Various value added products of Barley

जौ विश्व में प्राचीन काल से उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों में से एक है। कुल उत्पादन की दृष्टि से अनाज फसलें जैसे धान, गेहूँ एवं मक्का के बाद जौ की फसल को विश्व में चौथा स्थान प्राप्त है। भारत में इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, खाद्य पदार्थों, पशु आहार एवं पशु चारे के रुप में सदियों से होता आ रहा है। संस्कृत में इसे ”यव” के अतिरिक्त अन्य भाषाओं में जव, जवा, वियाम, आरिसि, तोसा एवं चीनो आदि नाम से जानते हैं।

लेकिन पिछले कुछ दशकों से मानव स्वास्थ्य के लिए जौ के लाभकारी गुणों का पता चला है। विकासशील देशों के बदलते परिवेश में शाकाहारी भोजन की तरफ बढ़ता लोगों का रुझान तथा खान-पान की आदतों में बड़े पैमाने पर बदलाव, कामकाजी महिलाएं एवं प्रसंस्कृत खाद्य के रुप में उपलब्धता आदि कारणों से वैश्विक स्तर पर जौ की खपत में तेजी से वृद्धि हो रही है। इसमें पाए जाने वाले अनेक गुणों के कारण जौ को ”अनाज का राजा” भी कहा जाता है

यह कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, आहार रेशा, विटामिन, लोहा, मैग्नीशियम, फॉस्फोरसपोटेशियम, जिंक, कैल्शियम, सोडियम, सेलेनियम, कॉपर (तांबा) एवं एंटीऑक्सिडेंटका समृद्ध स्रोत है। इन्हीं स्वास्थ्यवर्धक गुणोंके कारण जौ को कार्यात्मक भोजन माना जाता है।

जौ की खेती भारत के पर्वतीय क्षेत्र, उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र एवं मध्य भारत में की जाती है। सीमांत भूमि, लवणता युक्त/क्षारीय भूमि, सिंचाई जल की कम उपलब्धता एवं बारानी क्षेत्रों में भी जौ की अच्छी पैदावार ली जा सकती है।

वर्ष 2020-21 के दौरान भारत में जौ का उत्पादन 1.82 मिलियन टन हुआ। भारत देश में छिलका सहित एवं छिलका रहित दोनों तरह के जौ का उत्पादन किया जाता है।ये दोनों ही प्रकार के जौ पौष्टिकता से भरपूर होते हैं।

Barley grain

चित्र 1: छिलका सहित एवं छिलका रहित जौ

जौ प्रसंस्करण उद्योग पर एक ही प्रसंस्करण तकनीक “माल्टिंग“ का ही प्रभुत्व है, जो मानव उपभोग के लिए विभिन्न उत्पाद के रूप में बीयर, स्प्रिट, स्वास्थ्य टॉनिक एवं माल्ट मिल्क आदि का मुख्य स्रोत है। माल्टिंग एक नियंत्रित अंकुरण है जो कच्चे अनाज को माल्ट में परिवर्तित करता है।

जौ की “माल्टिंग“ तकनीक के अतिरिक्त मानव उपयोग के लिए विभिन्न खाद्य उत्पाद प्राप्त करने के लिए दूसरी सबसे अधिक प्रचलित पारम्परिक प्रसंस्करण तकनीक जौ पर्लिंग तकनीक है। जिससे जौ का छिलका उतारकर विभिन्न उत्पादों जैसे बिस्कुट, डबल रोटी, दलिया एवं कुसकुस आदि के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है।

Barley processing machines

चित्र 2: जौ प्रसंस्करण की मशीनें

भारत जैसे विकासशील देश में, पारम्परिक रुप से जौ का उपयोग मनुष्यों के लिए खाद्य पदार्थों (आटा, दलिया, सूजी, सत्तू, फ्लैक्स, बिस्कुट, शीतल पेय पदार्थ व अन्य स्वादिष्ट व्यंजन), पशु आहार एवं इसके अर्क व सीरप का प्रयोग व्यावसायिक रुप से तैयार किए गए खाद्य एवं मादक पेय पदार्थों में स्वाद, रंग या मिठास जोड़ने के लिए किया जाता है।

वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर जौ को औषधि के रुप में भी काफी उपयोगी माना जाता है। भारत में उत्पादित जौ के माल्ट का उपयोग बीयर (60 प्रतिशत), शक्तिवर्धक पेय (25 प्रतिशत), दवाएं (07 प्रतिशत) और माल्ट व्हिसकी (08-10 प्रतिशत) बनाने में किया जाता है।

