वैज्ञानिक खेती के उन्‍नत तरीकों को अपनाकर गेहूं का उत्पादन बढ़ाऐं 

भारत में गेहूँ की खेती करीब 27 मिलियन हेक्टेयर में होती हैं, विगत 40 वर्षों में देश में गेहूँ उत्पादन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की हैं और भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक देश बन गया हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या को ध्यान में रखकर इस बात का अनुमान लगाया जा रहा हैं की अन्न की मांग प्रतिवर्ष 2% बढ़ेगी।

इस मांग को पूरा करने के लिए उत्पादकता को बढ़ाना होगा, क्योंकि क्षेत्रफल के बढ़ने की संभावना नहीं के बराबर हैं। राजस्थान में गेहूँ का उत्पादन एवं उसका लाभांश, खेती की लागत के अनुरूप नहीं हैं। उन्नत तकनीको के प्रयोग द्वारा गेहूँ के उत्पादन को बढाया जा सकता है|

गेहूँ की उन्नत किस्मो का प्रयोग

गेहूँ की अधिक उपज लेने के लिए अपने क्षेत्र के लिए अनुमोदित उन्नत किस्म का चुनाव कीजिए।  अच्छी उपज के लिए शुध्द प्रमाणित बीज उगाना चाहिए।

किस्म

पकने की अवधि

(दिनों मे)

औसत उपज

(क्वि./हेक्टेयर)

विशेषताए
डी.पी.डब्ल्यू-621-50 120 52

पौधे की औसत ऊंचाई 100 से.मी. होती हैं। यह सभी प्रकार की रोलीयो के प्रति उच्च प्रतिरोधक क्षमता रखती हैं।

इसके हजार दानो का वजन 36-40 ग्राम है|

राज-1482

120-130 40 -50

यह द्विजीन बोनी किस्म हैं। पौधे की औसत ऊंचाई 85-110 से.मी. होती हैं। इसके दाने गोल आकार के सख्त व सुनहरी आभा वाले होते हैं।

इसके पौधों में कल्ले काफी फूटते हैं। इसका तना गहरा हरा होता हैं। यह ब्लेक रस्ट के लिए प्रतिरोधी किस्म हैं।

डब्ल्यू एच-1105

142 52.50 पौधे की औसत ऊंचाई 100 से.मी. होती हैं। इसके हजार दानो का वजन 41 ग्राम है| यह रोली एवं स्मट के प्रति उच्च प्रतिरोधक किस्म हैं।

एच.डी-3086

143 54.56 पौधे की औसत ऊंचाई 93 से.मी. होती हैं। यह रोलीयो एवं स्मट के प्रति उच्च प्रतिरोधक किस्म हैं।

राज-3077

115-120 60 क्विंटल

यह एक बोनी किस्म हैं। पौधे की औसत ऊंचाई 76-100 से.मी. होती हैं।

इसके दाने शरबती आभायुक्त सख्त व मध्यम आकार के होते हैं। सूखे में भी यह किस्म अच्छी पैदावार दे सकती हैं।

राज-3777

105-110 40-45

पौधे की ऊंचाई मध्यम होती हैं। इसके दाने सख्त एवं अम्बर कलर के होते हैं।

यह रोली रोधक किस्म हैं। यह किस्म ज्यादा गर्म क्षेत्र में भी उगाई जा सकती हैं।

राज-3765 117-122 45-50

यह द्विजीन बोनी किस्म हैं। पछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है|

यह सभी प्रकार की रोलीयो के प्रति उच्च प्रतिरोधक क्षमता रखती हैं।

राज-4037 120 दिन 55-60

यह बोनी किस्म हैं। पौधे की औसत ऊंचाई 74 से.मी. होती हैं। इसके दानें शरबती आभायुक्त सख्त व मध्यम आकार के होते हैं।

इस किस्म में फुटन अधिक होती हैं।  यह रोली रोधक  किस्म हैं। सिंचित एवं समय पर बोने के लिए उपयुक्त किस्म हैं।

भूमि एवं उसकी तैयारी

गेहूँ की खेती के लिए बलुई दोमट से चिकनी दोमट, समतल एवं उत्तम जल निकास वाली भूमि उपयुक्त है| खरीफ की फसल की कटाई के बाद एक जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें। फिर कल्टीवेटर एवं डिस्क हेरों से लगातार जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर ले।

