गेंहू की पछेती बुबाई में पैदावार बढ़ाने के लिए मिश्रित शाकनाशियों का उपयोग 

खरपतवार कृषि-पारिस्थितिक तंत्र में अवांछित पौंधें हैं जो सीमित संसाधनों के लिए फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं जिसके परिणामस्वरूप फसल पैदावार और किसानों की आय में कमी आती है। देर से बोए गए गेहूं में, मिश्रित प्रकार के खरपतवार के कारण गेंहू की उपज में 34.3 प्रतिशत तक की कमी पाई गई, जिससे नत्रजन, पासफोरस और पोटाश की क्रमश: 2.57, 0.43 और 1.27 प्रतिशत की हानि पाई गई है।

एक आंकलन के अनुसार खरपतवार नियंत्रण की औसतन लगत रु 6000 प्रति हेक्टेयर खरीफ ऋतु में और रु 4000 प्रति हेक्टेयर रबी ऋतु में आंकी गयी है जो कुल फसल लगत की लगभग 33 प्रतिशत और 22 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। इसलिए, एक कुशल खरपतवार प्रबंधन फसल पूरे फसल चक्र के दौरान सभी प्रकार के खरपतवारों को नियंत्रित करके तथा संसाधनों के समुचित उपयोग से, उत्पादन की लागत और खरपतवारों के द्वारा होने वाली हानियों को कम / नियंत्रित करके, उत्पादकता और किसानों की आय को बढ़ाया जा सकता है।

गेहूं से जुड़े खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए कई प्रकार के शाकनाशियों का उपयोग किया जाता है, लेकिन ये शाकनाशी जटिल खरपतवारों को नियंत्रित करने में बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं पाए गए हैं। इसलिए, गेहूं के खेतों में प्रबल और विविध प्रकार के खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण के लिए अकेले तथा मिश्रित उपयोग में होने वाले शाकनाशियों की प्रभावशालीता का मूल्यांकन करना आवश्यक है।

तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, देर से बोए गए गेंहू में खरपतवारों के द्वारा होने वाले उपज नुक्सान को कम करके, उत्पादकता को बढ़ाने के लिए एक परिक्षण किया गया।

प्रायोगिक क्षेत्र पूरी तरह से मिश्रित खरपतवारों से भरा हुआ था जिसमें एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री दोनों शामिल थे। कुल खरपतवारों में, द्विबीजपत्री खरपतवार (91%), एकबीजपत्री (9%) की तुलना में अधिक थे।

द्विबीजपत्री खरपतवारों में मुख्यतयाः मेलिलोटस इंडिका (45%), फ्यूमेरिया पार्वीफ्लोरा (15%), चीनोपोडियम एल्बम (9%), चीनोपोडियम मोरेल (6%), कॉन्वॉल्वुलूस आरवेंसिस (5%) और अन्य द्विबीजपत्री (11%) (एनागेलिस आर्वेन्सिस, स्पुरगुल्ला आर्वेन्सिस और कोरोनोपस डीडिमस) जैसी कई प्रजातियां शामिल थीं।

जबकि फैलारिस माइनर (9%) अकेला केवल एकबीजपत्री घास था। गेहूं की किस्म राज. 3765 परीक्षण फसल के रूप में इस्तेमाल की गई थी। दिसंबर के दूसरे सप्ताह में फसल बोई गई, जिसमें 125 किलोग्राम/है. की दर से बीज दोनों पंक्तियों के बीच 22.5 सेमी की दूरी पर बोया गया। फसल को 90 किलोग्राम नत्रजन और 35 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति है. यूरिया और डीएपी के माध्यम से आपूर्ति की गई थी।

नत्रजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय आधार मात्रा के रूप में दी गई, जबकि नत्रजन की शेष बची हुई आधी मात्रा पहले और दूसरी सिंचाई के समय दो बराबर भागो में दी गयी। सभी शाकनाशियों का छिड़काव फ्लैट फैन नोजल लगे बैटरी संचालित नैपसैक स्प्रेयर की मदद से 500 ली. प्रति है. के साथ किया गया।

विभिन्न फसल अंतराल पर फसलों और खरपतवार मानकों का अवलोकन किए गया। क्वाड्रेट (0.25 वर्ग मीटर) की सहायता से प्रत्येक उपचार में खरपतवार के घनत्व और सूखे पदार्थों पर आंकड़े दर्ज किए गए।

शाकनाशी और उनके मिश्रण का प्रभाव

खरपतवार घनत्व और शुष्क पदार्थ संचय

विभन्न खरपतवार नियंत्रण उपचारों के उपयोग ने सार्थक रूप से एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री के घनत्व और शुष्क पदार्थ की मात्रा को काफी कम कर दिया।

खरपतवारों की संख्या और सूखे पदार्थ की मात्रा में प्रतिशत कमी एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री दोनों के लिए भिन्न थी जो क्रमशः 16.6 से 87.7 और 8.1 से 92.8 प्रतिशत एकबीजपत्री के लिए तथा 48.2 से 92.8 और 57.5 से 97.0 प्रतिशत द्विबीजपत्री के लिए थी।

