Soil Biodiversity Harness and Management for Sustainable Agricultural

मृदा जीव पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग हैं। मिट्टी का बायोटा पौधों और जानवरों / मानव जीवन को बनाए रखने के लिए अत्यावश्यक है। मृदा  मैं रहने वाले सूक्ष्मजीव मिट्टी की प्रक्रियाओं में आवश्यक भूमिका निभाते हैं जैसे कि कार्बन / पोषक तत्व चक्र , पौधों द्वारा पोषक तत्व और मिट्टी कार्बनिक पदार्थ (एसओएम) का गठन। मृदा में कई ऐसे जीवाणु है जो वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं।

इस बात के भी प्रमाण बढ़ रहे हैं कि मिट्टी की जैव विविधतापौधों, जानवरों और मनुषय कीटों और बीमारियों के नियंत्रण में योगदान करते  है। खाद्य उत्पादन काफी हद तक जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं पर निर्भर करता है। 

जैविक विविधता और संबंधित पारिस्थितिक तंत्र  की सेवाएं खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। जैव विविधता उत्पादन प्रणाली और आजीविका को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले  हानिकारक प्रभावों और तनावों के लिए अधिक लचीला बनाती है।

यह पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों को सीमित करते हुए खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण संसाधन है। यह कई लोगों की आजीविका में विभिन्न प्रकार के योगदान देता है, अक्सर खाद्य और कृषि उत्पादकों मैं इस्तेमाल होने वाली महंगे वपर्यावरणीय रूप से हानिकारक बाहरी रसायनो की आवश्यकता को कम करता हैं।

वैश्विक चुनौतियां और मृदा जैव विविधता का प्रबंधन

भूमि की उपलब्धता

फसल की कटाई, मृदा का कटाव , लीचिंग या गैसीय उत्सर्जन के माध्यम से पोषक तत्वों की निरंतर कमी और उपजाऊ उत्सर्जन के कारण मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ का स्तर घटता है, जो अक्सर मूल स्तर से आधे से भी कम हो जाता है और कार्बनिक पदार्थों में इस गिरावट के परिणामस्वरूप मिट्टी की जैव विविधता घट जाती है क्योंकि कार्बनिक पदार्थरोगाणुओं के लिए भोजन के रूप में काम करती है।

मृदा क्षरण और मिट्टी की जैव विविधता का नुकसान भूमि क्षरण के महत्वपूर्ण घटक हैं। मिट्टी की जैव विविधता के लिए गहन खेती सबसे बड़ा खतरा रही है। कृषि के लिए प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग की दक्षता में वृद्धि करके इस प्रवृत्ति को बदला जा सकता है।

सावधानी से डिजाइन किए गए, एकीकृत प्रबंधन प्रथाओं, जैसे कि जुताई रहित खेती , संरक्षण कृषि , मिश्रित फसल, पशुधन प्रणाली, कुशल खाद प्रबंधन के साथ, बारहमासी और वार्षिक प्रजातियों के साथ फसल प्रणाली, सिंचाई के पानी का कुशल उपयोग और संग्रह  और सूखा-सहिष्णु फसलों का विकास वह रणनीतियाँ है जिसके परिणाम स्वरूप वर्ष-दर-वर्ष मृदा आवरण का रखरखाव होता है, कार्बनिक पदार्थों में वृद्धि होती है, मृदा संरचना में सुधार होता है और इससे कटाव कम होता है और मृदा जैव विविधता में वृद्धि होती है।

पानी की कमी

शहरी और औद्योगिक जल उपयोग, जलविद्युत संयंत्र, मनोरंजक उपयोग के लिए धाराओं की पुनर्स्थापना, मीठे पानी में मछली पालन और प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों की सुरक्षा, सभी पहले से कृषि के लिए समर्पित जल संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं और यह  संघर्ष तेज होती जा रही है । चूंकि मिट्टी की जैव विविधता काफी हद तक अनुकूल मिट्टी की नमी पर निर्भर करती है, इसलिए मिट्टी में मिट्टी के पानी का प्रबंधन बहुत आवश्यक है।

सिंचाई के बेहतर प्रबंधन, फसल और पशुधन उत्पादन प्रणालियों के विकास के माध्यम से कृषि को पानी के उपयोग में तेजी से कुशल बनाना होगा जो पानी का अधिक कुशलता से उपयोग करते हैं, कृषि प्रणालियों से पानी के नुकसान में कमी और वाटरशेड प्रबंधन में सुधार करते हैं।

