Seed Production technology of Rooted Vegetable Crops

Seed production of Radishजड़ वाली सब्जियों में मूली, शलगम, गाजर व चकुंदर प्रमुख है। जड वाली सब्जियों की खेती में कृषि क्रियाओं में प्रयाप्त समानता है। ये ठंडे मौसम की फसलें है तथा सभी भूमिगत होती है। इनसे हमें पौष्टिक तत्व, शर्करा, सुपाच्य रेशा, खनिज लवण, विटामिन्स व कम वसा प्राप्त होती है।

बीज उत्पादन के लिए इन सब्जियों को दो अलग-अलग समूहों में बांटा गया है। एशियाटिक या उष्णकटिबंधीय समूह तथा युरोपियन या शीतोष्ण समूह। 

युरोपियन समूह में शीतकालीन किस्में आती है जिनका बीज उत्पादन पहाड़ी इलाकों में ही सभंव होता है जबकि मूली, शलगम व गाजर की अर्द्धउष्णीय या एशियाटिक किस्मों का बीज उत्पादन उत्तर भारत के मैदानी भागों में भी किया जा सकता है। इन सब्जियों में शुद्ध बीज बनाने के लिए जडों से बीज बनाने की विघि प्रयोग में लाते है जिसका विवरण निम्न प्रकार है-

बीज उत्पादन के लिए किस्म का चयन:

जिन किस्मों की बाजार में मागं हो या जिन्हे किसान अपने लिए उगाना चाहता है, उन्हे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। किस्म अच्छी पैदावार देने वाली हो। किस्म में रोग रोधिता, अगेतापन आदि वांछित गुण होने चाहिए।

छांटी गई किस्म उस क्षेत्र विशेष की जलवायु के अनुकूल होनी चाहिए ताकि उत्पादन के समय आनुवशिंक परिवर्तन की सभ्ंाावना ना रहे। बीज उत्पादन के लिए स्वस्थ व बीमारी रहित प्रमाणित बीज अथवा आघार बीज का ही प्रयोग करें। चयनित किस्म का शुद्ध बीज किसी अनुसंधान केन्द्र, बीज निगम, कृषि विश्वविधालय या सुस्थापित बीज फर्म से प्राप्त करना चाहिए।

जड वाली फसलों की उन्नत किस्में

मूली की एशियाटिक किस्में : पूसा देशी, पूसा रेश्मी, पूसा चेतकी, पूसा मृदूला

गाजर की एशियाटिक किस्में : पूसा रूघिरा, पूसा केसर, पूसा मेघाली, पूसा आसिता, पूसा वृष्टि

शलगम की एशियाटिक किस्में :  पूसा स्वेती, पूसा कंचन

 जड़ वाली सब्जियों में बीज उत्पादन के लिए खेत का चयन:

बीज उत्पादन के लिए ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए जिसमें पानी के निकास की उचित व्यवस्था हो एवं फसल के लिए प्रर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ उपलब्द्य हो। मृदा गहराई तक हल्की, भुरभुरी व कठोर परतों से मुक्त होनी चाहिए।

उसी खेत का चयन करें जिसमें पिछले एक वर्ष में बोई जाने वाली किस्म के अलावा कोई दुसरी किस्म बीज उत्पादन के लिए ना उगाई गई हो। इसकी फसल के लिए खेत सर्वोत्तम पी.एच. मान 6-7 होता है। खेत खरपतवारों व अन्य फसलों के पौद्यों से मुक्त होना चाहिए। खेत की मृदा रोगों व कीटों से मुक्त होनी चाहिए।

जड़ वाली सब्जियों की बीज बुवाई एवं जड़ उत्पादन:

खेत में एक जुताई मिट्टी पलट हल से व 2-3 जुताई हैरो या कल्टीवेटर से करें। प्रत्येक जुताई के बाद सुहागा लगाएं ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। खेत की तैयारी के समय 150-200 क्व्ंिटल भली भांति सड़ी हुई गोबर की खाद, 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से मिलाई जाती है।

इसके अतिरिक्त 35 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर जड़ों का बनना शुरू होने पर छिड़काव द्वारा दें। बीजाई से पहले खेत से पिछली फसल के सभी अवशेषों को निकाल देना चाहिए। एक हैक्टेयर में बुवाई के लिए गाजर तथा शलगम में 3-4 कि. ग्रा. तथा मूली में 8-10 कि. ग्रा. बीज का प्रयोग करते है।

मैदानी भागों में इन किस्मों के बीज उत्पादन हेतु  बीज की बुवाई अगस्त-सितंबर में करते है। बीज की बुवाई 40-45 सै.मी. चौड़ी तथा 15-20 सै.मी. उंची मेड़ों पर करते है। बिजाई से पहले बीज को उपयुक्त कवकनाशी से उपचारित कर लेना चाहिए।

बीजाई के समय मिट्टी में प्रयाप्त नमी होनी चाहिए। बीज में अंकुरण 8-10 दिन में होता है। पहली सिंचाई बीज उगने के बाद करें। बीज जमाव के बाद जब पौघे 5-6 सै.मी. लंबाई के हो जाए तो प्रत्येक दो पौघों के बीच में 5-7 सै.मी. का अंतर रखकर फालतु पौघों को निकाल देतें है।

