संजीवनी पोषक तत्वों से भरपूर सहजन का चमत्कारी पेड़ 

भारत में यह एक लोकप्रिय सब्जी है। जिसका वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा है। सहजन को ड्रमस्टिक या मोरिंगा के नाम से जाना जाता है मोरिंगा तमिल भाषा में मुरुंगई बना है जिसका अर्थ त्रिकोणीय मुड़ा हुआ फल | इसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा पाई जाते हैं जो औषधीय गुणों के पर्याप्त स्त्रोत हैं है।

इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण पाए जाते है इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। औषधीय गुणों के कारण अत्यधिक मूल्यवान पेड़ है

Moringa fruitsसहजन या मोरिंगा पेड़ उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तेजी से बढ़ता है। सहजन के पेड़ पर साल भर में औसतन एक बार फल और फूल लगते है इसके फल का आकार और रंग  पतला लंबा व हरा  रंग का होता है सहजन पेड़ के पत्ते और फल,  मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए लाभदायक होते है । इसके  बीजों से अति महत्वपूर्ण तेल प्राप्त होता है जिसे बेन तेल कहते हैं जो घड़ी बनाने के साथ-साथ इत्र बनाने में  का इस्तेमाल किया जाता है

आखिर क्यों सहजन की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं

  • पोषक तत्वों का अच्छा स्रोत है
  • चमत्कारी औषधि गुण पाए जाते हैं
  • कम उर्वरक वाले मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है
  • अन्य वृक्ष की तुलना में इसमें पानी और उर्वरक की बहुत कम आवश्यकता होती है और देखरेख भी कम करनी पड़ती है
  • भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे योजना किसानों की आय (आमदनी) दोगुना करने का अच्छा स्रोत है
  • बहुवर्षीय होने के साथ-साथ रोग और कीट का प्रभाव कम होता है
  • और भी बहुउद्देशीय विशेषताओं पाए जाते हैं

सहजन के महत्वपूर्ण पोषक तत्व और उपयोग

सहजन पेड़ के संपूर्ण भाग को उपयोग में लाया जाता हैं जैसे पत्ती, फूल  फल, बीज  डाली, छाल, और बीज इत्यादि।  सहजन पेड़ के विभिन्न भाग में उपस्थित अनेक महत्वपूर्ण पोषक तत्व इसकी उपयोगिता को बढ़ावा देते हैं  इसकी पत्ती और फल को सब्जी के रूप में उपयोग करते हैं।  इसमें  कार्बोहाइड्रेट , वसा, प्रोटीन, विटामिंस, कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम ,सोडियम आदि पोषक तत्व बहुतायत में पाऐ जाते है।

  • इसके बीजों का प्रयोग पानी को शुद्ध कीटाणु रहित बनाता है। इसके  घोल में एक एक प्राकृतिक  क्लोरिफिकेशन पदार्थ पाया जाता है जो जल शुद्धता के लिए काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है
  • सहजन के पत्ती में उपस्थित पोषक तत्व और विटामिंस की प्रचुर मात्रा पाई जाती है जो अनेक बीमारी और कुपोषण से निजात दिलाने में काफी कारगर सिद्ध हुआ है
  • इसके सेवन करने से शुगर बीमारी से निजात मिलती हैै।
  • पत्तियों का गाढ़ा गठिया रोग, पक्षाघात व वायुविकार के लिए काफी लाभकारी
  • मोच आने पर पत्तियों का पेस्ट बनाकर उपयोग करने से काफी अच्छा प्रणाम प्राप्त होता है
  • इसके छाल से साथ मिलाकर पीने से कफ और खांसी में काफी सहायता मिलती है
  • पत्तियों का प्रयोग उक्त रक्षक (ब्लड प्रेशर) का उपचार करने के लिए प्रयोग किया जाता है
  • इस का फूल हृदय रोग के लिए काफी लाभकारी सिद्ध हुआ है
  • साजन खाने से पुराने घटिया रोग जोड़ों का दर्द हवाई संचार पेट की बीमारी से निजात मिलती है
  • पथरी बीमारी में भी काफी लाभकारी सिद्ध हुआ

