Integrated disease management of major diseases of Cotton crop based on crop stage

कपास एक नकदी फसल हैं। इससे रुई तैयार की जाती हैं, जिसे “सफेद सोना“ कहा जाता हैं। सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक  एवं  प्राकृतिक फाइबर और तिलहन फसलों में महत्वपूर्ण योगदान है। प्राकृतिक फाइबर की कम से कम 90 प्रतिशत अकेले कपास की फसल से प्राप्त की है। कपास वैश्विक कपड़े का 35 प्रतिशत और भारत में कपड़ों की जरूरत का 60 प्रतिशत योगदान देता है।

भारत में सभी चार कपास प्रजातियों अर्थात् देशी कपास (द्विगुणित) गोसिपियम अर्बोरेम, गोसिपियम हेरबसियम, अमेरिकी कपास गोसिपियम हिर्सुटम  एवं  मिश्र की कपास गोसिपियम बारबडेन्स का व्यावसायिक रूप उत्‍पादन होता है । यहां करीब 123 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर इसकी खैती होती है। जो भारत की कृषि योग्य भूमि का करीब 7.5 प्रतिशत और वैश्विक कपास क्षेत्र का 36.8 प्रतिशत है। भारतीय कपास का वैश्विक उत्पादन में 23.5 प्रतिशत योगदान है।

उत्तर पश्चिम भारत में अधिकांश कपास की व्यावसायिक किस्मेें,  गोसिपियम, गोसिपियम अर्बोरेम  एवं  गोसिपियम हिर्सुटमद्ध से निकाली गई है । कपास की फसल करीब 15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के अंतर्गत है और ज्यादातर हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के उत्तर-पश्चिम भारत में खेती की जाती है ।

भारत में 130 कीट प्रजातियों पाई जाती हैं, उनमे से आधा दर्जन से अधिक आर्थिक महत्व के हैं और विकसित कपास संकर और अन्य किस्मों की पूरी क्षमता पैदावार प्राप्त करने में समस्याएं पैदा कर रहे हैं । भारत के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में कपास के विभिन्न चरणों में उत्पन्न होने वाले प्रमुख रोगों का समेकित रोग प्रबंधन यहाँ बताया गया है ।

  रोगों के नाम रोग के प्रसार की प्रकृति   
    बीज जनित अंकुर रोग मिट्टी जनित हवा  जनित
1. बैक्टीरियल ब्लाइट हाँ  हाँ  नहीं  हाँ 
2. आल्टर्नेरिया पत्ती धब्बा हाँ   हाँ   हाँ   हाँ  
3. माइरोथेसियम पत्ती धब्बा हाँ नहीं  हाँ   हाँ  
4. कवक जड़ गलन नहीं  हाँ हाँ   नहीं 
5. कपास लीफ कर्ल वायरस रोग नहीं  नहीं  नहीं  हाँ  
6. फ्यूजेरियम विल्ट (देशी कपास) हाँ   नहीं  हाँ   हाँ  
7. टीण्डा गलन नहीं  नहीं  नहीं  हाँ  

प्रमुख रोग  एवं  उनका फसल अवस्था अनुसार समेकित रोग प्रबंधन

फसल बुवाई से पहले प्रबंधन

1. जड़गलन रोग    

  • मृदा जनित रोगों का सफल नियंत्रण करने के लिए गरमी के मौसम खेत की गहरी जुताई करे व खेत को गहरी घुप में तपाऐं ताकी मृदा जनित रोगकारक फफूँद खत्म होजाए ।
  • रोगकारक मुक्त अच्छी किस्मों का बीज इस्तेमाल करना चाहीए ।
  • बुआई से पहले बीजों का उपचार करना चाहीए ।
  • अप्रेल और मई के पहले पखवाङे में बुआई से बीमारी कम होती है। ज्यों  ज्यों पछेती बुआई करते है बीमारी बढती है। 
  • मिट्टी का उपचार जिंकसल्फेट 24 किलोॻाम प्रति हेक्टेयर की दर से करनें से बीमारी में कमी आती है।
  • ट्राइकोडर्मा ढाई किलोॻाम प्रति हेक्टेयर की दर से सङी हुई गोबर की खाद में मिला कर बुआई से पहले मिट्टी का उपचार करनें से बीमारी में कमी आती है।