इन सबके अतिरिक्त जौ का उपयोग कैंडी, चॉकलेट, सीरप एवं ऊर्जावर्धक  पेय बनाने में भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। अन्य खाद्य फसलों की तुलना में उच्च आहार रेशा और कम वसा होने के कारण इसके स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभ जौ की उपयोगिता को और भी प्रबल बनाते हैं।

 Barley products

चित्र 3: जौ से निर्मित विभिन्न उत्पाद

जौ आधारित मूल्यवर्धित प्रमुख उत्पाद

जौ का सत्तू

भारत में सत्तू का उपयोग गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए सदियों से किया जा रहा है। जबकि मई-जून के महीने में गर्म हवाओं के साथ लू चलती है तो सत्तू का पेय मानव शरीर को शीतलता प्रदान करता है। राजस्थान जैसे राज्यों में इसका सर्वाधिक प्रचलन है।

सत्तू के स्वास्थ्य लाभ ऐसे हैं कि इसे लोकप्रिय रूप से स्वदेसी हॉर्लिक्स कहा जाता है। ग्रामीण व्यंजनों में शुमार सत्तू ने धीरे-धीरे शहरी भारत में अपनी पकड़ बना ली है। बढ़ती लोकप्रियता के साथ अब सत्तू जौ के अलावा गेहूँ, चना एवं मटर आदि जैसे पौष्टिक आटे को शामिल करके विकसित किया गया है।

इसका सेवन साधारण पेय से लेकर परांठे, लड्डू, लिट्टी चोखा आदि तक विभिन्न रूपों में किया जाता है। देश के कई राज्यों (राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल) में परम्परागतरूप से सत्तू को गर्मियों के दौरान पौष्टिक पेय के रूप में परोसा जाता है, जिसका शरीर पर ठंडा प्रभाव पड़ता है।

इसके अतिरिक्त सत्तू के सेवन से भूख बढ़ना, मल त्याग में सुधार, शरीर से विषाक्त पदार्थों का निष्कासन, ऊर्जा में वृद्धितथामधुमेह एवं उच्च रक्तचाप वाले लोगों के लिए उपयोगी माना जाता है।

 जौं का सत्तू


चित्र 4: जौ का सत्तू

जौ के रवा से बनी इडली

जौ के रवा से निर्मित लोकप्रिय खाद्य पदार्थ इडली का सेवन दक्षिण भारत और उत्तरी श्रीलंका में व्यापक रूप से किया जाता है, जो अत्यधिक नरम और स्पंजी बनावट के साथ भाप से पकाया गया उत्पाद है। इडली का सेवन साम्बर, जैम, चटनी, सॉसएवं मक्खन के साथ सुबह का नाश्ता, दोपहर या शाम के भोजन में कर सकते हैं।

जौ के रवा से इडली स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक बनती है। उबला हुआ जौ चावल के समान भ्रामक रूप से दिखता है, जो इसे चावल का एक अच्छा विकल्प बनाता है।

इसमें चावल की तुलना में लगभग नौ गुना अधिक आहार रेशा (फाइबर) होता है, जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद के साथ-साथ मल निष्कासन एवं पाचन स्वास्थ्य में सहायता प्रदान करता है। इसलिए, मधुमेह रोगियों के लिए इसे अपने आहार में शामिल करना एक अच्छा विकल्प प्रदान करता है।

चित्र 5: जौ के रवा से बनी इडली (स्रोतः वाया.इन)

जौ आधारित खाद्य पदार्थ इंजीरा

इंजीरा एक पतली और किण्वित पारम्परिक इथियोपियाई जौ आधारित खाद्य पदार्थ है। इसे इथियोपिया में लगभग सभी पारम्परिक व्यंजनों और सॉस के साथ परोसा जाता है। इथियोपिया के लगभग सभी लोग प्रतिदिन कम से कम एक बार इस भोजन का सेवन अवश्य करते हैं। इंजीरा बनाने की प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है। अनाज तैयार करने से लेकर बेकिंग प्रक्रिया तक सभी चरण आज भी पारम्परिक प्रथाओं के तहत स्वदेशी तकनीक के साथ पूर्ण किए जाते हैं।

