ब्रैसिका और फफूंद के अन्योन्यक्रिया का अध्ययन और उनके महत्व

दुनिया भर में सरसो (ब्रैसिका) का महत्व इसके बीजों से निकलने वाले तेल के अतिरिक्त दैनिक भोजन के रूप में उपयोग होने से भी है। ब्रैसिका प्रजातियां अब दुनिया की 13 प्रतिशत आपूर्ति प्रदान करने वाली दूसरी सबसे बड़ी तिलहन फसल हैं। रोगजनक कवक ब्रैसिका फसलों पर हानिकारक और विनाशकारी प्रभाव डालते हैं।

अधिक प्रतिरोधी किस्मों को पैदा करने या जेनेटिक इंजीनियरिंग का समुचित उपयोग करने हेतु प्रतिरोध की बेहतर समझ का होना आवश्यक है। माइक्रोबियल रोगजनकों और परजीवियों के संक्रमण का विरोध करने के लिए पौधों ने परिष्कृत रक्षा तंत्रों की एक विशाल विविधता विकसित की है जिसमें प्रेरक चयापचय पथ शामिल हैं।

अरेबिडोप्सिस और कवक के बीच परस्पर क्रिया के दौरन पाए जाने वाले फाइटोटॉक्सिन पर बहुत ध्यान दिया गया है। शोधकर्ताओं के द्वारा विभिन्न ब्रैसिका प्रजातियों के प्रतिरोध पर विशेष रुप से सरसो (बी. जुंसिया) मे फाइटोटॉक्सिन और उनकी भुमिका के उपर कम ध्यान दिया गया है। रोगजनक अक्सर पौधे के रक्षा यौगिकों के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। यह विभिन्न कारणों से हो सकता है जिसमें पौधे के रक्षा यौगिकों को कम विषैले यौगिकों में बदलने और परिवर्तित करने की क्षमता या रक्षा यौगिकों का पूर्ण विघटन शामिल है। यही गुण कवक को पौधे के ऊतकों में प्रवेश करने और पौधे को संक्रमित करने में सक्षम बनाता है।

कुछ असंबंधित रोगाणुरोधी यौगिकों का समावेश जिन्हें कवक रोगजनकों द्वारा डिटॉक्सिफाई नहीं किया जा सकता है कवकीय संक्रमण से जुड़ी समस्याओं पर काबू पाने का एक आशाजनक तरीका है। इन असंबंधित यौगिकों की पह्चान मेटाबोलिक इंजीनियरिंग द्वारा प्राप्त की जा सकती है।

इसके लिए कवक के संक्रमण के बाद पौधों में मेटाबोलाइट्स की पहचान और निगरानी एक महत्वपूर्ण कदम हैं। ब्रैसिका के लिए इस दृष्टिकोण पर अब तक अपितु कम ध्यान दिया गया है जबकि उपलब्ध अध्ययनों में बी. नैपस (केनोला) पर अधिक ध्यान दिया गया है।

द्वितीयक चयापचय का नियंत्रन बिभिन्न चयापचयों और एंजाइमों के जटिल नियामक नेटवर्क द्वारा किया जाता है और प्राथमिक और द्वितीयक चयापचयों का एक मार्ग कई अन्य मार्गों से जुड़ सकता है। कुछ पादप द्वितीयक उपापचयी मार्ग कवक संक्रमण सहित अजैविक या जैविक तनावों की प्रतिक्रिया में प्रेरित होते हैं और एक मार्ग एक से अधिक मेटाबोलाइट उत्पन्न कर सकते है।

इस प्रकार एक मेटाबोलाइट का मार्ग अन्य मेटाबोलाइट्स की सांद्रता को उसी मार्ग में बढ़ा या घटा सकता है। उदाहरण हेतु कोरिस्मेट पाथवे एंजाइम एंथ्रानिलेट सिंथेज़ के माध्यम से इंडोल ग्लूकोसाइनोलेट्स और फाइटोएलेक्सिन के अग्रदूत ट्रिप्टोफैन की ओर जाता है लेकिन कोरिस्मेट म्यूटेज़ एंजाइम के माध्यम से बेंज़ॉयल ग्लूकोसाइनोलेट्स और फेनिलप्रोपेनोइड्स की ओर भी जाता है।

एक ही सब्सट्रेट के लिए दो एंजाइमों के बीच प्रतिस्पर्धा एक महत्वपूर्ण नियामक भूमिका निभा सकता है। इन परिवर्तनों के निस्तारण हेतु मेटाबोलॉमिक्स का उपयोग काफी महत्वपूर्ण साबित होगा। कवक से संक्रमित ब्रैसिका और उनके बीच पारस्परिक क्रिया के दौरान शामिल मेटाबोलाइट्स को प्रोफाइल करने के लिए केवल एक तकनीक का उपयोग काफी नही होगा जो कि एक अस्पष्ट तस्वीर दे सकता है।

