Improved cultivation method of Papaya

पपीता बहुत ही पौष्टिक एवं गुणकारी फल है। पपीता स्वास्थ्यवर्द्धक तथा विटामिन ए व कई औषधियों गुणों से भरपूर होता है, साथ ही सेहत के लिए भी बहुत लाभदायक होता है. पपीते की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये बहुत कम समय फल दे देता है I पपीते का फल थोड़ा लम्बा व गोलाकार होता है तथा गूदा पीले रंग का होता है।

गूदे के बीच में काले रंग के बीज होते हैं। कच्चा पपीता हरे रंग का और पकने के बाद हरे पीले रंग का होता है। एक पपीते का वजन 300, 400 ग्राम से लेकर 1 किलो ग्राम तक हो सकता है। पपीता न केवल सरलता से उगाया जाने वाला फल है, बल्कि जल्‍दी लाभ देने वाला फल भी है I पपीते में कई महत्वपूर्ण पाचक एन्ज़ाइम तत्व मौजूद रहते है I

यह स्‍वास्‍थवर्धक तथा लोक प्रिय है, इसी से इसे अमृत घट भी कहा जाता है, इसके ताजे फलों को सेवन करने से लम्‍बी कब्‍जियत की बिमारी भी दूर की जा सकती है। इसलिए बाज़ार में पपीते की मांग लगातार बढ़ रही है. पपीते की फसल किसानों को कम समय में अधिक लाभ कमाने का अवसर देती है I

इसकी खेती व्यवसायक रूप में की जाती है. इसे एक बार लगा देने पर दो फसल ली जाती है इसकी कुल आयु पौने तीन साल होती है. प्रति हेक्टेयर पपीते का उत्पादन 30 से 40 टन हो जाता है. आईये जानते हैं पपीते की उन्नत खेती करने का तरीका-

Papaya plantsपपीते की खेती

पपीते की खेती के लि‍ए जलवायु 

पपीते के लिए शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्र व पाला रहित, सेम रहित क्षेत्र काश्त उपयोगी है। पपीते की सबसे अच्छी फसल उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रो में होती है I शुष्क गर्म जलवायु में इसके फल अधिक मीठे होते है I इसके उत्पादन के लिए तापक्रम 26-38 डिग्री से०ग्रे० के बीच और 10 डिग्री से०ग्रे० से कम नहीं होना चाहिए क्योंकि अधिक ठंड तथा पाला इसके शत्रु हैं, जिससे पौधे और फल दोनों ही प्रभावित होते हैं। इसके सकल उत्पादन के लिए तुलनात्मक उच्च तापक्रम, कम आर्द्रता और पर्याप्त नमी की जरुरत है।

पपीते की खेती के लि‍ए भूमि का चयन

उचित जल निकास वाली जीवांश से भरपूर दोमट व बलुई दोमट भूमि पपीते के लिए बढि़या रहती है। इसलिए इसके लिए दोमट, हवादार, काली उपजाऊ भूमि का चयन करना चाहिए और इसका अम्ल्तांक 6.5-7.5 के बीच होना चाहिए तथा पानी बिलकुल नहीं रुकना चाहिए।

खेत को अच्‍छी तरह जोंत कर समतल बनाना चाहिए तथा भूमि का हल्‍का ढाल उत्‍तम है, 1.25  X 1.25 मीटर के अन्‍दर पर लम्‍बा, चौडा, गहरा गढ्ढा बनाना चाहिए, इन गढ्ढों में 20 किलो गोबर की खाद, 500 ग्राम सुपर फास्‍फेट एवं 250 ग्राम म्‍यूरेट आफ पोटाश को मिट्टी में मिलाकर पौधा लगाने के कम से कम 10 दिन पूर्व भर देना चाहिए।

पपीते की उन्नत प्रजातियाँ

पूसा मेजस्‍टी एवं पूसा जाइंट, वाशिंगटन, सोलो, कोयम्‍बटूर, हनीड्यू, कुंर्ग‍हनीड्यू, पूसा ड्वार्फ, पूसा डेलीसियस, सिलोन, पूसा नन्‍हा आदि प्रमुख किस्‍में है।

पपीते की बुआई के लि‍ए बीज मात्रा

एक हेक्टेयर जमीन के लिए लगभग 600 ग्राम से लेकर एक किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है. सर्वप्रथम पपीते के पौधें बीज से तैयार किये जाते है. एक हेक्टेयर जमीन में प्रति गड्ढ़े दो पौधें लगाने पर लगभग पांच हज़ार पौध संख्‍या लगेगी.