भारतीय डोसा के समान गोले के आकार की चपटी रोटी के रुप में पकाया जाता है। यह स्वाद एवं बनावट में दक्षिण भारतीय भोजन उत्तपमके समान होता है। इस इथियोपियाई राष्ट्रीय सुपर फूड को कम ग्लूटिन एवं बेहतर पोषण गुणों के कारण कई पश्चिमी देशों में सराहा जाता है।

इसे मध्यम बारीक पिसे हुए जौ के आटे, पानी एवं स्टार्टर लीवेन (एर्शो) से बनाया जाता है। इंजीरा की अच्छी गुणवत्ता की विशेषता थोड़ा सा खट्टा स्वाद माना जाता है। आमतौर पर इसका सेवन बनाने के 2-3 दिन बाद तक आसानी से किया जा सकता है।

 

चित्र 6: जौ आधारित खाद्य उत्पाद इंजीरा

जौ से निर्मित चाय

जौ से निर्मित चाय खासकर गर्मियों के दौरान उपयोग में लाए जाने वाला एक लोकप्रिय पूर्वी एशियाई पेय है। यह जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, भारत और चीन में प्रचलित है। भुने हुए जौ अनाज (रोस्टिड) आधारित स्वादिष्ट एवं थोड़ा कड़वा स्वाद वाला बीटा-ग्लूकन (पॉलीसैकेराइड्स) के उच्च प्रतिशत युक्त गैर-कैफीन एवं गैर-टैनिन युक्त एक महत्वपूर्ण पेय है।

यह 100-374 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 1-22 मेगापास्कल (एमपीए) दबाव के मध्य तैयार किया गया सबक्रिटिकल जल है। जल का निष्कर्षण एक बंद कक्ष में होता है, जो वाष्पशील यौगिकों की क्षति को रोकता है। उप-महत्वपूर्ण जल निकासी (एसडब्ल्यूसी) कोई निपटान लागत प्रस्तुत नहीं करता है, और इसे पारंपरिक कार्बनिक सॉल्वेंट्स के लिए एक अच्छा विकल्प माना जा सकता है।

हाल ही में उप-महत्वपूर्ण जल निकासी द्वारा प्राकृतिक उत्पादों के निष्कर्षण पर बहुत ध्यान दिया गया है क्योंकि यह तकनीक विभिन्न अन्य विलायक निष्कर्षण तकनीकों की तुलना में पर्यावरण के अनुकूल, त्वरित एवं सस्ती है। पारम्परिक चीनी चिकित्सा में जौ की चाय का उपयोग कभी-कभी दस्त, थकान और सूजन के इलाज में किया जाता है।

जौ माल्ट आधारित उत्पाद

माल्ट, अंकुरित जौ से प्राप्त एक उत्पाद है। भारत में इसका उपयोग सदियों से होता आ रहा है। माल्ट प्राप्त करने के लिए सबसे पहले जौ को पानी से भिगोकर साफ करने के बाद नरम किया जाता है, फिरनियत्रिंत परिस्थितियों में अंकुरित होने के लिए रख दिया जाता है। माल्ट उत्पादन के दौरान अंकुरित अनाज को सुखाना, पिसाई, छनाई, निथारना एवं वाष्पीकरण आदि चरणों से 78-80 प्रतिशत ठोस सामग्री के साथ गुजरना पड़ता है।

माल्टिंग, जौ में उपस्थित स्टार्च को शर्करा मुख्यतः माल्टोज में परिवर्तित कर देता है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार भारत दुनिया का सबसे बड़ा उभरता हुआ माल्ट आधारित पेय बाजार है। माल्टोज पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण भारत में माल्ट आधारित पेय को स्वास्थ्य पेय भी कहा जाता है। माल्ट का उपयोग दूध के स्वाद को बढ़ाने के लिए भी किया जाताहै। पौष्टिक पूरक के रूप में माल्ट हमेशा बढ़ते बच्चों और बुजुर्गों के आहार का हिस्सा रहा है, क्योंकि, इसमें 30 से अधिक आवश्यक खनिज तत्व और विटामिन होते हैं, जिसमें उपस्थित फोलिक एसिड गर्भवती महिलाओं और भ्रूण के लिए महत्वपूर्ण होता है।

