पोपलर के साथ सहफसली खेती से किसानों को दोगुना मुनाफा

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां आज भी किसान खेती-किसानी से जुड़कर अपनी आजीविका (livelihood) चलते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से किसानों की आय को दोगुना करने की मुहिम में काफी तेज हो रही है।

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये किसानों को नई तकनीकों, नई फसलों, नवाचार और खेती के साथ-साथ पेड़-पौधे लगाने (Plantation Drive) के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिससे सीमांत एवं छोटे स्तर के किसानों का भी आर्थिक उत्थान हो सके।

खेत की बाउंड्री पर पेड़ लगाकर किसानों को ना सिर्फ फसलों का बेहतरीन उत्पादन मिल सकता है बल्कि यह किसानों के लिये फिक्स डिपोजिट की तरह काम करता है, जिसमें हानि की कम से कम संभावना रहती है अपितु एक समय के बाद किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है।

भारत में अभी पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल आदि में पेड़ों की बागवानी की जा रही है। यहां किसान पेड़ों की रोपाई करने के बाद बीच में खाली पड़ी जगह पर भी गेहूं, गन्ना, हल्दी, आलू, धनिया, टमाटर, शिमला मिर्च जैसी सब्जी एवं खाद्यान्न फसलों के साथ-साथ औषधीय फसलों की खेती करके अतिरिक्त आमदनी कमा रहे है।

वर्तमान समय में पोपलर (Poplar Tree), जिसकी बागवानी का प्रचलन निरंतर बढ़ रहा है। किसान खेती से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिये खेतों की बाउंड्री या फिर पूरे खेत में ही पोपलर के पेड़ लगा रहे है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि अलग से देखभाल तथा खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती है, बल्कि पेड़ों के बीच-बीच में अन्य फसलों की खेती (intercropping) करके काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते है।

कृषि फसलों में पेड़ उगाकर किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति एवं बिगड़ते पर्यावरण में भी सुधार ला सकते हैं। पौधे लगाकर 6 से 7 वर्ष में इनसे अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। सर्दियों में इसके पत्ते गिर जाने से रबी की फसलों को नुकसान कम होता है।

पोपलर का वृक्ष सीधा बढ़ता है, इसलिए इसकी छाया खरीफ फसलों को भी कम ही नुकसान करती है। पहले दो वर्षों में पोपलर के साथ रबी या खरीफ की सभी फसलें उगाई जा सकती है। तीसरे साल या उसके बाद में छाया सहने वाली फसलें जैसे हल्दी या अदरक लाभदायक रहती है।

गेहूं और रबी की अन्य फसलें भी पोपलर के वृक्षों की कटाई तक उगाई जा सकती है। खरीफ में चारे की फसलें भी वृक्षों की कटाई तक उगाई जा सकती है।

चित्र सं. 1: पोपलर की खेती

पोपलर के साथ सहफसली खेती से अतिरिक्त मुनाफ़ा:

कृषि अर्थशास्त्र विभाग, जनता वैदिक कॉलिज, बड़ौत द्वारा सहारनपुर जिले मे किये गये एक सर्वेक्षण में पाया गया कि जिले के अधिकांश किसान पोपलर (जिसे वनपीपल भी कहते हैं) के पेड़ों की रोपाई करने के बाद बीच में खाली पड़ी जगह पर भी गेहूं, गन्ना, सरसों आदि खाद्यान्न फसलों की खेती करके दोगुना मुनाफा कमा रहे है।

किसानों का कहना है कि आमतौर पर पोपलर के पेड़ों को बढ़ने में 5 से 7 साल का समय लग जाता है। तथा पोपलर का पेड़ सर्दियों में अपने पत्ते पूर्णतया गिरा देता है। जिससे पेड़ों के नीचे गेहूं, सरसों, बरसीम, ज्वार एवं जई आदि चारा फसलें सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं।

चित्र सं. 2: पोपलर के साथ गन्ने की सहफसली खेती

 ऐसे में बीच-बीच में खाद्यान्न फसलों की सहफ़सली खेती (intercropping) के जरिये अतिरिक्त आमदनी मिल जाती है, जिससे खेती लागत और व्यक्तिगत खर्चे निकालना काफी आसान हो जाता है।

