Importance of livestock in the economic development of the country and livestock health challenges 

वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों की ओर अग्रसरित है, इसके बावूजद पशुपालन, जो कि प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधि है, भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पशुपालन राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5.2 फीसदी की भागीदारी रखता है और 8 करोड़ से अधिक किसानों की आजीविका का साधन है।

यद्यपि पशुधन क्षेत्रक के विकास से दूध, अंडे और मांस की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में सुधार हुआ है तथापि विकसित देशों की तुलना में प्रति पशु उत्पादकता बहुत कम है। भारत सरकार द्वारा जारी आर्थिक सर्वे (2021-2022) के अनुसार देश में दुग्ध उत्पादन 2014-15 की तुलना में लगभग 6.2 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़कर 2020-21 में 209.96 मिलियन टन हो गया है। भारत दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है जो वैश्विक दुग्ध उत्पादन में 23 प्रतिशत का योगदान देता है।

पशुधन क्षेत्रक में अच्छी वृद्धि के बावजूद संक्रामक पशु रोग पशुधन क्षेत्रक के कुशल विकास में बाधक बन रहें हैं। इसके अलावा, पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाले जूनोटिक रोग भी इस क्षेत्र के विकास में प्रमुख बाधा है। सीमित जैव सुरक्षा उपायों के साथ पारंपरिक पशुपालन प्रणालियों और पशुधन के साथ निकट संपर्क के कारण, मनुष्यों में जूनोटिक रोग संचरण का जोखिम और भी बढ़ गया है।

पशुओं का संक्रामक रोगों से बचाव अति आवश्यक है क्योंकि संक्रमण से होने वाले रोग कई बार प्राणघातक भी होते हैं, जो व्यापक नकारात्मक आर्थिक प्रभाव डालते हैं। इसलिए सही समय पर टीकाकरण ही इसका समाधान है।

संक्रामक बीमारियों जैसे खुरपका मुंहपका रोग (एफएमडी), गलघोंटू, ब्रूसेलोसिस एवं लंगड़ा बुखार की वजह से सालाना करोडों का आर्थिक नुकसान होता है I भारत में मवेशियों में अकेले एफएमडी के कारण अनुमानित कुल कृषि-स्तरीय 22000 करोड़ रूपये का सालाना आर्थिक नुकसान होता है।

इसी दिशा में राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनएडीसीपी) सितंबर, 2019 में माननीय प्रधान मंत्री द्वारा शुरू की गई एक प्रमुख योजना है, जिसका लक्ष्य मवेशियों, भैंसों, भेडों, बकरियों और शूकरों की आबादी का शत प्रतिशत एफएमडी टीकाकरण तथा 4 से 8 महीने की उम्र के गोजातीय मादा बछड़ों का शत प्रतिशत ब्रुसेलोसिस टीकाकरण करना है ।

राष्ट्रीय पशुरोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत वर्ष 2023-2024 तक 51 करोड़ से अधिक पशुओं का टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) और ब्रुसेलोसिस को 2024 तक नियंत्रित करना और 2030 तक इसका पूर्णतः उन्मूलन करना है। इसके लिए केंद्र सरकार ने पांच वर्षों (2019-20 से 2023-24) के लिए 13,343.00 करोड़ रुपए का बजट भी जारी किया है।

हालाँकि 2030 तक शत प्रतिशत टीकाकरण की राह पशु चिकित्सा के बुनियादी ढांचे को देखते हुए मुश्किल प्रतीत होती है। वर्तमान में राजस्थान समेत कई राज्यों में प्रति एक से दो लाख पशुओं पर एक पशु चिकित्सक है तथा कई गांवों में अभी भी बुनियादी परीक्षण सुविधाओं और आवश्यक बुनियादी ढाँचे का अभाव है।

फील्ड स्टाफ की कमी के कारण टीकाकरण अभियान की प्रगति अत्यधिक मंद है। परीक्षण सुविधाओं और आवश्यक बुनियादी ढांचे की अनुपस्थिति न केवल पशुपालकों के लिए परेशानी का सबब है बल्कि इससे जूनोटिक रोगों का खतरा भी पैदा हो गया है । यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि जूनोटिक रोगों के मामले बढ़ रहे हैं और मानव जाति के लिए भी घातक होते जा रहे हैं।

