अरबी (Taro) की करे वैज्ञानिक पद्धति से खेती

Taro or Colocasia is also known by the names Ghuiya, Kochai, Colocasia esculenta, etc. It is cultivated in Kharif and Zaid seasons. Its vegetable is made like potato and bhaji and pakoras are made from its leaves. Itching ends when boiled. Tuber mainly consists of starch. Vitamin 'A' and calcium, phosphorus and iron are also found in Arabic leaves.

अरबी को घुईया, कोचई, Colocasia esculenta,  आदि नामों से भी जाना जाता है। इसकी खेती  खरीफ और जायद मौसम में की जाती है। इसकी सब्जी आलू की तरह बनाई जाती है तथा पत्तियों की भाजी और पकौड़े बनाए जाते हैं उबालने पर इसकी खुजलाहट समाप्त हो जाती है। कंद में प्रमुख रूप से स्टार्च होता है। अरबी की पत्तियों में विटामिन ‘ए‘ तथा कैल्शियम, फॉस्फोरस और आयरन भी पाया जाता है।

(अरबी का खाद्य मूल्य- प्रति 100 ग्राम)

पोषक तत्व  मात्रा
नमी 37.10 ग्राम
वसा 0.10 ग्राम
रेशा 1.00 ग्राम
खनिज पदार्थ 1.70 ग्राम
प्रोटीन 3.00 ग्राम
लोहा 1.70 मि.ग्रा.
पोटेशियम 555.0 मि.ग्रा.
थियामिन 0.9 मि.ग्रा.
कार्बोहाइड्रेट 21.10 ग्राम
विटामिन ‘ए’ 400.0 आई.यू.
केल्शियम 40.00 मि.ग्रा.
सोडियम 9.00 मि.ग्रा.


Cultivation of Taro or colocasia in hindiअरबी की फसल केे लि‍ए जलवायु

अरबी की फसल को गर्म तथा आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसलिए इसे ग्रीष्म एवं वर्षा दोनों ही मोसमो में सफलता पुर्वक उगाया जा सकता है।

अरबी की बुवाई के लिए पर्याप्त जीवांश वाली रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी रहती है। जिसमे कड़ी परत न हो साथ ही जल निकास की अच्छी पर्याप्त व्यवस्था हो।

अरबी के खेतों में पानी अधिक समय तक भरा रहने पर अरबी के पोधे सड़ने की सम्भावना अधिक रहती हें. अतः जल निकास की व्यवस्था होना आवश्यक है। खरीफ में अरबी की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। अच्छे उत्पादन हेतु वर्षां न होने पर 10-12 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।

अरबी बोने का समय व बोने की विधि

खरीफ में जून से 15 जुलाई और जायद में  फरवरी मार्च तक  बुवाई की जाती है। अरबी फसल की बुआई दो प्रकार से की जाती है।

समतल क्यारियों में बुआई- कतारों की आपसी दूरी 45 सें.मी. तथा पौधें की दूरी 30 सें.मी. और कंदों की 05 सें.मी. की गहराई पर बुवाई करनी चाहिए। 

मेड़ बनाकर बुआई - 45 सें.मी. की दूरी पर मेड़ बनाकर दोनों किनारों पर 30 सें.मी. की दूरी पर कंदों की बुवाई करें। बुवाई के बाद कंद को मिट्टी से अच्छी तरह ढंक देना चाहिए।

जहा पानी उचित मात्रा में उपलब्ध हो वहा पंक्ति व पोधे की दुरी कम की जा सकती हें जिससे प्रति हेक्टेयर अधिक कंद उत्पादन होगा।

अरबी के लिए भूमि की तैयारी

अरबी के लिए पर्याप्त जीवांश एवं उचित जल निकास युक्त रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। खेत की तैयारी के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से और तीन-चार बार देशी हल से जुताई करनी चाहिए।

खेत की तैयारी के समय 250 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति हैक्टेयर के हिसाब से अरबी बुवाई के 15-20 दिन पहले खेत में मिला देनी चाहिए। अरबी फसल की रोपाई के लिए मेड और नालियों में गड्डे खोदकर अथवा समतल भूमि करके खेत तैयार किया जाता है 

अरबी की उन्नत किस्में -

अरबी की किस्मों में पंचमुखी, सफेद गौरिया, सहस्रमुखी, सी-9, सलेक्शन प्रमुख हैं।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित इंदिरा अरबी - 1 किस्म छत्तीसगढ़ के लिए  अनुमोदित है , इसके अतिरिक्त नरेंद्र अरबी-1 अच्छे उत्पादन वाली किस्मे है।

अरबी बुआई के लि‍ए बीज की मात्रा एवं बीजोपचार

अरबी की बुवाई साल में दो बार फरवरी-मार्च तथा जून- जुलाई में की जाती है।  इसके लिए पर्याप्त जीवांश वाली रेतीली दोमट भमि अच्छी रहती है।  इसके लिए गहरी भूमि होनी चाहियें, ताकि इसके कंदों का समुचित विकास हो सकें। अरबी के लिए 8 - 10 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर उपयोग करें।

बोने से पहले कंदों को कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत या मेन्कोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 01 ग्राम प्रति लिटर पानी के घोल में 10 मिनट डुबोकर उपचारित कर बुवाई करना चाहिए।

