सफेद मुसली की खेती

सफेद मूसली (क्लोरोफाइटम स्पीशीज) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जिसकी विभिन्न प्रजातियां की जड़ों का उपयोग आयुर्वेदिक व यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है इसकी सुखी जड़ों में पानी की मात्रा 5 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट 42 प्रतिशत प्रोटीन 8-9 प्रतिशत रूट फाइबर ग्लुकासेाइल सेपोनिन 2-17 प्रतिशत के साथ-साथ सोडियम पोटेशियम कैल्शियम फास्फोरस व जिंक आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं

सफेद मूसली का उपयोग मनुष्य की दुर्बलता व नपुसकता निवारण में किया जाता है भारत में इसकी खेती राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल व तमिलनाडु राज्यों में की जाती है राजस्थान में यह चित्तौड़गढ़, बारा, उदयपुर, सिरोही, राजसमंद जिलों में इसकी खेती की जाती है यह कोटडा, झरगा, अंबाला, सीतामाता, कुंभलगढ व पीपलोद के जंगलों में जंगली रूप में पाई जाती है

Safed Musli ka podha

सफेद मूसली का पौधा 

safed musli ki jad

सफेद मूसली की जड

जलवायु व भूमि

इसकी खेती उन क्षेत्रों में की जाती है जहां 500 से 1000 मिलीमीटर वर्षा व जलवायु आद्र होती है तथा साथ ही ऐसी मिट्टी जिसमें जीवाश्म व जल धारण क्षमता हो इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है

खेत की तैयारी 

सर्वप्रथम खेत में दो क्रॉस पलाऊ तत्पश्चात दो क्रॉस कल्टी तथा समतलीकरण के पश्चात 3 से 3.5 फीट चैड़ी 1.5 फीट ऊंची बेड बनाते हैं जिसमें पानी की निकासी हेतु नालियां की पर्याप्त व्यवस्था की जाती है

बीज की मात्रा व उपयुक्त प्रजातियां

सफेद मूसली की मुख्य 4 प्रजातियां क्लोरोफाइटम बोरिविलयनम, क्लोरोफाइटम लक्सम, क्लोरोफाइटम अरुण्डिनसियम तथा क्लोरोफिटम ट्यूब्ररोसम होती है जिसमें क्लोरोफाइटम बोरिविलयनम , क्लोरोफाइटम ट्यूब्ररोसम भारत में बहुतयात में पाई जाती है

एक हेक्टर क्षेत्र के लिए 80000 क्राउन (अंकुरित) फिंगर उपयुक्त होती है अर्थात 400 से 600 किलो गूदेदार सफेद मूसली की जड़ों की आवश्यकता होती है जिसमें 1 क्राउन का वजन 5 से 10 ग्राम होता है और एक क्राउन में दो से तीन फिंगर होने चाहिए

बीजोपचार

बुवाई से पूर्व अंकुरित जड़ो  को  2 ग्राम प्रति लीटर कार्बेन्डाजिम में डुबोकर उपचारित करते हैं

 बुवाई का समय व तरीका

 इसकी बुवाई बरसात शुरू होने पर जून से जुलाई माह में तैयार  बेड में 15 सेंटीमीटर की दूरी पर और 5 सेंटीमीटर गहराई में लगाते हैं

सिंचाई एवं निराई- गुड़ाई

जमीन में नमी के अनुसार बुवाई के तुरंत बाद या अंकुरण के 5-6 दिनों के उपरांत प्रथम सिंचाई करते हैं तथा अंकुरण प्रारंभ के 15 से 20 दिनों पश्चात इसकी निराई गुड़ाई की जाती है तथा सिंचाई का  अंतराल बारिश के अंतराल पर निर्भर करता है

रोग व कीट प्रबंधन

सफेद मूसली में रोगो तथा कीटों के प्रबंधन के लिए कंद की बुवाई से पूर्व कार्बेन्डाजिम  तथा स्टेप्टो साइकिलिन से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए

बीज व कंद एकत्रीकरण

सफेद मूसली को बुवाई के 50 से 70 दिनों बाद जब पुष्पो  से फल बनते हैं तथा फल को तोड़कर बीजों को सुखाकर एकत्रित करते हैं तथा जब मूसली की  पत्तियां सूख जाए तथा कंद हल्के भूरे रंग के हो तब हल्की सिंचाई कर एक-एक कंद निकलते हैं

बीज का भंडारण व रखरखाव

सफेद मूसली की जड़ों के गुच्छे सितंबर से नवंबर के बीच निकालते हैं तथा जड़ के गुच्छ़ों से जड़ों को इस तरह अलग करें की जड़ का छिलका नहीं हटए अगले वर्ष की बुवाई के लिए इन जड़ों को झोपडी या कच्ची  फर्श वाले मकान में 20 से 30 सेंटीमीटर गहरा गड्डा खोदकर जड़ों को भंडारित करते हैं

इसके लिए आवश्यक है कि इस स्थान पर आद्रता  नहीं रहे तथा साथ ही जड़ों में नमी की मात्रा 8 से 9 प्रतिशत तक हों

उपज

एक हेक्टर जमीन से करीब से करीब 20 क्विटल सफेद मूसली की गूदेदार जड़  या 200 से 250 किलोग्राम सुखी सफेद मूसली की उपज प्राप्त होती है                                       


 Author’s

 1तुरफान खान, 2गंगाराम माली एवम 3डॉ प्रदीप पगारिया

1फार्म प्रबंधक , 2प्रोग्राम सहायक एवंं 3वरिष्ट वैज्ञानिक एवम अध्यक्ष 

कृषि विज्ञान केंद्र गुड़ामालानी, कृषि विश्व विद्यालय जोधपुर,-342304

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