शत प्रतिशत टीकाकरण प्राप्त करने की राह में एक और बड़ी बाधा टीकाकरण के बारे में पशुपालकों की गलत धारणाएँ है। हर किसी पशुपालक की अपनी अलग शंकाएं हैं। कई बार दृष्टिगत होता है कि पशुपालक अपने पशु का टीकाकरण नहीं करवाते हैं, पशु चिकित्साकर्मियों से दुर्व्यवहार करते हैं; इसके पीछे उनका तर्क होता है कि पशु का दूध कम हो जायेगा या गर्भपात हो जायेगा।

पशुपालकों द्वारा टीका लगावने से मना करने के पीछे एक कारण यह भी है कि टीकों के साथ ही पशुओं की टैगिंग भी की जा रही है।  टैगिंग करवाने में पशुपालकों को भय है कि इससे उनके पशु का कान काट जाएगा और वो अपने पशुओं को बेच नहीं पाएंगे।

टीकाकरण के साथ ही राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अंर्तगत पशु उत्पादकता एवं स्वास्थ्य सूचना तंत्र के जरिए पशुओं की टैगिंग भी की जा रही है। पशुपालन विभाग की इस योजना के तहत हर एक पशु की जानकारी इकट्टा करने के उद्देश्य से पशुओं की टैगिंग की शुरूआत की गई है, लेकिन पशुपालक अपने पशुओं की टैगिंग कराने से कतरा रहे हैं।

इसके आलावा टीकों की उपलब्धता एवं गुणवत्ता भी एक बड़ा मुद्दा है। वर्तमान आवश्यकता की तुलना में, भारत में ब्रुसेलोसिस वैक्सीन की 58 मिलियन कम खुराक थी। इसका उपयोग गायों और भैंसों में संक्रामक ब्रुसेलोसिस रोग के खिलाफ किया जाता है जो जानवरों से मनुष्यों में भी फैल सकता है।

हाल ही में परीक्षणों से पता चला कि मौजूदा एफएमडी वैक्सीन के नमूने गुणवत्ता मानदंडों पर खरा नहीं उतरे और केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने तुरंत सभी वैक्सीन बैचों को वापस बुला लिया। कुछ सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार हैदराबाद स्थित फर्म के टीके गुणवत्ता मानकों पर कम पाए गए।

टीकाकरण अभियान रुकने के साथ, डेयरी किसान चिंतित हो गए हैं क्योंकि उन्हें डर है कि दोषपूर्ण टीकाकरण से घातक संक्रामक बीमारियों का प्रकोप हो सकता है ।

इस टीकाकरण अभियान को सफल बनाने के लिए अनिवार्य है कि बुनियादी पशु चिकित्सा ढांचा मजबूत हो। इस समस्या को हल करने के लिए ग्रासरूट लेवल पर कुशल कार्मिकों की नियुक्ति अति महत्वपूर्ण है। राजस्थान सहित कुछ राज्यों में गांवों में मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयाँ हैं  लेकिन उनमें से अधिकांश फंड की कमी या संसाधनों की कमी के कारण प्रचालन में नहीं हैं।

केंद्र और राज्य सरकार को पशु चिकित्सा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए अधिक फंड विनियोजित करना चाहिए तथा राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए राज्य और केंद्र सरकार को एकीकृत तरीके से काम करना चाहिए।

पशुपालकों की भ्रांतियों को दूर करने के लिए पशुपालन विभाग द्वारा समय-समय पर जागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना अति आवश्यक है। पशुपालकों को इन बीमारियों से होने वाले नुकसान और टीकाकरण के फायदों से परिचित कराना चाहिए।

दोषपूर्ण टीकों के कारण टीकाकरण के बाद अपने पशुओं को खोने वाले किसानों को मुआवजा मिलना चाहिए। अभी तक टीकाकरण के बाद मृत्यु होने पर मालिक को मुआवजा देने का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर वन स्टॉप सेंटर स्थापित किए जाने चाहिए।

पशुपालकों को यह समझना चाहिए कि पशु स्वास्थ्य देखभाल पशुपालन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है । राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम संक्रामक पशु रोगों की रोकथाम और पशु स्वास्थ्य सुरक्षा की दिशा में बहुत ही अहम कदम है । अतः  टीकाकरण में पशु चिकत्सा कर्मियों का पूर्ण सहयोग करना चाहिए ताकि हमारा पशुधन सुरक्षित रहे। 


Authors

डॉ मोनिका 

पशु चिकित्सा परजीवी विभाग

सीवीएएस, बीकानेर, 334001

राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर

Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

New articles