एनएमआर स्पेक्ट्रोस्कोपी, एमएस, एचपीएलसी, जीसी/ एमएस, और एलसी/ एमएस जैसी एक से अधिक तकनीकों का उपयोग करने से पारस्परिक क्रिया के दौरान प्रेरित या कम होने वाले मेटाबोलाइट्स की एक विस्तृत श्रृंखला मिल सकेगी।

इसके लिये ब्रैसिका और विभिन्न विशेष और सामान्य कवक प्रजातियों के बीच पारस्परिक क्रिया को समझना जरूरी होगा। माहू और अल्टेर्नेरिया जैसे विशेष रोगजनकों मे ग्लूकोसाइनोलेट्स और फाइटोएलेक्सिन से बचने या डिटॉक्सिफाई करने की  क्षमता होती है, जबकि सामान्य रोगजनकों में इन यौगिकों को डिटॉक्स करने की क्षमता नहीं होती है। इसलिए पौधे सामान्य रोगजनकों के लिए प्रतिरोधी होते हैं।

अत: पौधों की रक्षा में ग्लूकोसाइनोलेट्स और अन्य माध्यमिक चयापचयों की भूमिका का अध्ययन करने के लिए विभिन्न सामान्य और विशेष कवक रोगजनकों के साथ ब्रैसिका की पऱस्पऱ क्रिया एक बहुत ही दिलचस्प मॉडल होगा। इस प्रकार के अध्ययन पूरे चयापचय के स्तर पर किए जाने चाहिए जिसमें एनएमआर और एचपीएलसी जैसे पूरक तकनीकों का इस्तेमाल सहज और सूक्ष्म चयापचय विश्लेषण हेतु फ़ायदेमंद हो सकता है।

हम प्रयोगशालाओं में जो करते हैं वह प्रकृति में होने वाले कार्यो से भिन्न होता है। परिवर्तनशील पर्यावरणीय कारक˒ संक्रमण का प्रतिशत˒ अन्य पर्यावरणीय कारकों के साथ हस्तक्षेप और अन्य जैविक कारकों जैसे एक ही समय में दो या दो से अधिक रोगजनकों की उपस्थिति या पौधों में शाकीय जीवो के हमले से प्रेरित प्रतिक्रिया और चयापचयों के अंतर पर मात्रात्मक एव गुणात्मक प्रभाव पड़ता है। कीड़ों और पक्षियों द्वारा फसलों का नुकसान रोगजनकों के लिए प्रवेश मार्ग प्रदान कर सकता है। एक साथ रोगजनकों और कीड़ों दोनों के पारस्परिक प्रभावों का प्रयोगशाला में अध्ययन बहुत ही वांछनीय है˒ लेकिन पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयोगशाला जांचों को खेतो के प्रयोगों के साथ जोड़ा जाना अति आवश्यक होता है।

रोगजनक कवक के जवाब में मेटाबॉलिक प्रोफाइलिंग को˒ मुख्य रूप से जमीन के उपरी भाग में होने वाले रोगजनकों और पौधों की पारस्परिक क्रिया के अध्ययन को शामिल किया गया है। कई प्रेरित प्रतिक्रियाएं˒ हालांकि प्रणालीगत मानी जाती हैं जिसमें यह संभावना होती है कि जमीन के उपरी भाग मे पाए जाने वाले रोगजनकों द्वारा प्रेरित प्रतिक्रियाएं जड़ों के मेटाबोलाइट्स को प्रभावित करे और परिणामस्वरूप जमीन के नीचे पाए जाने वाले रोगजनकों को भी प्रभावित कर सकती हैं।

पौधे और रोगजनक कवक के बीच की परस्पर् प्रक्रिया को बेहतर समझने के लिए˒ संक्रमण के दौरान पौधे और कवक सहित पूरे सिस्टम को देखना चाहिए। विशेष रूप से संक्रमण की प्रक्रिया के दौरान कवक के चयापचयों का अध्ययन करने के तरीके को खोजना वांछनीय है। कवक द्वारा उत्पादित फाइटोटॉक्सिन पर पौधे के मेटाबोलाइट्स का प्रभाव रोग के उत्पन्न होने और उसके फैलने में एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है। इस तरह के अध्ययनों के लिए एक दृष्टिकोण˒ कवक में पौधे के अर्क को डालकर इसके चयापचयों का विश्लेषण करना हो सकता है। एक अन्य दृष्टिकोण˒ पत्तियों जैसे संक्रमित भागों से बीजाणुओं या कोनिडिया को बाहर निकालना और फिर इन बीजाणुओं और कोनिडिया को बढ़ाना और अंत में कवक के चयापचयों की रूपरेखा बनाना हो सकता है।