अरबी में खाद एवं उर्वरक 

अरबी के लिए मृदा जाच के उपरांत खाद एवं उर्वरकों की संतुलित मात्रा का उपयोग करें. जिसमे पक्के गोबर की खाद 25-30 टन, नाइट्रोजन 100 किलोग्राम, फोस्फोरस 60 किलो, पोटाश 80 किलो, प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता रहती है।

गोबर की खाद को प्रथम जुताई से पूर्व खेत में समान रूप से फेलाकर जुताई करें ताकि खाद समान रूप से खेत में मिल जाये. नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फोस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय डालना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा दो बार में बुवाई के समय 35- 40 दिन और 70 दिन बाद खड़ी फसल में समान रूप से खेत में डालना चाहिए।

अरबी फसल में सिंचाई एवं निराई- गुड़ाई

जायद की फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती हें. गर्मियों में 6-7 दिन के अंतर में सिचाई करते रहना चाहिए। बरसात में प्रायः सिंचाई की आवश्यकता नही होती फिर भी खेत में नमी कम होने पर 15- 20 दिन पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। बरसात में जून या जुलाई के समय प्रथम सप्ताह तक कंदों पर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है।

जिससे कंदों का विकास अच्छा होगा। तने अधिक मात्रा में निकलने पर एक या दो मुख्य तनों को छोड़कर शेष तनो की कटाई करें। खरपतवारों को नष्ट करने के लिए कम से कम दो बार निदाइ-गुड़ाई करें तथा अच्छी पैदावार के लिए दो बार हल्की गुड़ाई जरूर करें।

पहली गुड़ाई बुवाई के 40 दिन बाद व दूसरी 60 दिन के बाद करें। फसल में एक बार मिट्टी चढ़ा दें। यदि तने अधिक मात्रा में निकल रहे हो, तो एक या दो मुख्य तनों को छोड़कर शेष सब की छंटाई कर देनी चाहिए।

अरबी में लगने वाले मुख्य रोग एवं कीट

लीफ ब्लाइट- फफूंद फाइटोफ्थोरा- पत्तों के किनारों पर बेंगनी- खाकी रंग के गोल धब्बे बना जाते है।फफूंद नाशक जेसे डाइथेन- एम-45 (0.2 प्रतिशत ) अथवा ब्लाइटोक्स 50(0.3 प्रतिशत ) के छिडकाव से रोकथाम की जा सकती है।

झुलसा रोग

झुलसा रोग से पत्तियों में काले-काले धब्बे हो जाते हैं। बाद में पत्तियां गलकर गिरने लगती हैं। इसका उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

इसकी रोकथाम के लिए 15-20 दिन के अंतर से डाईथेन एम-45, 2.5 ग्राम प्रति लिटर या कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत$मेन्कोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 2 ग्राम प्रति लिटर पानी के घोल का छिड़काव करते रहें। साथ ही फसल चक्र अपनाएं।

कीट नियंत्रण

इसमे मुख्यतः कद्दू के लाल भृंग अरबी लीफ हॉपर, शकरकंद हॉक मोथ व एफिड्स अरबी के मुख्य कीट है। रस चूसने वाले  किट जैसे माहों सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए मेटासिस्टोक्स या डायमेथोइट दवा को 1 एम.एल. प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।

सूंडी व मक्खी कीट -

अरबी की पत्तियों को खाने वाले कीड़ों सूंडी व मक्खी कीड़ों द्वारा हानि होती है क्योंकि यह कीडे नई पत्तियों को खा जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए प्रोफेनोफ्रांस 50 ई.सी. साइपरमेथ्रिन 3 प्रतिशत ई.सी. 01 मि.लि. प्रति लिटर या ट्रायजोफास 40 प्रतिशत ई.सी. 2 मि.लि. प्रति लिटर पानी का 500 लि प्रति है. घोल बनाकर छिड़काव करें।

स्केल कीट:  ये कीट रस चूसकर नुकसान पहुँचाते हैं जिसके फलस्वरूप उत्पादन में गिरावट आ जाती है। बुवाई के लिये रोग रहित प्रमाणित स्वस्थ कंद ही उपयोग में लाने चाहिये। सिकुड़े हुए या सूखे कन्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये।

मिलीबग एवं स्केल कीट के नियंत्रण हेतु बुवाई से पूर्व कंदों को डाईमिथियेट 30 ई सी 0.05 प्रतिशत के घोल से उपचारित करना चाहिये। इसके बाद कंदों को छाया में सुखाकर बुवाई के काम में लेना चाहिये।

अरबी की खुदाई एवं उपज -         

अरबी की खुदाई कंदों के आकार, प्रजाति, जलवायु और भूमि की उर्वराशक्ति पर निर्भर करती है। साधारणतः बुवाई के 130-140 दिन बाद जब पत्तियां सूख जाती हैं तब खुदाई करनी चाहिए।

उपज उन्नत तकनीक का खेती में समावेश करने पर 300-400 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त कर सकते हैं।

अरबी का भण्डारण

अरबी के कंदों को हवादार कमरे में फैलाकर रखें। जहां गर्मी न हो। इसे कुछ दिनों के अंतराल में पलटते रहना चाहिए। सड़े हुए कंदों को निकालते रहें और बाजार मूल्य अच्छा मिलने पर शीघ्र बिक्री कर दें।

Arbi or colocasia tuber vegetable


 Authors:

लव कुमार, राजश्री गाइन, इन्द्रपाल पैकरा, प्रफुल कुमार, पप्पू लाल बैरवा

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़

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