चारा फसल जायद बाजरा की वैज्ञानिक खेती

बाजरा शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रमुख अनाजवर्गीय फसल है| इसकी खेती गर्मी और वर्षा ऋतू दोनों में की जाती है| यह अन्य चारा फसलो की अपेक्षा शीघ्रता से बढने वाली रोग निरोधक तथा अधिक कल्ले फूटने वाली चारे की फसल है। हरे चारे के लिए इससे कई कटाई ली जा सकती है| यह घनी पत्तीदार व सुकोमल होती है तथा इसका चारा स्वादिष्ट व पौष्टिक होता है|

इसके चारे में प्रूसिक अम्ल नहीं होता है तथा ओक्सेलिक अम्ल भी कम होता है, इस वजह से गर्मियों में पशुओ के लिए यह अधिक सुरक्षित चारा रहता है| खरीफ के अलावा जायद में भी बाजरा की खेती सफलतापूर्व की जाने लगी है, क्योंकि जायद में बाजरा के लिए अनुकूल वातावरण जहॉ इसके दाने के रूप में उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है वहीं चारे के लिए भी इसकी खेती की जा रही है।

यह अकेले अथवा दलहनी फसलों के साथ मिलाकर इसकी खेती की जाती है। बाजरे की फसल से अधिक व गुणवत्तापूर्ण चारा उत्पादन हेतु किसान भाइयो को निम्न पहलू ध्यान में रखने चाहिए-

भूमि का चुनाव व तैयारी:

बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए अच्छी है। यह हल्की भूमि से भी भली प्रकार पैदा हो जाती है। भली भॉति समतल व जीवांश वाली भूमि में बाजरा की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। अम्लीय व लवणीय भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही रहती|

पलेवा करने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 10–12 सेमी. गहरी एक जुताई तथा उसके बाद कल्टीवेटर या देशी हल से 2-3 जुताइयॉ करके पाटा लगाकर खेत की तैयारी कर लेनी चाहिए।

भूमि उपचार:

अंतिम जुताई के समय क्युनोल्फोस 1.5% चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से भूमि में मिलाने से दीमक व भूमिगत कीटों का प्रकोप कम होता है|

बीज व किस्मों का चुनाव:

चारे के लिए संकर बाजरा की द्वितीय पीढी के बीज का प्रयोग करना चाहिये। जायद में बुवाई के लिए जाइन्ट, राजको, राज बाजरा-1, राज बाजरा चरी, एल 72, एल 74 प्रमुख किस्मे है|

बीज की मात्रा व बीजोपचार:

चारे की फसल के लिए 12 किलोग्राम बीज एक हेक्टर के लिए पर्याप्त रहता है| मिश्रित बुवाई हेतु 12 किग्रा. बाजरे में 20 किग्रा. चंवला मिलाकर बुवाई करने से अच्छी गुणवत्ता वाला चारा मिलता है| बीजजनित रोगों से बचाव के लिए बीजो को 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से थायरम से उपचारित करे|

बुवाई का समय:

ग्रीष्मकालीन बाजरे की बुवाई मार्च- अप्रैल माह में पोरा विधि से करनी चाहिये।

खाद व उर्वरक:

बुवाई से 25-30 दिन पहले 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में डाले| 120 किग्रा. नत्रजन व 30 किग्रा. फास्फेट प्रति हेक्टयर की दर से व पोटाश की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर प्रयोग करना चाहिये। नत्रजन की एक तिहाई मात्रा बुवाई के समय तथा शेष आधा भाग दो बार में बराबर बराबर पहला प्रथम कटाई तथा दूसरा भाग द्वितीय कटाई के बाद नमी की दशा मे डालना चाहियें।

सिंचाई:

8-12 दिन के अन्तराल पर प्रायः 8-10 सिचाई की आवश्यकता पड़ती है।

कटाई व उपज:

कटाई फूल निकलने से पूर्व करनी चाहिये क्योंकि फूल आने के बाद चारे की पौष्टिकता कम हो जाती है| कटाई 10 सेमी. ऊपर से करनी चाहिए जिससे पुनर्वृध्दि अच्छी हो सके| बाजरे की दो से तीन या अधिक कटाइयां की जा सकती है। पहली कटाई बुवाई के 55-60 दिन बाद तथा अगली कटाई फूल निकलने से पूर्व तथा शेष कटाइयां 35-40 दिन के अन्तराल पर करनी  चाहिये।

हरे चारे की औसत उपज प्रथम कटाई से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर जबकि तीन कटाइयों से 600-700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है।


Authors:

राजवन्ती सारण

पादप प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग, राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा, जयपुर- 302018 (राजस्थान)

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