मॉडल प्लांट अरेबिडोप्सिस थलियाना में˒ फ्लेवोनोइड्स˒ फेनिलप्रोपानोइड्स˒ ग्लूकोसिनोलेट्स के प्रमुख बायोसिंथेटिक चरण और कुछ हद तक फाइटोएलेक्सिन को सुलझाया गया है और इन यौगिकों से संबंधित कई एंजाइमों और जीनों की विशेषता और पहचान की गई है। इसके अलावा˒ उभरते हुए नए कार्यात्मक जीनोमिक उपकरण यानी ट्रांसक्रिप्टोमिक्स˒ प्रोटिओमिक्स˒ मेटाबोलॉमिक्स और कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी˒ संक्रमण प्रक्रिया के दौरान व्यक्त जीन और प्रेरित चयापचय मार्गों को जोड़कर इस प्रकार के अध्ययनों का समर्थन करते हैं।

एक एकीकृत प्रणाली के रूप में पौधे के चयापचय को समझना मेटाबॉलिक इंजीनियरिंग के लिए आवश्यक है˒ जिसका उद्देश्य न केवल मनुष्यों के लिए उपयोगी यौगिकों का प्रभावी उत्पादन करना है˒ बल्कि रोगजनक कवक और शाकाहारी के खिलाफ पौधों की रक्षा में सुधार करना भी है। "ओमिक्स" दृष्टिकोण की वास्तविक शक्ति कई अलग-अलग स्तरों पर प्रतिक्रिया को देखने की क्षमता से है˒ जिसमें प्रतिलेख˒ प्रोटीन और मेटाबोलाइट्स शामिल हैं।

एक एकल डेटा सेट में ट्रांसक्रिपटामिक और मेटाबॉलिक डेटा का एकीकरण˒ चयापचय विनियमन की महत्वपूर्ण विशेषताओं की पहचान करने और रक्षा तंत्र में शामिल अज्ञात जीनों की पहचान करने के लिए वांछनीय है˒ जैसे कि ग्लूकोसाइनोलेट्स और फेनिलप्रोपानोइड्स का एन्कोडिंग। इसके अलावा˒ "ओमिक्स" दृष्टिकोण जीव विज्ञान और कोशिका की सिस्टम स्तर पर व्यापक और एकीकृत समझ हासिल करने के लिए वांछनीय है।

ब्रैसिका में जैविक तनाव के प्रति चयापचय का मूल्यांकन करने के बाद अगला कदम ब्रैसिका और कवक के बीच प्रोटिओम और ट्रांसक्रिप्टोम के स्तर पर बातचीत का अध्ययन करना है। मेटाबॉलिज्म˒ ट्रांसक्रिप्टोम और प्रोटिओम डेटा के एकीकरण से ब्रैसिका और रोगजनक कवक के बीच होने वाली बातचीत और क्रियाओ की स्पष्ट तस्वीर मिल सकती है।

स्वस्थ और संक्रमित ब्रैसिका जननद्रब्यो के अर्क की स्क्रीनिंग विभिन्न रोगजनक बैक्टीरिया और कवक के खिलाफ उनकी रोगाणुरोधी गतिविधि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है ताकि यौगिकों के सबसे महत्वपूर्ण समूहों जिनमें रोगाणुरोधी गतिविधि होती है की पहचान की जा सके। जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा बायोसिंथेटिक मार्ग को संशोधित करके पौधों में इन यौगिकों को बढ़ाकर ब्रैसिका की अधिक प्रतिरोधी किस्मों और प्रभेदो का विकास किया जा सकता है।

यह सर्वविदित है कि ब्रैसिका की जड़ों में ग्लूकोनास्टर्टिन की उच्च सांद्रता होती है˒ जो 2&फेनिलइथाइल आइसोथियोसाइनेट का बरकरार ग्लूकोसाइनोलेट है। कई जांचों ने विभिन्न रोगजनक कवक जैसे कि माहु˒ अल्टरनेरिया और फ्यूजेरियम प्रजातियों के खिलाफ 2&फेनिलइथाइल आइसोथियोसाइनेट की मजबूत रोगाणुरोधी गतिविधि दिखाई है।

शंकुवृक्ष रोपण नर्सरी मिट्टी में मृदा जनित रोगजनकों के नियंत्रन हेतु मृदा धूमन का उपयोग करके इस घटना का फायदा उठाया जा सकता है˒ जिसमे फ्यूजेरियम (एफ ऑक्सीस्पोरम) जनित अवमंदन˒ हाइपोकोटाइल और जड़ सड़न जैसे बिमारियो के होने से रोका जा सकता है।

चूंकि ब्रैसिका की जड़ों में ग्लूकोसाइनोलेट्स की उच्च सांद्रता होती है जो ग्लूकोनास्टर्टिन के प्रभुत्व में होती है, गेहूं से पहले ब्रैसिका की खेती फ्यूजेरियम जैसे कवक रोगजनकों जो कि दुनिया भर में गेहूं की एक गंभीर बीमारी का कारण बनता है˒ के जैविक नियंत्रण के लिए एक कारगर उपाय हो सकता है ।


Authors:

डॉ नवीन चंद्र गुप्ता

भा. कृ. अनु. प. – राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान नई दिल्ली

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