Plant Genetic Resources: Concept and Perspective

Plant genetic resources for food and agriculture are germplasm that farmers and plant breeders use to improve the quality and productivity of crops. These include landraces, modern improved varieties, obsolete varieties, breeder lines, specific genetic stock and crop wild relatives, etc. Landraces are crop varieties that have been traditionally used by farmers for a long time but have not been formally released.

खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधन (Plant Genetic Resources for Food and Agriculture) वे जननद्रव्य (Germplasm) हैं जिनका उपयोग किसान और पादप प्रजनक (Plant breeders) फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार के लिए करते हैं । 

इनमें भूप्रजातियाँ (Landraces), आधुनिक उन्नत किस्में, अप्रचलित किस्में, प्रजनक लाइनें, विशिष्ट आनुवंशिक स्टॉक (Genetic stock) और फसल वन्य सम्बन्धी (Crop Wild Relatives)  आदि सम्मिलित हैं। भूप्रजातियाँ  फसल की ऐसी किस्में हैं जो परंपरागत रूप से किसानों द्वारा लंबे समय से उपयोग की जा रही हैं किन्तु औपचारिक रूप से जारी नहीं की गई हैं।

इन भूप्रजातियों के बचाये गए बीज प्रत्येक वर्ष लम्बे समय से बोए जाते रहे हैं। आधुनिक किस्में औपचारिक रूप से जारी की गई किस्में हैं जिन्हें फसलों की बड़े पैमाने पर व्यावसायिक खेती के लिए अनुशंसित किया जाता है, जबकि अप्रचलित किस्में वे किस्में हैं जो आम तौर पर उपज के मामले में बेहतर किस्म के प्रतिस्थापन के कारण उपयोग से बाहर हो जाती हैं।

प्रजनक लाइने  (Breeding lines) पैतृक लाइने (Parental lines) या उन्नत किस्मों की वे उन्नत लाइने हैं जो प्रजनन की प्रक्रिया के आगे बढ़ने के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। एक आनुवंशिक स्टॉक वह जननद्रव्य है जिसका कोई प्रत्यक्ष व्यावसायिक मूल्य नहीं है, लेकिन जिनका उपयोग प्रजनन कार्यक्रमों में दुर्लभ एलील के स्रोत के रूप में किया जा सकता है।

फसल वन्य सबंधी वे प्रजातियाँ हैं जिन्हें व्यवयसायिक कृषि में प्रत्यक्ष रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है किन्तु जिनका उपयोग प्रजनक कार्यकर्मों में विशिष्ट जीन के स्रोत के रूप में किया जा सकता है।  

ऐसा इसलिए है क्योंकि वन्य संबंधी कृषि फसल प्रजातियों के साथ जीन पूल (Gene pool) साझा करती हैं। फसल वन्य सबंधी आमतौर पर प्रजनन कार्यक्रमों में रोग, कीट  अथवा अजैविक तनावों के प्रतिरोधी जीन के स्रोत के रूप में उपयोग किये जाते हैं।

कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (1992) के अनुसार, पादप आनुवंशिक संसाधनों में सभी कृषि फसलों और उनके कुछ वन्य सबंधी मनुष्यों के लिए वर्तमान और संभावित मूल्य की कोई भी जीवित पादप सामग्री शामिल है क्योंकि उनमें किसी न किसी प्रकार की आनुवंशिक विशिष्टता उपलब्ध है।

विभिन्न अनाज, दालें, सब्जियों, फलों, तिलहनों आदि की कृषि तथा उपभोग मनुष्यों द्वारा किया जाता है और उनमें विद्यमान आनुवंशिक विविधता को खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधन कहा जाता है। संपूर्ण खाद्य उत्पादन और फलस्वरूप खाद्य और आजीविका सुरक्षा इसी आनुवंशिक विविधता पर निर्भर करती है।

फूलों के पौधों की अनुमानित लगभग 2750,000 से अधिक प्रजातियों में से 1% से भी कम को कृषि योग्य  बनाया गया है। इनमें से तीन प्रजातियां (गेहूं, मक्का और चावल) दुनिया की 60% से अधिक कैलोरी प्रदान करती हैं।

कृषि उत्पादन प्रणालियों की भेद्यता (Vulnerability) को कम करने और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बदलते जलवायु परिदृश्य में वैश्विक खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रजातियों पर इस अत्यधिक निर्भरता को कम करने की आवश्यकता है।