पॉपुलर की खेती से किसानों को अच्छी अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। पॉपुलर के पेड़ों की लकड़कियां (Cotton Wood) 700-800 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिकती हैं।  एक पेड़ का लट्ठ आसानी से 2000 रुपये तक बिक जाता है।

पॉपुलर के पेड़ों की सही तरीके से देखभाल की जाए तो एक हेक्टेयर में 500-600 पेड़ तक उगाए जा सकते हैं। तकरीबन जमीन से एक पेड़ की ऊंचाई 80 फीट तक होती है। किसानों के मुताबिक एक हेक्टेयर की पॉपुलर की खेती से 6 से 7 लाख रुपये तक का अतिरिक्त मुनाफा कमा सकते हैं।         

चित्र सं. 3: पोपलर के साथ सरसों की सहफसली खेती

साथ ही उचित देखभाल करने पर खाद्यान्न फसलों की खेती से एक हेक्टेयर में पहले वर्ष 800-900 कुंतल गन्ना या एक हेक्टेयर में 8-10 कुंतल सरसों तथा दूसरे वर्ष में 600-700 कुंतल गन्ना प्रति हेक्टेयर वहीं एक हेक्टेयर में गेहूं 30-35 कुंतल तक प्राप्त हो रहा है।

लगभग प्रति हेक्टेयर 2,00,000-2,50,000 रुपये गन्ने की खेती के जरिए 70,000-75,000 रुपये गेहूं से तथा 70,000-80,000 रुपये तक सरसों की खेती के जरिए आमदनी हो रही है। इसके अतिरिक्त पशुओं के चारा के लिए ज्वार, जई आदि भी प्राप्त हो रही है।

पोपलर की खेती के अन्य लाभ या महत्व:

  • कृषि फसलों में पोपलर उगाकर आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति एवं बिगड़ते पर्यावरण को सुधरा जा सकता है।
  • पोपलर के पेड़ खेतों की मेड़ पर लगे होने से वो बाउंड्री का भी कार्य करते है। जिसके जरिए तारबंदी आसनी से की जा सकती है।
  • पोपलर की लकड़ी का इस्तेमाल हल्की प्लाईवुड, चॉप स्टिक्स, लकड़ी के बकसे, माचिस, पेंसिल के अलावा खिलौने एवं अन्य विभिन्न प्रकार के उत्पादों को बनाने में किया जाता है। जिससे इसकी बाजार मे काफी डिमांड रहती है।
  • पोपलर के पेड़ की छाल से भी लुगदी बनाई जाती है, जिसका इस्तेमाल कागज बनाने में किया जाता है।

निष्कर्ष:

वर्तमान समय में पोपलर के साथ सहफसली खेती को काफी महत्व मिल रहा है। जो किसानों की आय दुगनी करने एक उत्तम विकल्प है। क्योंकि पोपलर के पेड़ों की रोपाई से लेकर कटाई तक की समय मे करीब 5-7 वर्ष का समय लगता है। इस बीच में पेड़ों की रोपाई करने के बाद बीच में खाली पड़ी जगह पर भी गेहूं, गन्ना, सरसों आदि खाद्यान्न फसलों की खेती करके दोगुना मुनाफा कमा सकते है। मुख्य रूप से पोपलर की खेती पर आधारित कृषि वानिकी एक आदर्श कृषि विधि है।


Authors:

शुभम पंवार1, डॉ अरुण सोलंकी2, एवं ललित कुमार वर्मा3

1 कृषि विज्ञान निष्णात छात्र, कृषि अर्थशास्त्र विभाग, जनता वैदिक (पी.जी.) कालिज, बड़ौत, बागपत (उ० प्र ०)

2सह-आचार्य एवं विभागाध्यक्ष, कृषि अर्थशास्त्र विभाग, जनता वैदिक (पी.जी.) कालिज, बड़ौत, बागपत (उ० प्र ०)

3विद्यावाचस्पति, कृषि अर्थशास्त्र विभाग, जनता वैदिक (पी.जी.) कालिज, बड़ौत, बागपत (उ० प्र ०)

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