा वातघ्र है।
  • हकीम सौंफ के पत्रों को गरम मानते है। गर्भवती महिलाओं को इसका क्वाथ रक्त शुद्धिकरण तथा गर्भाशय की शुद्धि के लिए दिया जाता है। यह पाचक तथा जठराग्नि प्रदीप्त करने वाली औषधि मानी जाती है।
  • इसके बीजों को पीसकर लेप करने से गरमी के दिनों में होने वाला चक्कर तथा सिरशूल में लाभ होता है।

Medicinal properties of fenugreek seeds4. मेथी के बीजों के औषधीय गुण 

गुण : इसका बीज वातहर, दीपन, शोथहर, बल्य, वतानुलोमक, आध्मानहर, दुग्धवर्धक तथा गर्भाशय संकोचक होता है। इसके पत्र शीतल, दाहशामक, शोथहर एवं मृदु विरेचक होते हैं।    

उपयोग

  • इसका उपयोग अपस्मार, पक्षाघात, वातरोग, जलोदर, जीर्णकास, प्लीहा तथा यकृत वृद्धि आदि रोगों में लाभकारी होता है।
  • बीजों के क्वाथ का मधु के साथ सेवन करना अर्श में लाभकारी होता है।
  • इसके बीज से बनाये गये लड्डू का व्यवहार प्रसूता में किया जाता है, जिससे भूख बढ़ती है, मल शुद्धि और आर्तवशुद्धि होती है। अजीर्ण, अग्निमांद्य, आमवात एवं कामशक्ति की कमजोरी में भी ये उपयोगी है।
  • मधुमेह में इसके अंकुरित बीजों के सेवन से लाभ होता है।
  • ज्वर में भी इसके अंकुरित बीजों के सेवन से लाभ होता है।
  • प्रसूता स्त्री को मेंथी के बीजों का दलिया बनाकर देने से दुग्ध वृद्धि होती है।
  • रक्तातिसार एवं मसूरिका में इसके बीज भूनकर और फिर उसका चूर्ण बनाकर देने से लाभ होता है।
  • सूजन एवं दाह में इसके पत्रों को पीसकर इसका लेप करने से लाभ होता है।
  • हाथ-पैरों में वात के कारण होने वाले दर्द में मेथी के बीजों को घी में भूनकर इसका आटा बनाते है तथा इसमें घी एवं गुड़ मिलाकर लड्डू बना लेते है। प्रतिदिन एक लड्डु लेने से सप्ताह भर में यह बिमारी ठीक हो जाती है।
  • अतिसार रोकने के लिए घी में भुनें हुए मेंथी के बीज, बादियाण और नमक का प्रयोग किया जाता है।
  • इसके बीजों को कॉडलिवर आयल के स्थान पर प्रयोग किया जाता है और इसका प्रयोग गण्डगाला, फक्करोग, पाण्डु, वातरक्त, मधुमेह और अन्य रोगजन्य दौर्बल्य में किया जाता है।
  • मरोड़-पेचिस में मेंथी के पत्तों का रस मिश्री के साथ मिलाकर प्रयोग किया जाता है।
  • बहुमू़त्र में मेंथी के पत्तों के रस में कत्था एवं मिश्री मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
  • त्वचा को मुलामय और स्वस्थ रखने के लिए इसके बीजों का उपयोग किया जाता है।
  • बालों के झड़ने पर तथा सूजन पर इसका लेप उपयोगी होता है।
  • लू लगने पर मेथी की सुखाई हुई भाजी ठंडे जल में भिगोकर, भलीभांति भीगने के बाद हाथ से मलकर तथा इस जल को छानकर इसमें मधु या मिश्री मिलाकर पिलाने से काफी लाभ होता है।

Medicinal properties of celery seeds5. अजवायन के बीजों के औषधीय गुण 

गुण : यह पाचक, अग्निदीपक, उष्ण, उद्वेष्ठन निरोधी, हृद्य, उत्तेजक, बल्य, कृमिघ्न, संक्रमण निरोधी, दुर्गन्धिनाशक एवं सड़न को दूर करने वाला होता है।

उपयोग

  • इसका उपयोग अतिसार, कुपचन, अजीर्ण, उदरशूल, आध्मान, हैजा आदि रोगों में किया जाता है।
  • अजवायन के प्रयोग से पुरानी खाँसी में जब कफ बहुत कम रहता है तो यह पीला होकर निकल जाता है।
  • अजवायन के चूर्ण को गर्म जल के साथ सेवन करने से श्वास रोग में लाभ मिलता है।
  • अजवायन का चूर्ण, काला नमक के साथ सेवन करने से अजीर्णता से लेकर उदर विकारों तक में लाभ मिलता है।
  • उदरशूल-आध्मान में अजवायन, काला नमक, हींग तथा आँवला का चूर्ण बनाकर एक साथ मिलाकर इसकी आधा से एक माशा मात्रा मधु के साथ लेने से लाभ होता है।
  • शराबियों को मद्य की आदत छुड़ाने के लिए शराब पीने की इच्छा होने पर इसे चबाने को दिया जाता है।
  • बच्चों के अतिसार तथा हैजा में अजवायन अर्क का प्रयोग लाभकारी होता है।
  • अजवायन के अर्क एवं सत् अंकुश कृमियों पर तथा दंत शूल में लाभकारी होता है।
  • अजवायन का सत, पिपरमेन्ट का सत एवं कपूर इन तीनों के मिश्रण से एक तरल पदार्थ बनता है। इसका प्रयोग हैजा में 3-4 बूंद (अमृतधारा की) बतासे में डालकर सेवन से लाभ मिलता है।
  • इसकी पुल्टिस बनाकर उदरशूल, आमवात, सन्धिशूल आदि में सेंकने से लाभ मिलता है।
  • हैजा में हाथ, पैरों को तथा श्वास और खाँसी में छाती को इससे सेकने से लाभ होता है।
  • कीट दंश में इसके पत्रों को पीस कर इसका लेप करने से लाभ होता है।
  • बहुमूत्र में अजवायन तथा तिल का मिश्रण का सेवन करने से लाभ होता है।
  • शिरःशूल तथा प्रतिश्याय में अजवायन का चूर्ण कपड़े में बांधकर रात को सोते समय सुंघने से लाभ होता है।
  • खांसी तथा कफ ज्वर में अजवायन, लीडी पीपर, अडूसा एवं खसकास के डोडे का क्वाथ बनाकर सेवन से लाभ मिलता है।
  • इसके पत्तों का रस कृमियों को मारने के लिए काम आता है।

