सुगंधित एवं औषधीय पौधों की खेती और किसानों को इसके लाभ

सुगंधित एवं औषधीय पौधे, पौधों का एक समूह है जो सुगंधित पदार्थों का उत्पादन और उत्सर्जन करता है तथा इसका उपयोग औषधीय रूप में किया जाता है । 

पौधों में सुगंध विभिन्न प्रकार के जटिल रासायनिक यौगिकों के कारण होता है अर्थात जिन पौधो का उपयोग फार्मेसी और परफ्यूमरी में किया जाता है, उन्हें आमतौर पर सुगंधित पौधों के रूप में परिभाषित किया जाता है।

सुगंधित पोधै आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण होते है जो दवाओं, इत्र, स्वाद और सौंदर्य प्रसाधनों के लिए बुनियादी कच्चा माल प्रदान करते हैं।

सुगंधित पौधों में सुगंधित यौगिक,  मूल रूप से ऐसे आवश्यक तेल जो कमरे के तापमान पर अस्थिर हो,  होते हैं।

ये आवश्यक तेल गंधयुक्त, वाष्पशील, हाइड्रोफोबिक और अत्यधिक केंद्रित यौगिक हैं। उन्हें फूल, कलियों, बीजों, पत्तियों, टहनियों, छाल, लकड़ी, फलों और जड़ों से प्राप्त किया जा सकता है।

विभिन्न प्रकार के पादपों को सुगन्धित एवं औषधीय पोधो की श्रेणी में रखा जाता है, जिसमे से कुछ भारत में उत्पादित सुगन्धित एवं औषिधिये पादप इस प्रकार है।

तालीसपत्रा, तुम्बुरु, बनककड़ी, भूत केशी,  गंद्रैण, बनफ्शा, अजवाइन, सौंफ,  रतनजोत, पुदीना, लैवेंडर, रोजमेरी,  लशुना, घडी, फूल, तुलसी, मेथी,  सतावर, बुरांस, हिप रोज, इसबगोल, अँगूरशफा, बहेड़ा, पितचुम्की, रीठा,  रसौत, बिच्छू बूटी, मोरपंखी, गिलोय

औषधीय और सुगंधित पौधों के मूल्य वर्धित उत्पाद

इस प्रारूप की वनस्पति से निम्नलिखित प्रकार के मूल्यवान उत्पाद प्राप्त होते है -

  • आवश्यक/सुगंधित तेल।
  • सुगंध रसायन।
  • फूलों से कंक्रीट / निरपेक्ष।
  • मसालों से ओलेरोसिन।
  • रेजिन, रेजिनोइड्स।
  • सुगंधित पानी हाइड्रोसोल।

सुगंधित एवं औषधीय पौधों की खेती

औषधीय और सुगंधित पौधे उगाना किसानों के लिए एक अच्छा विविधीकरण विकल्प है।ये पौधे और उनके उत्पाद न केवल किसानों और उद्यमियों के लिए आय के मूल्यवान स्रोत के रूप में काम करते हैं बल्कि निर्यात के माध्यम से मूल्यवान विदेशी मुद्रा भी अर्जित करते हैं। इसलिए, खेती के लिए संभावित कृषि प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए सुगंधित पौधों का संग्रह, संरक्षण और मूल्यांकन करना आवश्यक है।

पारंपरिक फसलों की तुलना में, औषधीय फसलों की खेती में कई फायदे है, जैसे की :

  • पारंपरिक फसलों की तुलना में औषधीय फसलें बेहतर लाभ प्रदान करती हैं।
  • इस प्रकार की फसलों की बहुत अधिक घरेलू और निर्यात मांग है।
  • बाजार में बेहतर मूल्य प्राप्त की जा सकती है।
  • लंबे समय तक संग्रहीत किया जा सकता है, और ऐसे समय में बेचा जा सकता है जब मंडी में बेहतर कीमतें होती हैं।
  • बड़े पैमाने पर सूखा सहिष्णु हैं, और इसमें उपस्थित सुगंध के कारण जानवर आसानी से नहीं चरते हैं।
  • कीट के हमलों और बीमारियों की कम घटना पेटी जाती है।
  • न्यूनतम संसाधनों की आवश्यकता होती है, इसलिए खेती की लागत पारंपरिक फसलों की तुलना में कम होती है।