किसान भाई संसाधन प्रबंधन की नवीनतम जुताई तकनीक जैसे जीरो टिलेज इत्यादि का भी इस्तेमाल कर सकते है। मैदानी भाग में विविध फसल अनुक्रमों की वजह से खेत की तैयारी एवं अवशेष प्रबंधन में सावधानी बरतें। धान-गेहूँ उत्तर-पश्चिमी एवं पूर्वी मैदानी क्षेत्रों का एक प्रमुख फसल चक्र हैं।

खेत की तैयारी करते समय यह ध्यान रखने की बात हैं की बुवाई करते समय नमी की मात्रा उपयुक्त हो, अन्यथा जमाव पर विपरीत प्रभाव पड सकता हैं। अगर नमी उचित मात्रा में नहीं हैं तो बुवाई से पूर्व एक पलेवा अवश्य लगा लें।

बुवाई का समय

मैदानी क्षेत्रों में गेहूँ की बुवाई का उपयुक्त समय हैं जब दिन-रात का औसत तापमान 21-30°C होता हैं। आमतौर पर यह तापमान नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक हो जाता हैं। गेहूँ की बुवाई दिसम्बर माह के उपरांत नहीं करनी चाहिए, अन्यथा उत्पादन पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता हैं।

  1. समय से बुवाई:- 5 से 25 नवम्बर तक
  2. देर से बुवाई:- 25 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक

बुवाई की विधि

खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के उपरांत बुवाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दुरी 20-23 से.मी. एवं गहराई 5 से.मी. रखें। जहां तक संभव हो, सीड ड्रिल का ही प्रयोग करके बुवाई करें। जब बुवाई जीरो टिलेज अथवा बेड प्लांटर से की जाए तो अच्छे जमाव के लिए बीज की गहराई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

अधिक पौध उत्पादन के लिए आडी-तिरछी विधि से बुवाई की जा सकती हैं। धान-गेहूँ की फसल चक्र के मामले में जीरो टिलेज अथवा रोटरी टिलेज का प्रयोग अधिक प्रभावशाली एवं लाभप्रद पाया गया हैं। पछेती बुवाई की दशा में पंक्तियों की दूरी घटा कर 18-20 से.मी. रखें एवं गहराई 3-4 से.मी. अधिक न रखें

बीज की दर

बीज की दर को निर्धारित करने वाले कारक हैं: बीज का आकार, जमाव का प्रतिशत, बुवाई करने का समय एवं प्रयोग में लाए जाने वाला फसल चक्र।

बीज दर (कि.ग्रा./है.)

  1. समय से बुवाई 100
  2. पछेती बुवाई 125
  3. जीरो टिलेज 125-150
  4. मेड पर बुवाई 75
  5. रोटरी टिलेज से बुवाई 100

बीजोपचार 

  • गेहूँ मे करनाल बंट रोग की रोकथाम हेतु कार्बोक्सिन 5 प्रतिशत+थाइराम 37.5 प्रतिशत से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के दर से बीजोपचार करे|
  • ईयर कोकल व टुन्डूरोग से बचाव के लिए बीज को (यदि बीज रोग ग्रसित) खेत का हो तो 20 प्रतिशत नमक के घोल मे डुबोकर नीचे बचे स्वस्थ बीज को अलग छांटकर साफ़ पानी से धोये और सुखाकर बोने के काम मे लावे|
  • जहाँ स्मट (काग्या) का प्रकोप सम्भावित हो, वहाँ बुवाई के समय बीज को कार्बोक्सिन (70 डब्ल्यू) अथवा कार्बेन्डाजिम (50 P.) नामक दवा से 2 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करे|
  • दीमक के नियंत्रण के लिए 400 मि.ली. क्लोरीपायरीफ़ॉस (20 ई.सी.) या 200 मि.ली. ईमिडाक्लोप्रिड (17.8 एस.एल.) या 250 मि.ली. ईमिडाक्लोप्रिड (600 एस.एफ.) को 5 लीटर पानी मे घोलकर 100 किलो बीज के हिसाब से उपचारित करे| बीज को रात भर पतली परत मे सूखने के लिए रखे एवं दुसरे दिन सुबह बुवाई के काम मे

खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग

अगर उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जाँच के उपरांत किया जाए तो उससे कम लागत में अच्छी उपज ली जा सकती हैं। खेतों में प्रति हैक्टेयर 80-100 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग करने से अच्छी उपज मिलती हैं और साथ ही मृदा की उर्वरता में वृद्धि होती हैं। समय से बुवाई की जाने वाली प्रजातियों के लिए प्रति हैक्टेयर 120 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 40 कि.ग्रा. पोटाश का प्रयोग करना चाहिए।

देर से बुवाई की जाने वाली किस्मों के लिए उर्वरक की मात्रा कम कर दी जाती हैं। ऐसी अवस्था में 100 कि.ग्रा. नत्रजन, 30-40 किग्रा. फास्फोरस एवं पोटाश प्रति हैक्टेयर पर्याप्त हैं। बारानी गेहूँ में 80 किग्रा. नत्रजन एवं 40 किग्रा. फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करना चाहिए।

नत्रजन की आधी मात्रा,फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय ही खेत में डाल दें। बची हुई आधी नत्रजन की मात्रा को प्रथम सिंचाई के उपरांत खेत में बुरकाव करें। बरानी गेहू में नत्रजन एवं फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय ही खेत में डाल दें।

किसान खाद को खेत में समान रूप से डालें अगर यह कार्य सीड ड्रिल के द्वारा किया जाए तो अधिक लाभप्रद रहेगा।

सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी लक्षण, पहचान एवं निदान

सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:-

जस्ता (जिंक) की कमी

लक्षण

जिंक की कमी प्रायः उन क्षेत्रों में देखी जाती हैं जहां पर धान- गेहूँ फसल चक्र का प्रमुखता से प्रयोग होता हैं। पौधे में जस्ते की मात्रा 15 पी.पी.एम्. से कम होने पर उसकी कमी के लक्षण आने लगते हैं।

आरम्भ में नई पत्तियों की शिराओं के मध्य भाग में पर्णहीनता दिखाई देती हैं। जिंक की कमी से पौधे की बढ़त रुक जाती हैं और पत्तियां सुख कर गिर जाती हैं।

रोकथाम

5 किलोग्राम जिंक व 2.5 किलोग्राम बुझा चुना प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें या लक्षण दिखाई देने पर 0.5 फीसदी जिंक के छिड़काव के लिए 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट व 1.25 किलोग्राम बुझा चूना या 12.5 किलोग्राम यूरिया 500 लीटर पानी में घोल कर 15 दिनों के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करें|

गंधक (सल्फर) की कमी

लक्षण

गंधक पौधों में प्रोटीन बनाने वाले प्रमुख तत्व अमीनो एसिड का प्रमुख घटक हैं। यह क्लोरोफिल बनाने में भी काम आता हैं। क्लोरोफिल प्रकाश संश्लेषण में प्रमुख योगदान करता हैं। सल्फर की कमी रेतीली भूमि में ज्यादा दृष्टिगोचर होती हैं, अथवा पौधे को छोटी अवस्था में अधिक वर्षा होने पर दिखाई देती हैं।

 सल्फर की कमी से पत्तियों का हरा रंग समाप्त होने लगता हैं और पत्तियों की शिराओं का मध्य भाग पीला होने लगता हैं तथा पौधे की बढ़वार रुक जाती हैं।

रोकथाम

इस तत्व की कमी को गंधक युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल फास्फेट आदि के प्रयोग से दूर किया जा सकता हैं।

मैगनीज की कमी

लक्षण

पौधे में मेगनीज की मात्रा 25पी.पी.एम्. से कम होने पर सर्वप्रथम बिच वाली पत्तियों की शिराओं के मध्य हल्के-भूरे रंग के धब्बे तथा आरम्भिक पत्तियों में पर्णहरिता दिखाई पड़ती है।