2. विगलन या पौध अंगमारी या उखटा रोग (दशी कपास)

  • मृदा जनित रोगों का सफल नियंत्रण करने के लिए गरमी के मौसम खेत की गहरी जुताई करे व खेत को गहरी द्दुप में तपाऐं ताकी मृदा जनित रोगकारक फफूँद खत्म होजाए ।
  • जिन इलाको में यह रोग अधिक होता है वहां दशी कपास की जगह अमेरिकन कपास लगना चाहीए ।
  • रोगकारक मुक्त अच्छी किस्मों का बीज इस्तेमाल करना चाहीए ।
  • अप्रेल और मई के पहले पखवाङे में बुआई से बीमारी कम होती है। ज्यों  ज्यों पछेती बुआई करते है बीमारी बढती है। 
  • ट्राइकोडर्मा ढाई किलोॻाम प्रति हेक्टेयर की दर से सङी हुई गोबर की खाद में मिला कर बुआई से पहले मिट्टी का उपचार करनें से बीमारी में कमी आती है।

3. जीवाणु अंगमारी झुलसा या कोणीय धब्बा रोग

  • मृदा जनित रोगों का सफल नियंत्रण करने के लिए गरमी के मौसम खेत की गहरी जुताई करे व खेत को गहरी द्दुप में तपाऐं ताकी मृदा जनित रोगकारक फफूँद खत्म होजाए ।
  • अप्रेल और मई के पहले पखवाङे में बुआई से बीमारी कम होती है। ज्यों  ज्यों पछेती बुआई करते है बीमारी बढती है।  अमेरिकन कपास की बी टी हायब्रिड की बुआई 15 मई तक सुनिष्चित करें ।
  • स्युडोमोनास ढाई किलोॻाम प्रति हेक्टेयर की दर से या ट्राइकोडर्मा ढाई किलोॻाम प्रति हेक्टेयर की दर से सङी हुई गोबर की खाद में मिला कर बुआई से पहले मिट्टी का उपचार करनें से बीमारी में कमी आती है।

4. आल्टरनेरिया पत्ती धब्बा या झुलसा रोग 

  • मृदा जनित रोगों का सफल नियंत्रण करने के लिए गरमी के मौसम खेत की गहरी जुताई करे व खेत को गहरी द्दुप में तपाऐं ताकी मृदा जनित रोगकारक फफूँद खत्म होजाए ।
  • जिन इलाको में यह रोग अधिक होता है वहां दशी कपास की जगह अमेरिकन कपास लगना चाहीए ।
  • अप्रेल और मई के पहले पखवाङे में बुआई से बीमारी कम होती है। ज्यों  ज्यों पछेती बुआई करते है बीमारी बढती है। 
  • बैसीलस सबटीलीस  ढाई किलोॻाम प्रति हेक्टेयर की दर से या ट्राइकोडर्मा ढाई किलोॻाम प्रति हेक्टेयर की दर से सङी हुई गोबर की खाद में मिला कर बुआई से पहले मिट्टी का उपचार करनें से बीमारी में कमी आती है।

5. मायरोथिसिम पत्ती धब्बा या झुलसा रोग

  • मृदा जनित रोगों का सफल नियंत्रण करने के लिए गरमी के मौसम खेत की गहरी जुताई करे व खेत को गहरी द्दुप में तपाऐं ताकी मृदा जनित रोगकारक फफूँद खत्म होजाए ।
  • जिन इलाको में यह रोग अधिक होता है वहां दशी कपास की जगह अमेरिकन कपास लगना चाहीए ।
  • अप्रेल और मई के पहले पखवाङे में बुआई से बीमारी कम होती है। ज्यों  ज्यों पछेती बुआई करते है बीमारी बढती है। 
  • ट्राइकोडर्मा ढाई किलोॻाम प्रति हेक्टेयर की दर से या बैसीलस सबटीलीस  ढाई किलोॻाम प्रति हेक्टेयर की दर से सङी हुई गोबर की खाद में मिला कर बुआई से पहले मिट्टी का उपचार करनें से बीमारी में कमी आती है।