पपीते की पौधे तैयार करना

पपीते के पौधे बीज द्वारा तैयार किए जाते हैं। एक एकड़ में पौधे रोपण के लिए 40 वर्ग मीटर पौध क्षेत्र व 125 ग्राम बीज पर्याप्त रहता है। इसके लिए एक मीटर चौड़ी व पांच मीटर लंबी क्यारियां बना लें। प्रत्येक क्यारी में खूब सड़ी गली गोबर की खाद मिलाकर व पानी लगाकर 15-20 दिन पहले छोड़ देते हैं। इस विधि द्वारा बीज पहले बीज को 3 ग्राम कैप्टान दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचार करके भूमि की सतह से 15 से 20 सेमी. उंची क्‍यारियों में कतार से कतार की दूरी 10 सेमी, तथा बीज की दूरी 3 से 4 सेमी. रखते हुए लगाते है, बीज को 1 से 3 सेमी. से अधिक गहराई पर नही बोना चाहिए, जब पौधे करीब 20 से 25 सेमी. उंचे हो जावें तब प्रति गढ्ढा 2 पौधे लगाना चाहिए। रोग से बचाव के लिए 100 लीटर पानी में 200 ग्राम कैप्टान दवा घोलकर छिड़काव करें।

पौधे पालीथिन की थैली में तैयार करने की विधि 

20 सेमी. चौडे मुंह वाली, 25 सेमी. लम्‍बी तथा 150 सेमी. छेद वाले पालीथिन थैलियां लेवें इन थैलियों में गोबर की खाद, मिट्टी एवं रेत का समिश्रण करना चाहिए, थैली का उपरी 1 सेमी. भाग नही भरना चाहिए, प्रति थैली 2 से 3 बीज होना चाहिए, मिट्टी में हमेशा र्प्‍याप्‍त नमी रखना चाहिए, जब पौधे 15 से 20 सेमी. उंचे हो जावें तब थैलियों के नीचे से धारदार ब्‍लेड द्वारा सावधानी पूर्वक काट कर पहले तैयार किये गये गढ्ढों में लगाना चाहिए।

पौधे प्रति एकड़

पपीता में पौधे से पौधे व कतार से कतार का फासला डेढ़ मीटर रखने पर 1742 तथा दो मीटर पर 105 पौधे प्रति एकड़ लगते हैं।1.25 x 1.25 मीटर की दूरी पर 2560 पौधे प्रति एकड़ लगते हैं।

पपीते लगाने का समय एवं तरीका

अच्छी तरह से तैयार खेत में 1.25 x 1.25 मीटर की दूरी पर 50 x 50 x 50 सेंटीमीटर आकार के गड्‌ढे मई के महीने में खोद कर 15 दिनों के लिए खुले छोड़ देने चाहिएं, ताकि गड्‌ढों को अच्छी तरह धूप लग जाए और हानिकारक कीड़े-मकोड़े, रोगाणु वगैरह नष्ट हो जाएँ।

ऊँची बढ़ने वाली क़िस्मों के लिए1.8x1.8 मीटर फासला रखते हैं। पौधे लगाने के बाद गड्‌ढे को मिट्‌टी और गोबर की खाद 50 ग्राम एल्ड्रिन मिलाकर इस प्रकार भरना चाहिए कि वह जमीन से 10-15 सेंटीमीटर ऊँचा रहे। गड्‌ढे की भराई के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए, जिससे मिट्‌टी अच्छी तरह बैठ जाए।

वैसे पपीते के पौधे  जून-जुलाई या फरवरी -मार्च में लगाए जाते हैं, पर ज्यादा बारिश व सर्दी वाले इलाकों में सितंबर या फरवरी -मार्च में लगाने चाहिए। जब तक पौधे अच्छी तरह पनप न जाएँ, तब तक रोजाना दोपहर बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

मिट्टी चढ़ाना

पपीते पर मिट्टी चढ़ाना अतिआवश्यक है. प्रत्येक गढ्ढे में एक पौधा को रखने के बाद पौधे क़ी जड़ के आस पास 30 सेमी. क़ी गोलाई में मिट्टी को ऊँचा चढ़ा देते है ताकि पेड़ के पास सिचाई का पानी आधिक न लग सके तथा पौधे को सीधा खड़ा रखते है.