पोषक तत्वों की अधिकता

 उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग और कुप्रबंधन ने लगभग सभी विकसित देशों में और कई विकासशील देशों में तेजी से भूजल को बड़े स्तर मैं प्रदूषित कर दिया है। यह डाउनस्ट्रीम कृषि और प्राकृतिक प्रणालियों को प्रभावित करता है। 1960 के बाद से, स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में जैविक रूप से प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन का प्रवाह दोगुना हो गया है, और फॉस्फोरस का प्रवाह तीन गुना हो गया है, यह बड़े पैमाने पर उर्वरक उपयोग के माध्यम से खाद्य उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों के कारण हुआ है ।

इसके अलावा, यह पाया गया है कि डालें गए नाइट्रोजन उर्वरक का केवल 30% और फॉस्फोरस उर्वरक  का लगभग 45% फसलों द्वारा लिया जाता है। उर्वरकों के लिए आवश्यक खनिजों की उपलब्ध वैश्विक आपूर्ति तेजी से घट रही है।सिचाई जो की मृदा के अनुकूल जलस्तर को नहीं बनाये रखती वो मृदा के जैवविविधिता और उर्वरता दोनों  को काम करती है   ।

यदि कृषि उत्पादन में निरंतर वृद्धि करना है तो हमे ऐसे उत्पादन प्रणालिया की आवश्कता है  जो की इन संसाधनों पर कम निर्भर रहे या फिर  इन संसाधनों का कुशल प्रबंधन करे I

जलवायु परिवर्तन

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न क्षेत्रों में कृषि उत्पादन पर काफी प्रभाव पड़ने की सम्भावना है।जलवायु परिवर्तन पर अन्तः-सरकारी पैनल की चौथी आकलन के अनुसार कटिबंधो में तापमान के बढ़ने से पानी की कम उपलब्धता तथा नए नए कीटों के प्रकोप के कारण फसल की उपज में कमी आएगी।

पहले से ही विभिन्न स्थानीय मौसमों में अचानक परिवर्तन तथा विभिन्न प्रकार के कीटों एवं व्याधियों के आकास्मिक विस्फोटक प्रकोप के कारण मौसम दर मौसम एवं वर्ष दर वर्ष उत्पादन की अप्रत्याशितता रहती है जिसका सामना करने के लिए अनुकूलनीय प्रबंधन क्रियाओं की आवश्यकता है।

खाद्य और कृषि से जुड़ी जैवविविधता के विभिन्न घटकों की उपलब्धता और विविधता में परिवर्तन के कारण फसलों की उत्पादकता तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की वृद्धि एवं प्रगति को प्रभावित करेगी।

जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले परागणकों, फसलों और लाभकारी और हानिकारक मृदाजीवों के विविधता में परिवर्तन का फसलों के उत्पादन और उत्पादकता पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।एक ही समय में जनसँख्या में वृद्धि एवं खेती योग्य भूमि में कमी होने तथा समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण शेष बचे खेती योग्य भूमि पर अधिक कुशल उत्पादन ही इस का समाधान हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुकूल बनाने के लिए किसानों को मौजूदा कृषि संबंधी प्रथाओं को बदलना होगा।जिसमे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अनुकूलतम जल उपयोग (सिंचाई) में प्रभावशाली सुधार, फसलों की उन्नत किस्मों का विकास एवं उसका उपयोग तथा अनुकूलित पशुधन नस्लों, फसल के शेड्यूल में बदलाव और फसल चक्र को अपनाना शामिल है और जलवायु परिवर्तन से संभावित जोखिम का सामना करने की क्षमता में सुधार के लिए उत्पादन रणनीतियों का विविधीकरण महत्वपूर्ण होगा।

पारिस्थितिक तंत्र के गुणों में से जो जलवायु परिवर्तन की स्थिति में उत्पादन को बनाए रखने के लिए नए तरीके से कृषि क्रियायों में बदलाव के जरिये कृषि में लचीलापन एवं स्थिर संतुलन को अत्यधिक महत्वत्ता देने की आवश्यकता है।फसलों, नस्लों की विविधता और प्रबंधन रणनीतियों का विविधीकरण, पारिस्थिति की प्रणालियों के गुणों का आधार है।

सामान्तया परंपरागत रूप से फसलों की विविधता किसानों को विभिन्न जोखिमों जिनमे जलवायु से सम्वन्धित जोखिम भी शामिल हैं, से सुरक्षा प्रदान करता है।

कुछ मामलों में, वैकल्पिक प्रकार के उत्पादन को अपनाना एक मात्र विकल्प हो सकता है और बदलाव के लिए जरुरी संसाधन बहुत हद तक बदलती हुई परिस्थितियों में परिवर्तित आनुवंशिक संसाधनों की उपलब्धता और इन संसाधनों का उपयोग करने वाली क्रियाओं को अपनाने पर निर्भर करेगाI|


Authors

प्रीतिसिंह एवंं संतोष कुमार

वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,  हज़ारीबाग़, झारखण्ड

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