Causes of mysterious dwarfism in paddy and its adverse effect on production

धान, खरीफ मौसम में उगाए जाने वाले मुख्य खाद्यान्नों में से एक है, जिसकी बुवाई जून-जुलाई में होती है और अक्टूबर में कटाई होती है। डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में 2022 में धान का रकबा 13.27 प्रतिशत कम है, जबकि देश के अधिकांश हिस्सों में धान की बुवाई जुलाई के अंत तक पूरी हो गई थी।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 29 जुलाई, 2022 तक लगभग 23.15 मिलियन हेक्टेयर (mha) धान बोया गया था, जो इसी अवधि के दौरान 2021 में बोए गये धान के रकबे की तुलना में 3.55 मिलियन हेक्टेयर कम है।

2022 के लिए धान का लक्ष्य क्षेत्र 41.31 मिलियन हेक्टेयर अधिक था। कम बुवाई क्षेत्र का प्राथमिक कारण, जून के महीने में मानसून की विफलता और देश के अधिकांश हिस्सों में जुलाई में इसकी सुचारू प्रगति है। भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, कुल मिलाकर, मानसून 31 जुलाई तक आठ प्रतिशत 'सामान्य से ऊपर' रहा है।

इस से पहले की किसान बारिश की मार से ऊपर उठ पाते, धान उत्पादको को, धान में रहस्यमयी बौनापन की समस्या का सामना करना पड़ा और यह समस्या पंजाब और हरियाणा से आ रही  है, जो देश की हरित क्रांति का कटोरा है।

हरियाणा में सोनीपत, पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला और यमुनानगर जिलों में धान के बौने होने की सूचना मिली है। वही पंजाब सरकार के कृषि निदेशक के अनुसार, पठानकोट, होशियारपुर, नवांशहर, रोपड़, फतेहगढ़ साहिब, मोहाली, पटियाला और लुधियाना के कुछ हिस्सों सहित कई जिलों में भी इसे देखा गया है।

बासमती धान में बौने होने की समस्या जुलाई के प्रथम सप्ताह में हरियाणा के पानीपत जिले की मतलोडा तहसील के एक खेत में सामने आई। किसानो से यह भी पता चला है की बासमती धान के पौधे आमतौर पर रोपाई या सीधी बुवाई के बाद 70 से 75 सेमी की ऊंचाई तक पहुंच जाते हैं, लकिन संक्रमित खेतों में बौने पौधे, एक महीने के बाद भी सामान्य ऊंचाई के 33 से 60 प्रतिशत ही रह गए।

इस समस्या के बारे में किसानो ने पास के कृषि विज्ञान केंद्र और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के शोधकर्ताओं को सूचित किया। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम ने होशियारपुर, रोपड़, मोहाली, लुधियाना, श्री फतेहगढ़ साहिब और पटियाला जिलों के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया ताकि चावल में इन पौधों के रुकने के कारण को व्यवस्थित रूप से समझा जा सके।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की एक टीम ने हरियाणा के सोनीपत, पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला और यमुनानगर जिलों में कुल 24 क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया। जिन खेतों में रोग दर्ज किया गया था, वहां संक्रमित पौधे 2-10 प्रतिशत तक मिले।

पीड़ित किसानों से पता चला है कि, धान की लगभग सभी किस्मों में रहस्यमय बीमारी की सूचना मिली थी, लेकिन पूसा 44, पीआर 121, पीआर 113, पीआर 114, पीआर 128 और एनडीआर 359 की अधिक उपज देने वाली पार्श्व परमल चावल की किस्में सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

धान के बौनापन के कारण अंतत: पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पता लगाया जो कि 'दक्षिणी चावल ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस' (SRBSDV) है, जिसका नाम दक्षिणी चीन के नाम पर रखा गया था, जहां यह वायरस पहली बार 2001 में खोजा गया था।

यह भी देखा गया की अगेती बोई गई धान की फसलों में बौनेपन की समस्या अधिक स्पष्ट थीं, चाहे वे किसी भी किस्म की हों। वैज्ञानिको  के अनुसार, SRBSDV सफेद पीठ वाला तेला (WBPH) द्वारा फैलता है, जो ज्यादातर नए पौधों से रस चूसते समय वायरस को इंजेक्ट करता है।

इस बीच, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम ने बौनेपन की गंभीरता का अध्ययन करने के लिए पौधों के नमूने एकत्र करके उन्हें डीएनए अनुक्रमण के लिए भेजा गया है और माइकोप्लाज्मा (बिना कोशिका भित्ति वाले बैक्टीरिया), वायरस या समस्या के किसी अन्य संभावित कारण की उपस्थिति के लिए विश्लेषण किया गया।

संस्थान ने तीन स्वतंत्र तरीकों: ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी, आरटी-पीसीआर और रीयल-टाइम क्वांटिटेटिव पीसीआर का उपयोग करके रहस्य "बौना" बीमारी के कारण का निदान करने के लिए एक व्यापक जांच की। केंद्रीय कृषि मंत्रालय को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की टीम ने कहा कि संक्रमित पौधों को आसानी से बाहर निकाला जा सकता है।

