हरे चारे के लिए मोरिंगा (ड्रमस्टिक) एक स्थायी विकल्प 

मोरिंगा एक ऐसा पेड़ है जो हरे चारे की कमी को पूरा करने में अहम योगदान दे सकता है। मोरिंगा को लोकप्रिय रूप से ‘ड्रमस्टिक’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसकी फलियां ड्रमर द्वारा उपयोग की जाती हैं। इसे हिन्दी में सेहजन/सहजना कहते हैं। इस तेजी से बढ़ने वाले वृक्ष को पूरे उष्णकटिबंधीय इलाके में आसानी से स्थापित होने एवं बहुउद्देश्यीय उपयोग जैसे सब्जी, पशुधन चारा, दवा मूल्य, डाई, जल शुद्धिकरण आदि के कारण उगाया जाता है।

मोरिंगा की पत्तियों में बीटा केरोटीन, प्रोटीन, विटामिन सी, केल्शियम, मैग्नीशियम एवं लोहा प्रचूर मात्रा में उपस्थित होता है। चूंकि मोरिंगा प्रोटीन में समृद्ध है इसलिए इसे दुधारू जानवरों के पूरक चारे के रूप् में उपयोग में लाया जा सकता है।

पारंपरिक प्रोटीन पूरकों जैसे कि नारीयल खल, कपास खल, मूंगफली खल, तिल खल, सूरजमुखी की खल आदि की तुलना में इसकी पत्तियों में प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा इसकी पत्तियों में अनेक फफूंदी प्रजातियों के खिलाफ एंटीऑक्सीडेंट और एंटीमाईक्रावियल गुण होते हैं। मोरिंगा को बाड़, घेरे एवं बहुकट चारे के रूप में उगाया जा सकता है।

पोष्टिक महत्त्व-

पोषक तत्त्व जैसे p+, M, ca और Mg पशुधन की शारीरिक, चपाचय और जैव रासायनिक, संतुलन प्रक्रियाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पशु दुग्धस्त्रवण के दौरान रक्त में मैग्नीशियम की कमी से ग्रस्त रहते हैं जिसके फलस्वरूप दूध की पैदावार कम होती है। मोरिंगा की पत्तियों को अन्य चारे व धास के साथ मिलाकर प्रभावी तरीके से पशुओं की आहार और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।

बरसात के मौसम में 4 से 6 सप्ताह के अंतराल पर 150 सेमी की ऊंचाई पर फसल कटाई, उच्चतम उपज देती है जबकि सूखे मौसम में मोरिंगा 12 सप्ताह के फसल अंतराल एवं 100 सेमी की ऊंचाई से कटाई के साथ उच्चतम उपज देता है।

मोरिंगा उत्पादन हेतु उपयुक्त क्षेत्र-

मोरिंगा शुष्क भूमि में कृषिवानिकी, सामाजिकी वानिकी, चारागाह एवं अन्य समान प्रणाली के विकास के लिए एक अच्छी गुंजाइश प्रदान करता है। इस तरह की प्रणालियां न केवल गांव के लोगों के लिए भोजन, ईंधन और मवेशियों को चारा प्रदान करती है बल्कि पारिस्थितिक रखरखाव के लिए वनस्पति कवर भी बनाएं रखती हैं।

मोरिंगा कम रखरखाव एवं कम लागत आवश्यकताओं के साथ खाद्य कमी की अवधि के दौरान अपनी गुणवत्ता युक्त चारा प्रदान करने की क्षमता के कारण सभी जगह लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है।

मोरिंगा: उपयोग एवं उत्पादकता -

कृषिवानिकी  -

खेत की बाड़ के रूप में मेढ पर और सिंचाई नालों के पास लगाया जा सकता है। यह अपनी पर्णपाती प्रकृति और हल्के पर्णसमूह के कारण अन्य फसलों के उत्पादन को प्रभावित नहीं करता है। यह अपने फल और पत्तियों के लिए घरों या गांवों के पास एक उपयोगी पौधा है।

हरे फल एवं फलीयां -

दक्षिण भारतीय तरकारी सांभर का आवश्यक घटक है। इन्हें काटकर पाक की तैयारी और आचार में उपयोग किया जाता है। एक अच्छा पेड़ 30-35 किलो परिपक्व फली की उपज देता है।

फूल और निविदा पत्तियां -

टहनी और पत्तियां पशुओं के लिए मूल्यवान चारा प्रदान करते हैं। एक पेड़ लगभग 150 किलो चारे के लिए पत्तियों की उपज दे सकता है। पत्तियां विटामिन बी एवं सी में समृद्ध होती हैं, इसलिए स्कर्वी, बेरी बेरी और नजले में उपयोगी होती हैं। इन्हें एक वमनकारी औषध के रूप में भी काम में लिया जाता है। इसकी पत्तियों का पेस्ट घावों पर बाहरी रूप से लगाया जाता है। फूलों को शक्तिवर्धक पेय और मूत्रवर्धक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