भारत में औषधीय फसल की स्थिति

व्यावसायिक रूप से औषधीय पौधों की खेती भारत में किसानों के लिए सबसे अधिक लाभदायक कृषि व्यवसाय में से एक है। यदि किसी के पास पर्याप्त भूमि और जड़ी-बूटी विपणन का ज्ञान है, तो वह मध्यम निवेश के साथ उच्च आय अर्जित कर सकता है।

भारत सरकार ने औषधीय पौधों की खेती और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए हैं। राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) किसानों को 75% तक सब्सिडी प्रदान करता है; सरकारी और गैर-सरकारी संघों के लिए प्रासंगिक प्रचार और वाणिज्यिक योजनाओं के तहत सुरक्षित औषधीय पौधे प्रभागों के विभिन्न क्षेत्रों में वित्तीय सहायता के लिए योजनाएं और दिशानिर्देश तैयार करता है।

भारत में कुछ संस्थान प्रमुख तौर पर इस प्रकार के पौधों की गुणवत्ता बड़ाने और किसानो को जागरूक करने के लिए विकसित किये गए है जैसे के भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान के अंतर्गत आनन्द कृषि विश्वविद्यालय और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान परिषद् के अंतर्गत केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध संस्थान। इन संस्थानों का प्रमुख उद्देश्य औषधीय पौधों की किस्में में सुधार एवं नयी प्रणालियाँ विकसित करना है । 

इस प्रकार के पौधे जलवायु और मिटटी की गुणवत्ता पर निर्भर करते है और भारतीय जलवायु परिस्थितियाँ प्रकृति में बहुमुखी हैं। इस खूबी के साथ भारत में भिन्न प्रकार के औषधीय एवं सुगन्घित पौधे भिन्न भिन्न क्षेत्रों में उगाये जा सकते है।

इस प्रकार की कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए किसान सम्बंधित उद्योग के साथ अनुबंध/सविदात्मक/ठेका खेती कर सकते है। अनुबंध खेती को किसानों और प्रसंस्करण और/या विपणन फर्मों के बीच एक समझौते के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो कि अग्रिम समझौतों के तहत कृषि उत्पादों के उत्पादन और आपूर्ति के लिए अक्सर पूर्व निर्धारित कीमतों पर होता है। जिससे उद्योगपति समय पर गुणवत्ता वाली सामग्री प्राप्त कर सकते है और किसान अपने उत्पाद को उचित मूल्य में सही समय पर बेच सकते है।

निष्कर्ष

औषधीय और सुगंधित पौधे वानस्पतिक कच्चे माल हैं, जिन्हें हर्बल दवाओं के रूप में भी जाना जाता है, जिनका उपयोग ज्यादातर सौंदर्य प्रसाधन, स्वास्थ्य, औषधीय उत्पादों और अन्य प्राकृतिक स्वास्थ्य उत्पादों के घटकों के रूप में चिकित्सीय, सुगंधित और रसोई उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

प्रस्तुत लेख औषधीय और सुगंधित पौधों का का परिचय और महत्व को दर्शाता है। यह भारतीय किसानों के लिए आमदनी का एक अच्छा स्रोत है जिसमे कम समय और कम लागत के साथ अधिक मूल्य प्राप्त किया जा सकता है ।


लेखक

शबाना बेगम1 और समर्थ गोदारा2

1भा. कृ. अ. स. - राष्ट्रीय पादप जैव प्रद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली-110012

2भा.  कृ. अ. स. - भारतीय कृषि सांख्यिकी अनुसन्धान संस्थान, नई दिल्ली-110012

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