खरपतवारों की कुल संख्या तथा सूखे पदार्थ की मात्रा में सबसे ज्यादा कमी निंदाई में देखी गई जबकि इनके उच्चतम आंकड़े अनियंत्रित नियंत्रण में पाये गये।

शाकनाशियों के बीच, घनत्व और शुष्क पदार्थ में सबसे ज्यादा प्रतिशत कमी सल्फोसल्फुरोन + मेटसल्फुरोन (90.0 और 95.3) के मिश्रित अनुप्रयोग में पाई गई। इसके बाद मिसोंसल्फुरोन + आयडोसल्फुरोन (88.8 और 94.7) में। जबकि एक अकेले शाकनाशी के छिड़काव का उपयोग संतोषजनक नहीं पाया गया ।

उपज और आर्थिक विश्लेषण

परिणाम दर्शाते है कि निंदाई में उच्चतम अनाज उपज (4.50 टन प्रति है.) दर्ज की गई जबकि शाकनाशियों में सबसे ज्यादा उपज सल्फोसल्फुरोन + मेटसल्फुरोन (4.41 टन प्रति है.) और मिसोंसल्फुरोन + आयडोसल्फुरोन (4.37 टन प्रति है.) के टैंक मिश्रित छिड़काव में आंकी गई जिसके फलस्वरूप उच्च शुद्ध लाभ (रु 63827 और 63226 प्रति है.) और लाभ-लगत अनुपात (2.34 और 2.32) प्राप्त हुआ।

इसके विपरीत अनियंत्रित नियंत्रण में सबसे कम उपज (3.28 टन प्रति है.), शुद्ध लाभ और लाभ-लगत अनुपात आँका गया। आंकड़े स्पष्ट करते है कि शाकनाशियों के सामूहिक अनुप्रयोग चाहे वह पूर्व मिश्रित हो या टैंक मिश्रित या अनुक्रमिक रूप से, गेंहू की उपज में सार्थक वृद्धि दर्ज की गई।

विभिन्न उपचारों के माध्यम से खरपतवार आक्रमण को कम करके, पोषक तत्वों कि उपलब्धता फसल को बढ़ाती है जिससे फसल ज्यादा मात्रा में पोषक तत्वों का दोहन करके शुष्क पदार्थ के संचय को बढ़ाती है जो अधिक से अधिक उपज पैदा करने में सहायक होती है। जबकि एक अकेले शाकनाशी का छिड़काव उसके संयुक्त छिड़काव की तुलना में खरपतवार को नियंत्रित करने में कम प्रभावशील अथवा निम्न रहा।

शाकनाशी विषाक्तता के दृष्टिय लक्षण

गेंहू के पोंधो में शाकनाशी छिड़काव के 21 दिन बाद किसी भी उपचार में क्षति अथवा हानि या पीलापन या विषाक्तता का कोई लक्षण नहीं देखा गया।

निष्कर्ष

गेंहू की पछेती बुबाई में सल्फोसल्फुरोन + मेटसल्फुरोन और मिसोसल्फुरोन + आयडोसल्फुरोन के टैंक मिश्रण उपयोग से कुल खरपतवारों के घनत्व में (90.0 और 88.8 प्रतिशत) और शुष्क पदार्थ में (95.4 और 94.7 प्रतिशत) की अधिकतम कमी पाई गई। इन दोनों उपचारों में अधिकतम 34.3 और 33.3 प्रतिशत की अनाज उपज वृद्धि दर्ज की गई और उच्चतम शुद्ध लाभ (रु 63827 और 63226 प्रति हेक्टेयर) और लाभ-लागत अनुपात (2.34 और 2.32) प्राप्त हुआ।

इसके अलावा, किसी भी शाकनाशी उपचार में शाकनाशी डालने के 21 दिन बाद तक फसल में विषाक्तता का कोई लक्षण नहीं देखा गया।

शोध परिणामों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि देर से बोए गए गेहूं में जटिल खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण के लिए सल्फोसल्फुरोन + मेटसल्फुरोन (30 + 2 ग्राम/है.) अथवा मिसोंसल्फुरोन + आयडोसल्फुरोन (12 + 2.4 ग्राम/है.) का छिड़काव गेंहू बोने के 5 सप्ताह बाद अधिक उपज प्राप्त करने के लिए किया जाना चाहिए।


Authors:

वासुदेव मीणा, एम के कौशिक1,एम एल दौतानिया2, बी पी मीणा, एच दास, जे के साहा एवं ऐ के पात्रा

वैज्ञानिक, भा.कृ.अनु.प.-आई आई एस एस, भोपाल-462 038 (म.प्र.)

1आचार्य,सस्य विज्ञान विभाग,राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, उदयपुर-313 001 (राज.)

2वैज्ञानिक, भा.कृ.अनु.प.-डी आर एम आर, भरतपुर-462 038 ( राज.)

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