सोयाबीन (ग्लाइसीन मैक्स) की प्रमुख किस्में और उनकी विशेषतायें

सोयाबीन एक दलहन कुल की मुख्य तिलहनी फसल है| इसमें 30-40 प्रतिशत प्रोटीन तथा 20-22 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है| यह भोजन और पशु आहार के लिए प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है| इसका वनस्पति तेल खाद्य व औधोगिक अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाता है|

सोयाबीन एक प्रमुख खरीफ फसल है, इसकी बुआई जून-जुलाई में और कटाई सितम्बर-अक्टूबर में की जाती है| राजस्थान में इसकी खेती झालावाड़, कोटा, बारां, चित्तौडगढ़ आदि जिलों में की जाती है|

सोयाबीन की प्रमुख किस्में और उनकी विशेषतायें:

राजस्थान में उगाई जाने वाली सोयाबीन की विभिन्न किस्में जो सोयाबीन के उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है, निम्न प्रकार है -

1. पी. के. 472:

यह मध्यम आकार के पीले दानों वाली, मध्यम ऊँचाई (40 से. मी.) की किस्म हैं| सिंचित अवस्था में इस किस्म में 60-65 दिन में फूल आ जाते हैं और 100-115 दिन में फसल पककर तैयार हो जाती हैं|

इसकी औसत उपज असिंचित क्षेत्रों में 9-10 तथा सिंचित क्षेत्रों में 20-25 क्विंटल प्रति हैक्टर होती हैं

2. एन. आर. सी. 37:

इस किस्म के दानें पीले व उत्तम अंकुरण क्षमता वाले होते है तथा इसकी फलियों और पत्तियों पर सलेटी रंग के रोयें पाए जाते हैं| यह मध्यम ऊँचाई की 90-95 दिन में पकने वाली किस्म है|

यह जीवाणु पत्ती धब्बा, विषाणु व अन्य रोगों तथा गर्डल बीटल और अन्य पत्ती खाने वाले कीटों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी हैं| इसमें तेल की औसत मात्रा 17-18 प्रतिशत पाई जाती है और इसकी औसत उपज 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर होती हैं|

3. जे. एस. 335:

इस किस्म का दाना मध्यम आकार का काली नाभिका वाला पीले रंग का होता हैं| इसके फूल बैंगनी रंग के होते हैं तथा फलियां नहीं चटकती है| यह शीघ्र लगभग 95-100 दिन में पकने वाली किस्म हैं|

इसकी औसत उपज असिंचित क्षेत्रों में 15-20 तथा सिंचित क्षेत्रों में 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर होती हैं| यह उत्तम अंकुरण क्षमता वाली किस्म है| यह जीवाणु पत्ती धब्बा व अंगमारी रोगों के लिए प्रतिरोधी तथा मौजेक व तना मक्खी के लिए सहनशील हैं|

4. एम. ए. सी. एस. 450:

यह छोटे व पीले दानों वाली मध्यम ऊँचाई की शीघ्र पकने वाली (लगभग 95-100 दिन) किस्म हैं| इसकी औसत पैदावार 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर होती हैं| यह गर्डल बीटल और अन्य पत्ती खाने वाले कीटों के प्रति सहनशील हैं तथा जीवाणु पत्ती धब्बा व अन्य रोगों के लिए मध्यम प्रतिरोधी हैं|

5. जे. एस. 93-05:

मध्यम ऊँचाई, संकरी पत्तियां, बैंगनी पुष्प व हल्के पीले रंग के दानें इस किस्म की प्रमुख विशेषता है| यह शीघ्र लगभग 85 दिन में पकने वाली तथा 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत पैदावार देने वाली किस्म है| यह जीवाणु पत्ती धब्बा रोग के लिए सहनशील तथा पत्ती खाने वाले कीटों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी हैं|

6. प्रताप सोया-1:

यह हल्के पीले रंग के गोलाकार दानें, बैंगनी पुष्प, औसत ऊँचाई व अच्छी अंकुरण क्षमता वाली किस्म हैं| यह 90-95 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं तथा इसकी फलियां नही चटकती है| इसके बीजों में 18-20% तेल व 40-42% प्रोटीन पाई जाती है और इसकी औसत उपज 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर तक होती हैं|

यह गर्डल बीटल के लिए अत्यधिक प्रतिरोधी और तम्बाकू इल्ली व अन्य कीटो के प्रति मध्यम प्रतिरोधी हैं|

7. प्रताप सोया-2 (आर. के. एस. 18):

इस किस्म में तेल की मात्रा 18-20% तक पाई जाती है| यह अनुकूल वातावरण में 90-95 दिन में पक जाती है और 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत पैदावार देती है| यह गर्डल बीटल, तम्बाकू इल्ली और अन्य पत्ती खाने वाले कीटों तथा जीवाणु पत्ती धब्बा व अन्य रोगों के लिए मध्यम प्रतिरोधी हैं|

8. प्रताप सोया 45 (आर. के. एस. 24):

यह मध्यम आकार की किस्म है जिसके फूल सफ़ेद, मोटी, चौड़ी व गहरे हरे रंग की पत्तियां होती है और इनकी पत्तियों, फलियों व तने पर भूरे रंग के रोयें पाए जाते है| इसके दानें मध्यम आकार के गोल व हल्के पीले भूरे रंग की नाभिका वाले होते है| यह किस्म 95 से 98 दिन में पककर 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत उपज देती है| यह जीवाणु पत्ती धब्बा, पीत्त विषाणु व तना गलन रोग तथा गर्डल बीटल, तम्बाकू इल्ली, तना मक्खी व अन्य पत्ती खाने वाले कीटों के प्रति सहनशील हैं|

