सरसों की उन्‍नत किस्में और उसकी वैज्ञानिक खेती 

सरसों रबी में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन फसल है। इसकी खेती सिचिंत एवं संरक्षित नमी द्वारा बारानी क्षेत्रों में की जाती हैl राजस्थान का देश के सरसों के उत्पादन में प्रमुख स्थान है।

सरसों की खेती मुख्‍यत: तेल के लि‍ए की जाती हैै जि‍से लहटा सरसों कहते है । सरसों का उत्‍पादन साग सब्‍जी व सलाद के लि‍ए भी कि‍या जाता है पत्‍ति‍यों के लि‍ए उगाई जाने वाली सरसों को गोभी सरसों या मीठी सरसों या जापानीज सरसों भी कहते है।  इसकी पत्तियां बड़ी-बड़ी मुलायम तथा स्वदिष्ट होती हैं जो कि बोने के 20 दिन के बाद मिलने लगती हैं ।

सरसों की उन्‍नत किस्मेें

किस्म

पकने की अवधि

(दि‍न)

औसत उपज 

(कुुं/है)

विशेषतायें
पूसा जय किसान 125-130 18-20 सफेद रोली उखटा व तुलासिता  रोग रोधी सिचिंत व असिंचिंत  बरनी क्षेत्रों के लिए उपयुक्तl
आशीर्वाद 125-130 16-18 देरी में बुवाई की जा सकती हैl सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्तl
आर एच - 30 130-135 18-20 दाने मोटे होते हैंl मोयला का प्रकोप कमl सिंचित व असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त l
पूसा बोल्ड 125-130 18-20 मोटे रोग कम लगते हैंl
लक्ष्मी (आरएच 8812 ) 135-140 20-22 फलियां पकने पर चटकती नहीं दाना मोटा और कालाl
क्रांति (पी आर 15) 125-130 16-18 तुलसिता व सफेद रोलीरोधक,दाना मोटा व कत्थई रंग का असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त l
आर एच 725  136-143  25-26 इस किस्म की फलियां लम्बी और इसमें दानों की संख्या अधिक होती है जिसके कारण अन्य उन्नत किस्मों की अपेक्षा इस किस्म की लगभग 22.6 प्रतिशत अधिक पैदावार है। इस किस्म का दाना आकार में बड़ा है जिसमें तेल की मात्रा लगभग 40 प्रतिशत होती है। यह कि‍स्‍म कम पानी में भी अधि‍क उत्‍पादन देने में समर्थ है।

सरसों उगाने के लि‍ए भूमि‍ 

भूमि व उसकी तैयारी भूमि व उसकी तैयारी सरसों की खेती के लिए दोमट व बलुए भूमि सर्वोतम रहती है l सरसों के लिए मिटटी भुरभुरी होनी चाहिए,क्योंकि सरसों का बीज छोटा होने के कारण अच्छी परक प्रकार तैयार की हुई भूमि में इसका जमाव अच्छा होता है l

पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करनी चाहिए इसके पश्चात एक क्रास जुताई हैरो से तथा एक कल्टीवेटर से जुताई कर पाटा लगा देना चाहिये 

सरसों बीज मात्रा  एवं बुआई समय

सरसों के लिए 4 से 5 किलो ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता हैl बारानी क्षेत्रों में सर्सो की बुआई 25 सितमबर से 15 अक्टूबर तथा सिंचाई क्षेत्रों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए l फसल की बुआई पंक्तियों में करनीचाहिएl पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 50 की दूरी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखनी चाहिये l सिंचित क्षेत्रों में फसल की बुआई पलेवा देकर करनी चाहिये l

सरसों मे खाद एवं उर्वरक

सरसों की फसल के लिए 8-10 टन गोबर की हुई या कम्पोस्ट खाद को बुआई से कम से कम तीन से चार सप्ताह पूर्व खेती में अच्छी प्रकार मिला देनी चहिए। इसके पश्चात मिट्टी की जाँच के अनुसार सिंचित फसल के लिए 60 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 40 किलो ग्राम फास्फोरस की पूर्ण मात्रा बुुवाई के समय देनी चाहियेl

नाइट्रोजन की शेष 30 किलो मात्रा को पहली सिंचाई के समय 65 किलो ग्राम यूरिया प्रति हेक्टयर के द्वारा छिड़क देनी चाहिएl इसके अतिरिक्त 40 किलो ग्राम गंधक चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से फसल जब 40 दिन की हो जाये तो देना चाहियेl

असिंचित  क्षेत्र में 40 किलो ग्राम नाइट्रोजन व 40 किलो ग्राम फास्फोरस को बुआई क समय 87 किलो ग्राम डी. ए.पी. व 54 किलो ग्राम यूरिआ द्वारा प्रति हेक्टयर की दर से होनी चाहियेl

सिंचाई

सरसों की खेती  के लिए 4-5 सिंचाई पर्याप्त होती हैl यदि पानी की कमी हो तो चार सिंचाई पहली  बुवाई के समय, दूसरी शाखाऐं बनते समय (बुवाई के 25-30 दिन बाद) तीसरी फूल प्रारम्भ होने के समय (45-50 दिन) तथा अंतिम सिंचाई फली बनते समय (70-80 दिन बाद) की जाती हैl