इस संबंध में पादप आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण और उपयोग वर्तमान और भविष्यक महत्व रखता है। कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधन जनसांख्यिकीय रूप से विस्तारित दुनिया की खाद्य सुरक्षा के लिए उत्पादक और टिकाऊ कृषि उत्पादन प्रणालियों के लिए कृषि विविधीकरण के स्रोत हैं।

भारतीय दृष्टिकोण: 

3.287 मिलियन किमी² के क्षेत्रफल के साथ, भारत विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश है और विश्व के सत्रह मेगा-विविध देशों में से भी एक है। जलवायु और भौगोलिक विविधता वाला यह देश दुनिया भर में कुल 35 में से चार वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट से संपन्न है। ये हैं पश्चिमी घाट, हिमालय, इंडो-बर्मा क्षेत्र और सुंडालैंड।

भारत एक प्रजाति समृद्ध राष्ट्र है और प्रजाति समृद्धि सूचकांक पर दुनिया के शीर्ष दस देशों में सम्मिलित है। कवक और निचले पौधों सहित पौधों की 45500 प्रजातियों के साथ विश्व के 2.4% क्षेत्रफल वाले भारत में विश्व की वनस्पतियों का 7% हिस्सा है।

यह उत्पत्ति के आठ वाविलोवियन केंद्रों में से एक है और फसल पौधों की विविधता के 12 प्राथमिक केंद्रों में से भी एक है। इसके अतिरिक्त, यह विशेष रूप से अफ्रीकी मूल के कई फसल पौधों की प्रजातियों के लिए विविधता का द्वितीय केंद्र भी है ।

चावल, कोदो, अरहर, उड़द, मोठ, कपास, जूट, लौकी, परवल, तोरी, कटहल, केला, आम, जामुन, इलायची, काली मिर्च और अनेक औषधीय व् सुगन्धित पौध प्रजातियों आदि के लिए विविधता का प्राथमिक केंद्र है।  यह ज्वार, बाजरा, रागी, लोबिया, नाइजर, कुसुम, बैंगन, भिंडी, तिल और अरंडी आदि के लिए विविधता का  द्वितीय केंद्र है और गेहूँ के लिए विविधता का क्षेत्रीय केंद्र है।

हालांकि, पादप आनुवंशिक संसाधनों की यह संपत्ति आनुवंशिक क्षरण के गंभीर खतरे में है और इसके कई मुख्य कारण हैं जो निम्नलिखित हैं:

  1. आवास विखंडन (Habitat destruction)
  2. अतिशोषण (Over exploitation)
  3. जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि (Climate change and global warming)
  4. उन्नत किस्मों द्वारा स्थानीय भूप्रजातियों का प्रतिस्थापन (Replacement of landraces by high yielding varieties)
  5. हरित क्रांति (Green revolution)

विभिन्न फसलों की भविष्य की मांग अप्रत्याशित है और वर्ष 2050 तक लगभग 10 अरब लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना एक बड़ी चुनौती है जिसे उच्च उपज वाली किस्मों के विकास के माध्यम से निपटा जा सकता है। इस संदर्भ में पादप आनुवंशिक संसाधन ही कच्चा माल हैं।

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण नए रोगों और कीटों के उद्भव की उच्च सम्भावना और अल्पवृष्टि या अतिवृष्टि के रूप में बढ़े हुए अजैविक तनावों की भी भविष्यवाणी की गई है। इसलिए प्रतिरोधी किस्मों के विकास के लिए विश्व भर के पादप आनुवंशिक संसाधनों को पूरी तरह से संरक्षित करने की आवश्यकता है।

पादप आनुवंशिक संसाधन संग्रह, संरक्षण और उपयोग:   

पहली बार विश्व के पादप आनुवंशिक संसाधनों की स्थिति पर चिंता हारलन और मार्टिनी द्वारा वर्ष 1936 में जौ जननद्रव्यों के आनुवंशिक क्षरण के बारे में यूएसडीए को सौंपी गई एक रिपोर्ट में उठाई गई थी । तब से विश्व के देशों में एक आम सहमति है कि वैश्विक पादप आनुवंशिक संसाधन खतरे में हैं और उनका संग्रह और संरक्षण सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए।

इसी क्रम में पादप आनुवंशिक संसाधन अनुसंधान विज्ञान के सिद्धांतों और प्रक्रियाओं की खोज और विकास किया गया है और उन पर आधारित अनुशंसाएं सुझाई गयी हैं।  खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण और उपयोग हेतु कुछ बुनियादी और आवश्यक गतिविधियाँ  शामिल हैं जो की निम्नलिखित हैं।

जननद्रव्यों की खोज और संग्रह:

जननद्रव्य का अधिग्रहण और इसका प्रभावी संरक्षण बेहतर किस्मों के प्रजनन के लिए इसके उपयोग की दिशा में पहला कदम है। जननद्रव्य अधिग्रहण लक्षित क्षेत्र की खोज करके और विशिष्ट नमूना (सैंपलिंग) रणनीति अपनाकर जननद्रव्य एकत्र करके किया जाता है। नमूना लेने की रणनीति अन्वेषण के सटीक उद्देश्यों द्वारा निर्धारित की जाती है जो निम्न प्रकार की हो सकती है:

  1. बहु फसल या एकल फसल संग्रह (Single crop or multi crop collection)
  2. सामान्य या विशेषता विशिष्ट संग्रह (General or trait specific collection)
  3. गैप संग्रह (Gap collection)
  4. सहभागी संग्रह (Participataory collection)
  5. बचाव संग्रह (Rescue collection)
  6. अवसरवादी संग्रह (Opportunistic collection)
  7. विविधता पॉकेट /विविधता द्वीप (Diversity pocket/diversity island)
  8. विशिष्ट जीनोटाइप का लक्षित संग्रह (Targeted collection of specific genotypes)

भूगोल, जनसंख्या की जनजातीय पृष्ठभूमि और अन्य परिचालन कारकों के आधार पर नमूने की आवृत्ति, नमूना आकार और नमूनों की संख्या निर्धारित की जाती है। नमूना लेने की रणनीति को बड़े ग्रिड में रखा जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप एक बड़े क्षेत्रफल में नमूनों की कुल संख्या कम हो जाती है या तंग ग्रिड में रखा जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप कुल एकत्रित नमूनों की संख्या अधिक हो जाती है। 

कुशल नमूनाकरण रणनीतियों का विकास लक्षित पौध क्षेत्र में आनुवंशिक भिन्नता के प्रकार और मात्रा और भौगोलिक क्षेत्र में उनके वितरण की जानकारी पर निर्भर करता है। पादप आनुवंशिक संसाधनों को एकत्रित करने का मूल  उदेश्य नमूनों की सबसे छोटी संख्या में उपयोगी आनुवंशिक विविधता की अधिकतम मात्रा को प्राप्त करना है।

नमूने में आम तौर पर यौन प्रजनन करने वाली प्रजातियों के लिए बीज और अलैंगिक रूप से प्रजनन करने वाले पौधों के लिए कटिंग, कंद, बल्ब, प्रकंद आदि शामिल होते हैं। हालाँकि दोनों प्रकार की प्रजातियों में समग्र पौधे एकत्र किए जा सकते हैं।

जननद्रव्य लक्षण वर्णन और मूल्यांकन:

जननद्रव्य संग्रह और संरक्षण का अंतिम उद्देश्य पादप आनुवंशिक संसाधनों का किस्म विकास हेतु उपयोग है। जननद्रव्य की विशेषता निर्धारण और मूल्यांकन वह माध्यम है जिसके द्वारा इस स्थिति को प्राप्त किया जाता है।

जननद्रव्य की विशेषता में आमतौर पर जननद्रव्य की गुणात्मक डेटा की रिकॉर्डिंग शामिल होती है और इसके  माध्यम से जननद्रव्य को लक्षण आधारित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। दूसरी ओर जननद्रव्य के मूल्यांकन में मात्रात्मक लक्षणों के लिए डेटा मूल्यों का आकलन किया जाता है।

मूल्यांकन प्रक्रिया संवर्धित या दोहराए गए क्षेत्र या प्रयोगशाला परीक्षणों में की जाती है और इसमें मानक जनन द्रव्य की तुलना में परीक्षण जननद्रव्य के लक्षण रिकॉर्ड किये जाते हैं। उदहारण के रूप में पौधे की लम्बाई, फूल आने के दिनों की संख्या, प्रति पौधे फलों की संख्या, पकने के दिनों की संख्या, प्रति पौधे उपज आदि।

इसके अतिरिक्त जैविक और अजैविक तनावों के विरुद्ध प्रतिरोध तथा पौधे के आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हिस्से की गुणवत्ता जैसे लक्षणों पर भी डेटा रिकॉर्ड किया जाता है।

