चारा फसलों पर जैव उर्वरक का उपयोग

पिछले ५० सालो में कृषि क्षेत्र में फसलों के लिए रासायनिक उर्वरको का अधिक उपयोग किया गया है जिसके प्रभाव से मिटटी की उपजाऊ क्षमता में कमी, पौधों में पोषक तत्वों की ज्यादा मात्रा, पौधों में रोग तथा किटो का आना , फलिय पौधों में नोडूलेसन की कमी, मिटटी के जीवाणुओं में कमी और प्रदुषण हुआ है| जिसके कारण किसानो को बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है |

फसल की उत्पादकता कम हो गई है जिससे कि‍सानों की आमदनी कम हो गयी| ऐसी स्थिति में किसानो ने रासायनिक उर्वरक के बदले जैव उर्वरक का प्रयोग करना शुरू किया जो उनकी आशाओं पर खड़े उतरे है |

जैविक उर्वरक के उपयोग के कारण रासायनिक उर्वरको के हानिकारक प्रभाव में कमी आई है तथा पर्यावरण में प्रदुषण भी कम हुआ है| किसान आज जैव उर्वरक का प्रयोग चारे की फसलों में भी करने लगे है जिससे किसानो को अधिक लाभ हुआ है| सण1895 में सबसे पहली जैव उर्वरक “नाइट्रैगिन’ की खोज हुई जिसे नोबे और हेल्टनर नामक वैज्ञानिकों ने खोजा था |

इसके बाद एजोटोबैक्टर की खोज और फिर नीली-हरी शैवाल और अन्य तरह के जैव उर्वरक की खोज हुई |भारत में सबसे पहले जैव उर्वरकों पर अध्यन डॉ. डी.एन. जोशी ने किया था |जैव उर्वरकों का प्रथम वाणिज्यिक उत्पादन 1956 में शुरू हुआ।

जैव उर्वरक कम लागत वाले, नवीकरणीय स्रोत हैं जो पौधों में पोषक तत्व तथा रासायनिक उर्वरकों की कमी को पूरा करते हैं।कृषि के लिए जैव उर्वरक सबसे अच्छे आधुनिक उर्वरकों के स्रोतों में से एक है| एकीकृत पोषक तत्व में जैव उर्वरकों एक महत्त्वपूर्ण योगदान होता है |

जैव उर्वरकों का वर्गीकरण

जैव उर्वरक तीन प्रकार के होते है :

1. नाइट्रोजन फिक्सिंगराइजोबियम (फलिय पौधों के लिए )

       ऐज़ाटोबक्टोर, एज़ोस्पिरिल्लुम, एज़ोल्ला तथा नीली-हरी शैवाल (BGA)

2. फॉस्फेट मोबिलिसिंग

      फॉस्फेट सोलुब्लिज़ेर्स (बेसिलस, सूडोमोनस, एस्पर्जिल्स),  फॉस्फेट एब्सोर्बेर्स (वसिकुलर अर्बस्कुल्लर मईकोर्राइज़ा)

3. आर्गेनिक मैटर दिकम्पोसेर्स

     सेलुलिटिक सूक्ष्म जीव, लिग्नोलिटिक सूक्ष्म जीव

चारे वाली फसलों में जैव उर्वरक के प्रभाव

जैव उर्वरक चारे वाली फसलों में भी काफी लाभकारी सिद्ध हुऐ है | ये कम दाम में किसान को मिल जाते है तथा फसलों पर भी इनका अच्छा प्रभाव होता है | ये पौधों के विकास में काफी मददगार है| जैव उर्वरक मिटटी में लाभकारी जीवाणु को बढाते है |

ये चारे वालो फसलों की लम्बाई, पत्ते के आकार, जड़ो की स्वास्थ्य को बने रखने में मदद करते है जो पौधों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है| यह चारे की गुणवत्ता को बढ़ाते है जिससे जानवर चारे को ज्यादा खाने में पसंद करते है| इसके कारण उनका स्वास्थ्य काफी अच्छा रहता है और ज्यादा दूध आदिसामग्री प्रदान करते है|

यह चारे में एन.डी.एफ़ और ए.डी.एफ की मात्रा को भी कम करते है | हालाकि रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से प्रोटीन की मात्रा चारे में बढती है पर वह एन.डी.एफ़ और ए.डी.एफ की मात्रा को भी बढ़ाते है जिसके कारण जानवरों में चारे की पाचन क्रिया में मुश्किल उत्पन्न होती है |

