Technical knowhow of protected farming for hilly areas

पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि के तौर तरीके अन्य भागों से थोड़ा अलग है। जिसका मुख्य कारण वातावरण के साथ-साथ अन्य कारकों का अलग होना है जैसे की समतल भूमि का आभाव, खड़ी चढ़ाईया, सिचाई के पानी की कमी इत्यादि जो काश्तकारी को और विषम बना देती हैं ऐसे हालातों में अनाजों या अन्य फसलो की अपेक्षा सब्जियों का उत्पादन अधिक लाभप्रद है। क्योकि इनसे हमें कम भूमि से अधिक शुद्ध लाभ मिलता है।

इसी को ध्यान में रखतें हुए संरचित खेती का विकास किया गया हैं जिससे तापमान, आद्रता, सूर्य का प्रकाश एवं हवा के आगमन में फसलों की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन करके फसलो की उत्पादकत के साथ-साथ गुणवत्ता भ बढ़ाई जा सकती है। इस प्रकार इस तकनीक के उपयोग से सालों भर बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन आसान हो जाता हैं

पर्वतीय क्षेत्रों में जाड़ों के मौसम में तापमान इतना कम हो जाता है कि पौधोे की बढ़वार लगभग रूक सी जाती है। लेकिन इन्ही पौधो को अगर पालीहाउस के अन्दर लगाते है तो इससे पौधो की बढ़वार संतोषजनक रहती है। इससे किसानों को सालो भर रोजगार के अवसर प्रदान होते है।

यह तकनीक छोटे, सीमांत एवं बड़े किसानो सभी के लिये फायदेमंद है। इस प्रकार यह संरक्षित खेती पर्वतीय कृषि विकास को अधिक मजबूत बनाने में कारगर सिद्ध हो सकती हैं।

संरक्षित वातावरण की उपयोगिताएं एंव विशेषताऐं

1. बेमौसमी सब्जियों की नर्सरी तैयार करना
2. बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन
3. अधिक उत्पादन
4. उच्च क्वालिटी
5. उच्च गुणवत्ता वाले बीजोउत्पादन में
6. रोजगार के अवसर

बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन की तकनीकें

पौध की तैयारी

अच्छी पौदावार के लिए स्वस्थ पौध का होना अति आवश्यक है। अधिकतर सब्जियो की पौध्ध नर्सरी में तैयार करनी पड़ती हैं। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान देना चाहिये -

1. नर्सरी को हमेशा नये स्थान पर लगाना चाहिये।
2. नर्सरी के लिए एक मीटर चैड़ी पट्टी बनानी चाहिये और लम्बाई आवश्यकता अनुसार रखनी चाहिये।
3. बुवाई से लगभग 15 दिन पहले प्रत्येक क्यारी में आवश्यकता अनुसार गोबर की सड़ी खाद मिलायें उसके बाद बोने से पूर्व 500 ग्राम छच्ज्ञ मिला लें।
4. बीज को उपयुक्त फॅफूदी नाशक दवा (2 ग्राम बेविस्ठीन प्रति किलोग्राम बीज दर) से उपचारित करें।
5. बीज को 1-2 सेमी0 गहरा बोयें तथा पक्तियों की दूरी 10 सेमी0 रखें।
6. रोज सुबह हल्की सिचाई करें और ध्यान रखे की कही पानी जमा न हो।
7. सर्दियो में अच्छे अंकुरण के लिए पालीहाउस या पालीटनल का उपयोग करें अथवा बीज जमने तक पुवाल से मिट्टी की सतह को ढक दें।
8. बुवाई के 15-20 दिनों बाद किसी फॅफूदनाशी जैसे Thiram या Captan (2 ग्राम प्रति लीटर जल) अथवा Trichoderma Viridae (4 ग्राम पति लीटर जल) की दर से धोल बनाकर पौधो की जड़ो के पास जमीन में डालें।
9. रोपाई (Transplanting) से पूर्व पौधो को 5-10 मिनट तक 2 ग्राम ठंअपेजपद प्रति लीटर पानी के घोल में डुबोकर रखें एवं शाम को रोपाई करें।
10. पौधे 25-30 दिन बाद रोपाई के लिये तैयार हो जाते है।

भूमि की तैयारी

सब्जियों की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में की जा सकती है। परन्तु दोमट मृदा इसके लिये सबसे उपयुक्त है। खेत की अच्छी तरह सफाई कर लें तथा उसमें पड़ी पिछली फसल के अवशेषों को निकाल दें। खरपतवार को भी खेतों से निकाल लें।

