करेले की खेती कैसे करे

भारत मे करेले की खेती सदियो से होती आ रही है । इसका ग्रीष्मकालीन सब्जियों में महत्वपूर्ण स्थान है । करेला अपने पौष्टिक एवं औषधीय गुणों के कारण काफी लोकप्रिय सब्जी है ।  मधुमेह के रोगियों के लिये करेला की सब्जी का सेवन बहुत लाभदायक है । इसके फलों से सब्जी बनाई जाती है ।

इसके छोटे.छोटे टुकड़े करके धूप में सुखाकर रख लिया जाता हैं।जिनका बाद में बेमौसम की सब्जी के रूप में भी उपयोग किया जाता है ।

उन्नत  किस्में

हिसार सेलेक्शंन, ग्रीन लांग, फैजाबाद स्माल, जोनपुरी झलारी, सुपर कटाई, सफ़ेद लांग, ऑल सीजन, हिरकारी, भाग्य सुरूचि, मेघा-एफ 1, वरून-1, पूनम, तीजारावी, अमन नं. 24, नन्हा क्र-13 ।

जलवायु

उत्पादन के लिए मध्यप्रदेश की जलवायु जो कि गर्म एवं आर्द्र हैए अति उपयुक्त है। करेले कि बढ़वार के लिए न्यूनतम तापक्रम 20 डिग्री सेंटीग्रेड तथा अधिकतम 35 -40 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।

बीज की मात्रा व नर्सरी

खेत में बनाये हुए हर थाल में चारों तरफ 4-5 करेले के बीज 2-3 सेमी गहराई पर बो देना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु की फसल हेतु बीज को बोआई से पूर्व 12-18 घंटे तक पानी में रखते हैं। पौलिथिन बैग में एक बीज प्रति बैग ही बोते है। बीज का अंकुरण न होने पर उसी बैग में दूसरा बीज पुन बोआई कर देना चाहिए। इन फसलों में कतार से कतार की दूरी 1-5 मीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 60 से 120 सेमी रखना चाहिए।

करेला

बीज दर (कि. ग्रा.)

कतार से कतार (मीटर)

पौधे से पौधे की दूरी (मीटर)

नाइट्रोजन (कि.ग्रा.)

स्फूर (कि. ग्रा.)

पोटाश (कि. ग्रा.)

उपज क्विं/हेक्टे.

 

6.0-7.0

1.0 -2.0

0.5-.06

70

50

50

100-150

खेत की तैयारी

खेत में करेले की फसल लगाने के लिए सर्वप्रथम पौधों की कतार से कतार एवं पौधे की दूरी का ज्ञान होना आवश्यक हैए जो कि तालिका में दिया हुआ है। कतार एवं पौधों के बीज की दूरी के हिसाब से उचित दूरी पर गोबर खाद 10-12 किलोग्राम डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर थाला बनाना चाहिए।

हर एक थाले में बोवाई से पूर्व 2.3 ग्राम फ्यूराडॉन या फोरेटदानेदार दवा बिखेर कर अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।

रोपाई की विधि

बीजों को नालियों के दोनों तरफ बुआई करते हैं। नालियों की सिंचाई करके मेड़ों पर पानी की सतह के ऊपर 2.3 बीज एक स्थान पर इस प्रकार लगाये जाते हैं कि बीजों को नमी कैपिलटीमुखमेंट से प्राप्त हो। अंकुर निकल आने पर आवश्यकतानुसार छंटाई कर दी जाती है। बीज बोने से 24 घंटे पहले पानी में भिगोकर रखेंए जिससे अंकुरण में सुविधा होती है।

खाद एवं उर्वरक

उर्वरक देते समय ध्यान रखें की नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा स्फूर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बोवाई के समय देना चाहिए। शेष नाइट्रोजन की आधी मात्रा टाप ड्रेसिंग के रूप में बोवाई के 30.40 दिन बाद देना चाहिए।

फूल आने के समय इथरेल 250 पीपीएमसांद्रता का उपयोग करने से मादा फूलों की संख्या अपेक्षाकृत बढ़ जाती हैए और परिणामस्वरूप उपज में भी वृद्धि होती है। 250 पीपीएमका घोल बनाने हेतु (0.5 मी. ली.)इथरेल प्रति लिटर पानी में घोलना चाहिए करेले की फसलों को सहारा  देना अत्यंत आवश्यक है।

