जैविक खेती की तकनीक

आज जब हम अपनी खेती में हुई प्रगति को देखते है तो वह बहुत ही उत्साहित करती है। इस प्रगति का श्रेय हरित क्रांति को जाता है। हरित क्रांति की प्रगति के साथ अन्य क्रान्तियों का भी देश की प्रगति में बड़ा योगदान है जैसे श्वेत क्रांति(दुग्ध उत्पादन), पीली क्रान्ति (तिलहन उत्पादन), नीली क्रान्ति (मतस्य उत्पादन), लाल क्रान्ति (मांस) एवं गोल्डेन क्रान्ति (हार्टीकल्चर सहयोग)।

रसायनिक उर्वरकों के अन्धाधुंध एवं असन्तुलित प्रयोग से कृषि जगत का पर्यावरणीय सन्तुलन बिगड़ गया है इसलिये पर्यावरण की सुरक्षा लिये तथा मृदा की उर्वरता बनाये रखने के लिये भविष्य में जैविक खेती एक उत्तम विकल्प है ।

जैविक खेती

जैविक खेती, खेती की वह प्रक्रिया है जिसमें उत्पादन के लिए प्रयोग किये जाने वाले निवेशों का आधार जीव अंश से उत्पादित हो और पशु मानव और भूमि के स्वास्थ्य को स्थिरिता प्रदान करते हुए पर्यावरण का पोषण करें जैविक खेती कहलाती है।

जैविक खाद एवं जैव उर्वरक

जैविक खाद एवं जैव उर्वरक वही खाद है जिसका प्रयोग प्रारम्भिक समय से करते आ रहे हैं और आज भी कमोवेश इनका प्रयोग किसान कर रहा है। इन जैविक खादों की श्रृंखला में कुछ नवनिर्मित खाद जैसे वर्मी कम्पोस्ट। ये जैविक खाद प्राकृतिक पदार्थ जैसे- घास -फूस, पशुओं के मलमूत्र एवं अन्य अवशेषों द्वारा बनाये जाते है इनमें कम मात्रा में सभी पोषक तत्व पाये जाते हैं।

जबकि जैव उर्वरक सूक्ष्म जीवाणुओं का पीट, लिग्राइट या कोयले के चूर्ण में बने मिश्रण होते हैं जिन्हें बीजापचार एवं अन्य प्रकार से भूमि में मिला देने पर ये वायुमण्डल से नत्रजन तथा भूमि में उपस्थित अनुपलब्ध पोषक तत्वों को उपलबध /प्राप्य अवस्था में बदलकर पौधों को उपलब्ध करवाते हैं। इस प्रकार की जीवित सामग्री को जैव उर्वरक कहते हैं।

जैविक खाद एवं रासायनिक संगठन

विभिन्न प्रकार की जैविक खाद (हरी खाद) अथवा निर्मित जैविक खाद (गोबर की खाद, एफ. वाई.एम. कम्पोस्ट) जैविक खादों की श्रेणी में आते हैं। इन जैविक खादों को बोआई से एक डेढ़ माह पूर्व खेतों में जुताई करके मिला देने से प्रभाव अच्छा दिखाई पड़ता है और पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में परिवर्तित होकर पौधों को प्राप्त हो जाते हैं।

जैविक खेती की प्रक्रिया

जैविक खेती के लिये हमेशा गर्मी की जुताई करना तथा उसमें उसके बाद हरी खाद की बुआई करना जरूरी रहता है। खेत की तैयारी पशुओं के द्वारा पशु चालित यंत्रों से करना चाहिये।

बुआई

बुआई के लिये यथा संभव जैविक बीज का प्रयोग करते हुये जैविक विधि से या जैव उर्वरकों बीज से बीज शोधन करके बीज की बुआई पशु चालित मशीन जैसे- बैल चलित सीड ड्रिल या नाई- चोंगा आदि से करना चाहिए। बीज शोधन गोमूत्र, दही आदि से भी कर सकते हैं।

खाद

पोषक तत्वों की पूर्ति के लिये जीवाशों से निर्मित खाद का प्रयोग करना चाहिए जैसे - मल मूत्र, खून, हड्डी, चमड़ा, सींग, फसल अवशेष, खरपतवार से निर्मित होने वाली खादें या वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप कम्पोस्ट, काउपैट पिट कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करना चाहिए तथा जैव उर्वरकों से भूमि शोधन अवश्य करना चाहिए।

हरी खाद

हरी खाद की फसल को उसी खेत में उगाया जाता है जिसमें हरी खाद का प्रयोग करना होता है। जब फसल (40-45 दिन) की हो जाती है तब फसल को खेत में पलट दिया जाता है और जुताई करके खेत में दबा दिया जाता है तथा सड़ गलकर र्प्याप्त कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न करती है । यह धान पैदा करने वाले क्षेत्रों सफलतापूर्वक अपनाई जाती है।

