बाजरे की वैज्ञानिक तरीके से खेतीे

बाजरा गरीब का भोजन कहा जाता है। मोटे दाने वाली खाद्यान फसलों में बाजरे का महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी खेती दाने व चारे दोनो के लिए कि जाती है। शुष्क व कम वर्षा वाले क्षैत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल है। और यह राजस्थान की मुख्य फसल है। बाजरे का 90 प्रतिशत क्षैत्रफल राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उतर प्रदेश, एवं हरियाणा राज्यों के अन्तर्गत आता है।

बाजरे के दानों में लगभग 12.4 प्रतिशत नमी, 11.6 प्रतिशत प्रोटीन, 5.0 प्रतिशत वसा, 67.0 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट एवं 27.0 प्रतिशत लवण होते है।

खेत कि तैयारी:-

खेत की तैयारी फसल की समय से बुवाई सुनिश्चित करती है। खेत की तैयारी इस प्रकार करनी चाहिए कि पूर्व फसल अवशेष एवं अवांछित खरपतवार अच्छी तरह मिट्टी के नीचे दब जाये एवं मिट्टी भुरभुरी हो जाये।

एक गहरी जुताई, मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए उसके बाद 2-3 जुताई, डिस्क द्वारा की जा सकती है। खेत से अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए खेत का समतल होना अतिआवष्यक है।

बाजरे की उन्नत प्रमुख संकर एवं संकुल किस्में:-

राज-171, एच.एच.बी.-67, एच.एच.बी.-60, एच.एच.बी.-216, एच.एच.बी.-226, एच.एच.बी.-234, आई.सी.एम.एच.-356, आर.एच.बी.-154, आर.एच.बी.-177, आर.एच.बी.-90, आर.एच.बी.-58, जी.एच.बी.-757, जी.एच.बी.-538, मण्डोर बाजरा कम्पोजिट-2, आर.एच.बी.-121, सी.जेड.पी.-9802, एम.एच.-169, डब्ल्यू.सी.सी.-75.

बुवाई का समय:-

खेत में बुवाई के समय पर्याप्त नमी होनी चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में जुलाई के प्रथम पखवाड़े तक बाजरे की बुवाई कर देनी चाहिए। बारानी या असिंचित क्षेत्रों में मानसून की पहली वर्षा के बाद खेत में पर्याप्त नमी होने बुवाई करनी चाहिए। वर्षा में विलम्ब होने पर एच.एच.बी.-67 किस्म की बुवाई करें।

बीज की मात्रा:-

बीज दर प्रजाती की अंकुरण क्षमता, 1000 दानों का भार एवं पौधों की संख्या प्रति हेक्टेयर पर निर्भर करती है। बाजरे की एकल फसल के लिए 4 किलोग्राम प्रमाणित बीज प्रति हैक्टेयर के हिसाब से प्रयोग की जाती है।

बीज बुवाई के तुरंत पष्चात वर्षा होने पर हल्की भूमियों में कड़ी पपड़ी बन जाती हैं। इस कारण बाजरे में अंकुरण कम होता है और कई बार तो दुबारा बुवाई करनी पड़ जाती है। इस कारण किसान को नुकसान होता है। इस समस्या से बचने के लिए कि कड़ी परत न बने इसके लिए खेत में उचित कार्बनिक खाद का उपयोग कर ही बीज की बुवाई करें।

बीजोपचार:-

भूमि एवं बीज जनित बीमारियों एवं कीटों की रोकथाम के लिए बीज उपचार अतिआवष्यक है। अरगट रोग के नियन्त्रण के लिए 20 प्रतिषत नमक के घोल (5 लीटर पानी में एक किलो नमक) में बीजों को 5 मिनट डूबोकर, निथार कर धोकर सूखा लें।

उन क्षेत्रों में जहाँ डाउनी मिल्डयू होने की सम्भावना हो, बीज को मेटालेक्जाइल (6 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज) से उपचारित करें। एजेटोबैक्टर 600 ग्राम (3 पैकेट)+पी.एस.बी. कल्चर 600ग्राम(3 पैकेट) प्रति हैक्टयर की दर से गुड़ के पानी में घोल बनाकर बीजोपचार करें। सफेद लट नियन्त्रण के लिए एक किलो बीज में 3 किलो कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिषत कण मिलाकर उपचारित करके  बोयें।

