कंद सब्जी फसल अरबी उगाने की वैज्ञानिक विधि

अरबी की वैज्ञानिक नाम कोलोकेसिया इसकुलेनटा तथा यह एरेसी कुल में आता है। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसेः-कच्चु, तारो, झूइयाँ आदि। इस फसल की खेती मुख्यतः सब्जी के रूप में किया जाता है। अरबी के मूल कन्द, मूल कन्द के बगल से निकले कन्दों, तना और पत्तियों का उपयोग विभिन प्रकार के सब्जियाँ बनाने में किया जाता है।

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अरबी के कन्द में स्टार्च, कार्बोहाइट्रेट, कैल्सियम, फॉस्फोरस, पोटासियम तथा सोडियम की मात्रा बहुतायत में पाया जाता है इसके साथ ही इसमें बहुत से सूक्ष्म तत्व भी पाये जाते हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं।

बरसात के महिने में अरबी की माँग बढ़ जाती है क्योंकि उस समय बहुत सारी सब्जी फसल या तो नष्ट हो जाती है या उपज के लायक नहीं होती। पतों के लिए खेती करने वाली प्रभेद सालोभर हरा दिखते हैं परन्तु कन्द वाली प्रभेद सितम्बर माह के शुरू होते ही झुलसा रोग से सुख जाते हैं।

इसकी खेती भारत वर्ष के लगभग सभी प्रदेशों में की जाती है जैसेः महाराष्ट्र, आन्धा प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, बंगाल, असम, इत्यादि प्रदेश। गुजरात में इसकी खेती पत्तियों के लिए एक नकदी फसल के रूप में कर किसान अच्छी मुनाफा करते हैं। 

अरबी एक परपरागित फसल होने के कारण भी इस फसल के बीज उत्पादन के लिए एक प्रभेद को दूसरे प्रभेद से पृथ्कीकरण नहीं करते क्योंकि इस फसल की व्यसायीक खेती कन्द के माध्यम से ही करते हैं।

कन्द में किसी तरह का संक्रमण हो तो उस कन्द को बीज के लिए इस्तेमाल नही करना चाहिए क्योकि यदि रोपाई के समय संक्रमित बीज का प्रयोग करते हैं तो दूसरे पौधों में भी संक्रमण हो सकता है और फसल को नुकसान हो सकता है।

किसान भाईयों को अच्छी उपज तथा लाभ लेने के लिए बहुत से वैज्ञानिक पहलुयों पर ध्यान देने की जरूरत पङती है।

अरबी उगाने के लिए जलवायु एवं वातावरण:-

कोलोकेसिया इसकुलेनटा यानि अरबी या तारों की फसल को गर्म तथा आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसलिए इसे ग्रीष्म एवं वर्षा दोनों ही मौसम में सफलता पुर्वक उगाया जा सकता है। 

प्रमुख शस्य क्रियाएः-

खेतों का चयन एवं तैयारी:-

अरबी की खेती के लिए उपजाऊँ, बलुई दोमट, ऊँची तथा अच्छी जल निकास वाली भूमि उपयुक्त होता है। चिकनी मिट्टी को छोड़कर इसकी खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है जिसका पी. एच मान 5.5 से 7.0 हो।

अरबी के फसल को एक ही भमि पर लगातार नहीं उगाना चाहिए नही तो उस फसल में मिट्टी जनित बीमारियाँ लगने का अंदेशा हो सकता है इसके साथ यदि पिछले साल के अरबी का कन्द उस खेत में रह गया हो तो वह भी मुख्य फसल के साथ उग जा सकता है जिससे प्रभेद की आनुवंशिक गुणों पर प्रतिकुल प्रभाव पङ सकता है।

आनुवंशिक गुणों को कायम रखने के लिए अरबी के फसल को हर वर्ष खेत को बदल कर लगाना चाहिए।

रोपाई से पूर्व:-

कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी हुई खाद 15 टन प्रति  हेक्टर फलाने के बाद मिट्टी पलटने वाली हल से तथा दो जुताई देशी हल से करें तथा प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य चला दे इससे कम्पोस्ट पूरी तरह मिट्टी में मिलने के साथ भुरभुरी हो जाती है।

प्रभेदों का चयन:-

अरबी के प्रभेदों का चुनाव उसके जलवायु एवं वातावरण के अनुकूल करना चाहिए तथा जिस प्रदेश के लिए वह प्रभेद विकसित तथा अनुसंसित की गई हो उसें उसी जलवायु एवं वातावरण में उसकी खेती करना चाहिए जिससे इसकी बढ़वार तथा पैदावार अधिक होता है

अरबी के प्रभेदों का चयन एवं खरीद किसी प्रतिष्ठित संस्थान से करना चाहिए जिससे प्रभेदों की आनुवंशिक गुणों की शुद्धता कायम रहता है तथा फसल की उपज क्षमता प्रभेद के अनुकूल मिल सकता है,अरबी के उन्नत प्रभेद:-

1. राजेन्द्र अरबी -1

यह एक अगेती किस्म की है जो 160-180 दिनों में सब्जी के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज क्षमता 15-18 टन/हेक्टर है।

