Hybrid seed production technique of Tomato

Tomato Hybrid Seed production techniqueबीज में शुद्धता का होना, बीजोत्पादन की प्रथम सीढी है। जो कि पर परागण तथा अन्य बाह्रय पदार्थों के मिलने से प्रभावित होती है। शुद्ध बीज की गुणवता भी अच्छी होती है। अत: बीजोत्पादन के लिए आनुवांशिक एवं बा्रहय पदार्थो के मिश्रण संबंधी शुद्वता हेतु निम्न बिन्दुओं को अपनाना परम आवश्‍यक है।

पृथक्करण दूरी

एक ही फसल की दो किस्मों में पर परागण द्वारा होने वाली अशुद्वता तथा स्व परागित फसलों मे कटाई के दौरान बाह्रय पदार्थों के अपमिश्रण से होने वाली अशुद्वता को रोकने के लिए एक ही कुल की दो फसलो या एक ही फसल की दो किस्मों के मध्य रखी जाने वाली आपसी दूरी को पृथक्करण दूरी या विलगन कहते हैं।

रोगिंग

फसल में फूल आने से पूर्व की अवस्था में फसल के अतिरिक्त उगने वाले अवांछित या रोगग्रस्त पौधों को खेत से निकालना रोगिंग कहलाता है। जिससे बीज की गुणवता का निर्धारित स्तर बना रह सके इस हेतु फसलवार एवं उसकी अवस्थावार खेत का समय-समय पर निरिक्षण भी करना चाहिए।

प्रक्षेत्र मानक

न्यू सीड पॉलिसी ऑफ इण्डिया (1988) के अनुसार निम्न मानक टमाटर के लिए लिये गये है।

टमाटर बीज के लि‍ए खेत मानक
खेत मानक प्रथक्करण दूरी मीटर  अवांछनीय पौधे (प्रतिशत)  बीज से उत्पन्न बीमारी द्वारा ग्रसित(प्रतिशत) 
आधारीय बीज  50 मीटर  010  010 
प्रमाणित बीज  25 मीटर  020  050 

टमाटर के लिये बीज मानक

बीज मानक आधारिय बीज  प्रमाणित बीज 
शुद्व बीज न्युनतम (प्रतिशत)  28  28 
अशुद्व पदार्थ अधिकतम (प्रतिशत) 
अन्य फसलाें के बीज 
खरपतवारों के बीज 
अंकुरण प्रतिशता (न्युनतम)  70  70 
नमी प्रतिशत (सामान्य)  8

टमाटर में संकर बीज उत्पादन के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

टमाटर में संकर बीज उत्पादन

  • वातावरण पुष्प खिलने, फल तथा बीज बनने के अनुकूल होना चाहिए
  • दिन का तापमान 21-25 0C तक होना चािहए तथा रात का तापमान 15-20 0C तक होना चाहिऐ।
  • फल पकने के समय नमी कम ही होनी चाहिए।
  • संकर बीज उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले नर तथा मादा जनक उत्तम गुणों वाले होने चाहिए तथा मादा जनक के कार्यो में अच्छे तथा अधिक बीज होने चाहिए टमाटर में संकर बीज दो तरीको से उत्पादित होता है।
  • हस्त निपुंसीकरण तथा परागण
  • नर बंध्यता का प्रयोग
  • हस्त निपुंसीकरण तथा परागण:यह विधि उन जगहों पर प्रयोग की जाती है जहां मजदूरी सस्ती हो और मजदूर आसानी से उपलब्ध हो सके।
  • मादा जनक मे निपुंसीकरण पुष्प कलिका में उस समय किया जाता है जब वह 2-3 दिन बाद खिलने वाली हो। इस समय पंखुडियां कालिका से बाहर की ओर निकली होती है तथा उनका रंग हल्का पीला होता है।
  • विपुसीकरण के लिए हाथ, कैची तथा चिमटी की .95 प्रतिशत एथिल एल्कोहॉल से साफ कर लेना चािहए। सर्वप्रथम नुकीली चिमटी की सहायता से पुष्प कलिका को खोला जाता है। इसके बाद परागकोष की खींच कर बाहर निकाल लिया जाता है तथा बाहय दल पुंज तथा जायांग को वैसे ही रहने देते है कभी कभी दल पुंज को भी निकाल दिया जाता है।
  • सुबह के समय नर जनक के नये खिले पुष्पो को एकत्र किया जाता है। इसमें से परागकोष निकाल कर सेलोफेनया कागज के पेकेटमें रख लेते है। पराग कोष के पैकेटो को 100 वॉट के बल्ब के नीचे 24घण्टे के लिये रखकर सुखाया जाता है। सुखाने के लिये तापमान 30 0C तक होना चाहि‍ए।
  • सुखे हुये पराग कोषो को एक प्लास्टिक केकप मे रखते हैं। इस प्लास्टिक केकप मे एक पतली जाली बांध देते है तथा ढक्कन से भली प्रकार ढक देते है। इसके बाद कप को जोर से हिलाया जाता है ताकि परागकण जाली में एकत्रित हो जाऐं।
  • जाली से परागकणो को एक अन्य प्लास्टिक केकप मे रख दिया जाता है।
  • परागण के लिये मादा जनक के वर्तिकाग्र को परागकणो पर छुआया जाता है।या ब्रुश अथवा अंगुली पर परागकण लेकर वर्तिकाग्र पर छुआ देते है। निपुंसीकरण के लगभग दो दिन बाद परागण किया जाता है। बरसात के दिनों में परागण नही करना चाहिए।
  • परागण के 50-60 दिन बाद फल पकने लगते है।