Medicinal properties of soya seeds6. सोआ के बीजों के औषधीय गुण 

गुण : यह दीपन, पाचक, वातानुलोमक, उत्तेजक, वातहर, गर्भाशय उत्तेजक, दुग्धवर्धक तथा कफ निःसारक होता है।

उपयोग

  • बच्चों के पचन विकारों में विशेषकर आध्मान एवं शूल में चूने के जल के साथ इसके अर्क का बहुत उपयोग किया जाता है।
  • आमाशयिक शूल, अग्निमांद्यता, दौर्बल्य में पाचन तन्त्र के लिए लाभदायक होता है।
  • दाह, उदरशूल, वमन, अतिसार, तृषा, यक्ष्मा, अर्श तथा खाँसी में इसका सेवन लाभकारी होता है।
  • प्रसूती स्त्री के वमन, अजीर्ण, आध्मान, दुग्धवृद्धि, के लिए तथा अनार्त्तव के लिए सोआ के क्वाथ का प्रयोग किया जाता है।
  • अतिसार में सोआ एवं मेथी को भूनकर जल के साथ देने से लाभ होता है।
  • जोड़ो में सूजन पर इसके पत्ते तथा जड़ को पीसकर बाँधने से लाभ होता है।
  • सोआ के ताजे बीजों को चूर्ण बनाकर घी के साथ सेवन करने से इच्छित संतान की प्राप्ति हो सकती है, बांझ स्त्रियाँ गर्मवती हो सकती है तथा बुढ़ा पुरूष युवा, बलशाली एवं मेधावी बन सकता है।
  • कामला, पाण्डु एवं शोथ वाले रोगियों को सोआ का सेवन भैंस के दूध के साथ करना चाहिए।
  • कुष्ठ रोगी को खदिर के साथ जबकि गुल्य वाले रोगी को एरण्ड तेल के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
  • इसके पत्ते को तेल लगाकर गरम करके फोडे़ फुन्सियों पर बाँधने से वे जल्दी पक जाते हैं।
  • विरेचक औषधियों के साथ इसके तैल या अर्क के व्यवहार से मरोड़ नहीं होती।

Medicinal properties of seeds of Kalanji7. कलोंजी (मंगरैल) के बीजों के औषधीय गुण 

गुण : यह सुगन्धित, वातानुलोमक, दीपन, पाचन, गर्भाशय शुद्धिकर, स्तन्यवर्धक, स्वेदल एवं कृमिघ्न होता  है।

उपयोग

  • इसका प्रयोग अग्निमांद्य, कुपचन, आध्मान, चर्मरोग, हाथ पैर की सूजन को कम कर दर्द दूर करता है।
  • यह कष्टार्त्तव एवं नष्टार्त्तव में उपयोगी है।
  • सूतिका में इसका उपयोग चित्रकमूल के साथ करने से भूख बढ़ती है, पाचन ठीक होता है, गर्भाशय शुद्ध होता है तथा दूध भी बढ़ता है।
  • सूतिका ज्वर तथा विषय ज्वर में इसका उपयोग किया जाता है।
  • इसका प्रयोग मट्ठे के साथ करने से हिचकी में लाभ होता है।
  • विरेचक तथा औषधियों के साथ इसके उपयोग से मरोड़ नहीं होने पाती।
  • हाथ-पैर की सूजन में इसका लेप लगाने से दर्द दूर होता है तथा सूजन कम होती है।
  • चर्म रोग में इसके सिद्ध तेल का प्रयोग करने से लाभ होता है।
  • अजीर्ण तथा उदरशूल में कलोंजी का क्वाथ बनाकर उसमें काला नमक मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
  • अधिक मात्रा में इसके सेवन से शरीर की उष्णता बढ़ती है, नाड़ी की गति बढ़ती है तथा साथ ही साथ गर्भाशय संकोच होकर गर्भपात की भी संभावना रहती है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ये मसाले स्वाद एवं सुगंध प्रदान करने के साथ ही साथ हमें स्वस्थ्य रखने में भी काफी कारगर है। अगर इनका सही ढंग से एवं सही तरीके से उपयोग किया जाय तो सामान्य बीमारीयों से काफी हद तक बचा जा सकता है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख में वर्णित नुस्खे जानकारी के लिए है तथा इनके प्रयोग से पहले किसी सामर्थ्य वैद से परामर्श अवश्य ले लेवें।


Authors:

राजकुमार सिंह1, धीरज कु. सिंह2 एवं खारुम्नुइड पी.3

1वरिष्ठ वैज्ञानिक, केन्द्रीय आलू अनुसंधान केन्द्र, पटना, बिहार

2वैज्ञानिक, भा.कृ.अनु.प. का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना, बिहार

3वैज्ञानिक, केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश

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