क्यारियों की तैयारी इस प्रकार करें कि उसमें पानी का कही ठहराव नहीं हों। अगर संभव हो, तो ऊॅची क्यारियां बनायें और उसी में रोपाई करें।

सब्जी फसल एवं प्रजातियों का चयन

पर्वतीय क्षेत्रो में अधिकतर पालीहाउस छोटे आकार के होते है। इन छोटे आकार वाले पालीहाउस में बाहर उगाई जाने वाली सभी उन्नत प्रजातियों को ले सकते है। संकर किस्मों का चयन करने से अधिक उत्पादन और आय प्राप्त होता है।

पालीहाउस में सब्जियों का चुनाव बाजार की मांग एवं मौसम पर भी निर्भर करता है। फरवरी-मार्च में टमाटर, खीरा, विलायती कद्दू आदि का चुनाव करें तथा नवम्बर-दिसम्बर में मटर एवं शाकीय फसलों का चुनाव करें।

बुवाई का समय एवं फसल चक्र

फसल चक्र का चुनाव स्थान विशेष की जलवायु पर निर्भर करता हैं एक ही सब्जी फसल जैसे टमाटर को बार-बार लगाने से पालीहाउस के अन्दर पोषक तत्वों की कमी एवं बिमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है।

अतः फसल चक्र अपनाने से इन परेशानियों से बचा जा सकता हैं सारणी-1 में दिये गये फसल चक्रों के अलावा दूसरे फसल चक्रों को भी किसान भाई अपनी सुविधा के अनुसार लगा सकते हैं बुवाई का समय फसल चक्र पर भी निर्भर करता हैं।

सारणी -1:पर्वतीय क्षेत्रों में पाली हाऊस मे सब्‍जी की खेती के लि‍ए लाभकारी  फसल चक्र

क्रं.सं.  पहली फसल  दूसरी फसल  तीसरी फसल  चौथी फसल
1 टमाटर (जनवरी-जून) टमाटर (जून -नवम्बर) पलक (दिसम्बर - जनवरी) -
2 सगिया मिर्च (जनवरी- जून) टमाटर (जून - सितम्बर)  फ्रासबीन (सितम्बर - नवम्बर)  पालक (दिसम्बर -जनवरी)
3 विलायती कद्दू (जनवरी- मई) फ्रासबीन (जून - जुलाई)  टमाटर (जुलाई - नवम्बर)   धनिया (दिसम्बर - जनवरी) 
4 टमाटर (जनवरी - जून)    खीरा (जून - सितम्बर)  फ्रासबीन (सितम्बर - नवम्बर)  धनिया (दिसम्बर - जनवरी)
5 खीरा (जनवरी - मई)  फ्रासबीन खीरा (जून - जुलाई)  टमाटर (अगस्त - नवम्बर)   पालक (दिसम्बर-जनवरी)

बीज एवं बुवाई/रोपाई

अक्सर देखा जाता है कि किसान आवश्यकता से अधिक बीज का इस्तेमाल करते है तथा उचित कतारों की दूरी में बुवाई न करे छिड़काव करते है। इससे बीज का जमाव कम होता है। पौधे कमजोर होते है तथा विभिन्न सस्य क्रियाओं को करने में परेशानी आती है।

अतः उचित बीज दर का ही प्रयोग करें। आधुनिक संरक्षित खेती में दिये गये कतार से कतार की दूरी को प्रजाति विशेष के अनुसार बड़ा सकते है तथा पौधे से पौधे की दूरी को धटा सकते है। अगर अच्छी तरह छंटाई एवं आकारीकरण की सुविधा उपलब्ध हो तो टमाटर एवं सगिया मिर्च में कतार से कतार की दूरी बढ़ाकर पौधे से पौधे की दूरी को काफी कम कर सकते है।

सारणी 2: विभिन्न सब्जियों का बीज दर एवं रोपण दूरी

फसल  बीज दर (ग्राम प्रति नाली)  रोपण दूरी(सेंटीमीटर)
कतार से कतार पौधा से पौधा
सब्जी मटर  1600 30 5
सगिया मिर्च  20-25 50 50
टमाटर 10-15 50 50
फ्रासबीन 1600 30 15
खीरा 40-60 100 60
ब्रोकोली 10-15 50 50

