How to manage saline and sodic soils

लवणीय एंव क्षारीय भूमि भारत के शुष्क एंव अर्द्धशुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। इन स्थानों पर प्रायः भूमि जल भी खारा पाया जाता है। और इसी खारे पानी के खेती में उपयोग से लवणयिता एंव क्षारीयता की समस्या उत्पन्न होती है। भारत में करीब 6.73 मिलियन हेक्टयर भूमि लवणीय एंव क्षारिय श्रेणी के अन्र्तगत पाई गई है।

लवणीय भूमि वह है जिसमें संतृप्ति मिट्टी के अर्क की विद्यूत चालकता 4 डीस/मीटर से अधिक होती हैं। लवणीय भूमि के सोडियम, कैल्शियम, मैगनीशियम के क्लोराइड एंव सल्फेट लवणों की अधिक मात्रा पाई जाती है। जिससे मिट्टी के घोल का रसाकर्षण दबाव बढ़ जाता है, जिसके कारण भूमि में पानी की मात्रा पर्याप्त होते हुए, वह इसे ले नहीं पाते।

लवणों का विपरीत प्रभाव पौधों की जमाव एंव वृद्धि पर देखा जा सकता है। क्षारीय भूमि में विनिमेय सोडियम 15 प्रतिशत तथा पी.एच. 8.2 से अधिक होती है। क्षारीय भूमि में सोडियम की अधिकता के कारण इसकी संरचना बिगड़ जाती है। और जिससे हवा एंव पानी का संचार सही ढंग से नहीं हो पाता।

लवणीय एंव क्षारीय भूमि का अभिलक्षण:-

गर्मियां में लवणीय भूमि पर सफेद या भूरे लवण दिखाई देते हैं। जो वर्षा होने या सिंचाई के समय विलीन हो जाते हैं। ऐसी भूमि पर पेड़ पौधे कहीं कहीं दिखाई देते हैं। पर्याप्त नमी होने के बावजूद पौधों में पानी की कमी दिखाई देती है। कभी - कभी पौधों की पत्तियों का रंग गहरा हरा - नीला व किनारे झुलसे हुए दिखाई पड़ते हैं।

क्षारीय भूमि की मिट्टी कठोर या सख्त हो जाती है जिसके कारण भूमि में जल का प्रवेश आसानी से नहीं हो पाता और वर्षा के समय जल उपरी सतह पर भरा रहता हैं। इस प्रकार की मृदा गीली होने पर चिकनी हो जाती है। इसके उपर भरा हुआ पानी गंदला रहता है और सुखने पर इसमे दरारें पड़ जाती हैं।

जैव पदार्थो के घुलने और सतह पर आने से यह मिट्टी काली नजर आती है। इस प्रकार की मृदाओं में फसलों के उत्पादनों को बढाने के कई प्रकार के प्रबन्धन किए जाते हैं। जिनमें से कुछ निम्नलिखित है।:-

लवणीय भूमि का प्रबन्धन:-

लवणों की अधिकता सभी प्रकार की समस्याओं का कारण हैं। इन लवणों की अधिकता को दूर करने के लिए भूमि के सुधार की आवश्यकता हैं।

  • सतह पर एकत्रित लवणों को खुरचकर निक्षालन द्वारा हटाया जा सकता है। परन्तु साथ ही भूमि की सतह के नीचे के लवणों को इस तरीके से नही हटाया जा सकता है।
  • भूमि से लवणों के हटाने के लिऐ निक्षालन सबसे सर्वोत्तम विधी हैं। इससे लवणों को पानी में घोलकर जड़ क्षेत्र से नीचे लाया जाता है ताकि पौधो पर इनका कोई विपरीत प्रभाव ना हों।
  • निक्षालन के लिए खेत को तैयार करके, चारों और मेंड बांध दे ताकि बारिश का पानी इकट्ठा हो सके व निक्षालन को प्रक्रिया को किया जा सके। यदि सिंचाई के लिए उपयुक्त मात्रा में उपलब्ध है तो ग्रीष्म ऋतु निक्षालन के लिए उचित समय है। क्योंकि इस समय खेत खाली रहता है। यदि भूमि के नीचे सख्त तह हो तो पहले गहरी जुताई कर लें फिर निक्षालन करें। जिन जगहों पर भूमि जल स्तर काफी ऊचाई पर पाया जाता है वहां यह क्रिया अति आवश्यक है। कभी कभी निक्षालन के समय कई पोषक तत्व भूमि की निचलों तटों तक पहुंच जाते हैं। इसलिये उर्वरकों की मात्रा को 1.5 गुणा बढ़ाकर डालना चाहिए ताकि फसलों की आवश्यकता को पूरा किया जा सके।
  • लवणीय इलाकों में लवण सहिष्णु फसलें उगाई जा सकती हैं। जौ, सरसों, कपास तथा तारामीरा जैसी फसलें उच्च सहिष्णु फसलें हैं। गेहूँ, जई, धान, बाजरा, ज्वार तथा मक्का मध्यम लवण सहिष्णु है। दाल की फसल सबसे कम लवण सहन कर सकती है।

क्षारिय भूमि के प्रबन्धन:-

  1. क्षारीय भूमि में सोडियम की मात्रा सबसे अधिक होती है। इस प्रकार की मृदा के प्रबन्ध के लिये पहले सोडियम की मृत्तिका कणों से हटाया जाता है। तथा बाद में इस सोडियम को निलक्षण के द्वारा गहरी सतहों तक पहुंचाया जाता है।
  2. सोडियम को मृतिका कणों से हटाने हेतु भूमि सुधारकों जैसे जिप्सम का उपयोग किया जाता है। अतः यह सस्ता और आसान तरीका होने के कारण उपयुक्त है। सोडियम को मृतिका कणों से हटाने के लिये जिप्सम की मात्रा भूमि की क्षारीयता पर निर्भर करती है। जिप्सम को खेत में डालने से पहले मृदा की जांच करनी चाहिये। जिप्सम को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये इसे बारिश के मौसम में मिट्टी में मिला दें साथ ही जिप्सम जितना बारिक होगा वह उतना ही प्रभावी होगा। इसके एक माह बाद खेत को जोतकर निक्षालन करना चाहिये।
  3. क्षारीय भूमि के प्रबन्धन के लिये जैविक या हरी खाद को मिट्टी में मिलाना भी बहुत लाभकारी होता है। क्योंकि इसके भौतिक गुण एवं उर्वरता सुधरती है। इससे मृदा संरचना ठीक हो जाती है तथा परम्परागत बढती है। इसके लिये ढ़ैंचा की हरी खाद का प्रयोग करना चाहिये।
  4. क्षारीय भूमि को सुधारने एवं उपयोग में लाने के लिये क्षार सहिष्णु फसलों कर प्रयोग किया जा सतका है। गेहूँ, कपास, जौं, चुकन्दर मध्यम क्षार सहिष्णु फसलें हैं। पानी की उपयुक्त मात्रा होने पर एसी मृदाओं के सुधार के दौरान धान-गेहूँ के फसल चक्र को सर्वोतम पाया गया है।

Authors

सीमा1 और रीटा दहिया2
1मृदा विज्ञान विभाग और 2भौतिकी विभाग
चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार

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