सिंचाई

सिंचाई संख्या

फसल की क्रांतिक अवस्था

फसल बुवाई के दिन बाद

1

मुख्य जड निकलने पर

20-25 दिन बाद

2

कल्ले निकलते समय

40-45 दिन बाद

3

गांठ बनने के बाद

65-70 दिन बाद

4

बाली आने पर

90-95 दिन बाद

5

दानों में दूध पडते समय

105-110 दिन बाद

 

6

लेट डफ स्टेज पर (दानों में आटा बनते समय)

120-125 दिन बाद

सिमित मात्रा में पानी उपलब्ध होने पर फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई करनी चाहिए क्योंकि इस अवस्था पर पानी की कमी होने पर उपज में तुलनात्मक रूप से अधिक कमी हो जाती हैं। अगर 6 सिंचाई उपलब्ध हो तो पानी निम्न प्रकार लगाया जावे| अगर पानी की कमी हो तो चार सिंचाईयाँ निम्न प्रकार करे

सिंचाई संख्या

फसल की क्रांतिक अवस्था

फसल बुवाई के दिन बाद

1

मुख्य जड निकलने पर

20-25 दिन बाद

2

कल्ले निकलते समय

40-45 दिन बाद

3

बाली आने पर

90-95 दिन बाद

4

दानों में दूध पडते समय

105-110 दिन बाद

 

निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण

गेहूँ की फसल में पाए जाने वाले खरपतवार मुख्यतया चौड़ी पत्ती वाले एवं दूसरे संकरी पत्ती वाले। गेहू में उगने वाले मुख्य खरपतवार हैं गुल्ली डंडा, गेहूँसा/मंडुसी, जंगली जई, बथुआ, खरबुधा, सत्यानाशी, कृष्णनील, कटेली एवं मोठा आदि।

गेंहू मे सस्य विधियॉं

  1. मेड़ो एवं नालियों को साफ-सुथरा रखे।
  2. फसल चक्र को परिवर्तित करते रहें एवं साल में कम से कम एक बरसीम अथवा जई की फसल को चारे के तौर पर उगाये।
  3. फसल विविधीकरण का पालन करें।
  4. जीरो टिलेज विधि से गेंहू उत्पादन करें।
  5. गेंहू की जल्दी बढ़ने वाली किस्मों का चयन करें।
  6. बेड प्लांटर अथवा रोटोवेटर से बुवाई करने से खरपतवार कम उगते है।
  7. साफ सुथरे, स्वस्थ एवं खरपतवार रहित उच्च गुणवत्ता वाले बीज का प्रयोग करे।
  8. जहां तक संभव हो सके अगर खेत खाली हो तो बुवाई 15 नवंबर से पहले कर दे।
  9. खाद को बीज के 2-3 से.मी. नीचे डाले और बुवाई के लिए सीड ड्रिल का प्रयोग करें।
  10. पौधों की संख्या बढ़ने के लिए आड़ी-तिरछी विधि से बुवाई करे।

यांत्रिक विधि

गेहूँ की बुवाई के एक माह बाद यदि खेत में खरपतवार दिखाई दे, तो निराई-गुड़ाई करें। बुवाई के 30-35 दिन बाद लाइनों में बोए गेहूँ की गुड़ाई खुरपे या कसौल इत्यादि से की जा सकती है। परन्तु यदि बुवाई लाइनों में नही की गई है तो और खरपतवारों की संख्या अधिक हो तो ऐसी स्थिति में रासायनिक नियंत्रण लाभदायक रहता है। इससे लागत भी कम आती है।

रासायनिक विधि

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार को नष्ट करने के लिए बोनी किस्मों में बुवाई के 30-35 दिन व अन्य किस्मों में 40-45 दिनों के बीच में 500 ग्राम 2-4 डी एस्टर साल्ट या 750 ग्राम 2-4 डी अमाइन साल्ट सक्रिय तत्व खरपतवारनाशी रसायन प्रति हेक्टेयर की दर से 500-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

गेहूँ में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए मेटा सल्फ्युरोन मिथाइल 4 ग्राम सक्रीय तत्व प्रति हेक्टेयर का सरफेक्टेंट (500 मी.ली./है.) के साथ बुवाई के 30-35 दिन के अंदर छिड़काव करें।