सहजन की  खेती करने की वैज्ञानिक विधि-

सहजन उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है इसको अच्छे विकास और उत्पादन के लिए सामान्यता 25 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त है इसमें अधिक तापमान और ठंड सहन करने की क्षमता होती है

सहजन के पेड को पाले से नुकसान होता है और औसतन तापमान 40 से अधिक होने पर फूल झड़ने लगते है फूल आने के समय अत्यधिक वर्षा और सूखा तापमान भी पौधों को नुकसान पहुंचाती है

सहजन की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

सहजन को सामान्यता सभी प्रकार की मिट्टियों पर उगाया जा सकता है बंजर भूमि ऊसर बंजर भूमि लता पोषक तत्वों की कमी वाली मिट्टी में भी उड़ाया जा सकता है इस की अधिक पैदावार और बढ़ने के लिए बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है जिस का पीएच मान 6 -7.5 उपयुक्त है

मोरिंगा खेती के लिए नर्सरी तैयार करना

सहजन की खेती करने के नर्सरी का प्रयोग करना है तो और 18 सेंटीमीटर की ऊंचाई और 12 सेंटीमीटर व्यास वाले पॉलिथीन बैग का उपयोग करें मिट्टी का मिश्रण अच्छे से मिला ले प्रत्येक पॉलिथीन में 1-2 बीज को 1-2 सेंटीमीटर अंदर गहराई में रोपण करें बीजों का अंकुरण 10 से 15 दिन के अंदर हो जाता है

जिसके लगाने के लिए उपयुक्त समय जुलाई से सितंबर है बारिश के मौसम में इसका भी उसका विकास बहुत अच्छा होता है साथ ही साथ सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती जिससे लागत कम और लाभ ज्यादा होता है

पौधे की लंबाई 60-90 सेंटीमीटर होने पर उसको स्थानांतरित कर देते हैं बीज  रोपण से पहले पानी में 8 से 10 घंटे तक  भीगा  को देना चाहिए जिससे अंकुरण अच्छा होता है

कलम विधि द्वारा प्रवर्धन

सहजन को कलम विधि द्वारा भी लगाया जाता है इसके लिए परिपक्व हरे रंग रहित कालिका उपयुक्त होती है कलम की लंबाई औसतन 45 सेंटीमीटर होना चाहिए

उन्नतशील प्रजातियां

वर्ष में दो बार फल देने वाली किस्में कोयंबटूर 1,2 और पी.के.एम. 1, 2

सिंचाई

सहजन के पौधों को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है सूखा सहन करने की क्षमता पाई जाती है पौधों को खेत में स्थानांतरित करने के समय जल की आवश्यकता होती है और शुष्क मौसम के समय हल्की सिं चाई करना चाहिए।

फसल की कटाई, तूड़ाई और उपज

सहजन समानता वर्ष में दो बार  फल देने वाली किस्मों के  कटाई और तूड़ाई फरवरी-मार्च और सितंबर अक्टूबर बाद में करते हैं एक फल से लगभग 200 से 400 साजन प्राप्त होता है जिसका वजन 40 से 50 किलोग्राम है इसकी चौड़ाई उपयोग के अनुसार करते हैं

खूँटी (रैटुनिंग) विधि का उपयोग

सहजन की जब एक फसल खत्म हो के बाद  पेड़ को जमीन से 1 मीटर की ऊंचाई से काट दिया आता है कटाई के बाद जो पौधा अंकुर लेता है उसे रैटुनिंग क्रॉपिंग कहते हैं


Authors

कुलदीप कुमार शुक्ला, रूपन दाश, गौतम प्रताप सिंह

उड़ीसा यूनिवर्सिटी  आफ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी भुवनेश्वर उड़ीसा 751003

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