पंक्तियों के बीच में दो-तीन बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, ताकि खरपतवारों पर नियत्रंण रख जा सके तथा जमीन में नमी भी बनाई रखी जा सके।

खरपतवारों के रसायनिक नियत्रंण हेतु फलूक्लोरालिन (बासालिन 45 ई+ स़ी) या पेन्डीमेथालिन (स्टाम्प 30 ई+ स़ी) का प्रयोग 1.0 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के 2 दिन के अन्दर छिड़काव द्वारा करते है।

बुवाई के 15-20 दिन बाद पौघों की जड़ों के साथ मिट्टी चढ़ाना लाभदायक रहता है। एक हैक्टेयर खेत में तैयार जड़ें बीज उत्पादन के लिए 3-4 हैक्टेयर क्षेत्र में प्रतिरोपण के लिए पर्याप्त होती है।

जड़ों की खुदाईछंटाई एवं प्रतिरोपणः

मूली व शलगम में बीजाई के 35-65 दिन बाद तथा गाजर में बीजाई के 90-100 दिन बाद प्रतिरोपण के लिए जडें तैयार हो जाती है। बोई गई किस्म से मेल खाती जड़ों को भूमि से निकालकर रगं, आकार व रूप के आघार पर छांट लेते है।

छांटी गई जड़ों का नीचे से एक तिहाई तथा पत्तियों को 5-8 सै.मी. रखकर काट देते है। पत्तों को काटते समय इस बात का घ्यान रखें कि पादप शिखर को हानि ना पहुचें ताकि जड़ प्रतिरोपण के बाद पौघे का फुटाव जल्दी हो सके। छांटी गई जड़ों को प्रतिरोपण से पहले फफुंदीनाश्क से उपचारित कर लें।

जड़ प्रतिरोपण से पहले हैरो या कल्टीवेटर द्वारा खेत को अच्छी तरह तैयार करें। प्रत्येक जुताई के बाद सुहागा लगाएं ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। खेत की तैयारी के समय 150-200 क्व्ंिटल भली भांति सड़ी हुई गोबर की खाद, 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 50 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से मिलाई जाती है।

इसके अतिरिक्त प्रति हैक्टेयर की दर से 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन जड़ प्रतिरोपण के 21 दिन बाद वानस्पतिक शाखाओं के निकलते समय तथा 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन फूल आना शुरू होने से पहले छिड़काव द्वारा दिया जाना चाहिए। उर्वरकों की मात्रा मृदा परिक्षण के आधार पर आवश्यकतानुसार प्रयोग की जानी चाहिए।

छांटी गई जड़ों को क्रमशः 60x 60 सै. मी. (मूली), 60x 45 सै. मी. (शलगम) तथा 60x 30 सै. मी. (गाजर) की दूरी पर लगाते है। इनके प्रतिरोपण का समय फसल तथा प्रजाति के उपर निर्भर करता है। मूली तथा शलगम में प्रतिरोपण का उचित समय अक्टुबर-नवंबर तथा गाजर में मघ्य दिसंबर से मघ्य जनवरी तक है। जड़ें प्रतिरोपित करने के बाद खेत को सींचा जाता है। प्रतिरोपण के 15-20 दिन बाद जड़ों के साथ पौघों के साथ मिटटी चढ़ाना आवश्यक है।

अवांछित पेद्यौ को निकालना:

कोई भी वह पौद्या जो लगायी गई किस्म के अनुरूप लक्षण नहीं रखता है उसे अवाछंनीय पौद्या माना जाता है। अवाछंनीय पौद्ये निकालने वाले व्यक्ति को किस्म के लक्षणों का भली भांति ज्ञान होना चाहिए जिससे की वह अवाछंनीय पौद्यों को पौद्ये की बढवार, पत्तों व फूलो के रंग-रूप, जड़ों के रंग-रूप व फूलो के खिलने का समय आदि के आद्यार पर पहचान सके।

अवाछंनीय पैद्यों का निरीक्षण चार बार करतें है प्रथम निरीक्षण जडों को उखाडने से पहले पौद्यों की शाकिय बढ़वार की अवस्था में पत्तों के रगं रूप के आधार पर तथा दुसरा निरीक्षण जडों को खेत से निकालते समय करते है। बोई गई किस्म से मेल खाती जडों को ही प्रतिरोपण के लिए चुनते है। फूलों के खिलने के समय जो पौधे बहूत जल्दी फलन की अवस्था में आते है तथा जो पौधे सामान्य से बाद में फूल की की अवस्था में आते है उनको भी निरीक्षण के दौरान निकाल देना चाहिए।

जिन पौद्यों में बीमारी (खासकर बीज से उत्पन्न होने वाली निर्दिष्ट बीमारी जैसे ब्लैक लैग या बलैक रोट) के लक्ष्ण दिखाई दें, उन्हे भी खेत से हटाना जरूरी है। हर अवस्था पर जो भी अवाछंनीय पौद्ये मिलें उन्हे निकालते रहना चाहिए।

