Impact of Covid-19 Pandemic on Agriculture and Allied Sectors

वर्ष 2020 के पूर्वार्ध में शुरू हुए वैश्विक स्वास्थ्य संकट (कोविड-19 महामारी) का वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF, 2020) ने दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में 3 प्रतिशत की गिरावट और भारत के सम्बन्ध में 1.9% की एक बहुत ही मामूली विकास दर का अनुमान लगाया था। जब की अन्य विभिन्न एजेंसियों ने अपने आकलन में भारत की सकल घरेलु उत्पाद में 0.2-0.5 प्रतिशत तक के गिरवाट का अनुमान लगाया था।

आज लगभग दो साल के बाद, महामारी के उत्तारर्ध में अगर पूरी दुनिया के विभिन्न पहलुओं जैसे सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक इत्यादि का अध्ययन किया जाये तो पाएंगे की इन सभी आयामों पर अत्यधिक नुकसान हुआ है और साथ ही साथ विभिन्न क्षेत्रों के व्यवसायों में अकल्पनीय व्यवधान उत्पन्न हुआ है। कृषि जो की हमारे देश की रीढ़ की हड्डी कही जाती है, वह भी इस महामारी के दुष्प्रभाओ से अछूता नहीं रह गया।

इस संकट के अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। इसके अल्पकालिक प्रभावों का विश्लेषण में कृषि और उसके संबद्ध क्षेत्रों जिसमें बागवानी, पोल्ट्री, डेयरी तथा मत्स्य पालन इत्यादि शामिल हैं जब की विस्तृत रूप में तथा दीर्घकालिक प्रभाव अभी धीरे धीरे सामने आ रहे हैं।

दीर्घकालिक प्रभाव के साथ अल्पकालिक प्रभाव

कोविड -19 महामारी का दुष्प्रभाव मुख्य रूप से फलों और सब्जियों जैसे ताजा उत्पादन के आपूर्ति श्रृंखला पर पड़ा। देश भर में लंबे समय तक तालाबंदी और प्रतिबंधित आवाजाही के साथ, कृषि उपज को एक हिस्से से दूसरे हिस्से में ले जाना एक चुनौती थी।

खाद्य प्रसंस्करण

कुछ कृषि उत्पाद जैसे सब्जी, फूल इत्यादि जल्दी खराब होने वाली प्रकृति के होते हैं और इनका उपभोग जल्दी नहीं किये जाने से ये उत्पाद सड़ने लगे, जबकि उपभोक्ताओं को इन्ही कृषि उत्पादों की आसमानी कीमत चुकानी पड़ी। हालांकि, इस व्यवधान ने लंबे समय के लिए सुरक्षित फसल/ ताजा उपज भंडारण सुविधाओं की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। इसने एक बार फिर हमें खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अधिक निवेश की आवश्यकता की धारणा को प्रोत्साहित किया जिसकी मांग किसानो द्वारा लम्बे समय से किया जा रहा है।

फूलों की खेती

भारतवर्ष पर्वों व त्योहारों का देश है और हर एक कार्यक्रम में फूलों की आवश्यकता होती है। सभी प्रकार के तामझाम में कुछ लोकप्रिय फूलों जैसे गुलाब और गेंदे के फूलों की मांग ज्यादा होती है परन्तु इस महामारी के दौर में उपभोक्ता ऐसी किसी भी चीज़ से आशंकित हो जाते थे जो संभावित रूप से सतह/ प्रसारण की वस्तु हो सकती है। और इसी वजह से लोकप्रिय फूलों की मांग में काफी कमी आई है।

इसके अलावा, आवाजाही के प्रतिबंधों के कारण फूलों के परिवहन में भी गिरावट आई है। परन्तु, जैसे-जैसे आशंका धीरे-धीरे कम होती जा रही है, लोगों ने फूलों को विस्तारित अवधि के लिए संग्रहीत करने या उन्हें निर्यात करने पर विचार करना शुरू कर दिया है।

डेयरी एवं पोल्ट्री

डेयरी पर लॉकडाउन का मध्यम प्रभाव पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप खरीद कीमतों में 30% की गिरावट आई। लेकिन अंडे की खपत में काफी वृद्धि हुई क्योंकि लोग प्रोटीन की खपत पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे थे। साथ ही, मत्स्य पालन भी मामूली रूप से प्रभावित हुए, क्योंकि जल उपचार ने मछली को अधिक समय के लिए जीवित रहने की गुंजाईश प्रदान की।

हालांकि, पशु उत्पादों की खपत पर व्यापक चिंता के कारण पोल्ट्री मांस की लागत में गिरावट आई, यहाँ तक की चिकन की कीमतों में 25% से अधिक की गिरावट आई।

कृषि उत्पाद एवं श्रम आपूर्ति 

महामारी के शुरुआती दिनों में कृषि इनपुट की आवाजाही या आपूर्ति बाधित होने के कारण भौगोलिक क्षेत्रों में भंडार की आवाजाही प्रतिबंधित थी और आपूर्ति में कमी भी थी जो अभी भी जारी है। इसके अलावा, लॉकडाउन रबी कटाई के मौसम के साथ हुआ, जिसने अनाज की फसलों को प्रभावित किया। हालांकि, लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद इनपुट मूवमेंट में वृद्धि हुई, जो विभिन्न रबी और खरीफ सीजन के लिए फायदेमंद था।

कोविद–१९ का प्रभाव कृषि मशीनरी पर भी देखा गया; सस्ते श्रम की उपलब्धता के कारण ट्रैक्टरों की बिक्री में नाटकीय रूप से गिरावट आई, जिससे सावधि ऋण क्षेत्र में असंतुलन पैदा हो गया। छोटे पैमाने के वित्त पोषण में भी व्यवधान देखा गया।