2. सहत्रमुखी:-

यह प्रभेद 140-160 दिनों में सब्जी के लिए खुदाई के लिए तैयार हो जाती है साथ ही इसकी उपज क्षमता 12-15 टन/हेक्टर है।

3. मुक्ता केशी:-

यह किस्म भी अगती है जिसकी उपज क्षमता 16 टन/हेक्टर है। इस प्रभेद को भी बिहार प्रदेश में उपज के लिए अच्छी पाई गई है।

उपर्युक्त सभी किस्में आसानी से पकने वाली के साथ-साथ बकबकाहट रहित स्वाद वाली है।

अरबी रोपाई का समय, दूरी एवं बीज दर:-

अरबी की रोपाई फरवरी-मार्च में की जानी चाहिए।  एक हेक्टर खेत की रोपाई के लिए वाह्य कन्द की 20-25 ग्राम के औसत वजन वाली 10-12 क्विंटल कन्द की आवश्यकता पङती है। अरबी के कंदों को 50 x 30 सेंटीमीटर की दूरी पर नालियों में, 5-6 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपाई करें। 

रोपाई करने के बाद नाली पर मिट्टी चढ़ाकर मेड़ बना देना चाहिए जिससे सिंचाई करने में आसानी होती है। रोपाई के तुरन्त बाद हल्का सिंचाई करना चाहिए जिससे पौधे समय पर उग आते हैं रोपाई की हुई खेतों को पराली या शीशम की पतियों या काली प्लास्टीक से मलचीगं करनेसे खेतों में पर्याप्त नमी कायम रहता है तथा खरपतवार का प्रकोप भी कम होता है

अरबी मे उर्वरक की मात्रा:-

नेत्रजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश 80:60:80 कि॰ग्रा॰/हेक्टर की दर से व्यवहार में लाने के लिए अनुशंसित की गई है। रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग तीन भागों में बाँट कर करें।

रोपाई से पूर्व फॉरफोरस की सम्पूर्ण मात्रा नेत्रजन एवं पोटाश की एक तिहाई मात्रा का प्रयोग करें।

नेत्रजन एवं पोटाश की एक तिहाई मात्रा अंकुरण होने के 7-8 दिनों बाद तथा शेष बची मात्रा को प्रथम उपरिवेशन से एक माह बाद निकौनी के पश्चात् मिट्टी चढ़ाते समय इस्तेमाल करें।

अरबी में सिंचाई:-

फरवरी माह में रोपाई की गई फसल में 5-6 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। खेतों में नमी बनाये रखने के लिए 12-15 दिनों मे अंतराल पर सिंचाई अवश्य करें जिससे अच्छी उपज होती है।

निकाई- गुड़ाई:-

प्रथम निकौनी 45-50 दिनों बाद करें इसके पश्चात् मेड़ पर मिट्टी चढ़ा दें जिससे पौधों की अच्छी बढ़वार के साथ-साथ उपज में भी वृद्धि होती है। खरपतवार के नियंत्रण के लिए खरपतवार नाशी का भी प्रयोग कर सकते हैं। जैसे एल्ट्रजीन या सीमैजिन का एक किलोग्राम क्रियाशील तत्व/हेक्टर की दर से प्रयोग करें।

अरबी के कीट

अरबी के इल्ली एंव लाही कीट:-

रोकथामः इण्डोसल्फान (30 ई॰सी॰) की 2 मि॰ ली॰ अथवा डायमिथोएट (30 ई॰सी॰) की 1 मि॰ ली॰ प्रति ली॰ पानी की घोल को 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

अरबी के रोग

झुलसा रोग

डाईथेन एम-45 (0.2 प्रतिशत ) का घोल1-1 सप्ताह के अंतराल पर 4-5 छिड़काव करना चाहिए।

अवांछित पौधों का निष्कासन (रोगिंग)

प्रभेद से भिन्न पौधों को निकाल बाहर करना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है जिसके बिना शुद्ध प्रभेद के कन्द प्राप्त करना असंभव है। जो पौधे प्रभेद के गुणों से बिलकुल अलग दिखाई दे या पौधे में वायरस या कोई भी बीमारी या कीट पतंग का प्रकोप हो तो उस पौधे को उखाङ कर फेंक देना या मिट्टी में दबा देना चाहिए। इस तरह की क्रियाए बार-बार दुहराना चाहिए जब तक पौधे खुदाई के लिए तैयार नहीं हो जाय।

अरबी कन्दों की खुदाई:-

अरबी की फसल 5-7 माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। वैसे 140-150 दिनों बाद कन्दों की खुदाई कर बाजार में बिक्री की जा सकती है। परन्तु जब इसे बीज के उदेश्य से इसकी खेती करते हैं तो इसे दिसम्बर-जनवरी माह में खुदाई की जानी चाहिए ताकि जितने भी तने हैं वह पूरी तरह से सुख जाय।


Authors:

अनुज कुमार चौधरी

भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ सिटी, पूर्णियाँ

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