खाद एवं उर्वरक की मात्रा:-

खाद तथा उर्वरकों का प्रयोग उचित मात्रा में तथा सही समय पर अत्यन्त ही आवश्यक है। गोबर की खाद को खेतों में बुवाई से 2-3 सप्ताह पहले डाल देना चाहिये। रसायनिक खाद में नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूर्ण मात्रा को बुवाई के समय इस्तेमाल करना चाहिये। शेष आधी मात्रा को पुष्पन अवस्था में फसल को देना चाहिये।

सारणी 3ः- विभिन्न सब्जियों में उर्वरक की मात्रा

फसल 

गोबर की खाद (कुन्तल प्रति नाली) 

यूरिया रासायनिक खाद (किलो/ नाली)

डी.ए.पी. पोटाश
सब्जी मटर 3-4  1.31  2.18  1.67
सगि‍या  मिर्च 

 4 4.32 2.18 1.67
टमाटर
 
4 4.35 2.61 2.00
फ्रासबीन
 
3-4 1.3 2.17 1.67
खीरा
 
2-3 2.17 2.17 2.33
ब्रोकोली  4-5 4.35 2.17 1.67

टपक सिचाई प्रबन्धन एक विशेष प्रकार की नयी सिचाई की विधि है जो पालीहाउस खेती के लिये वरदान साबित हो रही है। यह दो प्रकार की होती है -

  • बिजली पम्प के प्रेशर द्वारा चलने वाली टपक सिंचाई प्रणाली।
  • बिना बिजली पम्प के एवं गुरूत्वीय दबाव से चलने वाली ड्रमकिट टपक सिचाई प्रणाली।

टपक सिचाई प्रणाली के लाभ:-

  • फसलों को समान रूप से एक ही साथ पानी प्राप्त हो जाता है।
  • पौधे के मांग के अनुसार पानी दिया जा सकता है।
  • इस विधि से 50-60 प्रतिशत पानी की बचत होती है।
  • इस प्रणाली के कारण 30-40 प्रतिशत उपज में इजाफा होता है।
  • पानी के साथ पोषक तत्वों को भी घोलकर जड़ों में दयिा जा सकता है।
  • इस सिचंाई के कारण पौधों में लगने वाले भूमि जनित रोग एंव कीट बहुत कम लगतें है।

छटाई एवं आकारीकरण:-

पॉलीहाउस के अन्दर टमाटर तथा सगिया मिर्च में छटाई बहुत जरूरी है। खास कर शाखाओं को उतना ही रखे जिनकी हम अच्छी तरह देखभाल कर सकें। टमाटर की एक शाखा तथा सगिया मिर्च की दो शाखाऐं रखना लाभप्रद है। अगर हम ज्यादा शाखायें रखते है तो हमें विभिन्न आकार का फल प्राप्त होगा तथा उपज पर भी विपरीत प्रभा पड़ेगा। कद्दू, खीरा तथा दूसरी बेल वाली फसलों के लिए भी आकारीकरण की आवयकता होती है।

खरपतवार नियंत्रण एवं गुड़ाई:-

जहां तक संभव हो, हमें रसायनिक खरपतवार नाशी का प्रयोग पालीहाउस की फसलों में नहीं करना चाहिये। बुवाइ या रोपाई के 15-20 तथा 35-45 दिनों के बाद गुड़ाई के समय खरपतवार को खेतों से निकाल देना चाहिये। गुड़ाई का फसल की वृद्धि तथ उपज पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

सिचाई:-

संरक्षित खेती में पानी का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिये। जरूरत से ज्यादा या कम पानी फसलों को नुकसान पहुॅचाता है। तथा विभिन्न रोगो को भी न्यौता देता है।

संरक्षित वातावरण (पालीहाउस) में रोग नियंत्रण

पालीहाउस में सब्जियों के उत्पादन के दौरान उनमें लगने वाली अनेक बिमारियों का प्रबन्धन आवश्यक है। यह बिमारियां विभिन्न प्रकार की फफूंदियों, जीवाणुओं, सुत्रकृमियों तथा विषाणुओं द्वारा होती है। उचित तपमान व नमी के नियंत्रण से रोगों के आक्रमण व फैलाव को संरक्षित वातावरण में रोका जा सकता है।