यदि पानी उपलब्ध हो तो सिंचाई दाना पकते समय बुवाई के 100-110 दिन बाद करनी लाभदायक होती हैl सिंचाई फव्वारे विधि दुबारा करनी चहियेl

फसल चक्र

फसल  चक्र का अधिक पैदावार प्राप्त करने, भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने तथा भूमि में कीड़े ,बीमारियों एवं खरपतवार काम करने में महत्पूर्ण योगदान होता है। सरसों की खेती के लिए पश्चिमी क्षेत्र में, मूंग - सरसों, ग्वार - सरसों, बाजरा - सरसों एक वर्षीय फसल चक्र तथा बाजरा - सरसों -मूंग / ग्वार  - सरसों दो वर्षीय फसल चक्र उपयोग में लिये जा सकते हैंl

बारानी क्षेत्रों में जहाँ केवल रबी में फसल ली जाती हो वहाँ सरसों के बाद चना उगाया जा सकता हैl

नि‍राई-गुड़ाई

सरसों की फसल में अनेक प्रकार के खरतपतवार जैसे गोयला, चील, मोरवा, प्याजी इत्यादि नुकसान पहुंचाते हैंl इनके नियंत्रण के लिए बुवाई के 25 से 30 दिन पश्चात कस्सी से गुड़ाई करनी चाहियेl इसके पश्चात दूसरी गुड़ाई 50 दिन बाद कर देनी चाहियेl

सरसों के साथ उगने वाले खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए बाजार में उपलब्ध पेंडीमेथालिन की 3 लीटर मात्रा बुवाई के 2 दिनों तक प्रयोग करनी चाहियेl सरसों की फसल में आग्या (ओरोबंकी) नामक परजीवी खरपतवार फसल के पौंधों की जड़ पर उगकर अपना भोजन प्राप्त करता हैl उसका नि‍यंत्रण अवश्‍य करना चाहि‍ऐ l

सरसों फसल में पादप सुरक्षा

पन्टेड बग व आरा मक्खी

यह किट फसल को अंकुरण के 7-10 दिनों में अधिक हानि पहुंचता हे इस किट की रोकथाम के लिए एन्डोसल्फान 4 प्रतिसत मिथाइल पैरा थियोन 2 प्रतिशत चूर्ण 20 से 25 किलो हेक्टेयर की दर भुरकाव करना चाहिये l

सरसों का मोयला

इस कीट का प्रकोप फसल में अधिकतर फूल आने के पश्चात मौसम में नमी व बादल होने पर होता हैl यह कीट हरे,काले,एवं पीले रंग का होता है पौधे के विभिन भागों पत्तियों,शाखाओं,फूलों एवं फलिओं का रस चूसकर नुकसान पहुंचता हैl

इस कीट को नियंत्रण करने के लिए फास्फोमीडोन 85 डब्लू.सी की250 मिली या इपीडाक्लोरप्रिड की 500 मिली या मेलाथियोनं 50 ई.सी.की1.25 लीटर पानी में घोल बनाकर एक सप्ताह के अंतराल पर दो छिड़काव करने चाहिएं l

बीज उत्पादन

सरसों का बीज बुवाई हेतु किसान स्वयं भी अपने खेत पर पैदा कर सकते हैंl केवल कुछ सावधानियां अपनाने की आवश्यकता हैंl बीज उत्पादन कर लिए ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिये,जिसमें पिछले वर्ष  सरसो खेती न की होl सरसों के चारों ओर 200 से 300 मीटर की दूरी तक सरसों की फसल नहीं होनी चाहियेl

सरसों की खेती के लिए प्रमुख कृषि क्रियाएं,फसल सुरक्षा,अवांछनीय पौधों को निकलना तथा उचित समय पर कटाई की जानी चाहियेl फसल की कटाई करते समय खेत को चारों ओर से 10 मीटर क्षेत्र छोड़ते हुए बीज के लिए लाटा काटकर अलग सुखाना चाहिये तथा दाना निकाल कर उस साफ करके ग्रेडिंग करना चाहिये।

दाने में नमी 8-9 प्रतिशत अधिक नहीं होनी चाहिये। बीज को कीट एवं कवकनाशी से उपचारित कर लोहे की टंकी या अच्छी किस्म के बोरों में भरकर सुरक्षित जगह भंडारित कर देना चाहियेl इस प्रकार उत्पादित बीज को किसान अगले वर्ष बुवाई के लिए प्रयोग कर सकते हैंl

कटाई एवं गहाई

फसल अधिक पकने पर फलियों के चटकने की आशंका बढ़ जाती हे अत: पौधों के पीले पड़ने एवं फलियां भूरि होने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिएl लाटे को सुखाकर थ्रेसर या डंडो से पीटकर दाने को अलग कर लिया जाता हे

उपज एवं आर्थिक लाभ

सरसों की उन्नत विधियों द्वारा खेती करने पर औसतन 20 कुतंंल प्रति हेक्टयर दाने की उपज प्राप्त हो जाती है तथा एक हेक्टेयर के लिए लगभग 25 हजार रूपये का खर्च आ जाता हैl यदि सरसों का भाव 30 रूपये प्रति किलो हो तो प्रति हेक्टयर लगभग 30 हजार रूपये का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है l


Authors:

संतरा हरितवाल (विद्यावाचस्पति छात्रl)

पादप प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग, एस. के. ऐन. कृषि महाविद्यालय, जोबनेर ( R.A.R.I)

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