बीज -

भूने हुए मोरिंगा के बीज मूंगफली जैसा स्वाद देते हैं। बीज से एक चिकना तेल प्राप्त होता है जिसे व्यापार में ‘बेन’ या बीहेन के नाम से जाना जाता है। खाद्य प्रयोजनों, जगमगाहट एवं सौंदर्य प्रसाधनों में तेल का स्थानीय रूप से उपयोग किया जाता है। बीजों को ज्वरनाशी औषधि एवं बीज के तेल को वात् रोग एवं गठिया में और सुखाए हुए बीज के चुरे को जलशुद्धिकरण के लिए उपयोग में लिया जाता है।

जड़ें -

जड़ों से एक प्रतिजैविक तेल प्राप्त होता है जो तीक्ष्ण (तेज), ऐंठन विरोधी एवं उत्तेजक होता है। लकड़ी नरम सफेद सांजी और जल्द खराब हो जाने वाली होती है। इसे शटल बनाने एवं कपड़ा उद्योग में काम आने वाली झड़ी बनाने के लिए उपयोग में लिया जाता है।

लकड़ी की लुगदी को अखबारी कागज बनाने के लिए उपयोग में लेते हैं। पेड़ से निकला सफेद गोंद ऑक्सीकरण होने पर लाल भूरा हो जाता है। यह पानी में फूलता है एवं एक चिपचिपा गाढ़ा विलयन बनाता है जिसे मुद्रण/छपाई में उपयोग किया जाता है।

जलवायु एवं मृृृदा -

मोरिंगा उपोष्णकटिबंधीय जलवायु का एक पेड़ है जो पूर्ण अधिकतम तापमान 38.40, न्यूनतम तापमान 1 से 30 और लगभग 750-2000 मिमी तक की वार्षिक वर्षा वाले स्थानों पर पाया जाता है। मोरिंगा के प्राकृतवास में बहुत गर्मी पड़ने के बाद अधिकांश बारिश मानसून के महीनों के दौरान ही प्राप्त होती है एवं शरद ऋतु और गर्मी के महीने आमतौर पर शुष्क होते हैं।

झाड़ीनुमा मोरिंगा विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर उग सकता है लेकिन पर्याप्त नमी आपूर्ति के साथ जलोढ़ रेतीली लाल मिट्टी या काली मिट्टी अच्छी तरह उपयुक्त होती है। 6-7.5 पीएच मान आदर्श है

बुवाई एवं रोपण -

मोरिंगा बीज और कलम के माध्यम से पुनरूत्पादित होता है। साफ बीजों को अलग करने के लिए मई जून माह में फलियों को संग्रह करके, धूप में सूखाने के बाद बीजों को निकाला जाता है। फिर बीजों को छाया में सूखाकर, वायुरूद्ध टिन के पात्रों में रख जाता है। मोरिंगा के 1 किलोग्राम भार में 8000-9000 तक बीज होते हैं।

मोरिंगा का बीज अच्छी तरह से संचित नहीं रह पाता है और भंडारण के पहले साल के दौरान ही अंकुरण क्षमता खो देता है। अतः हमेशा नये बीजों का ही प्रयोग करना चाहिए।

नर्सरी का रखरखाव -

नर्सरी में बुवाई जून में की जाती है। मिट्टी की अच्छी तरह खुदाई करके सिंचाई नालों के एकान्तर जलमग्न क्यारी बनाई जाती है। अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद को पूरी तरह नर्सरी की क्यारियों में बुवाई से पहले मिलाना चाहिए। बुवाई पंक्तियों 20 सेमी की दूरी पर एवं एक पंक्ति में दो बीजों के बीच 2 सेमी दूरी बरकरार रखते हुए की जाती है।

बीजों को 2 सेमी तक की गहराई पर बोया जाता है क्योंकि गहरी बुवाई अंकुरण में रूकावट एवं विलम्ब करती है। 30-35 ग्राम बीज 1 मी. वर्ग नर्सरी क्षेत्रफल के लिए पर्याप्त रहते हैं।

नर्सरी में क्यारी के अलावा गड्डों में भी बीज बोये जा सकते हैं। 45×45×45 सेमी माप के गड्डे 2.5×2.5 मी दूरी पर बुवाई के लिए खोदे जाते हैं। 15 किलो प्रति गड्डे के हिसाब से गोबर की खाद डालनी चाहिए। सिंचाई के लिए गड्डे के चारों ओर 60 सेमी गोलाकार जलकुंड बनाया जाता है। हर गड्डे के बीच में 2-2 बीजों को 2-3 सेमी गहराई पर बोते हैं।