नर बन्ध्यता का प्रयोग

विपुंसीकरण तथा परागण विधि से तेयार संकरित बीज मंहगे होते है। अत: नर बंन्धयता का प्रयोग अधिक उचित है। टमाटर मे जैनिक नर बन्ध्यता का प्रयोग किया जाता है। जो नर बन्ध्य जीन के कारण उत्पन्न होती है नर बन्ध्यता पौधे का किसी समयुग्मजी जननक्षम किस्म से संकरण कराके संकर बीज बनाया जाता है।

नर बन्ध्य पौधे जनन क्षमता के लिय विषमयुग्मजी प्ररूप से संकरित कराके अनुरक्षित किये जाते हैं नर बन्ध्य पौधो में परागण कृत्रिम तरीके से कराया जाता है। क्योंकियदि नर बन्ध्य पौधे को परपरागण के लिये ऐसे ही छोड दिया जाए तो बहुत कम फल बनते है इसके साथ ही दुसरी समस्यायह है कि मादा वंशक्रम मे बन्ध्य और जननक्षम पौधे 1:1 के अनुपात मे होते है और इनकी पहचान तभी संभव होती है जब वे पुष्प के खिलने की अवस्थामें हाें।

फसल निरीक्षण

टमाटर की बीज वाली फसल मे से कम से कम तीन बार अवांछनीय पौधो को निकालना चाहियें। टमाटर की बीज वाली फसल मेयदि टमाटर की अन्य प्रजाति का कोई पौधा उगता है तो वह भी अवांछनीय ही माना जायेंगा। टमाटर की फसल मे तीन बार अवांछनीय पौधों को निकाला जाता है

  • पुष्पन अवस्था से पूर्व पौधो को उनके रूप, ओज, पत्तियों और पौधे के आकार गठन आदि की दृष्टि से परख कर निकालना।
  • पुष्पन एवं बीज फसल अवस्था के समय जब फल पूर्णत परिपक्व न हुये हों तो फलो की आकृति आकार, रंग आदि को ध्यान ये रखते हुऐ अवांछनीय पौधो को निकालना।
  • जब टमाटर के फल पक जाये तो फलो के आकार, रंग, आकृति तथा फल के भीतरी लक्षणो को ध्यान मे रखते हुये पौधो की परख करनी चाहिए।

यदि असमानता के लक्षण दिखाई दे तो तुरन्त सम्पूर्ण पौधे को जड़ सहित उखाडकर खेत से बाहर कर देना चाहिये। जिससे बीज फसल की शुद्वता बनी रह सके।

फलो की तुडाई

बीज फसल के लगभग सभी फल पूर्णरूप से पक कर लाल रंग के होने लगे अथवा पूर्ण लाल हो जाये तो फलो को तोड लेते है। केवल स्वस्थ एवं पूर्णरूप से पके फलो का प्रयोग ही बीज के लिये करना चाहिये।

कुछ लोग टमाटर के रंग बदलते ही फल तोड लेते है जो कि एक गलत प्रक्रिया है। ऐसा करने से बीज फल के अन्दर पूरी तरह पक नही पाता जो बाद बोने पर ठीक से नही उगता है। इसलिए आवश्‍यक है कि जब फल पूरी तरह पक जाए तभी बीज उत्पादन हेतु तोडन चाहिए। फल को तोडने के लिये उसे घुमाकर तोडाना चाहिए ना कि खीचकर।

बीज निकालना तथा साफ करना

टमाटर के फलो से बीज निकालने के कई तरीके है जो निम्न है।

क्षारीय विधि:-

इस विधि में टमाटर के पके फलों को तोडकर अथवा कुचल कर उसमे 300 ग्राम सोडियम कार्बोनेट तथा 400 मिली गर्म पानीया 300 ग्राम सोडियम कार्बोनेट को 4 लीटर गर्म पानी तथा समान मात्रा में टमाटर का गुदा किसी सीमेंट के टैंक में भरकर 18-24 घण्टे के लिये छोड दिया जाता है दूसरे दिन साफ पानी से धोकर बीज साफ करके छाया मे सुखा लेते हैं।