पृथक्करण: 

पर-परागित फसलें होने के कारण इन फसलों का आनुवशिंक रुप से शुद्ध बीज प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि दो किस्मों के बीच में एक निर्धारित दूरी अवश्य रखी जाए। आधार बीज उत्पादन के लिए मूली व शलगम में 1600 मीटर तथा गाजर में 1000 मीटर प्रथक्करण दूरी रखतें हैं जबकि प्रमाणित बीज के लिए मूली व शलगम में 1000 मीटर तथा गाजर में 800 मीटर प्रथक्करण दूरी रखतें हैं।

मधुमक्खीयों का उपयोग:  

मूली, शलगम, गाजर में पर-परागण आवश्यक है जिसमें मधुमक्खीयां व अन्य कीट परागण में मदद करते है। मद्युमक्खीयों व अन्य कीटों द्वारा समूचित मात्रा में पर परागण होने से इन  फसलों में उत्तम गुण वाले बीजों की कुल पैदावार बढ़ जाती है। बीज खेत में फूल आना आरभं होने के समय मद्युमक्खियों के 2-4 बक्से प्रति एकड़ की दर से रखे जाने चाहिए।

कीट एवं रोग प्रबधंन

आमतौर पर इन फसलों में कीटों एवं रोगों का प्रकोप कम होता है।  माहू या चेपा व फुदका पत्तियों व तनो से रस चुसते है। इनसे बचाव के लिए ईमिडाक्लोप्रिड 0.25 मि0लि0 या मैलाथियान 2.0 मि0लि0दवा प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें।

पत्ती कुतरने वाले कीट से बचाव के लिए कार्बेरिल 2.0 ग्राम या डाइमिथोएट 30ई0 सी0 अथवा मैलाथियान 50ई0सी0 अथवा मिथाइल डेमेटोन 25ई0सी0 दवा 2मि0लि0 प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें।

बीज, पौघ व जड़ सडन रोग से बचाव  हेतु ट्राइकोडर्मा विरिडी 4 ग्राम अथवा कार्बाडांजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचार करें। पत्ती धब्बा रोग से बचाव हेतु कार्बाडांजिम या डाइथेन एम-45 के 0.25 प्रतिशत के धोल का छिड़काव करें।

जड वाली फसलों की बीज फसल की कटाई:

बीज उत्पादन हेतु फलियों/ फुलवृंतों  को समय से तोड़कर उनसे बीज निकालना ठीक रहता है। इसमें असावधानी बरतने पर बीज की उपज व गुणवत्ता में कमी आती है। इन फसलों में बीज की फसल कटाई हेतु मार्च-मई के महिने में तैयार हो जाती है।

मूली तथा शलगम की फलियों को पीला पड़ने पर व पूर्णतः सुखने से पहले ही काट लेते है। फसल को सुबह के समय काटना उचित रहता है।

खलिहान में पौघों को अच्छा तरह सुखाकर फलियों को बीजों को अलग करके साफ व श्रेणीकृत किया जाता है। गाजर के फुलवृंतों को एक -एक कर पकने की अवस्था में काटते है तथा 2-3 बार में सारी फसल की कटाई होती है।

काटे गए फुलवृंतों को छाया में 5-7 दिन सुखाने के बाद गहाई व मड़ाई करके बीज निकालते है।

बीज की उपज व भंडारणः

प्रति हैक्टेयर क्षेत्रफल में मूली में 800-1000 कि.ग्रा., शलगम में 600-800 कि.ग्रा. तथा गाजर में 500-600 कि.ग्रा.  बीज की औसत पैदावार हो जाती है। साफ किये गए बीजों को 7-8 प्रतिशत नमी तक सुखाकर, नमीरोघी थैलों में भरा जाता है। बीज भंडारण के दौरान बीजों को कीटों से बचाव हेतु ईमिडाक्लोपरिड चूर्ण 0.1 ग्राम या मेलाथियान चूर्ण 0.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से तथा फफुंदी जनक रोगों से बचाव हेतु थिराम या कार्बाडांजिम चूर्ण 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचार करें। बीजों को नमी रहित, ठडें स्थानों  पर भंडारण हेतु रखा जाता है।


जड़ों की खुदाई एवं छंटाई प्रति रोपण हेतु जड़ों का चुनाव

जड़ों की खुदाई एवं छंटाई                       प्रति रोपण हेतु जड़ों का चुनाव


किस्म की शुद्धता हेतु जड़ों की जाचॅमूली की  जड़ों का प्रतिरोपण

 किस्म की शुद्धता हेतु जड़ों की जाचॅ          मूली की जड़ों का प्रतिरोपण


मूली (पूसा चेतकी ) बीज फसल फलन अवस्था मेंबीज फसल हेतु  फलियॉ परिपक्व अवस्था में

मूली (पूसा चेतकी ) बीज फसल फलन अवस्था में           बीज फसल हेतु फलियॉ परिपक्व अवस्था में

 


Authors:

सुरेश चंद राणा, विनोद कुमार पंडिता एवं पी बी सिंह

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय स्टेशन, करनाल-132001

Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

New articles

Now online

We have 156 guests and no members online