सारिणी

प्रमुख हरी खाद की फसलें और उनमें उपल्ब्ध पोषक तत्व

फसल बोआई का समय बीज दर (किग्रा प्रति हेक्टेयर) हरे पदार्थों की मात्रा (टन प्रति हेक्टेयर) पोषक तत्वों की प्रतिशतता नत्रजन फास्फोरस पोटाश
बरसीम अक्टूबर-दिसम्बर 20-30 16 0.43 - -
लोबिया अप्रैल –जुलाई 40-45 15-18 0.71 0.15 0.50
सनई अप्रैल- जुलाई 50-60 18-28 0.75 0.12 0.51
ढैचा अप्रैल- जुलाई 50-60 20-25 0.62 0.12 0.50
उड़द/मूंग जून-जुलाई 20-22 10-12 0.85 0.16 0.53
ग्वार अप्रैल- जुलाई 30-40 20-25 0.34 - -
मटर अक्टूबर-नवम्बर 80-100 21 0.36 - -
सैंजी अक्टूबर-दिसम्बर 25-30 26-29 0.51 - -

वर्मी कम्पोस्ट

बेकार कार्बनिक पदार्थों से केंचुओं द्वारा कम्पोस्ट बनाने की विधि को वर्मी कम्पोस्ट कहतें हैं। केंचुआ पालन को वर्मी कल्चर तथा केंचुओं से विसर्जित पदार्थ को वर्मी कास्ट तथा इस प्रकार बने कम्पोस्ट को वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। इसमें विभिन्न पोषक तत्वों के अतिरिक्त हार्मोन व एन्जाइम ह्यामिक एसिड भी होता है। यह पी. एच. मान को कम करने में भी होता है।

सारणी

जैविक खाद पोषक तत्व प्रतिशत में
नत्रजन स्फुर पोटाश
फार्म यार्ड खाद 0.50-0.80 0.41-0.80 0.50
कम्पोस्ट 1.25 1.92 0.50
सनई 0.75 0.12 1.07
ढैंचा 0.62 0.10 0.50
जलकुम्भी 2.00 1.00 0.50
वर्मी कम्पोस्ट 1.60 2.20 2.30
नीम केक 5.20 1.00 1.50
मूॅगफली केक 7.40 1.50 1.30
प्रेसमड 2.73 1.81 1.30
विनोला खली 3.90 1.80 1.31
गेबर 0.60 0.15 1.60
हड्डी खाद 4.00 20.00 0.45

गोबर की खाद

कृषि अवशेषों एवं पशुओं के गोबर का प्रयोग खाद बनाने के लिये करे तो स्वयं ही उच्च गुणवत्ता की खाद तैयार कर सकता है। अच्छी खाद बनाने के लिए 1 मीटर चौड़ा 1 मीटर गहरा एवं आवश्यकतानुसार 5 से 10 मीटर लम्बा गड्ढा खोदकर उसमें उपलब्ध फसलों के अवशेषों की एक परत, गोबर व पशुमूत्र की एक पतली चढ़ाते हैं।

उसे अच्छी तरह भर करके गड्ढे को उचित ढंग से ढककर मिट्टी व गोबर से बन्द कर देते हैं। इस प्रकार दो महीने में तीन पलटाई करके अच्छी गुणवत्ता की खाद बनकर तैयार हो जाती है।

सिंचाई एवं खरपतवार नियंन्त्रण

सिचाई पशु चालित यंत्रों जैसे- बैल चालित सेन्ट्रीफ्यूगल पम्प, सोलर पत्प, नहर आदि से करना चाहिये। खरपतवार नियंत्रण हाथ से निराई गुड़ाई करके या पशु या मानव से चलने वाले यंत्रों का प्रयोग करना चाहिये।

कीटों से रक्षा

कीटों से रक्षा के जैविक कीट नाशियों जैसे नाम- ट्राइकोग्रामा कार्ड, वैवेरिया वैसियाना, बी.टी., एन.पी.वी., मित्र कीट, फेरोमोन ट्रैप, बर्डपचर आदि एकीकृत नाशी जीव प्रबंधन की विधियॉ अपनाकर करना चाहिये।

रोगों से रक्षा

रोगों से रक्षा के लिये ट्राइकोडर्मा द्वारा जैविक बीज शोधन करना चाहिये तथा भूमि शोधन के लिये माइकोराइजा, वैसिलस, स्यूडोमानास आदि जैविक रोग नियंत्रकों का प्रयोग करना चाहिये।

जैविक खेती से लाभ

भूमि का स्वास्थ्य सुधरता है। पशु, मानव एवं लाभदायक सूक्ष्म जीवों का स्वास्थ्य सुधरता है। पर्यावरण प्रदूषण कम होता है। पशु-पालन को बढ़ावा मिलता है। टिकाऊ खेती का आधार बनता है। गॉव, कृषि एवं किसान की पराधीनता कम होती है, जिससे वे स्वालम्बी बनते हैं। उत्पादों का स्वाद एवं गुणवत्ता बढ़ती है। पानी की खपत कम होती है। रोजगार में वृद्वि होती है तथा पशु एवं मानव श्रम का उपयोग, भूमि, जल, हवा आदि पर कम होता है।


Author 

1Dr. Raghvendra Singh, 2Dr. Biwash Gurung, 3Dr. Harendra 

Assistant Professor (Agronomy) , Assistant Professor (Ag. Entomology), Assistant Professor (Horticulture)

 SOAG (ICAR-Accredited), ITM University, Gwalior Madhya Pradesh

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