श्रम गतिशीलता में एक महत्वपूर्ण बदलाव 50 मिलियन से अधिक प्रवासियों के साथ हुआ है, जो दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में काम करते थे और इस महामारी में भोजन इत्यादि संसाधन के अभाव में अपने - अपने घरों को लौट गए।

वैसे तो श्रम दर और श्रम उपलब्धता में कई भिन्नताएं हैं और हमारे देश में कुशल कृषिवादी श्रमिकों की अत्यधिक कमी है। इसी कारण कम लागत वाले श्रम की उपलब्धता के बावजूद, कौशल संबंधी मुद्दे एक महत्वपूर्ण चुनौती बने हुए हैं।

चुनौती से निपटने के लिए पहल

इस बीच इन सभी चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार के द्वारा काफी प्रयास किये जा रहे हैं और लोगो के नजरिए में काफी कुछ बदलाव हो रहे हैं। प्रोत्साहनों के साथ-साथ, सरकार ने पीएम-किसान योजना में बजट आवंटन में वृद्धि की घोषणा की, जहां प्रति वर्ष 6,000 रुपये की तीन किस्तों में किसानों के खातों में स्थानांतरित किए जायेंगे।

एक अन्य पहल के तहत किसानों के लिए फार्म-गेट इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 1 लाख करोड़ के एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड का शुभारंभ किया गया। यह किसानों, पैक्स, एफपीओ, कृषि-उद्यमियों, आदि को सामुदायिक कृषि संपत्ति और फसल कटाई के बाद के कृषि बुनियादी ढांचे के निर्माण में सहायता प्रदान करेगा।

इसके अलावा, सूक्ष्म खाद्य उद्यमों (एमएफई) को उनके तकनीकी कौशल में सुधार करने और खाद्य प्रसंस्करण सुविधा उन्नयन के लिए व्यक्तिगत इकाइयों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से 2,00,000 एमएफई की सहायता की औपचारिक घोषणा की गयी।

सरकार द्वारा समर्थित, कोविद–१९  मुद्दे से निपटने में किसानों की सहायता के लिए लक्षित सीएसआर कार्यक्रमों की अधिकता। दूसरी ओर, यारा  इंटरनेशनल ने भारत में स्थानीय सरकारी अधिकारियों और उनके विक्रेताओं, आपूर्तिकर्ताओं और ट्रांसपोर्टरों के साथ काम किया, जो आगामी फसल के मौसम के लिए किसानों को बीज और आपूर्ति वितरित करने के लिए महत्वपूर्ण थे।

महामारी ने एक उत्प्रेरक के रूप में भी काम किया, जिससे कृषि-तकनीक सहित विभिन्न उद्योगों को लॉकडाउन की अनिश्चितता को दूर करने के लिए त्वरित समाधान बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। कुल मिलाकर, कृषि-तकनीक कंपनियों ने महामारी की चुनौतियों को स्वीकार किया और भारत के किसानों के विकास के लिए तकनीकी उत्पादों के उत्पादन में अनवरत लगी रहीं।

जमीनी स्तर पर कार्य

कुल मिलाकर, कोविड -19 का इस क्षेत्र पर मिश्रित प्रभाव पड़ा, साथ ही भारतीय कृषि के सामने आने वाली कुछ लगातार समस्याओं को भी प्रकाश में लाया गया, जिन्हें हम काफी समय से टाल रहे थे और तत्काल प्रभाव से उस पर क्रियान्वन की कमी थी। जैसे चुनौतियां एक अवसर के साथ आती हैं, इस महामारी ने भारतीय कृषि क्षेत्र को बदलती परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाने और अवसरों को भुनाने में महत्वपूर्ण प्रगति करने में मदद की।

बाह्य प्रवास को कम करने के लिए कृषि को ग्रामीण का प्रमुख आधार बनाकर एक अधिक समग्र दृष्टिकोण की जरूरत है। कृषि और ग्रामीण रोजगार के बीच आवश्यक तालमेल बनाने के लिए मौजूदा कृषि कार्यक्रम, जैसे राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के साथ जोड़ा जाना चाहिए। यह ग्रामीणों के बाह्य पलायन को कम करने में मदद करेगा।

यद्यपि इस महामारी ने लगभग सभी तंत्र एवं व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया या फिर इनमे काफी गिरावट देखी गयी परन्तु कृषि ही एक ऐसा छेत्र है जिसके ऊपर कम से कम दुष्प्रभाव पड़ा और उन परिश्थितियों  में जब चारो तरफ नकारात्मकता फैली हुई थी, यही एकमात्र क्षेत्र (कृषि) था जो उत्तरोत्तर विकाश के साथ आगे बढ़ रहे था।

इन्ही कृषि उत्पादों के माध्यम से इन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सबके लिए भोजन उपलबध कराया जा सका। निः संदेह यह महामारी एक गंभीर चुनौती बनकर पुरे संसार के सामने प्रकट हुआ है और हमें हर आने वाली चुनौती को अवसर में बदलने की अनवरत कोशिश करते रहना चाहिए।


Authors:

Deepak Kumar Jaiswal1 and Anadhika Priyadarshani2

1Specialist (Bioscience), Institute of Pesticide Formulation Technology (IPFT)

(An Autonomous Institute under Dept. of Chemicals and Petrochemicals, Ministry of Chemicals and Fertilizers, Govt. of India)

HSIDC, Sector 20, Udyog Vihar, Opposite Ambience Mall, Gurugram, 122016, Haryana, India

Email Id: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

2Bihar Agricultural University, Sabour, Bihar (813210)

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