Mealybug - Fast growing problem of agriculture

विगत कुछ वर्षो से हमारे देश मे मिली बग (mealy bug) के रूप मे एक नई चूषक कीट समस्या देखने को मिली है तथा आने वाले समय मे इस कीट की समस्या और बढ़ेगी। यह कीट गण हेमिप्टेरा के उपगण होमोप्टेरा के अंतर्गत सूडोकोक्सीडी कुल मे आता है। 

यह छोटे-छोटे, अंडाकार, मुलायम शरीर वाले रस चूषक रूई के समान कीट है। व्यस्क मिलीबग पत्तियो, तनो एवं जड़ों को सफेद मोम पाउडर जैसे पदार्थ से ढंक लेता है जिससे इन्हे पौधो से नियंत्रण करने मे कठिनाई होती है। 

यह अपने चूसने एवं चुभाने वाले मुखांगो की सहायता से पत्तियो व तनो से अधिक मात्रा मे रस चूसकर पौधो को आवश्यक पोषक तत्वो से वंचित कर देता है।

Mealy bug infestation on Egg plantयह कीट अतिरिक्त रस को मधुरस जैसे चिपचिपे पदार्थ के रूप मे मलत्याग के द्वारा बाहर निकालता है जो चीटियों को आर्कषित करता है।

यह मधुरस काला फफंदी को विकसित करने मे भी सहायता करता है जिससे पौधे की प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर विपरित प्रभाव पड़ता है।

पत्तियां सिकुड़ कर मुड़ जाती है एवं पौधा पीला पड़कर सूखने लगता है परिणामस्वरूप उपज बहुत कम या निम्न गुणवत्तायुक्त उपज प्राप्त होता है। प्रकापित फल बाजारो मे बेचने योग्य नही रहते।

मिलीबग के पोषक पौधेः-

यह सर्वभक्षी प्रकृति का कीट है जो फल वृक्ष (fruits), सब्जी (vegetables), शोभाकारी पौधे (ornamental plants), शस्यीय फसले एवं खरपतवार आदि सभी पर प्रकोप करता है।

इसकी पोषक फसलो मे मुख्य रूप से

फलदार वृक्षो मे आम, पपीता, अमरूद, नीबू वर्गीय फल, बेर, सेब, नारियल, काफी, अंगूर, शहतुत, अंजीर, केला, 

सब्जियो मे मुख्य रूप से कद्दूवर्गीय, भिण्डी, सेम, टमाटर, बैगन, कसावा, 

शस्यीय फसलो मे मुख्य रूप से मूंगफली, कपास, मक्का, अरहर, गन्ना, सूरजमुखी, 

पुष्पीय फसलो मे मुख्य रूप से गुलदावदी, गुलाब, गुड़हल एवं अन्य शोभाकारी पौधे एवं

खरपतवारो मे मुख्य रूप से लटजीरा, गाजर घांस, जंगली सरसो, हिरनखुरी, हजारदाना, तुलसी, मकोय, महकुआ, दूधी, केना, पत्थरचट्टा आदि आते है।

कुछ महत्वपूर्ण मिलीबग की प्रजातिः-

मिली बग की प्रजातियो मे फेरेसिया वरगाटा (धारीदार मिली बग), स्यूडोकोकस लोन्गिसपिनस (लंबी पूंछ वाला मिली बग), प्लानोकोकस सिट्री (नीबूवर्गीय मिलीबग), फिनाकोकस सोलेनी (बैगन मिली बग), सेकेरीकोकस सेकेराई (गुलाबी गन्ना मिली बग), डाईस्मीकोकस ब्रिवीपेस (अनानास मिली बग), मेकोनेलीकोकस हिरसुटस (गुलाबी मिली बग), फिनाकोकस सोलनोप्सिस ( सोलनोप्सिस मिली बग), डासिचा मैंगीफेरी (आम मिली बग) आदि प्रमुख रूप से आते है।