खाद एवं उर्वरक

पपीता जल्दी फल देना शुरू कर देता है। इसलिए इसे अधिक उपजाऊ भूमि की जरुरत है। अतः अच्छी फ़सल लेने के लिए 200 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फ़ॉस्फ़रस एवं 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त प्रति वर्ष प्रति पौधे 20-25 कि०ग्रा० गोबर की सड़ी खाद, एक कि०ग्रा० बोनमील और एक कि०ग्रा० नीम की खली की जरुरत पड़ती है। खाद की यह मात्र तीन बार बराबर मात्रा में मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त और अक्तूबर महीनों में देनी चाहिए।

पपीते की पैकिंग सिंचाई

पपीते के अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई का सही इंतजाम बेहद जरूरी है। गर्मियों में 6-7 दिनों के अंदर पर और सर्दियों में 10-12 दिनों के अंदर सिंचाई करनी चाहिए। बारिश के मौसम में जब लंबे समय तक बरसात न हो, तो सिंचाई की जरूरत पड़ती है। पानी को तने के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिए। इसके लिए तने के पास चारों ओर मिट्‌टी चढ़ा देनी चाहिए।

नर पौधों को अलग करना

पपीते के पौधे 90 से 100 दिन के अन्‍दर फूलने लगते है तथा नर फूल छोटे-छोटे गुच्‍छों में लम्‍बे डंढल युक्‍त होते है। नर पौधों पर पुष्‍प 1 से 1.3 मी. के लम्‍बे तने पर झूलते हुए तथा छोटे होते है। प्रति 100 मादा पौधों के लिए 5 से 10 नर पौधे छोड कर शेष नर पौधों को उखाड देना चाहिए। मादा पुष्‍प पीले रंग के 2.5 से.मी. लम्‍बे तथा तने के नजदीक होते है।

पपीते की पैकिंग निराई-गुड़ाई व खरपतवार प्रबंधन

पपीते के बगीचे में तमाम खरपतवार उग आते हैं, जो जमीन से नमी, पोषक तत्त्वों, वायु व प्रकाश वगैरह के लिए पपीते के पौधे से मुकाबला करते हैं, जिससे पौधे की बढ़वार व उत्पादन पर उल्टा असर पड़ता है। खरपतवारों से बचाव के लिए जरूरत के मुताबिक निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। बराबर सिंचाई करते रहने से मिट्‌टी की सतह काफी कठोर हो जाती है, जिससे पौधे की बढ़वार पर उल्टा असर पड़ता है। लिहाजा 2-3 बार सिंचाई के बाद थालों की हल्की निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए।

फलो को तोडना

पौधे लगाने के 9 से 10 माह बाद फल तोडने लायक हो जाते है। फलों का रंग गहरा हरे रंग से बदलकर हल्‍का पीला होने लगता है तथा फलों पर नाखुन लगने से दूध की जगह पानी तथा तरल निकलता हो तो समझना चाहिए कि फल पक गया होगा। फलो को सावधानी से तोडना चाहिए। छोटी अवस्‍था में फलों की छटाई अवश्‍य करना चाहिए।

रोग प्रबंधन

पपीते के पौधों में मुजैक,लीफ कर्ल ,डिस्टोसर्न, रिंगस्पॉट, जड़ एवं तना सडन ,एन्थ्रेक्नोज एवं कली तथा पुष्प वृंत का सड़ना आदि रोग लगते है. इनके नियंत्रण में वोर्डोमिक्सचर 5:5:20 के अनुपात का पेड़ो पर सडन गलन को खरोचकर लेप करना चाहिए अन्य रोग के लिए व्लाईटाक्स 3 ग्राम या डाईथेन एम्-45, 2 ग्राम प्रति लीटर अथवा मैन्कोजेब या जिनेव 0.2% से 0.25 % का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइट 3 ग्राम या व्रासीकाल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए.

कीट प्रबंधन

पपीते के पौधों को कीटो से कम नुकसान पहुचता है फिर भी कुछ कीड़े लगते है जैसे माहू, रेड स्पाईडर माईट, निमेटोड आदि है. नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 ई. सी.1.5 मिली लीटर या फास्फोमिडान 0.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से माहू आदि का नियंत्रण होता है.

पपीते की पैकिंग पैदावार

पपीते में पैदावार मादा पौधों की संख्या पर निर्भर करती है। एक पौधे से औसतन 40 किलो फल तथा एक एकड़ में 350 से 400 ¨क्वटल फल मिल जाता है। प्रति हेक्‍टर पपीते का उत्‍पादन 35-40 टन होता है। यदि 1500 रू./ टन भी कीमत आंकी जावें तो किसानों को प्रति हेक्‍टर 34000.00 रू. का शुद्ध लाभ प्राप्‍त होगा।

पपीते की पैकिंग

फलो को सुरक्षित तोड़ने के बाद फलो पर कागज या अख़बार आदि से लपेट कर अलग अलग प्रति फल को किसी लकड़ी या गत्ते के बाक्स में मुलायम कागज क़ी कतरन आदि को बिछाकर फल रखने चाहिए और बाक्स को बन्द करके बाजार तक भेजना चाहिए ताकि फल ख़राब न हो और अच्छे भाव बाजार में मिल सके.


Authors

संगीता चंद्राकर, प्रभाकर सिंह, हेमंत पाणिग्रही और पुनेश्वर पैकरा

फल विज्ञान विभाग,

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषक नगर, रायपुर  

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