किण्वन विधि:-

इस विधि मे टमाटर के पके फलों को पैराें से कुचलकर बडे बडे सीमेंट के टैंको मे भर दिया जाता है। तथा टैंको मे ही एक दो दिन के लिये छोड दिया जाता है ग्रीष्मकाल मे इस क्रिया में कम समलगता है तथा शीतकाल मे अधिक समय लगता है। इस विधि में बीजो के उपर पाई जाने वाली झिल्ली आसानी से सड जाती है।

दुसरे तीसरे दिन साफ पानी से टमाटर के गुदे को धो दिया जाता है भारी होने के कारण बीज टैंक की सतह मे नीचे बैंठ जाता है जिन्हे आसानी से अलग किया जा सकता हैयह प्रक्रिया दो तीन बार साफ पानी से की जाती है। तत्पश्‍चात साफ किये गये बीज को बोरे अथवा जूट से बनी चटाई आदि डाल दिया जाता है।

उसके बाद चटाई को उठाकर छाया मे लगभग एकघण्टे सुखाया जाता है जब सम्पूर्ण पानी निकल जाये तो बीज को खुली धूप मे सुखाया जाता है।

अम्लीय विधि:-

इस विधि मे 5-6 मिली हाइड्रोक्लोरिक अम्ल प्रति किग़्रा ग़ूदे की दर से प्रयोग मे लाया जाता है, गुदे को 30 मिनट तक अम्ल केघोल में रखते है। इसके बाद बीज को साफ पानी से धोकर निकाल लेते है तथा छाया मे सुखाकर डिब्बो मे भर लेते हैयह सबसे तीव्र विधि है

बीज को सुखाना

टमाटर के बीज साफ पानी से धोने के बाद सूर्य के प्रकाश में अथवा ड्रायर में सुखा सकते है। बीज सुखाते समय प्रत्येक दिन बीज को हाथ से मसलते रहना चाहिए अन्यथा बीज एकत्र हो कर ढेलें कारूप ले लेता है साथ ही कभी-कभी उपयुक्त वातावरण मिलते ही उग भी जाता है। इसलिये प्रत्येकघण्टे के बाद एक दो दिन तक बीज को हाथ से मसल कर सूप की मदद से साफ करके हल्के बीजो को अलग कर दिया जाता है। तथा भारी बीजो को पॉलीथीन अथवा प्लास्टिक से बने पात्रो मे भर दिया जाता हैं बीज को बोराें में कभी नही भरना चाहिए ऐसा करने से बीज की अंकुर क्षमताघट जाती है। बीजो मे कीटनाशक व फंफूदनाशक दवा का अवश्‍य प्रयोग करना चाहिऐ।

बीज की पैदावार

यदि सभी कार्य समय से किये जाए तो औसतन 250-300 कुन्टल फल प्रति हैक्टेयर प्राप्त कर सकते है तथा 100-125 किग़्रा बीज की पैदावार प्राप्त की जा सकती है। प्रति किलोग्राम गोल फल वाली प्रजातियों से 8-10 गा्रम बीज तथा लम्बे फल वाली प्रजातियो से मात्र 3-4 ग्राम बीज प्रति किग़्रा प्राप्त होता है।

बीज का भण्डारण

टमाटर के बीज को नमी से बचाकर रखना बहुत ही आवश्‍यक है। विशेषकर वर्षा ऋतु मे नमी आ जाने के कारण बीज की गुणवता नष्ट हो जाती है। अत: बीज को अच्‍छी तरह सुखा लें और‍ नमी 8 प्रतिशत से अधिक नही रहनी चाहिए। पूर्णत सुखाकर बीज को पॉ‍लि‍थि‍न की थैलि‍यों मे भरकर रखा जाऐ तो दो वर्ष तक आसानी से रखा जा सकता है। यदि‍‍ बीज के अन्‍दर नमी को घटाकर 8 के स्‍थान पर 5 प्रति‍‍शत कर दि‍या जाए तथा भण्‍डारण का तापमान 21 से 20 0C रक्षा जाए तो बीज को 100 वर्ष तक से अ‍धि‍क समय तक के ‍लि‍ये सफलतापूर्वक रखा जा सकता है।


Authors

केसर मल चौधरी1,  ओमप्रकाश जितरवाल2, भंवर लाल चौधरी3 , रामावतार चौधरी4 , रामगोपाल दूदवाल5 व राम लाल जाट6

1 स्नातकोतर छात्र शस्य विज्ञान विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर, 2,4 स्नातकोतर छात्र, उद्यान विज्ञान विभाग, श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर, 3 स्नातकोतर छात्र, मृदा विज्ञान विभाग, श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर,  5 राजस्थान  कृषि अनुसंधान संस्थान दुर्गापुरा जयपुर, 6 वैज्ञानिक, भारतीय दलहन अनुसंधान संथान, कानपुर

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