6. कपास का पत्ता मरोड़ रोग

  • सफेद मक्खी की निगरानी हेतु कपास व दूसरे पौधे जैसे कि सब्जियां, फूलों वाले सजावटी पौधे, खरपतवार, वृक्षारोपण फसलों इत्यादि का नियमित सर्वेक्षण करें तथा कपास की फसल के आसपास यदि बैंगन, भिंडी, मिर्च, टमाटर या कद्दू जाति की सब्जियां लगी है तो उन पर सफेद मक्खी की ठीक प्रकार से निगरानी व नियंत्रण करें।
  • कपास के लिए उर्वरकों की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें । फसल के शुरू में ही नाइट्रोजन आधारित ज्यादा खादों का प्रयोग ना करें । अमेरिकन कपास के हायब्रिड के लिए यूरिया 120-140 किलोग्राम, डी ए पी 25-50 किलोग्राम  एवं  म्युरेटा पोटाष 20-40 किलोग्राम, जिंक (21 प्रतिशत) 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर डालें । आधी यूरिया खाद की मात्रा फूल डोडी बनने तक तथा आधी फूल से टिण्डे बनने तक डालें । बाकी अन्य खादें बिजाई से पहले खेत में डाल दें ।
  • अमेरीकन कपास की किस्मों के लिए 65 किलोग्राम यूरिया (देशी कपास की किस्मों के लिए 35 किलोग्राम यूरिया), 27 किलोग्राम डी ए पी, 20 किलोग्राम पोटाष व 10 किलोग्राम जिंक का प्रयोग करें।
  • खेतों व खेतों की मेंडों, खालों  एवं  खेत के आसपास के क्षेत्र को खरपतवारों से मुक्त रखें ।
  • कपास की फसल के खेतों के चारों तरफ ज्वार या बाजरा की दो सघन पंक्तियों में बीजाई भौतिक अवरोधक के रूप में करें ।

फसल की बुवाई अवस्था मे प्रबंधन

सामान्य कार्य

  • रोगकारक मुक्त अच्छी किस्मों का बीज इस्तेमाल करना चाहीए । प्रति प्रतिरोधक/सहनशील किस्में या हायब्रिड उगायें
  • एसिड डिलिंटिंग से बीज उपचार  करें
  • बुआई से पहले बीजों का उपचार करना चाहीए ।

1. जीवाणु अंगमारी झुलसा या कोणीय धब्बा रोग

  • रोगकारक मुक्त अच्छी किस्मों का बीज इस्तेमाल करना चाहीए । प्रति प्रतिरोधक/सहनशील किस्में या हायब्रिड उगायें । 
  • बुआई से पहले बीजों का उपचार करना चाहीए । कपास के बीज को 8 से 10 घंण्टे तक स्टे्रप्टोसाइक्लिन या प्लांटोमाइसीन 100 पी पी एम घोल डुबो उपचारित करना चाहीए । यदी डिलिंटेड बीज है तो उसे केवल 2 घंण्टे ही भिगोना चाहीए ।
  • कपास  बीजों का उपचार स्युडोमोनास 10 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज या बैसीलस सबटीलीस 10 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज की दर से करनें से रोग का असर कम होता है।

2. आल्टरनेरिया पत्ती धब्बा या झुलसा रोग

  • रोगकारक मुक्त अच्छी किस्मों का बीज इस्तेमाल करना चाहीए ।
  • बुआई से पहले बीजोंपचार करना चाहीए । कपास  बीजों का उपचार या बैसीलस सबटीलीस 10 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज या ट्राइकोडर्मा 4 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज की दर से करनें से रोग का असर कम होता है।

3. मायरोथिसिम पत्ती धब्बा या झुलसा रोग

  • रोगकारक मुक्त अच्छी किस्मों का बीज इस्तेमाल करना चाहीए ।
  • बुआई से पहले बीजापचार करना चाहीए ।
  • कपास  बीजों का उपचार कार्बेंडाजिम 2 ग्राम/किलो बीज या बैसीलस सबटीलीस 10 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज या ट्राइकोडर्मा 4 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज की दर से करनें से रोग का असर कम होता है।

