मुँगफली का पौधाModern farming of Groundnut

भारत में दलहन, तिलहन, खाध्य व नकदी सभी प्रकार की फसलें उगायी जाती हैं | तिलहनी फसलों की खेती में सरसों, तिल, सोयाबीन व मूँगफली आदि प्रमुख हैं | मूँगफली गुजरात के साथ साथ राजस्थान की भी प्रमुख तिलहनी फसल हैं |

राजस्थान में बीकानेर जिले के लूणकरनसर में अच्छी किस्म की मूँगफली का अच्छा उत्पादन होने के कारण इसे राजस्थान का राजकोट कहा जाता हैं। 

मूंगफली एक ऐसी फसल है जिसका कुल लेग्युमिनेसी होते हुये भी यह तिलहनी के रूप मे अपनी विशेष पहचान रखती है।

मूँगफली के दाने मे 48-50 % वसा और 22-28 % प्रोटीन तथा 26% तेल पाया जाता हैं | मूँगफली की खेती 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है।

 मूंगफली की खेती करने से भूमि की उर्वरता भी बढ़ती है। यदि किसान भाई मूंगफली की आधुनिक खेती करता है तो उससे किसान की भूमि सुधार के साथ किसान कि आर्थिक स्थिति भी सुधर जाती है।

मूंगफली का प्रयोग  तेल के रूप मे, कापडा उधोग एवम बटर बनाने मे किया जाता है जिससे किसान भाई अपनी आर्थिक स्थिति मे भी सुधार कर सकते है।  मूंगफली की आधुनिक खेती के लिए निम्न बातें ध्यान में रखना बहुत ही जरूरी हैं |  

groundnut crop field

मूंगफली की बीज दर, बुवाई का समय, एवम बुवाई हेतू दूरियां:-

किसान भाई को मूंगफली की बुवाई हेतू बीज की मात्रा 70-80 किग्रा./हे. रखना चाहिए यदि किसान भाई मूंगफली की बुवाई कुछ देरी से करना चाहता है तो बीज की मात्रा को 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ा लेना चाहिये |

मूंगफली की बुवाई का समय जून के दुसरे पखवाडे से जुलाई के आखरी पखवाडे तक होता हैं | मूंगफली के लिये पौधे से पौधे की दूरियां 10 सेमी तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरियां 30 सेमी रखते है |

peanut seedsमूंगफली की उन्नत किस्में:-

मूंगफली की टी.जी.-37, एच.एन.जी.-10, चन्द्रा, टी.बी.जी.-39, एम-13 व मल्लिका आदि अधिक उपज देने वाली किस्में है | एक बीघा क्षैत्र में एच.एन.जी.-10 का 20 किग्रा बीज (गुली) का प्रयोग करें | एम-13, चन्द्रा तथा मल्लिका आदि किस्मों के लिये 15 किग्रा बीज का प्रयोग करें| बीजाई के 15 दिन से पहले गुली नहीं निकालनी चाहिए |

उर्वरको  की मात्रा एवम देने का समय:-

मूंगफली की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उचित मात्रा में पोषक तत्वों को समय से देना चाहिये |

मूंगफली की फसल को प्रति हेक्टेयर 20 किलो नत्रजन, 30 किलो फास्फोरस, 45 किलो पोटाश, 200 किलो जिप्सम एवम 4 किलो बोरेक्स का प्रयोग करना चाहियें।

फास्फोरस की मात्रा की पूर्ति हेतु सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करना चाहियें।  नत्रजन, फास्फोरस एवम पोटाश की समस्त मात्रा एवं जिप्सम की आधी मात्रा बुवाई के समय देना चाहिये।

जिप्सम की शेष आधी मात्रा एवम्‌ बोरेक्स की समस्त मात्रा को बुवाई के लगभग 22-23 दिन बाद देना चाहिये |

मूंगफली में बीज उपचार:-

बीज की बुवाई करने से पहले बीज का उपाचार करना बहुत ही लाभकारी होता है। इसके लिए थाईरम 2 ग्राम  और काबेंडाजिम 50% धुलन चूर्ण के मिश्रण को 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहियें।

इस उपचार के बाद (लगभग 5-6 घन्टे ) अर्थात बुवाई से पहले मूंगफली के बीज को राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करना चाहिये | ऐसा करने के लिए राइजोबियम कल्चर का  एक पेकेट 10 किलो बीज को उपचारित करने के लिए पर्याप्त होता है |

कल्चर को बीज मे मिलाने के लिए आधा लीटर पानी मे 50 ग्राम गुड़ घोलकर इसमे 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर का पुरा पेकेट मिलाये इस मिश्रण को  10 किलो बीज के ऊपर छिड़कर कर हल्के हाथ से मिलाये, जिससे बीज के ऊपर एक हल्की परत बन जाए।

इस बीज को छांयां में 2-3 घंटे सुखने के लिए रख दें |  बुवाई प्रात: 10 बजे से पहले या शाम को 4 बजे के बाद करें। जिस खेत में पहले मूंगफली की खेती नहीं की गयी हो उस खेत मे मूंगफली की बुवाई से पुर्व बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लेना बहुत ही लाभकारी होता है |

मूंगफली की खेती में सिंचाई:-

मूंगफली की खेती में मुख्यता सिंचाई की कम जरुरत होती है फिर भी यदि वर्षा न हो तो दो सिंचाई जो कि पेगिंग (सुईयां) तथा फली बनते समय करनी चाहिये | मूंगफली में सुईयां लगभग 51 दिन बाद बनना शुरू होती हैं |