किसी स्थान विशेष पर इस कीट का प्रसार तेजी से होता है। इस कीट का सर्वाधिक प्रकोप अगस्त से नवंबर माह के बीच अक्सर देखा जाता है।

यह कीट शीत ऋतु मे अण्डा अवस्था मे सुसुप्तावस्था मे रहता है। इस दौरान यह भूमि मे या तने की छाल के अंदर या मुड़ी हुई पत्तियो मे जीवित रहता है।

इस कीट की मादाये अण्डे सामान्यतः टहनियो, शाखाओ, या पोषक पौधो की छाल के अंदर अंड थैलियो मे देती है जो कि सफेद मोम जैसे पाउडर संरचना से ढंकी रहती है।

प्रत्येक अंड थैलियो मे लगभग 500 तक अण्डे हो सकते है। इस कीट की वर्ष मे लगभग 10-15 पीढि़यां पायी जाती है।

इनका चीटिंयो के साथ सहजीवन भी पाया जाता है जिसमे मिली बग द्वारा स्त्रावित मीठा मधुरस चीटियों को आर्कर्षित करता है। चीटियां मिली बग के विकास एवं परिवहन मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है साथ ही चीटियो के मौजूदगी के कारण मिली बग को खाने वाले परजीवी, परभक्षी या प्राकृतिक शत्रुओ से इसकी रक्षा हो जाती है।

मिली बग नियंत्रण के उपायः-

मिली बग के उचित नियंत्रण के लिये इनकी प्रजाति की पहचान होना जरूरी है। चूूंकि इनका शरीर मोम की परत से ढंका रहता है इस कारण कीटनाशियो का प्रयोग कम प्रभावशाली पाया गया है। इसलिये इनका समन्वित नियंत्रण करने की आवश्यकता होती है जो कि निम्न है-

मिली बग का शस्यीय व यांत्रिक नियंत्रण:-

  • इनके रोकथाम के लिये जुलार्इ से सितंबर के मध्य पौधो के आसपास गुड़ार्इ करना चाहिये एवं क्लोरपायरीफास चूर्ण 50 ग्राम प्रति पौधे की दर से मिÍी मे मिलाना चाहिये जिससे अंडे नष्ट हो जाये।
  • खरपतवार जो कि इसके पोषक पौधे का काम करते है इन्हे उखाड़कर नष्ट करना चाहिये।
  • खेतो मे उपस्थित पूर्व फसलो या ग्रसित पौधो के अवशेषो को जलाकर नष्ट कर देना चाहिये।
  • मुख्य फसलो के आसपास अन्य पोषक पौधो जिनमे इनका प्रकोप होता है नही लगाना चाहिये।
  • अंडो को नष्ट करने के लिये खेतो मे सिंचार्इ करना चाहिये।
  • वृक्षो के प्रकोपित शाखाओ को कांट-छांट कर हिलाये बगैर नष्ट करना चाहिये।
  • प्रकोपित खेतो से दूसरे खेतो मे औजारो को प्रयोग करने से पहले अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिये।
  • प्रकोप की शुरूवाती अवस्था मे हाथो द्वारा या साबुन/डिटरजेंट युक्त पानी के तेज फुहारो से इसकी रोकथाम की जा सकती है क्योंकि तेज फुहारो से यह नीचे जमीन पर गिरेंगे जिन्हे एकत्रित कर नष्ट किया जा सकता है।
  • वृक्ष की तनो पर कीट को चढ़ने से रोकने के लिये प्लास्टिक का चिपचिपा पट्टी या कीटनाशी युक्त पट्टी लगाना चाहिये।
  • फसल कटार्इ के बाद खेतो मे गहरी जुतार्इ करना चाहिये।
  • वृक्षो की छालो को समय-समय पर हटाना चाहिये क्योकि इसमे मिली बग छिपे रहते है एवं इस पर सर्फ (डिटरजेंट) एवं कीटनाशी मिलाकर छिड़काव करना चाहिये।
  • चीटियों के समूहो को भी नष्ट करते रहना चाहिये।
  • फसल लगाने के लिये स्वस्थ पौध का चुनाव करना चाहिये।