इसके अतिरिक्त माल्ट का उपयोग खाद्य उद्योग के कई क्षेत्रों द्वारा किया जाता है, जिनकी ठोस सामग्री, एंजाइमिक गतिविधि, रंग, पीएच कारक, शर्करा के स्तर को कम करने की क्षमता, प्रोटीन के लिए उपयोग किया जाता है।

माल्ट का उपयोग अनाज, पके हुए खाद्य पदार्थ, बिस्कुट, बैगेल, ब्रेड रोल की कुछ किस्मों, वफल, पैनकेक कन्फेक्शनरी, सोया दूध और अन्य पेय पदार्थों, शिशु आहार, आइसक्रीम, चॉकलेट आधारित खाद्य पदार्थ, सिरका और यहां तक कि घरेलू भोजन एवं औषधि बनाने (फार्माश्यूटिकल्स) में भी किया जाता है।

आम तौर पर माल्ट में विटामिन, गर्म अर्क, कॉड लिवर ऑयल, पाउडर दूध, वनस्पति वसा, दवाएं और विभिन्न टॉनिक मिलाए जाते हैं। आइसक्रीम और दही में माल्ट मिलाने से और भी निखार आता है।

चित्र 7: जौ माल्ट एवं माल्ट आधारित उत्पाद

माल्ट की उपयोगिता को देखते हुए भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा द्वारा पिछले कुछ वर्षों में उत्तम माल्ट गुणवत्ता वाली जौ की किस्में विकसित की हैं। जिनमें डीडब्ल्यूआरबी 182, डीडब्ल्यूआरयूबी 52, डीडब्ल्यूआरबी 123, डीडब्ल्यूआरबी 101 एवं डीडब्ल्यूआरबी 92 आदि किस्में शामिल हैं।

भारत में माल्ट बनाने के लिए जौ का प्रयोग पहले से ही होता आ रहा है। सरकार की उदार आर्थिक नीतियों के कारण अनेक ब्रूअरीज का भारत में आगमन हुआ जिसके कारण माल्ट की आवश्यकता में निरन्तर वृद्धि देखी जा रही है। इस समय भारत में जौ की प्रति वर्ष औद्योगिक आवश्यकता लगभग पाँच लाख मीट्रिक टन है और इसमें 10 प्रतिशत की दर से वार्षिक वृद्वि हो रही है।

देश में जौ उत्पादन का लगभग 30 प्रतिशत भाग माल्ट बनाने में प्रयोग किया जा रहा है। अतः जौ की बढ़ती उपयोगिता और औद्योगिक मांग ने इसे एक औद्योगिक/व्यवसायिक फसल बना दिया है। भविष्य में जौ की मांग औरबढे़गी, अतः जौ का गुणवत्तायुक्तउत्पादन अब हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

जौ आधारित सौंदर्य उत्पाद

जौ के रूप में उपलब्ध प्राकृतिक उपहार हमारे समग्र स्वास्थ्य और सुंदरता के लिए बेहद लाभकारी हैं, क्योंकि यह आवश्यक पोषक तत्वों से परिपूर्ण है। वैश्विक स्तर पर जौ आधारित त्वचा क्रीम, फेसियल क्रीम, शैम्पू,साबुन, लिपिस्टिक, फेस पाउडर, हेयर कंडीशनर एवं अन्य सौंदर्य प्रसाधन तैयार किए जाते हैं।

निष्कर्ष

जौ एक बहुउपयोगी फसल है जिसका घरेलू उपयोग से लेकर औद्योगिक महत्व है। यह एक तरफ पोषण से भरपूर है तो वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करता है। भारत के परिदृश्य में जौ का रकबा कम हुआ है, परन्तु नई किस्मों एवं उत्पादन तकनीकों में लगातार सुधार की वजह से इसकी उत्पादकता में निरन्तर वृद्धि देखने को मिली है, जो इस फसल की लाभप्रदता को बढ़ाता है। जौ की अनुबन्ध खेती ने भी नई उर्जा का सृजन किया है। आने वाले वर्षों में निश्चित तौर पर किसानों के बीच इस फसल के प्रति पुनः रूझान बढ़ेगा और इसके क्षेत्रफल में भी बढ़ोत्तरी होगी।


 Authors:

मंगल सिंह, अनुज कुमार, सत्यवीर सिंह, दिनेश कुमार, लोकेन्द्र कुमार, अनिल कुमार खिप्पल, जोगेन्द्र सिंह एवं आर.पी.एस. वर्मा

भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान,करनाल,हरियाणा

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