निड़ाईगुड़ाई व खरपतवार का नियंत्रण:-

मूंगफली की बुवाई के लग भग 15-20 दिन बाद पहली निड़ाईगुड़ाई तथा 30-35 दिन के बाद दुसरी निड़ाईगुड़ाई अवश्य करें | पेगिंग की अवस्था मे निड़ाईगुड़ाई नहीं करनी चाहिये |

रासायनिक विधि से खरपतवार की रोकथाम के लिए एलाक्लोर 50 ई.सी. की 4 लीटर दवा को 700-800 लीटर पानी में घोलकर एक हैक्टेयर में बुवाई के बाद एवम्‌  उगाव से पहले अर्थात बुवाई के 3-4 दिन बाद तक छिदकाव करना चाहियें।

मूंगफली की खुदाई  एवम भंडारण:-

मूंगफली की खुदाई प्राय: तब करे जब मूंगफली के छिलके के ऊपर नसें उभर आये तथा भीतरी भाग कत्थई रंग का हो जाये | खुदाई के बाद फलियो को अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें। यदि गीली मूंगफली का भंडारण किया जाता है तो मूंगफली फफूंद के कारण काले रंग की हो जाती है जो खाने एवम बीज हेतू अनुप्रयुक्त होती है।

कीड़ों की रोकथाम:-      

मूंगफली में सफेद गीडार, दीमक, हेयरी कैटरपिलर आदि मुख्य कीट काफी नुकसान पहुँचाते है जिनकी रोकथाम के लिए निम्न उपाय करें |

मूंगफली में सफेद गीडारसफेद गीडार की रोकथाम:-

मूंगफली में सफेद गीडार की रोकथाम के लिए मानसून के प्रारम्भ होते ही मोनोक्रोटोफोस 0.05%  का छिड्काव करना चाहिये।

बुवाई के 3-4 घंटे पुर्व क्युनालफोस 25 ई.सी. 25 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करके बुवाई करे।

खडी फसल में क्युनालफोस रसायन की 4 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करे।

दीमक की रोकथाम:-

दीमक की रोकथाम के लिए क्लोरपायरीफास  रसायन की 4 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करे।

मूंगफली में दीमकमूंगफली में हेयरी कैटरपिलर

 

हेयरी कैटरपिलर की रोकथाम:-

हेयरी कैटरपिलर कीट का प्रकोप लगभग 40-45 दिन बाद दिखाई पड़ता है, इस कीट की रोकथाम के लिये डाईक्लोरवास 76% ई.सी. दवा एक लीटर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से पर्णीय छिड़काव करें।

बीमारियों की रोकथाम:-

मूंगफली में कॉलर रोट, बड नेक्रोसिस तथा टिक्का रोग प्रमुख रोग है। जिनकी रोकथाम के लिए निम्न लिखित उपाय करें

मूंगफली में कॉलर रोट रोगमूंगफली में बड नेक्रोसिस रोगमूंगफली में पीलिया रोगमूंगफली में टिक्का रोग

कॉलर रोट:-

बीजाई के बाद सबसे ज्यादा नुकसान कॉलर रोट व जड़गलन द्वारा होता हैं | इस रोग से पौधे का निचला हिस्सा काला हो जाता है व बाद में पौधा सूख जाता है | सूखे भाग पर काली फफूंद दिखाई देती है |

इसकी रोकथाम के लिये बुवाई से 15 दिन पहले 1 किग्रा ट्राइकोड्रमा पाउडर प्रति बीघा की दर से 50-100 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर दें व बुवाई के समय भूमी में मिला दें | बुवाई के समय 10 ग्राम ट्राइकोड्रमा पाउडर प्रति किलो की दर से बीज उपचारित करें |

गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करके खुला छोड़ने से भी प्रकोप कम होता है | खड़ी फसल में जड़गलन की रोकथाम के लिये 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में मिलाकर ड्रेंच करें |

पीलिया रोग:-

बरसात शुरू होते समय फसल पीली होने लगती है व देखते ही देखते पुरा खेत पीला हो जाता है| यह रोग लौह तत्व की कमी से होता है | इसकी रोकथाम के लिये 75 ग्राम फेरस सल्फेट व 15 ग्राम साइट्रिक अम्ल प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें |   

बड नेक्रोसिस:-

इस रोग की रोकथाम के लिए किसान भाइयो को सालह दी जाती है कि जून के चौथे साप्ताह से पूर्व बुवाई ना करें। फिर भी अगर इस रोग का प्रकोप खेत में हो जाता है तो रसायन डाईमेथोएट 30 ई.सी. दवा  का एक लीटर एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

मूंगफली का टिक्का रोग:-

इस रोग के कारण पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं | इसकी रोकथाम के लिए खड़ी फसल में मैंकोज़ेब 2 किलोग्राम मात्रा का प्रति हैक्टेयर में 2-3 छिड्काव करना लाभकारी होता हैं|

 


लेखक

1रमेश कुमार साँप एवं 2डा. वीर सिंह

1विद्यावाचस्पति , 2आचार्य एवं विभागाध्यक्ष 

कीट विज्ञान विभाग , कृषि महाविद्यालय, बीकानेर, राजस्थान – 334006 

ईमेल: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

New articles