अनुकूलित जननद्रव्य लक्षण वर्णन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  1. परिग्रहणों का वर्णन करने के लिए उनकी नैदानिक ​​विशेषताओं को स्थापित करना और संग्रहों के बीच दोहराव  की पहचान करना।
  2. मानक मानदंडों का उपयोग करके प्राप्तियों के समूहों को वर्गीकृत करना।
  3. वांछित कृषि संबंधी लक्षणों के साथ परिग्रहणों की पहचान करना।
  4. अधिक सटीक मूल्यांकन के लिए प्रविष्टियों का चयन करना।
  5. कृषि किस्मों के भौगोलिक समूहों के बीच या विभिन्न लक्षणों के बीच अंतर्संबंध विकसित करना।
  6. संग्रह में आनुवंशिक भिन्नता की मात्रा का अनुमान लगाना।

जननद्रव्य संरक्षण: 

संग्रहित और विशिष्ट जननद्रव्य को भविष्य में उनकी उपलब्धता के लिए प्रभावी ढंग से संरक्षित करने की आवश्यकता है। प्रभावी संरक्षण जननद्रव्य को एक वांछित अवधि के लिए व्यवहार्य रखता है और इसकी पुनर्प्राप्ति को आसान बनाता है।

विभिन्न प्रकार की संरक्षण रणनीतियाँ हाल ही में विकसित की गई हैं और किसी भी रणनीति का चुनाव उन प्रजातियों पर निर्भर करता है जिन्हें हम संरक्षित करना चाहते हैं । इसके अतिरिक्त यह जिस समय अवधि के लिए हम संरक्षण करना चाहते हैं उस पर भी बहुत अधिक निर्भर करता है।

हालाँकि आम तौर पर जननद्रव्य या तो इसके प्राकृतिक आवास या फिर प्राकृतिक आवास के बहार यानि मानव निर्मित परिस्थितियों में संरक्षित होता है और ये  नीचे वर्णित है:

प्राकृतिक आवास (इन सीटू) में जननद्रव्य संरक्षण:  

 जैविक विविधता पर कन्वेंशन (1992) के अनुसार प्राकृतिक आवास पर संरक्षण "पारिस्थितिक तंत्र और प्राकृतिक आवासों का संरक्षण और उनके प्राकृतिक परिवेश में प्रजातियों की व्यवहार्य आबादी का रखरखाव और पुनर्प्राप्ति है, और पालतू या खेती के मामले में गैर- पालतू  प्रजातियों के लिए साइट पर संरक्षण के स्थल संरक्षित क्षेत्र, वन और अन्य प्राकृतिक इलाके हैं जो प्रश्न में प्रजातियों की प्राकृतिक श्रेणियां हैं और पालतू जानवरों के लिए हैं।

खेती की गई प्रजातियां साइट पर संरक्षण के स्थल मुख्य रूप से कृषि फार्म और उद्यान हैं। साइट पर संरक्षण का लाभ यह है कि यह विकास को संचालित करने की अनुमति देता है और इस प्रकार अनुकूली मूल्य के साथ उपन्यास एलील के रूप में सामने आता है।

प्रमुख नुकसान नुकसान का जोखिम है पर्यावरण या मानवजनित कारकों के कारण एक महत्वपूर्ण प्रजाति का। साइट संरक्षण में प्रजातियां अन्य प्रतिस्पर्धी रूप से बेहतर प्रजातियों द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने के उच्च जोखिम पर भी हैं।

प्राकृतिक आवास के बाहर (एक्स सीटू) जननद्रव्य संरक्षण:

एक्स सीटू संरक्षण में जननद्रव्य को उसके प्राकृतिक आवास से बाहर ले जाना और निम्नलिखित में से किसी एक में संरक्षित करना शामिल है।

फील्ड जीन बैंक (Field gene bank):

इस संरक्षण योजना में प्राकृतिक आवास में से संग्रहित बीजों को मानव नियंत्रण में उगाया जाता है।

शीत भण्डारण (Cold storage):

इसके तहत आम तौर पर उप-शून्य तापमान में बीजों को संरक्षित किया जाता है।

क्रायोप्रिजर्वेशन (Cryopreservation):

इसमें लंबी अवधि के भंडारण के लिए संग्रहित बीजों को तरल नाइट्रोजन (− 196 °C) में रखा जाता है।

पर्मा फ्रॉस्ट (Perma frost):

इसमें स्थायी हिम आवरण वाले अल्पाइन वातावरण में बीजों का भंडारण किया जाता है। सामान्यत: यह रणनीति अतिरिक्त सुरक्षा की दृष्टि से जीन बैंक में संरक्षित जनन द्रव्यों को  डुप्लीकेट सेट के रूप में संरक्षित करने से जुडी है। इसके अतिरिक्त यह रणनीति जीन बैंक संरक्षण में आने वाली लागत को कम करने का भी एक माध्यम है।