बुवाई की विधि:-

अधिक उपज प्राप्त करने के लिए, बाजरे की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 45-60 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सें.मी. रखनी चाहिए। खेत में पौधों की संख्या 18 पौधे प्रति वर्ग मीटर हानी चाहिए। पानी की कमी हाने कि दषा में या सूखे कि दषा में पौधों की संख्या में उखाड़कर कमी कर दें।

खाद एवं उर्वरक प्रयोग:-

उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले खेत कि मिट्टी की जाँच करा लेनी चाहिए और मिट्टी जाँच के आधार पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड में सिफारिष की गई मात्रा के अनुसार ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।

बुवाई के 2-3 सप्ताह पूर्व गोबर की खाद 8-10 टन प्रति हैक्टेयर या 2.0-2.5 टन वर्मी कम्पोस्ट खेत में बिखेर कर जुताई कर देनी चाहिए। उर्वरक सिंचित एवं असिंचित क्षेत्राें के लिए अलग-अलग मात्रा में प्रयोग किये जाते है।

सिंचित क्षेत्रों के लिए:

नत्रजन 80-100 कि.ग्रा., फॉस्फोरस 40-50 कि.ग्रा., एवं पोटाष 40-50 कि.ग्रा.,  प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग कि जा सकती है। मुख्यत: नत्रजन की आधी एवं फॉस्फोरस एवं पोटाष की पूरी मात्रा बुवाई के समय देनी चाहिए। नत्रजन की षेष मात्रा दो भागों में बुवाई के 3 सप्ताह एवं 5 सप्ताह बाद प्रयोग कर सकते है।

असिंचित क्षेत्रों के लिए: शुष्क एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों में नत्रजन 30-40 कि.ग्रा., फॉस्फोरस 25 कि.ग्रा., एवं पोटाष 25 कि.ग्रा., प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग कि जा सकती है।

निराई-गुड़ाई/खरपतवार नियन्त्रण:-

बाजरा वर्षा ऋतु की फसल होने के कारण खरपतवारों से बहुत अधिक प्रभावित होता है। फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए समय पर खरपतवार नियन्त्रण करना अति आवष्यक हैं। अन्यथा उपज में 70 प्रतिषत तक कमी हो सकती हैं।

बुवाई से 30 दिन तक खेत का खरपतवार मुक्त रखना आवष्यक है। खरपतवार नियन्त्रण के लिए पहली निराई खुरपी द्वारा बुवाई के 15 दिन बाद करनी चाहिए। इसे 15 दिन के अन्तराल पर दोहराना चाहिए।

निराई सम्भव नहीं हाने की स्थिति में खरपतवार नाषक एट्राजिन 0.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के तुरन्त बाद अथवा 1-2 दिन बाद 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से खरपतवारों पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।

सिंचाई प्रबंधन:- फुटान के समय, फूल आने एवं दाने बनने के समय, खेत में पर्याप्त नमी होना आवष्यक है। यदि इस अवस्था में वर्षा न हो तो सिंचाई करनी चाहिए अन्यथा उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

सल्फोहाईड्रिल रसायनो का छिड़काव: असाधारण स्थिति में या वर्षा न हो तो बाजरे में इसके प्रभाव को कम करने के लिए यूरिया का 3 प्रतिषत घोल जब पौधे 5-6 सप्ताह के हो जावें तो पर्णीय छिड़काव कर सकते है।

कीट प्रबंधन:-

कातरा:

कातरे की लट फसलों को अत्यधिक नुकसान पँहुचाती हैं। मानसून की वर्षा होते ही इस कीट के पतंगे निकलना शुरू हो जाते है। इन पतंगो को प्रकाष की ओर आकर्षित करके नष्ट किया जा सकता हैं।

नियन्त्रण हेतु प्रकाष पाष का खेत में उपयोग कर आकर्षित करके निचे पानी व केरोसीन मिलाकर परात में रख देनें से पतंगे इस में गिरकर नष्ट हो जायेंगे। मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिषत या क्यूनॉलफास 1.5 प्रतिषत चूर्ण का 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें। जहाँ पानी उपलब्ध हो वहाँ डाइक्लोरोवास 100 ई.सी. 300 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें।