9. प्रताप राज 24 (आर. के. एस. 24):

मध्यम ऊँचाई, हल्के पीले रंग के दानें, भूरी नाभिका, सफ़ेद फूल, गहरे हरे रंग की पत्तियां और तने व फलियों पर भूरे रंग के रोयें पाए जाना इस किस्म की मुख्य विशेषता हैं| यह 95-100 दिन में पकने वाली तथा अनुकूल परिस्थितियों में 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर पैदावार देती है|

इस किस्म में तेल की मात्रा 21.5% तक पाई जाती है| यह जीवाणु पत्ती धब्बा, पित्त विषाणु व तना गलन रोग तथा गर्डल बीटल, तम्बाकू इल्ली, सेमी लूपर व अन्य पत्ती खाने वाले कीटों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी हैं|

10. एम. ए. यू. एस. 81:

मध्यम ऊँचाई, हल्के पीले रंग के दानें, बैंगनी फूल और तने, पत्तियों व फलियों पर भूरे रंग के रोयें पाए जाना इस किस्म की मुख्य विशेषता हैं| यह 100-105 दिन में पकने वाली तथा अनुकूल परिस्थितियों में 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर पैदावार देती है| यह जीवाणु पत्ती धब्बा व मौजेक तथा गर्डल बीटल व अन्य पत्ती खाने वाले कीटों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी हैं|

11. जे. एस. 97-52:

मध्यम ऊँचाई की यह किस्म 98-102 दिन में पक जाती है और 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत पैदावार देती है| इस किस्मे के फूल सफ़ेद रंग के तथा हल्के काले रंग की नाभिका वाले दानें होते है| इसकी पत्तियां, तने व फलियों पर रोयें पाए जाते है|

यह किस्म विभिन्न रोगों जैसे मौजेक व जड़ गलन तथा अनेक कीटों जैसे तना छेदक व पत्ती भक्षक कीटों के लिए सहनशील होती है|

12. जे. एस. 95-60:

अधिक अंकुरण क्षमता वाली, मध्यम ऊँचाई की यह किस्म 85 से 88 दिन में पककर 20 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत पैदावार देती है| मोटा पीले रंग का दाना, हल्की भूरी नाभिका, रोयें रहित पत्तियां, तने व फलियां इस किस्म के मुख्य गुण है| यह किस्म विभिन्न बहुपर्णिय रोगो व जड़ गलन तथा अनेक कीटों जैसे पत्ती रसचुसक व पत्ती भक्षक कीटों के लिए सहनशील होती है|

13. जे. एस. 20-34:

इसके दानें पीले रंग के मध्यम आकार व काली नाभिका वाले होते है| मध्यम ऊँचाई वाली यह किस्म 85 से 90 दिन में पककर 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत उपज देती है| यह विभिन्न रोगों और कीटो के लिए सहनशील पाई गयी है|           

14. जे. एस. 20-29:

इस किस्म के फूल सफ़ेद व गहरे हरे रंग की पत्तियां होती है और इनकी पत्तियों, फलियों व तने पर पीले भूरे रंग के रोयें पाए जाते है| इसके दानें पीले, बड़े आकार के, गोल व काले रंग की नाभिका वाले होते है|

मध्यम ऊँचाई वाली यह किस्म 90-95 दिन में पककर तैयार हो जाती है और 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत उपज देती है|

15. आर. के. एस. 113:

मध्यम ऊँचाई की यह किस्म 98-102 दिन में पक जाती है और 22-25 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत उपज देती है| इस किस्म में तेल की मात्रा 18-19% तक पायी जाती है| इस किस्मे के फूल बैंगनी रंग के तथा पीले, मध्यम आकार के व हल्के भूरे रंग की नाभिका वाले दानें होते है|

इसके तने व फलियों पर भूरे रंग के रोयें पाए जाते है| यह किस्म विभिन्न रोगों जैसे मौजेक, रोली रोग, जीवाणु पत्ती धब्बा व जड़ गलन तथा अनेक कीटों जैसे तना मक्खी, चैंपा, पर्ण सुरंग, तना छेदक व पत्ती भक्षक कीटों के लिए सहनशील होती है|

16. जे. एस. 72-44:

यह किस्म 95 -105 दिन में पक जाती है और 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत उपज देती है| इसका पौधा सीधा व लम्बा होता है|

17. जे. एस. 90-41:

यह किस्म 90 -100 दिन में पक जाती है| इसके पुष्प बैंगनी रंग के होते है और यह 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत उपज देती है|

18. समृद्धि:

इस किस्मे के फूल बैंगनी रंग के तथा व हल्के भूरे रंग की नाभिका वाले पीले रंग के दानें होते है| यह 93 -100 दिन में पक जाती है और 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत पैदावार देती है|

19. अहिल्या 3:

इस किस्मे के फूल बैंगनी व पीले रंग के दानें होते है| यह 90 -99 दिन में पककर  25 से 35 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत पैदावार देती है| यह विभिन्न रोगों और कीटो के लिए प्रतिरोधी पाई गयी है|

20. अहिल्या 4: 

यह 100-105 दिन में पकने वाली किस्म है| इस किस्मे के फूल सफ़ेद व दानें पीले रंग के होते है| इससे औसत 20-25 क्विंटल प्रति हैक्टर पैदावार प्राप्त होती है|

21. इंदिरा सोया 9: बैंगनी फूल व पीले दानों वाली यह किस्म 110 से 115 दिन में पककर  22 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत पैदावार देती है|


Authors

राजवन्ती सारण

पादप प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग,

राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा, जयपुर-302018 (राजस्थान)

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