4. जड़गलन रोग

  • कपास  बीजों का उपचार कार्बेंडाजिम 2 ग्राम/किलो बीज या बैसीलस सबटीलीस 10 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज या ट्राइकोडर्मा 4 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज की दर से करनें से रोग का असर कम होता है।

5. विगलन या पौध अंगमारी या उखटा रोग (दशी कपास)

  • बुआई से पहले बीजों का उपचार करना चाहीए ।
  • कपास  बीजों का उपचार कार्बेंडाजिम 2 ग्राम/किलो बीज या बैसीलस सबटीलीस 10 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज या ट्राइकोडर्मा 4 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज की दर से करनें से रोग का असर कम होता है।

6. कपास का पत्ता मरोड़ रोग

  • सफेद मक्खी व विषाणु पत्ता मरोड़ रोग के प्रति प्रतिरोधक/सहनशील किस्में या हायब्रिड उगायें ।
  • बी टी हायब्रिड की बुआई 15 मई तक करें तथा 8000-10000 पौधे प्रति एकड़ हायब्रिड के फैलाव के हिसाब से सुनिष्चित करें । देशी कपास की बिजाई 30 अप्रैल तक कर लें। दशी कपास की किस्में/हायब्रिड सफेद मक्खी के प्रति सहनशील  एवं  विषाणु पत्ता मरोड़ रोग के प्रति प्रतिरोधक हैं ।

फसल की वानस्पतिक अवस्था मे प्रबंधन

सामान्य कार्य

  • अंतः शस्य क्रियाएं  एवं  खरपतवार नियंत्रण समय पर करना चाहिए
  • सफेद मक्खी की आबादी की निगरानी  के लिए पीला चिपचिपा जाल का प्रयोग करें ।
  • जड़ गलन  एवं  उखटा रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नस्ट कर लें ।
  • कपास के पत्ती मरोड़ रोग से गंभीर रूप से प्रभावित पौधों को उखाड़ ले ।

1. जड़गलन रोग

  • बुआई से पहले बीजापचार करना चाहीए ।
  • कपास  बीजों का उपचार ट्राइकोडर्मा 4 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज की दर से करनें से रोग का असर कम होता है।

2. विगलन या पौध अंगमारी या उखटा रोग (दशी कपास)

  • बुआई से पहले बीजों का उपचार करना चाहीए ।
  • कपास  बीजों का उपचार ट्राइकोडर्मा 4 ॻाम प्रति किलोॻाम बीज की दर से करनें से रोग का असर कम होता है।

 3. जीवाणु अंगमारी झुलसा या कोणीय धब्बा रोग

  • फसल पर रोग के लक्षण दिखाई देंतें ही स्टे्रप्टोसाइक्लिन या प्लांटोमाइसीन 50 पी पी एम और कॉपरआक्सीक्लोराइड 0.2  फीसदी घोल का छीडकाव करना चाहीए और इसे 15 दिनों के अंतराल पर दोहराना चाहीए ।

4. कपास का पत्ता मरोड़ रोग

  • कपास के पौधों पर फूल लगना प्रारम्भ होने पर पोटाषियम नाइट्रेट (13:0:45) का 2-4 बार छिड़काव 2.0 किलोग्राम/100 लीटर पानी में घोलकर 7-10 दिन के अन्तराल पर करें।
  • पहली सिंचाई बुआई के 4-6 सप्ताह बाद करें  एवं  पौधे की एक तिहाई टिण्डा खुलने पर सिंचाई बंद कर दें ।
  • कपास की फसल में जुलाई  एवं  अगस्त महिनों के दौरान प्रति एकड़ 50-100 पीले स्टिकी ट्रेप (पी सी आई निर्मित या अन्य कम कीमत वाले ट्रेप) की स्थापना करें तथा अगस्त महिने में वैक्युम सक्षन ट्रेप का उपयोग सफेद मक्खी के व्यस्कों की संख्या अधिक होने पर करें ।
  • खेतों में रोग ग्रसित पौधों के नजर आते ही उन्हें नष्ट कर देना चाहिए ताकि रोग आगे नही फैल सके।