गेहूँ में घास वाले खरपतवार का नियंत्रण करने के लिए सल्फॉसलफ्यूरोन नामक खरपतवारनाशी का 25 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सरफेक्टेंट के साथ प्रथम सिंचाई के साथ छिड़काव करें।

गुल्ली डंडा व जंगली जई खरपतवार का प्रकोप जिन खेतों में अधिक रहा हो उनमे गेहू की बुवाई के 30-35 दिन बाद आइसोप्रोट्यूरोन अथवा मेटाकसिरान अथवा मेंजोबेन्जाथोजूरान निंदनाशी, हल्की मिट्टी हेतु पौन किलो तथा भरी मिट्टी हेतु सवा किलो सक्रिय तत्व का पानी में घोल बनाकर एक सार छिड़काव करें।

मेटाक्सीरॉन का छिड़काव करने से घास कुल व चौड़ी पत्ती वाले सभी खरपतवार समूल नष्ट हो जाते हैं। ध्यान रखे कहि भी दोहरा छिड़काव न हो पाये। इन खरपतवारों के मामूली प्रकोप वाले खेतों में जब खरपतवार बड़े हो जाये तब बीज बनने से पहले खेत से निकाल कर मवेशिओं को खिलावे।

गेहूँ के प्रमुख कीट एवं नियंत्रण

तेला कीट- 

यह कीट हरे रंग का जू की तरह होता है| जोकि ठण्ड एवं बादलों वाले दिनों में बहुत अधिक संख्या में कोमल पत्तों या बालियों पर प्रकट होते हैं, और गेहूं के दाने पकने के समय अपनी चर्म संख्या में पहुंच जाते हैं| इस कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों पौधों के पत्तों से रस चूसते रहते हैं, विशेषकर बालियों को प्रभावित करते हैं|

बादलों एवं ठण्ड वाले मौसम में तेला कीट अधिक नुकसान पहुंचाता है| जो फसल अधिक खाद, अच्छी तरह से सिंचित और मुलायम हो वहाँ लम्बे समय तक इस कीट का प्रकोप बना रहता है|

रोकथाम- अधिक प्रकोप होने पर फसल में बालियाँ बनने की अवस्था में ही या 5 तेला कीट प्रति बाली दिखाई देने पर 1.5 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30 ई सी या 1.5 मिलीलीटर मोनोकोटोफॉस 36 एस एल प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें| क्योंकि तेला कीट सबसे पहले फसल के किनारे वाली पंक्तियों में प्रकट होते हैं, इसलिए प्रभावित पंक्तियों में ही छिड़काव करें ताकि कीट का शेष फसल में फैलाव रोका जा सके|

दीमक- 

ये कीट फसल को अंकुरण के समय से ही हानि पहुंचाते हैं| ये कीट पौधों की जड़ों को खाते रहते हैं, जिसके कारण पौधे मर जाते हैं|

रोकथाम- कच्चे गोबर की खाद का प्रयोग न करें, पिछली फसल के अवशेषों को एकत्रित करके नष्ट कर दें| बिजाई के समय खेत में 2 लीटर क्लोरपाइटीफॉस 20 ई सी 25 किलोग्राम सूखी रेत में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाएं|

प्रभावित क्षेत्रों में फसल की बिजाई क्लोरपाइटीफॉस 20 ई सी (4 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज) से बीज उपचार करने के बाद ही करें|

तना छेदक- 

यह भी गेहूं के प्रमुख कीटों में शामिल कीट है, यह गेहूं के तने को खाकर नुकसान पहुचता है|

रोकथाम- फसल की फुटान शुरू होते ही क्यूनालफॉस 25 ई सी एक लीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से तना छेदक की रोकथाम की जा सकती है| 

गेहूं का बग-

इन कीटों का प्रकोप आमतौर पर उत्तर पश्चिमी राज्यों में देखा गया है| जब फसल में दानें बनाना शुरू होते हैं, तब ये कीट नुकसान पहुंचाते हैं| जिसके कारण दाने खोखले रह जाते हैं| यह भी गेहूं के प्रमुख नुकसान पहुँचने वाले कीटों में से एक है|

रोकथाम- कीट प्रकोप अधिक होने पर 1 मिलीलीटर मिथाईल पैन्टाथियॉन 50 ई.सी. या 1 मिलीलीटर क्वीनलफॉस 25 ई सी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|