सिंचाई

फसल की सिंचाई वर्ष आधारित है। साधारणतरू प्रति 8-10 दिनों बाद सिंचाई की जाती है।

निंदाई गुड़ाई

प्राथमिक अवस्था में निंदाईदृ गुड़ाई करके खेत को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए। वर्ष ऋतु में इस फसल को डंडों या मचान पर चढ़ाना चाहिए। करेले की फसल ड्रीपइरिगेशन पर भी ले सकते है।

फसल की सुरक्षा कैसे करें

करेला की फसल में कीटों का प्रकोप अपेक्षाकृत कम होता है। किन्तु अधिक स्वस्थ फसल हेतु नियमित अन्तराल पर कुदरती कीट रक्षक का छिड़काव करते रहना चाहिए। ताकि फसल उपज ज्यादा एंव उत्तम गुणवत्ता के साथ प्राप्त हो सके।

रैडबीटल

यह एक हानिकारक कीट हैएजोकि करेला के पौधे पर प्रारम्भिक अवस्था पर आक्रमण करता है। यह कीट पत्तियों का भक्षण कर पौधे की बढ़वार को रोक देता है। इसकी सूंडी काफी खतरनाक होती हैएजोकि करेला पौधे की जड़ों को काटकर फसल को नष्ट कर देती है।

रोकथाम

रैडबीटल से करेला की फसल सुरक्षा हेतु पतंजलिनिम्बादी कीट रक्षक का प्रयोग अत्यन्त प्रभावकारी है। 5 लीटरकीटरक्षक को 40 लीटर पानी में मिलाकरए सप्ताह में दो बार छिड़काव करने से रैडबीटल से फसल को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

पाउडरी मिल्ड्यू रोग

यह रोग करेला पर एरीसाइफीसिकोरेसिएटम की वजह से होता है। इस कवक की वजह से करेले की बेल एंव पत्तियों पर सफेद गोलाकार जाल फैल जाते हैंए जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं। इस रोग में पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं।

उपचार

इस रोग से करेला की फसल को सुरक्षित रखने के लिए 5 लीटर खट्टी छाछ में 2 लीटरगौमूत्र तथा 40 लीटर पानी मिलाकरए इस गोल का छिड़काव करते रहना चाहिए। प्रति सप्ताह एक छिड़काव के हिसाब से लगातार तीन सप्ताह तक छिड़काव करने से करेले की फसल पूरी तरह सुरक्षित रहती है।

एंथ्रेक्वनोज रोग

करेला फसल में यह रोग सबसे ज्यादा पाया जाता है। इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों पर काले धब्बे बन जाते हैंए जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण क्रिया में असमर्थ हो जाता है। फलस्वरुप पौधे का विकास पूरी पूरी तरह से नहीं हो पाता।

उपचार

रोग की रोकथाम हेतु एक एकड़ फसल के लिए 10 लीटर गौमूत्र में 4 किलोग्राम आडू पत्ते एवं 4 किलोग्राम नीम के पत्ते व 2 किलोग्राम लहसुन को उबाल कर ठण्डा कर लेंए 40 लीटर पानी में इसे मिलाकर छिड़काव करने से यह रोग पूरी तरह फसल से चला जाता है ।

फल तुड़ाई

सब्जी के लिए फलों को साधारणतरू उस समय तोड़ा जाता हैए जब बीज कच्चे हों। यह अवस्था फल के आकार एवं रंग से मालूम की जा सकती है। जब बीज पकने की अवस्था आती हैंए तो फल पीले दृ पीले होकर रंग बदल लेते हैं।

पैदावार

130 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है। बीज उत्पादन के लिए प्रमाणित बीज के लिए 500 मीटर व आधारीय बीज के लिए 1000 मीटर अलगाव दूरी रखें। फल पूरी तरह पकने के बाद निकालकर बीज अलग करें व सुखाकर अपरिपक्व कच्चा बीज अलग करें।


 Authors:

Shriya Rai

Ph.D Horticulture (vegetable science) 

Village abhana post abhana dist. Damoh, - 470661
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