सफेद लट:

मानसून की वर्षा होते ही इस कीट के भृंग निकलना शुरू हो जाते है। इन भृंगो को प्रकाष की ओर आकर्षित करके नष्ट किया जा सकता हैं।

नियन्त्रण हेतु प्रकाष पाष का खेत में उपयोग कर आकर्षित करके नीचे पानी व केरोसीन मिलाकर परात में रख देनें से पतंगे इस में गिरकर नष्ट हो जायेंगे। फसल में लटों के प्रकोप की रोकथाम के लिये क्यूनॉलफास 5 प्रतिषत कण या कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिषत कण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व कतारों मे ऊर देना चाहिए तथा गर्मियों में गहरी जुताई करनी चाहिए।

तना मक्खी:

इस कीट की गिडार पौधों को बढ़वार की प्रारंम्भिक अवस्था में काट देती हैं। जिससे पौधा सूख जाता है।

इसके नियन्त्रण के लिए थिमेट 10 जी. को 15-20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से कूड़ो मे डालना चाहिए।

बीटल एवं ईयर हैड बग:

मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिषत या क्यूनॉलफास 1.5 प्रतिषत चूर्ण का 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।

दीमक:

खेत में अच्छी तरह से सड़ी गोबर की खाद डालें तथा खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लारोपाइरीफॉस 4 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के साथ देना चाहिए।

बाजरे मे रोग प्रबंधन:-

हरित बाली रोग( जागिया):

बीज को उपचारित करके ही बुवाई करें। रोग दिखाई देने पर बुवाई के 21 दिन बाद मैन्काजेब 2 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़के। तथा रोग रोधी किस्में डब्ल्यू.सी.सी.-75, राज-171, आर.एच.बी.-90, एच.एच.बी.-67, एम.एच.-169 बोयें एवं रोगग्रसित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर देवें।

अर्गट:

यह बाजरे का अतिभंयकर रोग है तथा इसे चेपा या चपका एवं गूदिंया के नाम से जाना जाता है। इस रोग का प्रभाव फसल में फूल आते समय होता है। रोगग्रसित फूलों में से हल्के गुलाबी रंग का गाढ़ा तथा चिपचिपा शहद जैसा तरल पदार्थ निकलता है।

रोग ग्रसित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर देवें। अधिक प्रकोप होने पर एक हैक्टेयर में 2 किलोग्राम मैंकाजेब 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। अर्गट रोग के लिए रोग रोधी किस्मों जैसे- आई.सी.टी.पी.8203, आई.सी.एम.वी.155 का प्रयोग करना चाहिए। बीज को नमक के घोल में उपचारित कर काम में लेवें।

ध्यान दें: अर्गट ग्रसित अनाज विषैला होने के कारण मनुष्य व पषु दोनों के लिए घातक होता है।

कटाई:-

फसल पकने के समय दाने गहरे काले रंग के हो जाते है। सामान्यत: बाजरे की फसल 75-85 दिन के अन्दर पक जाती है। जब दानों में नमी की मात्रा 20 प्रतिषत हो तभी बालियां पौधे से अलग करनी चाहिए।

उपज व भण्ड़ारण:-

फसल की बालियों को मंडाई से पूर्व अच्छी तरह सूखा लेना चाहिए। थ्रेसर से निकलाने के पष्चात दानाें को साफ कर एवं सूखाकर उनका भण्डारण किया जा सकता हैं। बाजरे के भण्डारण के समय दानों में नमी की मात्रा 12-14 प्रतिषत होनी चाहिए। किस्म के अनुसार बाजरे की औसत उपज 20-35 क्ंविटल दाना एवं 70-100 क्ंविटल कड़बी/चारा प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।


 Authors:

रामनिवास यादव, सुशीला चौधरी एवं राजपाल यादव

विद्यावाचस्पति: पादप रोग़ विज्ञान विभाग

राजस्‍थान कृषि‍ अनुसंधान संस्‍थान, दुर्गापुरा, जयपुर

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