Importance of Integrated Farming System

समन्वित कृषि प्रणाली, न्यूनतम प्रतिस्पर्धा और अधिकतम पूरकता के सिद्धान्त पर आधारित है और इसमें कृषि-अर्थशास्त्रीय प्रबन्धन के परिष्कृत नियमों का उपयोग करते हुए किसानों की आमदनी, पारिवारिक पोषण के स्तर और पारिस्थितिकीय प्रणाली सम्बन्धी सेवाओं का टिकाऊ और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल विकास करने का लक्ष्य रखा जाता है।

समन्वित कृषि प्रणाली कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने परिवार के लिये सन्तुलित पौष्टिक आहार जुटाने, पूरे साल आमदनी व रोजगार का इन्तजाम करने तथा मौसम और बाजार सम्बन्धी जोखिम कम करने में भी मदद मिलती है। इससे खेती में काम आने वाली वस्तुओं के लिये किसानों की बाजार पर निर्भरता भी कम होती है।

भारत में खाद्य और पौष्टिक आहार सुरक्षा सुनिश्चित करने की कुंजी छोटे किसानों (2 हेक्टेयर से कम) के पास है और ग्रामीण क्षेत्रों में खुशहाली लाने के लिये खेती की टिकाऊ प्रणालियों के साथ उन्हें सही दिशा में विकसित होने का मौका देना भी अत्यन्त आवश्यक है। समन्वित कृषि प्रणाली के अनिवार्य घटक मिट्टी की जीवन्तता को बनाए रखना और प्राकृतिक संसाधनों के कारगर प्रबन्धन से खेत को टिकाऊ आधार प्रदान करना। इसके अन्तर्गत महत्वपूर्ण निम्न प्रकार से हैं:.

कृषि आधान में आत्मनिर्भरता :

अपने लिये बीजों का अधिक-से-अधिक उत्पादन करना, अपने खेतों के लिये खुद कम्पोस्ट खाद बनाना, वर्मी कम्पोस्ट, वर्मीवॉश, तरल खाद और वनस्पतियों का रस बनाना। मवेशियों के साथ तालमेल: मवेशी कृषि प्रबन्धन के महत्त्वपूर्ण घटक हैं और उसे न केबल कई तरह के उत्पाद मिलते हैं बल्कि वे जमीन को उपजाऊ बनाने के लिये पर्याप्त मात्रा में गोबर और मूत्र भी प्रदान कराते हैं।

फिर से इस्तेमाल की जा सकने वाली ऊर्जा का उपयोग सौर ऊर्जा, बायोगैस और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल यंत्रों और उपकरणों का उपयोग।

परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना :

परिवार की भोजन, चारे, आहार, रेशे, ईंधन और उर्वरक जैसी बुनियादी जरूरतों को खेत-खलिहानों से ही टिकाऊ आधार पर अधिकतम सीमा तक पूरा करने के लिये विभिन्न घटकों में समन्वय और सृजन।

सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पूरे साल आय:

बाजार और सतत नगद आय को ध्यान में रखकर पर्याप्त उत्पादन करना और कृषि से सम्बन्धित मधुमक्खी पालन, मशरूम की खेती, खेत-खलिहान में ही प्रसंस्करण व मूल्य संवर्धन, दर्जीगिरी, कालीन बनाना आदि गतिविधियाँ संचालित करके परिवार के लिये पूरे साल आय का इन्तजाम करना ताकि परिवार की सामाजिक एवं नगदी जरूरतें जैसे, शिक्षा, स्वास्थ्य और विभिन्न सामाजिक गतिविधियां पूर्ण हो सके ।

भोजन और पौष्टिक आहार की घरेलू आवश्यकता पूरा करना तथा बाजार पर निर्भरता घटाना :

प्रत्येक कृषक परिवार को छह बातों में आत्मनिर्भर होना चाहिए जिनमें शामिल हैं खाद्यान्न, चारा, आहार, ईंधन, रेशा और उर्वरक विविधतापूर्ण कृषि प्रणाली में फसल + मवेशी + मछली पालन + बागवानी + मेड़ पर वृक्षारोपण शामिल रहते हैं। इनमें पौष्टिक आहार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये खेतों से ही पर्याप्त मात्रा में अनाज, दलहनों, तिलहनों, सब्जियों, फलों, दूध और मछली का उत्पादन होता है।

इसके अलावा, इस तरह के मॉडल मवेशियों के लिये पूरे साल पर्याप्त मात्रा में हरे चारे की उपलब्धता भी सुनिश्चित करते हैं ताकि उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहे। विभिन्न वस्तुओं के खेत में ही उत्पादन से बाजार पर निर्भरता तो कम होती ही है, पौष्टिक आहार की जरूरत पूरा करने में भी मदद मिलती है जिससे परिवार को अतिरिक्त बचत होती है।

पुनर्चक्रण के जरिए जमीन की उर्वरता में सुधार:

अपशिष्ट पदार्थों का पुनर्चक्रण, कृषि प्रणालियों का अभिन्न अंग है। इससे पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के साथ-साथ बहुत से माइक्रोन्यूट्रिएंट्स भी खेतों में ही पुनर्चक्रण के माध्यम से उत्पन्न किये जा सकते हैं।

संसाधनों का विविध उपयोग:

कृषि प्रणाली की उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के लिये भूमि और जल जैसे संसाधनों का विविधतापूर्ण उपयोग बेहद जरूरी है। विभिन्न उपयोगों की दृष्टि से पानी सबसे अच्छा उदाहरण है जिसे घरों में (नहाने-धोने) से लेकर खेतों में सिंचाई, डेयरी, पोल्ट्री, बत्तख पालन और मछली पालन जैसी विभिन्न गतिविधियों में कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है।

छोटे और मझोले आकार के जलाशयों के पानी को आस-पास के इलाकों में कई तरह से काम में लाया जा सकता है जिससे छोट काश्तकारों की आमदनी बढ़ाने, उनके पौष्टिक आहार के स्तर में सुधार और रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

जोखिमों में कमी:

समन्वित कृषि प्रणाली दृष्टिकोण अपनाने से खेती के जोखिमों को कम करने, खासतौर पर बाजार में मंदी और प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न खतरों से बचाव में भी मदद मिलती है। एक ही बार में कई घटकों के से एक या दो फसलों के खराब हो जाने का परिवार की आर्थिक स्थिति पर कोई खास असर नहीं पड़ता।

इसके अलावा, इससे मौसम सम्बन्धी जोखिमों से भी बचाव होता है। समन्वित कृषि प्रणाली को अपनाकार किसान अपनी खेती को लाभदायक, रोजगारपरक तथा टिकाउ बना सकते हैं। यह पर्यावरण को भी संतुलित करने में सहायक हैं।

कृषि के साथ रोजगार के अवसर:

खेती के साथ अन्य गतिविधियों को अपनाने से मजदूरी की माँग उत्पन्न होती है जिससे पूरे साल परिवार के सदस्यों को काम मिलता है और उन्हें खाली नहीं बैठे रहना पड़ता पुष्प उत्पादन, मधुमक्खी पालन और प्रसंस्करण से भी परिवार को अतिरिक्त रोजगार प्राप्त होता है।


Authors

मनीष राज*, सरिता, सुशांत

बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर 

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