Advanced cultivation Techniques of Tomato

टमाटर का वानस्पतिक नाम  लाइकोपर्सिकन एस्कुलेन्टम है। यह सोलेनेसी कुल का पौधा है। भारत में उगाई जाने वाली सब्जियों में टमाटर की खेती का प्रमुख स्थान है। सब्जी के अतिरिक्ति इसका सुप, चटनी, सलाद, सांस आदि में भी इसका उपयोग किया जाता है। टमाटर के विविध उपयोगों के कारण इसकी मांग सालभर रहती है अत: किसान भाई सालभर टमाटर की खेती करके अधिक लाभ कमा सकते है।

फसल योजना:-

टमाटर उगाई गई मेडों के बीच में लोबिया (चवंला) लगाने से कीटो की संख्या में कमी आती है तथा 1-2 दवाई के छिडकाव में कमी आती है। अरण्डी को खेत के चारों तरफ लगाने से पत्ताी छेदक लट से बचा जा सकता है। पत्ताी छेदक कीट पहले अरण्डी पर आक्रमण करता है अत: इसका आसानी से नियन्त्रण किया जा सकता है।

खेत व उसकी तैयारी:-

भूमि में 3-4 बार जुताई करने के पश्चात् पाटा चलाकर भूमि को भूरभूरी व समतल कर लेना चाहिए। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से की जानी चाहिए। भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा पी.एच. 6-7 के मध्य होना चाहिए।

उन्नत किस्में:-

टमाटर को पौधों को वृध्दि की प्रकृति के अनुरूप दो भागों में बांटा गया है।

निर्धारित वृध्दि वाली किस्में :- एस एच 2, पुसा गौरव, पुसा अर्ली ड्वार्क

अनिर्धारित वृध्दि वाली किस्में:- पूसा रूबी, सलेक्षन - 120, पंत बहार

इसके अतिरिक्त रबी के लिए किस्में - हिमसोना, अभिताब नं 3, हिमषिखर खरीफ ऋतु के लिए करिष्मा, रष्मि, गीता कुबेर किस्में अधिक उपज प्रदान करती है।

बीज की मात्रा:-

टमाटर की एक एकड़ जमीन के लिए 150-200 ग्राम बीज की आवष्कता होती है। एक हैक्टर जमीन के लिए 500-600 ग्राम बीज की आवष्कयता होती है।

बुवाई का समय व विधि:-

मैदानी भागों में टमाटर की बुवाई वर्ष में दो बार की जाती है

  • जुन जुलाई माह में
  • नवम्बर दिसम्बर माह में

पौधषाला की भूमि तैयार करके 3×1 मीटर आकार की क्यारीया तैयार करले क्यारीया जमीन की सतह से 10-15 सेमी उभरी हूई होनी चाहिए। बीज की बुवाई से पहले बीज को थाइरम या बाविस्टन या कैप्टान कवकनाषी 2 ग्राम/किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें।

पौधों की खेत में रोपाई:-

रोपाई से पूर्व 2.5 किलो ट्रइकोडर्मा को 50 किलो अच्छी सडी हुई गोबर की खाद के साथ मिला कर खेत में डालने से फ्युजेरियम विल्ट से बचाव किया जा सकता। पौधे से पौधे की दुरी 45-60 सेमी तथा कतार से कतार की दुरी 75-90 सेमी रखनी चाहिए। रोपाई हमेषा सांयकाल के समय ही करनी चाहिए इससे नुकसान कम होता है। एक स्थान पर एक ही पौधा लगाये तथा पौधा लगाने के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें।

अन्तरा शस्य क्रियाऐं

खरपतवार प्रबन्धन:-

टमाटर की फसल में खरपतवार नियंन्त्रण के लिए निराई गुडाई की आवष्यकता होती है। प्रत्येंक सिंचाई के बाद में हल्की निराई गुडाई करनी चाहिए। खरपतवार भूमी से पोषक तत्व लेकर टमाटर की उपज में कमी करते है तथा किट व बिमारियों को शरण देते है। रासायनिक खरपतवार नियन्त्रण के लिए पेन्डीमिथेलीन (स्टाम्प/दोस्त) 400 मिली प्रति एकड खरपतवारों के अंकुरण से पहले प्रयोग करें। पानी की यात्रा 200 लीटर प्रति एकड काम में होवे।

सहारा देना:-

यह अन्तर शस्य क्रिया पौधों की रोपाई के 2-3 सप्ताह के बाद की जाती है। पौधे को सहारा देने से अधिक उत्पादन व फल फटने की समस्या में कमी आती है। सहारा देने के लिए कतार के समानान्तर बांस की खुती को गाडकर उसमें दो या तीन तार खीच कर बांध देना चाहिए तथा पौधों को इन तारों से सुतली से बांध देना चाहिए।