5. पैरा विल्ट रोग

  • बुआई के समय खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई करें और खेत में सही मात्रा में सङी हुई गोबर या कम्पोष्ट खाद का प्रयोग करें । बिजाई से पहले गोबर की खाद/ हरी खाद का प्रयग करने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है जो इस रोग के ना आने में लाभदायक है।
  • बीजोंपचार ऐजोटोबेक्टर 25 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से या एजोस्पाईरिलम 500 ॻाम  एवं  पी.एस.बी. 500 ॻाम प्रति 500 ॻाम बीज की दर से करें। ऐसा करनें से रोग का असर कम होता है तथा 20 किलोॻाम नत्रजन  एवं  10 किलोॻाम फॉसफोरस प्रति हेक्टेयर की दर से बचत होती हैं।
  • बुआई के समय खेत की से जुताई करनें के बाद प्रयाप्त फॉसफोरस खाद का प्रयोग करें ।
  • खेत में पहली सिंचाई सही समय पर करें और कपास की फसल में जल निकासी का अच्छा उपाय होना चाहिए ।

फलन की प्रारंभिक अवस्था मे प्रबंधन

1. जीवाणु अंगमारी झुलसा या कोणीय धब्बा रोग

  • फसल पर रोग के लक्षण दिखाई देंतें ही स्टे्रप्टोसाइक्लिन या प्लांटोमाइसीन 50 पी पी एम और कॉपरआक्सीक्लोराइड 0.2  फीसदी घोल का छीडकाव करना चाहीए और इसे 15 दिनों के अंतराल पर दोहराना चाहीए ।

2. आल्टरनेरिया पत्ती धब्बा या झुलसा रोग

  • फसल पर रोग के लक्षण दिखाई देंतें ही कॉपरआक्सीक्लोराइड या मेंकोजेब 0ण्2 फीसदी घोल का छीडकाव करना चाहीए और इसे 15 दिनों के अंतराल पर दोहराना चाहीए ।
  • मेटीराम 55 फीसदी  एवं  नाइराक्लोस्ट्रोबीन 55 फीसदी 750 ॻाम प्रति एकड की दर से या इरगोन 0.1 फीसदी के घोल का छीडकाव 60 दिन पर  एवं  टैक्वाट के 0.1 फीसदी घोल का का छीडकाव 90  एवं  120 दिन पर करें।
  • प्रोपिकोनाजेाल के 0.1 फीसदी घोल या ब्लाइटोक्स के 0.1 फीसदी घोल या एन्टोकाल या मेंकोजेब या कॉपरआक्सीक्लोराइड के 0.25 फीसदी घोल का छीडकाव भी कर सकते है।

3. कपास का पत्ता मरोड़ रोग

  • सफेद मक्खी के प्रकोप को कम करने के लिए षुरू में दो छिडकाव 1.0 प्रतिशत नीम तेल  एवं  0.5: कपडे धोने का पाउडर के घोल अथवा निम्बिसिडिन (0.03 प्रतिशत या 300 पी पी एम) लिटर प्रति एकड़ तथा बाद में दो छिड़काव 2: अरंडी तेल एवं 0.5: कपडे धोने का पाउडर के घोल के करें ।
  • अगस्त महिने में कीटनाषक जैसे डाइफेंथयुरॉन (200 ग्राम प्रति एकड़), ब्युपरोफेजिन (320 मि॰ ली॰ प्रति एकड़), स्पाइरोमेसिफेन (200 मि॰ ली॰ प्रति एकड़),  एवं पाइरीप्रोक्सिफेन (250 मि॰ ली॰ प्रति एकड़), का छिड़काव आवष्यकता पड़ने पर कर सकते हैं । ये कीटनाषक सफेद मक्खी नियंत्रण में प्रभावी हैं और प्राकृतिक लाभकारी कीटों के लिए भी सुरक्षित हैं । फसल की अंतिम अवस्था में सितंम्बर के दौरान, इथियोन (800 मि॰ ली॰ प्रति एकड़)  एवं  ट्राइएजोफास (600 मि॰ ली॰) का छिड़काव ज्यादा जरूरत के आधार पर किया जा सकता है ।
  • यदि पत्तों के निचले भाग में सफेद मक्खी के अण्डे  एवं  बच्चों की संख्या अधिक है तो स्पाइरोमेसिफेन (200 मि॰ ली॰ प्रति एकड़) का प्रयोग अधिक लाभकारी होगा ।
  • सिंथेटिक पाइरीथ्रोईडस, ऐसिफेट  एवं  अन्य कीटनाषकों के मिश्रण का उपयोग कभी भी ना करें क्योंकि इनसे सफेद मक्खी की जनसंख्या  एवं  प्रकोप बढ़ सकता है ।

