Bakanae disease of rice: Symptoms and Management
धान भारत की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक है। भारत विश्व में बासमती चावल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है। विश्व में उत्पादित कुल बासमती धान का लगभग 70% भारत में उत्पादन होता है। वित्त वर्ष 2024 में बासमती चावल ने निर्यात आय में 5073.18 करोड़ रुपये का योगदान दिया।
हाल के वर्षों में बकाने रोग धान किसानों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। यह रोग, धान की पैदावार को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा सकता है। यह रोग सभी बासमती किस्मों जैसे कि पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1718, पूसा बासमती-1728, पूसा बासमती-1692, पूसा बासमती-1847, पूसा-2511, CSR-30, देहरादून बासमती, और पाकिस्तानी बासमती आदि में उच्च मात्रा में देखा गया है। यह रोग पैदावार में लगभग 40% तक की हानि पहुँचा सकता है।
बकाने रोग मुख्य रूप से बीज जनित होता है। बकाने रोग, धान की फसल में फुजिकुरोई द्वारा उत्पन्न होता है। संक्रमित बीज जब नर्सरी में बोए जाते हैं, तो यह रोगजनक पूरे पौधे में तेजी से फैलता है और लक्षण अंकुरण से पहले के चरण में ही दिखाई देने लगते हैं। बकाने रोग को विभिन्न प्रकार के लक्षणों के लिए जाना जाता है, जिसमें बुवाई से लेकर कटाई तक विभिन्न प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं ।
लक्षण:
प्ररूपी लक्षणों में प्राथमिक पत्तियों का दुबर्ल हरिमाहीन तथा असमान्य रूप से लम्बा होना है । हालाँकि इस रोग से संक्रमित सभी पौधे इस प्रकार के लक्षण नही दर्शाते हैं क्योंकि संक्रमित कुछ पौधों में क्राउन विगलन भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप धान के पौधे छोटे या बौने रह जाते हैं।
फसल के परिपक्वता के समीप होने के समय संक्रमित पौधे, फसल के सामान्य स्तर से काफी ऊपर निकले हुए हल्के हरे रंग के ध्वज-पत्र युक्त लम्बी दौजियाँ दर्शाते हैं। संक्रमित पौधों में दौजियों की संख्या प्रायः कम होती है और कुछ हफ्तों के भीतर ही नीचे से ऊपर की और एक के बाद दूसरी सभी पत्तियाँ सूख जाती हैं।
कभी-कभी संक्रमित पौधे परिपक्व होने तक जीवित रहते हैं किन्तु उनकी बालियाँ खाली रह जाती है । संक्रमित पौधों के निचले भागों पर सफेद या गुलाबी कवक जाल वृद्धि भी देखी जा सकती है
प्रबंधनः
बीज उपचार
रोग में कमी लाने के लिए साफ-सुथरे रोगमुक्त बीजों का प्रयोग करना चाहिए जिन्हें विश्वसनीय बीज-उत्पादकों या अन्य विश्वसनीय स्रोतों से खरीदा जाना चाहिए। बीजोपचार अंकुरित बीजों और पौधों को मिट्टी और बीज जनित रोगजनकों से बचाता है, बीज अंकुरण में वृद्धि होती है तथा एक समान स्थापना और विकास में मदद करता है।
रोगजनक की सही और प्रारंभिक पहचान पौधों के रोग प्रबंधन की कुंजी है। भाकृअनुप -भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने रीयल टाइम पीसीआर आधारित बकाने परीक्षण किट "पूसा धान बकाने परीक्षण किट" विकसित की है।
- यह किट बीज परीक्षण, मिट्टी में रोगजनकों की उपस्थिति की जांच, तथा प्रतिरोधी किस्मों की पहचान हेतु उपयोग में लाई जा सकती है।
- बोए जाने वाले बीजों से भार में हलके एवं संक्रमित बीजों को अलग करने के लिए नमकीन पानी का प्रयोग किया जा सकता है। ताकि बीजजन्य निवेश द्रव्य को कम किया जा सके।
- इसके लिए 1 किलोग्राम नमक को 10 लीटर पानी में घोल लें ।
- अब लगभग 8 किलोग्राम बीज को पानी में डाल दें और इसे अच्छे से मिला लें, तैरते हुए बीज को बाल्टी से निकाल लें। तैरते हुए बीज अधिकतर वे बीज होते हैं जो अपरिपक्व, क्षतिग्रस्त और कीट/रोग संक्रमित होते हैं ।
- अच्छी तरह से परिपक्व और स्वस्थ बीजों को इकट्ठा करें, जो बाल्टी के तल पर बसे हों, और उन्हें साफ पानी से 2-3 बार धोना चाहिए ताकि नमक न रहे ।
- अब 10 लीटर साफ पानी में 20 ग्राम कार्बेन्डाजिम, 50% (डब्ल्यूपी) लें और इसे अच्छी तरह से मिलाएं और इसमें 8 किलो धुले हुए धान के बीज डालें और 24 घंटे के लिए छोड़ दें।
- अब जूट की बोरी में बीज का ढेर बनाकर उसमें पानी छिड़क दें, अंकुरण के बाद शाम के समय बीज बोयें।
- चावल में नमकीन घोल उपचार की चरणबद्ध प्रस्तुति: क) नमकीन घोल में बीज भिगोना; ख) अच्छी तरह मिलाना; ग) हल्के वजन के बीज तैरते हुए बीज ; घ ) तैरते बीजों को हटाना; च) स्वस्थ बीज
- धान के बीज को स्यूडोमोनास फ्लारेसेन्स अथवा ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुआई करें।
पौध उपचार
- रोपाई के समय 2 ग्रा/ली पानी की दर से कार्बेंडाजिम (50 % डब्ल्यू पी) से 12 घंटे पौध उपचारित करे। या
- रोपाई के समय 1 ग्रा/ली पानी की दर से टेबूकोनाज़ोल 50% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% W/W (75 WG) से 12 घंटे पौध उपचारित करे।
पौध छिड़काव
- बाली निकलने की प्रारंभिक अवस्था में तथा 50 प्रतिशत पुष्पीकरण होने पर 10 दिन के अंतराल में टेबूकोनाज़ोल 50% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% W/W (75 WG) या 2 ग्राम. /ली. पानी की दर से कार्बेन्डाजिम, 50% (डब्ल्यूपी) का छिड़काव उपयोगी होता है ।
खेत का प्रबंधन
- पिछली फसल के अवशेषों को खेत में न छोड़ें, उन्हें नष्ट करें।
- संतुलित खाद और जल प्रबंधन अपनाएं।
- बासमती धान में बकाने रोग के लक्षण: असमान्य रूप से लम्बे पौधे और सूखे पौधे
Authors:
विष्णु माया बस्याल
पादप रोग विज्ञान संभाग,
भाकृअनुप- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली-110012
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