गेहूँ के प्रमुख रोग एवं नियंत्रण

झुलसा रोग

लक्षण: इस रोग में पत्तियों के नीचे कुछ पीले व कुछ भूरापन लिए हुए अण्डाकार धब्बे दिखाई देते हैं। यह धब्बे बाद में किनारों पर कत्थई भूरे रंग के हो जाते हैं।

नियंत्रण: इसके उपचार के लिए प्रोपिकोनोजोल 25 प्रतिशत ईसी रसायन के आधा लीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

गेंहूँ मे गेरुई या रतुआ रोग

लक्षण: इस रोग में फफूंदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते हैं जो बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को ग्रसित कर देते हैं।

नियंत्रण: इसके उपचार के लिए एक प्रोपीकोनेजोल 25 प्रतिशत ईसी रसायन की आधा लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

गेंहूँ का करनाल बंट

लक्षण एवं क्षति: दाने का रंग काला पड़ जाता है। बीजाणु हवा से बिखर जाते है। अधिक संक्रमण होने पर दाना खाने योग्य नहीं रहता।

नियंत्रण:

  • बीजोपचार में दी गई सिफारिस अनुसार बीजोपचार करे
  • पुष्पन अवस्था की शुरुआत पर प्रोपाइकोनाजोल 10 ई.सी. का 1 मि.ली. प्रतिलीटर के हिसाब से छिड़काव करने से रोग का संक्रमण कम किया जा सकता है।

गेंहूँ मे आई.पी.एम

  • मुलायम किस्मों की अपेक्षा कठिया गेहूँ की किस्में ज्यादा प्रतिरोधक होती है।
  • खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
  • प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
  • फूल आने के पहले सिंचाई करने से रोग का परिमाण घट जाता है।
  • स्वस्थ खेत में रोग रहित बीजों का उपयोग करें।
  • बाली आने के समय पानी गिरने से ग्रसन हो सकता है।

 गेंहॅू का पाले से बचाव

  • पाला पड़ने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए। जिससे जमीन में काफी देर तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापमान कम नहीं होता है।
  • गंधक के तेजाब के 1% घोल का छिड़काव करना चाहिए। इस हेतु 1 लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टर क्षेत्र में प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़काव का असर 2 सप्ताह तक रहता है।
  • जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो उस रात खेत की उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास, मेड़ों पर रात्रि में कूड़ा-कचरा या अन्य व्यर्थ घास-फूस जलाकर धुआ करना चाहिए

गेंहूँ आधारि‍त फसल चक्र

पडत-गेहूँ,  ग्वार/मूँग-गेहूँ  , कपास/नरमा-गेहूँ  , धान-गेहूँ , मूँगफली- गेहूँ

गेहूँ की कटाई एवं गहाई

गेहूँ की कटाई का समय भी महत्वपूर्ण है। यदि कटाई देर से की जाय तो काटते समय दाने झडते है। इसलिए गेहूँ की कटाई दाना पकते ही कर लेनी चाहिए। कटाई के बाद फसल को धूप में अच्छी तरह सुखा कर गहाई भी कर लेनी चाहिए।

गेहूँ उपज

उन्नत विधियों द्वारा खेती करने से गेहूँ की औसत दाने की उपज 40-48 क्विंटल/हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है|

गेहूँ भंडारण

अनाज को भंडारण से पहले अच्छी तरह से साफ और सूखा ले। इसके लिए गेहूँ को तारपोलिन अथवा रंगीन प्लास्टिक की शीट पर तेज धुप में सुखाएं जिससे दानों में नमी की मात्रा 12% से कम हो जाए। भण्डारण के दौरान अनाज को कीड़ों से बचाने के लिए अल्युमिनियम फॉस्फाइड अथवा इडीबी/46 मि.ली. प्रति टन रसायन का प्रयोग करें।


 Authors:

डॉ. रुपेश कुमार मीना

सहायक प्राध्यापक (शस्य विज्ञान),

कृषि विज्ञान केन्द्र, पदमपुर, श्रीगंगानगर

     स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविधालय, बीकानेर

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