फूल एवं फलन अवस्था मे रोग प्रबंधन

1. जीवाणु अंगमारी झुलसा या कोणीय धब्बा रोग

  • फसल पर रोग के लक्षण दिखाई देंतें ही स्टे्रप्टोसाइक्लिन या प्लांटोमाइसीन 50 पी. पी. एम. और कॉपरआक्सीक्लोराइड 0.2  फीसदी घोल का छीडकाव करना चाहीए और इसे 15 दिनों के अंतराल पर दोहराना चाहीए ।

 2. पत्ती धब्बा या झुलसा रोग

  • फसल पर रोग के लक्षण दिखाई देंतें ही कॉपरआक्सीक्लोराइड या मेंकोजेब 0.2 फीसदी घोल का छीडकाव करना चाहीए और इसे 15 दिनों के अंतराल पर दोहराना चाहीए ।

3. कपास का पत्ता मरोड़ रोग

  • सफेद मक्खी के प्रकोप को कम करने के लिए षुरू में दो छिडकाव 1.0 प्रतिशत नीम तेल  एवं  0.5: कपडे धोने का पाउडर के घोल अथवा निम्बिसिडिन (0.03 प्रतिशत या 300 पी पी एम) लिटर प्रति एकड़ तथा बाद में दो छिड़काव 2: अरंडी तेल  एवं  0.5 प्रतिशत कपडे धोने का पाउडर के घोल के करें ।
  • यदि पत्तों के निचले भाग में सफेद मक्खी के अण्डे  एवं  बच्चों की संख्या अधिक है तो स्पाइरोमेसिफेन (200 मि॰ ली॰ प्रति एकड़) का प्रयोग अधिक लाभकारी होगा ।
  • सिंथेटिक पाइरीथ्रोईडस, ऐसिफेट  एवं  अन्य कीटनाषकों के मिश्रण का उपयोग कभी भी ना करें क्योंकि इनसे सफेद मक्खी की जनसंख्या  एवं  प्रकोप बढ़ सकता है ।

4. मायरोथिसियम पत्ती धब्बा या झुलसा रोग

  • प्रोपिकोनाजेाल के 0.1 फीसदी घोल या ब्लाइटोक्स के 0.1 फीसदी घोल या एन्टोकाल या मेंकोजेब या कॉपरआक्सीक्लोराइड के 0.25 फीसदी घोल का छीडकाव कर सकते है।

5. टीण्डा गलन रोग

  • टिण्डे लगने शुरू होने पर मैंकोजेब  एवं  क्लोरोथेनलोनिल 400 ॻाम प्रति एकड या ब्लाइटोक्स 500 ॻाम  एवं  एग्रीमाइसीन 20 ॻाम या कापर ऑक्सीक्लोराइड 500 ॻाम  एवं  स्ट्रेपटोसाइक्लिन 3 ॻाम घोल का छीडकाव प्रति एकड की दर से करें।
  • o   रोग के लक्षण दिखाई देंतें ही कॉपरआक्सीक्लोराइड या मेंकोजेब 0.2 फीसदी घोल का छीडकाव कर सकते है।

6. पैरा विल्ट 

  • जब खेत में पैरा विल्ट के कारण पौधे अचानक मुरझाने शुरू होने लगते हो तो, लगभग 12 -24 घण्टों के अन्दर कोबाल्टक्लोराइड का छीडकाव एक ॻाम प्रति सौ लीटर पानी के हीसाब में घोलकर प्रभावित पौधों तथा आसपास के पौधों पर अच्छी तरह छिङकाव करें ।

Authors

डॉ. सतीश कुमार सैन  एवं  डॉ. दिलीप मोंगा

भा. कृ. अनु. प.-केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय स्टेशन, - सिरसा

Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

New articles

Now online

We have 149 guests and no members online