उत्तक संवर्धन (Tissue culture):

इस तकनीक के प्रयोग से ऐसी प्रजातियों को सफलतापूर्वक संरक्षित किया जा सकता है जिनके बीज रिकेल्सीट्रेंट यानी कम तापमान में अधिक दिनों तक उत्तरजीवी रहने वाले नहीं होते हैं। उत्तक संवर्धन तकनीक फसल, सजावटी, औषधीय और दुर्लभ या लुप्तप्राय पौधों की प्रजातियों को संरक्षित करने का सबसे आधुनिक तरीका है। यह उन पौधों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जिन्हें या तो बीज के माध्यम से उगाया जाना कठिन होता है या फिर वे जो बीज उत्पादन नहीं करते हैं।

भारतीय पादप आनुवंशिक संसाधन प्रणाली:

भारतीय पादप आनुवंशिक संसाधन प्रणाली के शीर्ष पर भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रिय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (आईसीएआर-एनबीपीजीआर) स्थित है, जो भारत में सभी पादप आनुवंशिक संसाधनों से संबंधित गतिविधियों के लिए नोडल संगठन है। इसमें विभिन्न भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के संस्थानों में स्थित नेशनल एक्टिव जर्मप्लाज्म साइट्स (एनएजीएस) भी सम्मिलित हैं।

आईसीएआर-एनबीपीजीआर के 10 क्षेत्रीय स्टेशन देश भर में कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में स्थित हैं। भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रिय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के प्राथमिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  1. भारत और विदेशों में जननद्रव्यों की खोज और संग्रह गतिविधियों का आयोजन और संचालन।
  2. भारत और विदेशों में अनुसंधान उद्देश्य के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों की आपूर्ति/परिचय/विनिमय करना और समन्वय करना।
  3. कीट और रोगज़नक़ों के लिए ब्यूरो द्वारा शुरू की गई पादप सामग्रियों की पादप संगरोध परीक्षा आयोजित करना, संक्रमित सामग्री का उपचार और बचाव करना और पादप संगरोध/बीज स्वास्थ्य समस्याओं पर अनुसंधान करना।
  4. राष्ट्रीय आधार और सक्रिय संग्रहों में जननद्रव्यों के संरक्षण से संबंधित सभी गतिविधियों का संचालन, निगरानी और समन्वय करना।
  5. उपलब्ध जननद्रव्य संग्रहों का लक्षण वर्णन, मूल्यांकन और दस्तावेजीकरण करना और क्षेत्रीय केन्द्रों तथा अन्य सहयोगी संस्थानों में इन गतिविधियों को समन्वयित करना ताकि ऐसे संसाधनों की सूची और कैटलॉग तैयार किया जा सके।
  6. ब्यूरो और अन्य सभी सहयोगी संस्थानों/केंद्रों द्वारा धारित पादप आनुवंशिक संसाधनों पर प्रलेखन और जानकारी की पुनर्प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय पीजीआर डेटाबेस का विकास और संचालन।
  7. राष्ट्रिय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आनुवंशिक संसाधन गतिविधियों के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
  8. द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत समझौता ज्ञापन के आधार पर पादप आनुवंशिक संसाधन गतिविधियों से संबंधित कार्य-योजनाओं को विकसित और कार्यान्वित करना।

 निष्कर्ष:

निष्कर्ष में यह फिर से रेखांकित किया जा सकता है कि भोजन और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधन उतने ही महत्वपूर्ण संसाधन हैं जितने की अन्य प्राकृतिक संसाधन हैं। किन्तु दुर्भाग्य से उन्हें आम जनता और नीति निर्माताओं का उतना ध्यान नहीं मिला जितना की अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर दिया गया। हालांकि, हाल के दिनों में परिदृश्य काफी बदला है और खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों के महत्व को अब नीतिगत ढांचे के विभिन्न स्तरों पर सराहा गया है।

खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों के संग्रह, संचलन और अंतत: संरक्षण से संबंधित कानूनी व्यवस्थाओं को, जिसमें उनसे होने वाले लाभों को साझा करना शामिल है, को अच्छी तरह से समझने और कार्यान्वित करने की आवश्यकता है ताकि लंबे समय में खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों और फलस्वरूप जनहित में वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।


Authors:

संतोष कुमार बिश्नोई1, मधु पटियाल2, राजेंद्र कुमार1,  चुन्नी लाल1, ओमवीर सिंह, चरण सिंह

1भा.कृ.अनु.प.-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसन्धान संस्थान, करनाल

2भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, शिमला

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