चारे वाली फसलों में जैव उर्वरक के प्रयोग

चारे वाली फसलों में भी कई तरह के जैव उर्वरक प्रयोग किये जाते है| जैव उर्वरक का उपयोग करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातें का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि चारे वाली फसल किस प्रजाति की है, किस समय उन्हें फसल में देना है और किस तरीके से देना है| कुछ जैव उर्वरक जो चारे वाली फसलों में उपयोग होते है:

राइजोबियम

यह एक बैक्टीरिया है सहजीवी नाइट्रोजन फिक्सर भी है | यह चारे वाली फलियोंपौधो में प्रयोग किया जाता है | फलिए पौधों में जैसे की बरसीम, लोबिया में अलग अलग तरह के राइजोबियम का पयोग किया जाता है|

बैक्टीरिया पेड़ की जड़ को संक्रमित करते हैं और जड़ में नोड्यूलस को बनाते हैं जिसके भीतर वे अमोनिया को नाइट्रोजन में बदलते है  जो पौधों के द्वारा उपयोग किया जाता है| यह अनुमान लगाया गया है कि 40-250 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर हर साल विभिन्न फलियो वाली फसलों द्वारा बनाया जाता है| 

एज़ोस्पिरिल्लुम

यह भी एक नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया है| यह मक्के, ज्वार और बाजरा जैसे चारो में उपयोग किया जाता है | यह २०-४० किलो नाइट्रोजन बदलने में यह सहायक होता है| यह पेड़ की जड़ के स्वास्थ्य को अच्छा बनाये रखने में मदद करता है| 

पी जी पी आर (प्लांट ग्रोथ प्रोमोटिंग राइजोबैक्टीरिया ) -

पीजीपीआर के प्रयोग से चारे वाली फ़सलो में काफी अच्छा प्रभाव देखा गया है| चारे वाली फसलो के बीजो का पीजीपीआर द्वारा उपचार करने से उनका बीज जामन दर 5 प्रतिशत तक बढ़ जाता है और सभी प्रजातियों पर औसत अंकुरण समय को 5-8 प्रतिशत कम करता है।

यह चारे वाली मक्के के उपज को बढ़ाता है तथा उनका अचार बनाने के लिए भी ज्यादा चारा प्रति हेक्टेयर देता है| फलियों चारे(leguminous fodder) में पीजीपीआर के प्रयोग से नोड्यूलेशन और नाइट्रोजन निर्धारण के माध्यम से पौधों के विकास में वृद्धि पाया गया है जैसे की बरसीम तथा लोब़िया में | 

जैव उर्वरक के लाभ

जैव उर्वरक मिट्टी में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ठीक करते हैं और फलीदार फसलों की जड़ें और पौधे को उपलब्ध कराते हैं। वे आयरन और एल्यूमीनियम फॉस्फेट जैसे फॉस्फेट के अघुलनशील रूपों को उपलब्ध रूपों में घोलते हैं। वे मिट्टी की परतों से फॉस्फेट का परिमार्जन करते हैं।

वे हार्मोन और विरोधी चयापचयों का उत्पादन करते हैं जो जड़ विकास को बढ़ावा देते हैं। वे कार्बनिक पदार्थों को विघटित करते हैं और मिट्टी में खनिजकरण में मदद करते हैं। जब बीज या मिट्टी पर उपचार किया जाता है, तो जैव उर्वरक पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाते हैं और बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के उपज में 10 से 25% तक सुधार करते हैं|

जैव उर्वरक उपयोग में बाधाएँ

किसानो को जैव उर्वरको के बारे में पूरी तरह से जानकारी न होना ही सबसे बड़ी समस्या है | कभी कभी बाजार में इनकी उपलब्धता नही होना भी एक समस्या है और जितनी जरूरत है उससे कम उपलब्ध होना भी इनके उपयोग में कमी का कारण है| कभी कभी पर्यावरण का दूषित होना भी इनके उपयोग में बाधाएँ उत्पन करता है|

निष्कर्ष

जैव उर्वरक कृषि के क्षेत्र में काफी लाभदायक सिद्ध हो सकते है| ये किसानो की समस्या का समाधान भी बन सकते है तथा उनकी आमदनी को लम्बे समय तक बढ़ने में मदद कर सकते है| इनके उपयोग से प्रदुषण तथा मनुसय और जानवरों को कई रोगों से बचाया जा सकता है| इन जैव उर्वरको के प्रयोग से फसल उत्पादन में कम लागत एवम पर्यावरण नुकसान को काफी कम किया जा सकता है|


Authors:

सौरभ कुमार, मगन सिंह और संजीव कुमार

रि‍सर्च स्‍कॉलर  

आईसीएआर- नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट, एग्रोनॉमी सेक्शन, करनाल, हरियाणा।

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