संस्थान की जांच में बासमती (पूसा-1962, 1718, 1121, 1509, 1847 और सीएसआर-30) और गैर-बासमती (पीआर-114, 130, 131, 136, पायनियर हाइब्रिड और एराइज स्विफ्ट गोल्ड)) दोनों चावल की 12 किस्मों में संक्रमण का पता चला है। सामान्य तौर पर, बासमती की तुलना में गैर-बासमती किस्में अधिक प्रभावित थीं।

वैज्ञानिकों ने बताया कि चावल के अलावा, SRBSDV विभिन्न खरपतवार प्रजातियों को भी संक्रमित करता है क्योंकि WBPH की निम्फ, वयस्कों की तुलना में वायरस को अधिक कुशलता से प्रसारित कर सकती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस वायरस का लंबी दूरी तक संचरण WBPH के माध्यम से हो सकता है जो आंधी और तेज संवहन हवाओं के साथ पलायन कर रहा है।

निदेशक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने यह भी बताया कि “संक्रमित पौधों और रोगवाहक कीट के शरीर दोनों में वायरस की उपस्थिति का पता चला था, जिसका आरएनए पृथक किया गया था। लेकिन संक्रमित पौधों से एकत्र किए गए बीजों में वायरस नहीं पाया गया। वायरस फ्लोएम (पौधे के ऊतकों के लिए विशिष्ट है जो चीनी और कार्बनिक पोषक तत्वों को पत्तियों से दूसरे भागों में ले जाते हैं) और बीज या अनाज द्वारा प्रेषित नहीं होते हैं।

यह पहली बार है जब इस तरह की बीमारी लगभग 30 प्रतिशत पौधों की वृद्धि को प्रभावित कर रही है। यहां तक ​​कि वे आवश्यक ऊंचाई प्राप्त करने से पहले ही मर गए, जबकि उसी खेत में शेष 70 प्रतिशत फसल स्वस्थ है। यह वायरस राज्य के धान उत्पादकों के लिए झटके के रूप में आया है क्योंकि उन्हें नुकसान को कम करने के लिए एक समृद्ध फसल की आवश्यकता थी, जो उन्हें रबी के मौसम में गेहूं की उपज में गिरावट के कारण हुआ था।

यह देखते हुए कि वायरस विशेष रूप से सफेद पीठ वाले तेला द्वारा फैलता है, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने किसानों को कीट की उपस्थिति के लिए हर हफ्ते खेतों की निगरानी करने की सलाह दी है।

15 दिनों के अंतराल पर 'बुप्रोफेज़िन', 'एसिटामिप्रिड', 'डायनोटफ्यूरान' या 'फ्लोनिकमाइड', ‘ओशीन’, ‘टोकन’ कीटनाशकों की निर्धारित खुराक का छिड़काव करके कीट का प्रबंधन किया जा सकता है।

अंत में, पंजाब में वैज्ञानिकों ने कहा कि भविष्य में, किसानों को सलाह दी जाती है कि वे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सुझाई गई रोपाई की तारीखों का पालन करें क्योंकि शुरुआती रोपित फसलों में स्टंटिंग अधिक देखी गई थी। यह न केवल वायरल बीमारी के प्रबंधन में मदद करेगा बल्कि पानी की भी बचत करेगा।

केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अनुसार, केंद्र को उम्मीद है कि आगामी खरीफ विपणन सत्र (केएमएस) 2022-23 के दौरान खरीफ फसल चावल खरीद का आंकड़ा 518 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच जाएगा, चावल खरीद की अनुमानित मात्रा पिछले केएमएस 2021-22 (खरीफ फसल) के दौरान 509.82 एलएमटी की वास्तविक खरीद से थोड़ी अधिक होगी। लेकिन, चावल के उत्पादन को सीमित करने वाले कुछ कारक हैं।

प्रारंभिक अनुमान के अनुसार धान में बौनापन रोग से उपज में 30 प्रतिशत तक की हानि देखी जा सकती है। जलवायु परिवर्तन गेहूं और चावल पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं और इसके परिणामस्वरूप उनके उत्पादन में कमी आ सकती है।

प्रमुख चिंता का तथ्य यह है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस खरीफ फसल मौसम में चावल के साथ लगाए गए कुल क्षेत्रफल में लगभग 3.1 मिलियन हेक्टेयर (mh) की कमी आई है। ये सभी तथ्य, चावल के उच्च उत्पादन और खरीद के अनुमान को कम कर रहे हैं।


Authors:

रजनी गोदारा1, प्रशांत कौशिक2 और रिया कुंडू3

1पीएचडी स्कॉलर, 2साइंटिस्ट, 3एमएससी छात्रा, 

कृषि रसायन संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

New articles

Now online

We have 96 guests and no members online