संरक्षित वातावरण में रोग नियंत्रण हेतु विशेष सावधानियां:-

ऽ क्यारियां समतल एवं 20 सेमी. उठी हुई बनायें, जिससे किसी स्थान पर अधिक नमी न होने पाये।
ऽ मिट्टी जनित रोग से बचाव हेतु पूरे पालीहाउस को सोलराइजेशन या फार्मेलिन से कीटाणु रहित करें।
ऽ पालीहाउस में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद को छानकर ही प्रयोग करें।
ऽ रोग आ जाने की स्थिति में तुरन्त ही रोगग्रस्त पौधों को निकालकर जला दें तथा उचित दवा का प्रयोग करें।

सोलराईजेान (सूर्य तापीकरण):-

अच्छी फसल के लिये यह जरूरी है। कि मिट्टी में कोई रोग पेदा करने वाले कारक नही हो। इसके लिए पहले मिट्टी में सिचाई करें तथा दूसरे दिन उसे सफेद पारदर्शी पाॅलीथीन से अच्छी तरह ढक दें 20-25 दिनों के लियें। इस क्रिया को मई से जुलाई के बीच कर सकते है।

संरक्षित वातावरण में कीट नियंत्रण:-

  • पालीहाउस की मिट्टी का शोधन सोलेराइजेसन द्वारा करें, जिससे मिट्टी में पहले से उपस्थित कीट या उनके अंडे नष्ट हो जायें।
  • पालीहाउस में कभी भी कच्ची गोबर की खाद का प्रयोग न करें।
  • समय-समय पर अनुमोदित कीटनाशकों का प्रयोग करतें रहें अथवा जैविक कीटनाशी (जैसे ट्राइकोग्रामा) का प्रयोग करें।
  • फसलों के अवशेष को पालीहाउस में न रहने दें।
  • फसल में कीट आ जाने की स्थिति में तुरन्त अनुमोदित तरीके से कीट निदान करे।

पालीहाउस में लगने वाले रोग एवं कीट का निदान:-

1-माइटस

नियंत्रण -

पालीहाउस का तापमान सिचाई द्वारा कम करें तथा आद्रता को 50 प्रतिशत तक बढ़ायें। रासायनिक नियंत्रण हेतु कलमाइट का 2 मि.ली. या डिफोकाल का 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

2. थ्रिप्स -

इस कीट के वयस्क एवं शिशु दोनो पत्तियों से रस चूसकर क्षति पहुंचाते है।

नियंत्रण -

रसायनिक नियंत्रण के लिये इमिडाकलोमिड 200 एस.एल. का 0.3 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

3. फल बेघक सूण्डी
यह टमाटर का एक प्रमुख कीट है। यह फलों में छेदकर उसके गूदे को खा जाता है।

नियंत्रण -

रासायनिक नियंत्रण हेतु इण्डोक्साकार्न का 0.3 मि.ल. या मिथोमिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

4. चूर्णिल आसिता (फफूंद जनित)

नियंत्रण

कैराथेन (6 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या ब्ेाविस्टीन - ( 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) को 10 दिन अन्तराल में छिड़काव करें। सल्फर डस्ट को 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें।

5. रूटनाट निमेटोड (सूत्रकृमी)

नियत्रंण

 250 ग्राम नीमखली, 3 ग्राम ट्राइकोडर्मा, 2 ग्राम कार्बाफ्युरान का मिश्रण बनाकर प्रति वर्ग मीटर की दर से प्रयोग करें।  खड़ी फसल में निमैटोसाइड नामक दवा 2-5 प्रतिशत का घोल बनाकर जड़ों में डालें।

तुड़ाई एवं उत्पादन

उचित अवस्था में सब्जियों की तुड़ाई बहुत जरूरी है। समय से पहले तोड़ने पर हमें कम उत्पादन मिलता हैं तथा विलम्ब करने पर सब्जी की गुणवत्ता खराब होती है। जिसका बाजार मे हमें कम दाम मिलता हैं

एक अच्छी संरक्षित वातावरण की टमाटर तथा सगिया मिर्च की फसल 200-300 कुन्तल प्रति हैक्टेयर, मटर तथा फ्रासबीन 100-200 कुन्टल प्रति हैक्टेयर और ब्रोकोली 75-125 कुन्तल प्रति हैक्टेयर की उपज देती है।


Authors

सुनीता सिंह 1 और अनिल कुमार सक्सेना2

1सहायक प्राध्यापक (उद्यानिकी), 2सहायक आचार्य (मृदा विज्ञान),

श्री गुरु राम राय स्कूल ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालयए देहरादून.248 001 (उतराखंड)

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