जैविक नियंत्रण:-

मिली बग कीट की रोकथाम के लिये जैविक नियंत्रण एक सस्ता, सुरक्षित एवं प्रभावशाली उपाय है। जैविक नियंत्रण के लिये परजीवियो, परभक्षियो एवं प्राकुतिक शत्रुओ का उपयोग किया जाता है। क्योकि ये लगातार इन पर आक्रमण करते रहते है जिससे मिली बग की संख्या आर्थिक क्षति स्तर के ऊपर कभी नही जाती।

परजीवी कीटो मे एनागाइनस कमाली, एनागाइनस स्यूडोकोक्सी, ग्रेनू सोडिया इनिडका प्रमुख रूप से उपयोग मे लाये जाते है। परजीवी कीटो की मादाये मिली बग के शरीर पर अण्डे देती है एवं इनके अण्डे फूटने पर मिलीबग को खाना शुरू कर देती है।

परभक्षी एव प्राकृतिक शत्रुओ मे कि्र्रस्टोकोकस मोन्टाजेरी, लेडी बर्ड बीटल, सिरफिड फ्लार्इ व क्रायसोफा प्रमुख रूप से आते है। इनको लगभग 10 कीट प्रति पौधा या 5000 कीट प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ना चाहिये ।

मादा परभक्षी अपने अण्डे मिली बग के अण्ड समूहो के बीच मे देती है इन कीटो का ग्रब अवस्था मिली बग के अण्डे एवं क्रालर को खाता है। मिली बग के नियंत्रण के लिये फफूंद जैवनाशी एजेंट (बायो कंटा्रेल) जैसे वर्टीसिलियम लिकेनी को 5 ग्रामलीटर पानी के दर से घोल बनाकर फसलो पर छिड़काव करना चाहिये।

मि‍ली बग का रासायनिक नियंत्रण:-

रासायनिक नियंत्रण के लिये पर्यावरण एवं मिली बग के प्राकृतिक शत्रुओ के अनुकूल कीटनाशियो का छिड़काव करना चाहिये। इन कीटनाशको को मिली बग के परजीवियो, परभक्षियो या प्राकृतिक शत्रुओ को छोड़ने के 15-20 दिन बाद छिड़काव करे।

  • डाइक्लोरवास 25 ग्राम/ली.2 चम्मच सर्फ (डिटरजेंट) को मिलाकर छिड़काव करना चाहिये।
  • मिथाइल डेमेटान, क्लोरपायरीफास, मेलाथियान या इमिडाक्लोप्रिड की 2 मि.ली. मात्रा प्रति लीटर पानी मे घोलकर उसमे 2 चम्मच सर्फ पाउडर/ टंकी मिलाकर 15-20 दिनो के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करना चाहिये।
  • सिंचार्इ के पानी के साथ क्लोरपायरीफास 1 ली/हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिये।
  • नीम उत्पाद जैसे एजाडायरेक्टीन 5 मि.ली./लीटर एवं 2-3 चम्मच सर्फ पाउडर/टंकी मिलाकर छिड़काव करना चाहिये।

निष्कर्ष:-

किसी क्षेत्र विशष मे यदि मिली बग कीट स्थापित हो जाता है तब इसका नियंत्रण करना कठिन हो जाता है। एवं अलग-अलग प्रकार के पोषक पौधो मे इसकी प्रजातियां भिन्न हो सकती है अत: इसकी पहचान करके समनिवत कीट प्रबंधन तकनीकियो को अपनाकर नियंत्रण करना आवश्यक है।

 


Authors:

सीताराम देवांगन और घनश्याम दास साहू

उघानिकी विभाग, इंदिरा गांधी कृषि महाविघालय रायपुर (छ.ग.).492012

ईमेल: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it. 

 

New articles

Now online

We have 287 guests and no members online