इस तरीके से 1 हैक्टेयर के लिए 500 ग्राम बीजों की आवश्यकता रहती है। बीजों का अंकुरण 8-10 दिनों में शुरू हो जाता है और पूर्ण होने में लगभग चार सप्ताह का समय लेता है। ताजा बीज 60-70 : अंकुरण प्रदर्शित करते हैं अंकुरण पूर्ण होने पर पौध को 10 सेमी दूरी पर व्यवस्थित रखा जाता है। बीजों को पोलीथीन बैग में भी लगाया जा सकता है जिससे इन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में आसानी रहती है।

बीज के अलावा डाली की कटिंग को प्रजनन के लिए उपयोग में ले सकते हैं। कटिंग के माध्यम से प्रजनन आमतौर पर इसकी अच्छी गुल्मवन शक्ति के संदर्भ में किया जाता है। एक वर्ष पुराने तने को प्रजनन के लिए उपयोग में लिया जाता है। 1-1.35 मी लंबी तने की कटिंग जिसकी परिधि 10-15 सेमी हो, को उपयोग में लिया जाता है।

कटिंग को 1×1×1 मी आकार के गड्डों में उगाया जाता है एवं गड्डों की दूरी 3-5 मी रखी जाती है। कटिंग बनाने के लिए 1 साल के पौधे से 5 सेमी लंबी कली एवं 20 सेमी लंबी जड़ की कलम को उपयोग में लाना चाहिए। बुवाई के लिए जून जुलाई माह अनुकूल है।

पौधो की देखभाल -

पौधे सूखे के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं अतः इन्हें नियमित रूप से पानी उपलब्ध करवाना आवश्यक है। नवांकुर युवा पौधे ठंड, ब्राउजिंग एवं आग से होने वाले नुकसान के लिए संवेदनशील होते हैं।

पौधे की ज्यादा उगी हुई शाखाएं कटाई में कठिनाई का कारण बनती है इसलिए कटाई के समय छंटनी आवश्यक है और यह पौधे की 75 सेमी ऊंचाई पर करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरू पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है। यदि आवश्यक हो तो पौधे की 4 फिट की ऊंचाई पर एक बार फिर से छंटाई की जा सकती है।

खाद एवं उर्वरक -

मोरिंगा की अच्छी उपज के लिए गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। 1 वर्ष के पौधों को 75 किलो प्रति पौधे की दर से जैविक खाद डालनी चाहिए। जून माह (मानसून) के दौरान जैविक खाद को पौधों से 1 मी दूर खाईयां बनाकर डाल सकते हैं।

पौधो को खाद की पहली खुराक के रूप में 45 ग्राम नत्रजन, 16 ग्राम फास्फोरस एवं 30 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की दर से बुवाई के 3 महीने बाद देनी चाहिए जबकि खाद की दूसरी खुराक 6 माह बाद 45 ग्राम नत्रजन प्रति पौधे की दर से देनी चाहिए।

जल प्रबंधन -

मोरिंगा को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं रहती है। बहुत शुष्क परिस्थितियों में, पहले दो महीनों तक नियमित रूप से सिंचाई करनी चाहिए और उसके बाद अगर पानी की कमी लगे तो पानी देना चाहिए। अगर वर्ष भर लगातार बारिश होती है तो मोरिंगा भी लगातार उपज देता है।

चारे की कटाई-

दिसंबर जनवरी में पत्तियां पीली होने लगती हैं और गिर जाती हैं। जनवरी से अप्रैल तक कई झुंड में सफेद सुगंधित फूल दिखाई देते हैं जबकि पत्तियों की नई बहार फरवरी मार्च माह में दिखाई देती है। पत्तती के चारे के लिए अंगूठे की मोटाई तक की शाखाओं को मानसून अवधि के बाद पत्तियां गिरने से पहले काट दिया जाता है।

छंटाई और गुल्मवचन पत्तियों, फूलों और फलों की अच्छी फसल को प्रोत्साहित करती हैं। मोरिंगा की ताजा पत्तियों को पशु आहार के रूप में शामिल किया जा सकता है। मोरिंगा के चारे का बकरियों के खाद्य व्यवहार, भेड़ की वृद्धि दर एवं गायों के दूध उत्पादन पर संकारात्मक प्रभाव देखा गया है।


Authors:

हरदेव राम  एंव राजेश कुमार मीना

भाकृअनुप-राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान, करनाल-132001

Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

New articles