बाकला की उन्नत खेती

बाकला (विसिया फाबा, एल) एक अल्प उपयोगी रबी मौसम की दलहनी फसल है जो फेवेसी कुल के अन्तर्गत  आती है। बाकला की खेती मुख्यतः मिश्र, सीरिया, चीन और अमेरिका की जाती है। भारत में इसकी खेती हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ जाती है।

भारतवर्ष में प्रतिदिन  दाल की आवश्यकता प्रति आदमी 200 ग्राम है जबकि दालों की उपलब्धता 42.9 ग्राम प्रति व्यक्ति है। इस प्रकार बहुत सारे भारतीय लोग संतुलित आहार से वंचित रह जाते हैं और प्रोटीन की कुपोषणता का शिकार हो जाते हैं। बाकला  के बीजों को दाल के रूप में प्रयोग किया जाता है इसमें प्रचुर मान्ना में कार्बोहाडड्रेट एवं प्रोटीन पाया जाता है तथा इसके हरे फलियों को सब्जियों के रूप में व्यहार में लाया जाता है जो पौष्टिक होने के साथ रेशा का अच्छा श्रोत्र् है।

सुखे हुए बीजों को बेसन बनाकर विभिन्न प्रकार के सब्जी भी बनाया जाता है। बाकला के पौधें को हरे चारे की तरह प्रयोग में लाया जाता है। दाल की बढ़ती माँग को देखते हुए किसान बाकला की खेती कर दाल की आर्पूिर्त कर सकते हैं इसमें 26 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है तथा इसकी खेती कम सिंचित वाले क्षेन्नों में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है।

बाकला की उन्नत खेती

इस फसल की खेती ठंढे जलवायु में की जाती है जिसके लिए 20-22 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त होती है तथा फसल पकने के समय शुष्क मौसम होना चाहिए।

तालिका 1. बाकला में विभिन्न पोषक तत्वों की मान्ना (प्रतिशत)

क्रम संख्या पोषक तत्व सुखा बीज हरी बीज अपरिपक्कव बीज
1 प्रोटीन 26.2 9.3 7.1
2 वसा 1.3 0.4 0.4
3 कार्बोहाडड्रेट 59.4 20.3 15.3
4 रेशा 6.8 3.8 3.2
5 खनिज 3.0 1.0 0.9
6 स्कार्विक अम्ल 0.17 0.03 0.14

                                 श्रोन्नः डयूक 1981

बाकला की अच्छी पैदावार लेने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। 

भूमि का चयन एवं खेतों की तैयारी

इस फसल की खेती के लिए उपजाऊ दोमट या हल्की चिकनी मिट्टी के साथ साथ अच्छी जल निकास वाली भूमि उपयुक्त होती है रेतीली, अम्लीय तथा क्षारीय भूमि पर इसकी खेती नहीं करना चाहिए। खेत की तैयारी के लिए 1-2 जुताई मिट्टी पलटने वाली हल से करने के बाद 10-12 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट प्रति हेक्टयर की दर से खेतों पर फैला दे उसके बाद 2-3 जुताई देशी हल से करें तथा प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य चला दे ताकि खेत समतल होने के साथ मिट्टी भुरभुरी हो जाय।

प्रभेदों का चयन: 

बाकला की खेती के लिए प्रभेदों का चयन एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। ऐसे मे प्रभेदो का क्रय किसी प्रतिष्ठित संस्थान से ही करना चाहिए।

उन्नत प्रभेद

विक्रांतः   यह अधिक उपज क्षमता वाली प्रभेद है। पौधे की लम्बाई 90-100 सें॰ मी॰, तना का रंग हरा, फूल सफेद तथा बीच में काला होता है, बीज का आकार गोल एंव चिकना होता है। यह प्रभेद  लगभग 125-130 दिनों में पक्कर तैयार हो जाता है।

बुआई का समय एवं दूरीः

इस फसल की बुआई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से नबम्वर के प्रथम सप्ताह तक की जाती है। बीजों की बुआई के समय पंक्ति से पंक्ति तथा पौधों से पौधों की दूरी 45 x 15 सें॰मी॰ रखते हैं इस प्रकार एक हेक्टयर  रोपाई के लिए 45-50 कि॰ग्रा॰ बीज की आवश्यकता पड़ती है। बीज की रोपाई से पहले 2-3 ग्राम थीरम या कार्बेन्डाजिम से प्रति कि॰ग्रा॰ बीज को उपचारित करना चाहिए। यदि खेत में रोपाई के समय नमी की मात्रा कम हो तो रोपाई के पश्चात् एक हल्की सिंचाई कर देनी चहिए।

खाद एवं उर्वरको का प्रबंधनः

बाकला एक दलहनी फसल है, अतः इसमें नाइट्रोजन की कम मात्रा लगती है। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए 40 किलोग्राम नेत्रजन, 60 किलोग्राम फाॅस्फोरस तथा 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डालना चाहिए। नेत्रजन की आधी मात्रा तथा फाॅस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय व्यवहार करना चाहिए। बचे हुए नेत्रजन की आधी मात्रा को रोपाई के  40-45 दिन बाद उपरिवेशन के रूप में व्यवहार में लाना चाहिए ।

सिंचाईः

पौधे की अच्छी बढवार के लिए आवश्यकतानुसार सिंचाइयां करनी चाहिए। फलियाॅ बनने से लेकर पकने तक 1-2 सिंचाई आवश्य करनी चाहिए तथा खेत में अधिक पानी जमा होने पर पानी का निकास करना चाहिए।

खरपतवार नियंन्नणः

पहली निकाई - गुड़ाई रोपाई के 20-25 दिनों बाद तथा दूसरी निकाई -गुड़ाई 40-45 दिनों बाद करने के बाद नेत्रजन की शेष आधी मान्ना का प्रयोग जङों पर मिट्टी चढाने के समय करना चाहिए।  

समन्वित कीट एवं रोग नियंन्नणः

बकला में साधारणतः कीट एवं रोगों का प्रकोप कम होता है। इसमें मुख्यतः एस्कोकाइटा, चिती रोग तथा जङ गलन रोग लगते हैं। इसके रोकथाम के लिए इण्डोफिल एम-45 की 2.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए साथ ही कीट एवं रोग नियंन्नण के लिए समन्वित कीट एवं रोग नियंन्नण प्रणाली को भी अपनाना चाहिए इसके लिए बहुत से उपाय हैं जैसेः-

फसल चक्र अपनाना चाहिए

हरी खाद का प्रयोग

प्रतिरोधि प्रभेदों का प्रयोग

फसल की कटाई एवं भंडारणः

फलियों के पूर्णं विकसित  होने पर समय- समय पर सब्जी के लिए तुङाई करते रहना चाहिए। इसके बीज जो दाल के लिए व्यहार में लाया जाता है, फलियों की तुङाई तब तक नहीं करना चाहिए जब तक सभी फलियाँ पूर्णंतः पकर काला नहीं हो जाय। इस प्रकार पके हुए फलियों की कटाई कर बीजों को अच्छी तरह सुखा कर 8-10 प्रतिशत नमी पर भंडारण कर लेना चाहिए।

उपज क्षमताः

बाकला के हरे फलियों की उपज 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है तथा सूखे बीजों की उपज लगभग 15-17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है।


Authors:

अनुज कुमार चौधरी

भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ -  854302

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