बाजरा  प्रसंस्करण: स्वास्थ्य एवं आर्थिक स्तर में सुधार

हमारा देश भारत जैव विविधता की दृष्टि से समृद्ध देशों में गिना जाता है। यहाँ खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, फल एवं सब्जियों का उत्पादन बड़े पैमाने पर हो रहा है। परन्तु उपलब्ध आंकड़ों पर ध्यान दे तो प्रतिवर्ष कुल उत्पादन का लगभग 18 प्रतिशत भाग विभिन्न कारणों से खराब हो जाता है क्योंकि तकनीकि ज्ञान के अभाव में उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पाता  है। बदलते सामाजिक परिवेश में अब लोगों की आय बढ़ाने के साथ – साथ स्वास्थ्य एवं पोषण की और भी जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है ।

खाद्य प्रसंस्करण:  

प्रसंस्करण का तात्पर्य ऐसी गतिविधियों से है जिनके द्वारा प्राथमिक कृषि उत्पादों को प्रसंस्कृत कर मूल्य संवर्धन किया जाता है।  प्रसंस्करण से फसल उत्पादों के पोषण मूल्य में भी बढ़ोतरी होती है तथा लम्बे समय तक सुरक्षित भी रख सकते है। प्रसंस्करण एक कला है जिसे आम आदमी भी  कौशल विकास प्रशिक्षण द्वारा आसानी से सिख सकता है

इस  प्रकार  खाद्यानों को प्रसंस्कृत किया जाए तो भंडारण क्षमता व मूल्य वृद्धि के साथ-साथ कृषक महिलाओं को प्रसंस्करण उद्योग के माध्यम से रोजगार के अवसर भी मिलेंगे साथ ही स्वरोजगार एवं प्रसंस्करण से अतिरिक्त आय भी प्राप्त होगी ।

प्रसंस्कृत उत्पादों से महिलाओं को रोजगार:

प्रसंस्कृत उत्पादों से महिलाओं के रोजगार की संभावनाओं में सतत्‌ वृद्धि हो रही है। कृषक महिलाएं कृषि कार्य के साथ-साथ कुछ समय निकाल कर महिला समूह के माध्यम से प्रसंस्कृत उत्पादों को तैयार करने का कार्य कर रही हैं। इस प्रकार रोजगार के नए साधन सृजित हो रहे हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में महिला समूह अनाजों, मसालों, फल एवं सब्जियों के प्रसंस्करण के क्षेत्र में रोजगार स्थापित कर रहे हैं। वर्तमान में प्रसंस्कृत उत्पादों का उपभोग शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक बढ़ रहा है। खाने की वस्तु हो या पहनने के वस्त्र हों, सभी क्षेत्रों में प्रसंस्करण की महत्वपूर्ण भूमिका है साथ ही सभी वर्ग के लोग प्रसंस्करित वस्तुओं को पसंद करते हैं।

बाजरा प्रसंस्करण:

राजस्थान के मरूस्थलीय क्षेत्र में बाजरा बहुतायत से उगाया एवं उपयोग किया जाता है। बाजरा हमारे भोजन में मुख्यतः ऊर्जा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस तथा लोह तत्व प्रदान करता है।

राजस्थान में विशेषकर महिलाओं व बच्चों में पोषण समस्याऐं जैसे खून की कमी (रक्ताल्पता) तथा  प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण आदि बाजरे के उपयोग से दूर हो सकती है। अतः बाजरे का प्रयोग हमें भोजन में अधिकाधिक करना चाहिये।

पारम्परिक रूप से बाजरे के कुछ ही व्यंजन बनाये जाते हैं जैसे बाजरा रोटी, खीचड़ा, राब इत्यादि। भोजन में विविधता एवं स्वाद बढ़ाने हेतु कृषि विज्ञान केन्द्र के गृह विज्ञान इकाई द्वारा बाजरे का केक, अंकुरित बाजरा-मोठ चाट, शक्करपारे आदि व्यंजन बनाने का प्रयास किया गया है जो इस प्रकार है-

Millet Moth chaat1. अंकुरित बाजरा - मोठ चाट

सामग्री : 

बाजरा - 1 कटोरी, मोठ -  आधा कटोरी, प्याज-  1 छोटा, हरी मिर्च – 1 नग, टमाटर - 1 छोटा, नींबू रस – 1 चम्मच, हरा धनिया – कुछ पत्तियां , नमक, लाल मिर्च व चाट मसाला – स्वादानुसार, तेल – 2 चम्मच, जीरा - आधा चम्मच

विधि :

  • मोठ व बाजरे को धोकर एक रात भिगोयें I
  • पतले कपड़े में भीगे हुए मोठ व बाजरे को अंकुरण होने तक हवा में लटकाएं I
  • कढाई में तेल गर्म करके सभी खाद्य सामग्री तथा अंकुरित बाजरे व मोठ को जीरे का छोंक लगायें I
  • नींबू का रस व हरा धनिया डालकर मिलाएं व परोसें I

2. बाजरा शक्करपारे

सामग्री :

बाजरा आटा- आधा कटोरी, गेंहूँ का आटा- आधा कटोरी, तिल-  1 चम्मच घी-1 बड़ा चम्मच, गुड़- आधा कटोरी, तेल तलने के लिए – आवश्कतानुसार  

विधि:

  • सबसे पहले गुड़ में आधा कटोरी पानी मिलाकर उसे गर्म करके घोल बनाले ।
  • गुड़ के घोल को ठंडा करलें।
  • दोनों प्रकार के आटे को मिलाकर उसमें 3 चम्मच घी व 1 चम्मच तिल मिलाकर गुड़ के पानी से कड़ा आटा गूँथ लें।
  • गुंथे हुए आटे को 10 मिनट के लिए ढक कर रख दे।
  • आटे पर थोड़ा घी लगाकर मोटी रोटी बेलें व शक्करपारे के आकार में काट लें।
  • कटे हुए शक्करपारों को गर्म तेल में मध्यम आँच पर तल लें।
  • ठंडा होने पर इन्हें साफ व बंद डिब्बे में आवश्यकतानुसार उपयोग हेतु भरकर रख लें।

Millet Cake (Eggless)3. बाजरा केक (बिना अंडे का)

सामग्री :

मैदा - डेढ़ कप, बाजरी आटा-आधा कप, कोको पाउडर - चौथाई कप, नमक- चौथाई छोटा चम्मच, मीठा सोड़ा - चौथाई छोटा चम्मच, बेकिंग पाउडर - एक छोटा चम्मच, तेल - आधा कप, दूध - डेढ़ कप, वनीला एसेंस-10 बूंद, चीनी -  पौन कप, तिल- 10 ग्राम, मूंगफली- 10 ग्राम

विधि :

  • बाजरी आटा, मैदा, कोको पाउडर, नमक, मीठा सोड़ा तथा बैकिंग पाउडर को मिलाकर मैदे की छलनी से 3 से 4 बार छानें ।
  • इसमें चीनी, तेल तथा दूध मिलायें एवं 5 से 7 मिनट तक फेटें ।
  • वनीला एसेंस, तिल तथा मूंगफली के टुकड़े डालकर फिर हिलायें ।
  • गैस पर भारी पैंदे की कढ़ाई रखें तथा उसमें चिकनाई लगा केक पॉट रखकर घोल इसमें डालें ।
  • कड़ाई पर ढक्कन इस तरह का रखें जिससे ऊष्मा बाहर नहीं आये तथा गैस को धीमी आंच पर रखें ।
  • केक तैयार हुआ या नहीं इसकी जाँच के लिये चाकू की नोक अन्दर डाले, यदि साफ निकले तो समझे की केक तैयार है ।
  • करीब 45 मिनट से 1 घंटे की अवधि में केक बनकर तैयार हो जाता है ।

4. बाजरा क्रंची स्टिक

सामग्री : 

बाजरा दलिया -250 ग्राम, पापड़ खार – आधा चम्मच, नमक, मिर्च एवं गर्म मसाला - स्वादानुसार, जीरा- 2 चम्मच, सोडा –  चौथाई चम्मच, पानी- 1 लीटर

विधि : 

  • बाजरे को साफ़ करके दरदरा पिसें ।
  • फिर एक भगोने में पानी गर्म करके उसमें नमक, मिर्च, गर्म मसाला, पापड़ खार तथा जीरा मिलाकर उबाल लें ।
  • इसके बाद उबले हुए पानी में पिसे हुए बाजरे को डालकर धीमीं आंच पर कड़ाही में चम्मच की सहायता से हिलाते रहें ।
  • पकने के बाद सोडा मिलाकर आँच से उतार लें व ठंडा होने के लिए रखें ।
  • कीप की सहायता से मनचाहे आकार की स्टिक बनाएं ।
  • पोलीथिन या परात में चिकनाई लगाकर सुखाने के लिये रख दें ।
  • सूखने के बाद तेल में तल लें ।
  • फिर स्वादानुसार चाट मसाला डालकर परोसें ।

4. पौष्टिक पेड़ा

सामग्री :

बाजरा आटा -100 ग्राम, मूंग की दाल पिसी हुई-150 ग्राम, घी- 60 ग्राम, मावा- 60 ग्राम, गुड़/चीनी-250 ग्राम, मूंगफली दाना -100 ग्राम, पानी – आवश्यकतानुसार ।

विधि :

  • गर्म घी में बाजरे का आटा व पिसी हुयी मूंग दाल को मिलाकर भूनें ।
  • मूंगफली के दानों को भूनकर तथा छिलके अलग कर कूट लें ।
  • गुड़ या चीनी का गाढ़ा घोल तैयार करें ।
  • घोल में आटा, मावा तथा मूंगफली के दानों को मिला दें ।
  • ठंडा होने पर उसके पेड़े बना लें ।

भारत में अनाज एवं दालों के अधिक उत्पादन को देखते हुए कृषक महिलाएं, अनाज एवं दालों के प्रसंस्करण के माध्यम से भी लघु व्यवसाय प्रारंभ कर सकती हैं। प्राय: किसानों द्वारा अनाज एवं दालों को बिना प्रसंस्कृत किये ही बाजार में बेच दिया जाता है। इससे उन्हें उत्पाद का मूल्य अपेक्षाकृत कम  प्राप्त होता है ।

उसी उत्पाद को कम्पनियां प्रसंस्कृत करके अधिक लाभ का अर्जन करती हैं। ऐसी स्थिति में यदि ग्रामीण महिलाएं स्वयं अनाज एवं दालों का प्रसंस्करण कर विभिन्न उत्पाद तैयार करके बेचें तो निश्चय ही आर्थिक रूप से सशक्त होने की दिशा में यह एक लाभकारी कदम होगा ।


Authors:

 डॉ. पूनम कालश एवं कुसुम लता

कृषि विज्ञान केन्द्र, भा.कृ.अनु.प.- केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर (राजस्थान)-342005

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