खाद व उर्वरक:-

खाद व उर्वरक का प्रयोग करने से पहले निकटतम प्रयोगषाला से मिट्टी की जांच करवा लेनी चाहिए। मिट्टी की जांच के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।बुवाई पुर्व 10 टन गोबर की खाद अच्छी सडी हुई कच्ची गोबर की खाद का प्रयोग ना करे। रासायनिक खाद का प्रयोग अनुषंसा के अनुसार एन पी के की मात्रा 80:40:40 किलो प्रति एकड प्रयोग करे।

सिंचाई:-

टमाटर की फसल से अधिक उपज लेने के लिए सिंचाई का विषेष महत्व है। गर्मी में 5-7 दिन के अन्तराल पर तथा सर्दी में 10-15 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करें।

वृध्दि नियन्त्रकों का प्रयोग:-

टमाटर की फसल में उपज बढाने के लिए प्लेनोफिक्स (NAA) की 4-5 मि.ली. प्रति टंकी या 50 मि.ली प्रति एकड का छिडकाव करने से फुलों का गिरना कम होता है तथा अधिक फल बनते है। इसके अलावा सुक्ष्म मात्रिक तत्व बोरॉन एवं िजंक की कमी के लक्षण प्रकट होने पर बोरेक्स 0.6 प्रतिषत की दर से खडी फसल में छिडकाव करें।

कीट नियन्त्रण:-

  • टमाटर में पत्ताी का सुरंगी कीट:- ये कीट पत्ताीयों में चांदी के रंग की सुरंगे बनाकर उसके अन्दर पत्ताी को खाता है।
  • फल छेदक:- यह किट टमाटर में सर्वाधिक हानि पहुंचाने वाला किट है तथा मादा कीट पत्ताी की निचली सतह पर अण्डे देती है इल्लीमा टमाटर के फलों में छेद करके फल का गुदा खाती है।
  • महु व सफेद मक्खी:- ये कीट पत्तिायों का रस चूसते है तथा बायरस जनित रोगों का प्रसार करते है।
  • सुत्रकृमि:- सुत्रकृमि के प्रयोग से पौधा अविकसित रह जाता है।
  • फूल छेदक के नियन्त्रण के लिए सक्रमित फलों को नष्ट कर देना चाहिए। फेरोनोन ट्रेप का उपयोग करना चाहिए। रोकथाम के लिए इडोक्सा कार्ब (अवोट/फिगो) 5 एस सी 200 मि.ली. प्रति एकड का छिडकाव करना चाहिए।
  • रस चुसने वाले किटो की रोकथाम के लिए साइपरमेथ्रीन 100 EL 250 एम.एल. तथा इमिडा क्लोप्रीड 8 SL 40 एम.एल त्था थायों मेथोक्सान 25 WG 40 ग्राम प्रति एकड 150 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।
  • सुत्रकमी के नियन्त्रण के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करें तथा कार्बोफ्युरान 10 किलो प्रति एकड का प्रयोग करे।

रोग नियन्त्रण:-

  • आद्र गलन:- प्राया यह फगंस के द्वारा होता है तथा पौधषाला में होता है नियन्त्रण:- बीजों को बुवाई से पूर्व कार्बेडाजिम 2 ग्राम प्रति किलों बज के अनुसार उपचारित करें जैविक नियन्त्रण के लिए ट्राइकोउर्मा बिरडी 2 ग्राम प्रतिकिलों बीज को उपचारित करें।
  • पछेती अंगमारी:- यह रोग पौधों की पत्ताीयों पर किसी भी अवस्था में होता है। भूरे व काले बैंगनी छब्बें पत्तिायों एवंत ने पर दिखाई देते है। नियन्त्रण:- बादल छाये रहने पर इसका प्रकोप बढता है। मेन्कोजब 25 ग्राम या क्लोरोथेलोनिल 25 ग्राम प्रति 10 लीटर या ब्लाइटोक्स 5 ग्राम प्रतिलीटर पानी की दर से छिडकाव करना चाहिए।
  • जीवाणु उखटा:- रोगग्रस्त पौधों की पत्तिायों पीले रंग की होकर सुखने लगती है एवं कुछ समय पश्चात पौधा सुख जाता है। नियन्त्रण:- फसल चक्र अपनाना चाहिए। 5 ग्राम थायोफनेट नियाइल + 3 ग्राम रीडोनिल + 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाराक्लिन प्रति 15 लीटर पानी के साथ मिलाकर छिडकाव करें।

पेकिंग व भण्डारण:-

टमाटर के भंडारण के लिए 12-15 डिग्री तापमान पर भंडारित किया जाता है। हरे फलों को 10-15 डिग्री तापमान पर 30 दिनों के लिए भण्डारित कर सकते है भण्डारण के समय आपेक्षित आद्रता 85-90 प्रतिषत होनी चाहिए।


Authors:

सुरेश कुमार तेली1, रशीद खाँन1*, रवीन्द्र प्रताप सिंह1 रोहिणी बानसोडे2

1राजस्थान कृषि महाविधालय उदयपुर, 2केरला कृषि विश्वविधालय त्रिस्सूर

*ईमेल-  This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

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