Soil Health for Agriculture and Environmental Sustainability

मृदा स्वास्थ्य, मृदा की वह क्षमता जो जैविक  उत्पादकता और पर्यावरणीय गुणवत्ता बनाए  रखने, पौधे, पशु और मानव स्वास्थ्य को बढावा देने के लिए  एक महत्वपूर्ण  जीवित  प्रणाली के  रूप में  कार्य करती  है। मृदा स्वास्थ्य, मानव स्वास्थ्य की तरह भौतिक, रासायनिक और जैविक  प्रक्रियाओं  के  बीच परस्पर क्रिया है।  बढती हुई जनसंख्या के विए पर्याप्त खाद्य उत्पादन बिना स्वस्थ एवं उपजाऊ मृदा के संभव नहीं है। मृदा प्राकृतिक संसाधनों में से एक है जो मानव सभ्यता का समर्थन करती है। एक उत्पादक और स्वस्थ मृदा के बिना लगातार बढ़ती  मानव आबादी को खिलाने  के लिए पर्याप्त  भोजन पैदा करने  की संभावना असंभव है।

भारत में कुल कृषि योग्य भूमि का 147 मिलियन हेक्टयेर भूमि क्षरित है। जिसमे से 94 मिलियन हेक्टयेर जल कटाव, मिलियन हेक्टयेर अम्लीकरण, 14 मिलियन हेक्टयेर बाढ, 9 मिलियन हेक्टयेर लवणता और 7 मिलियन हेक्टयेर इन सभी कारको के संयुक्त प्रभाव से प्रभावित है। मृदा स्वास्थ्य ख़राब होने के मुख्य कारणों में गहन जुताई, वार्षिक/मौसमी परती, मोनोक्रोपिंग वार्षिक फसलें व्यापक अकार्बनिक उर्वरक उपयोग, अत्यधिक फसल अवशेष हटाना आदि शामिल है।

एक और कारण है जिससे हमें मृदा के स्वास्थ्य की परवाह करनी चाहिए वह है पर्यावरण, आर्थिक और सार्वजानिक स्वास्थ्य के परिणाम जो खराब और अस्वस्थ मृदा से उत्पन्न होते हैं। अतः मृदा स्वास्थ्य सिद्धांतों को लागू करके ही इन भूमि को एक उपयोगी स्थिति  में पुन: उत्पन्न किया जा सकता है।

 मृदा स्वास्थ्य सिद्धांत निम्नलिखित है:

  • मृदा की जुताई को कम करना या न्यूनतम करना।
  • अधिकतम मृदा आवरण इसका अर्थ है, मृदा को सदैव ढक कर रखना
  • अधिकतम जैव विविधता और निरंतर जीवित जडों को अधिकतम करें।
  • कोई भी क्रिया जो मृदा के कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाता है, और फलस्वरूप जैविक गतिविधि, सम्मुचय स्थिरता में सुधार करता है।
  • पौधों की विविधता बढाएँ ।
  • कृषि के साथ पशुधन को एकीकृत करें।

मृदा समुच्चय मृदा स्वास्थ्य संकेतक-

मृदा सम्मुचय मृदा संरचना निर्माण और मृदा स्वास्थ्य में  प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कृषि में, कृषि  पारिस्थितिकी  तंत्र कितनी अच्छी तरह कार्य करेगा, इसके लिए सम्मुचय की स्थिरता महत्वपूर्ण है। मिटटी में छिद्र हवा और पानी के भंडारण और गैसीय विनिमय को प्रभावित करते हैं। ये मृदा के सूक्ष्मजीवों के लिए आवास बनाते हैं, और पौधे की जड़ों के विकास और प्रवेश की अनुमति देते हैं।

ये पोषक तत्क के चालन और परिवहन में भी सहायता करते हैं। सम्मुचय स्थिरता में परिवर्तन मिटटी की रिकवरी या गिरावट के के शुरुआती  संकेतक के रूप में काम कर सकता है। सम्मुचय स्थिरता मिटटी में कार्बनिक पदार्थ सामग्री, जैविक गतिविधि और पोषक चक्रण का एक संकेतक है।

नीचे दी गई क्रियाये मृदा स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है:

1. विविध फसल प्रणाली-

इसमें फसल रोटेशन, फसल उत्पादन के साथ पशुधन को एकीकृत करना, परती खेत, बफर स्ट्रिप्स आदि शामिल है, जो न केवल मृदा स्वस्थ्य का सुधार करती है, बल्कि कृषि विविधता में मदद करती है इसके आलावा ये पोषक तत्व चक्र, मृदा जल प्रबंधन, कीट नियंत्रण, परागकणों के लिए आवास आदि की रोकथाम में भी सहायता करती है।

2. फसल चक्र-

फसल चक्र, मिटटी के स्वास्थ्य में सुधार, मिटटी में पोषक तत्वों का अनुकूलन और खरपतवार के दबाव से निपटने के लिए एक ही भूखंड पर क्रमिक रूप से विभिन्न फसल लगाने की क्रिया है। एक अच्छा फसल चक्र, मृदा जनित रोगो को नियंत्रित करता है। सूक्ष्म जीवो की क्रियाओ को बढ़ावा देता है। उपज अधिक प्राप्त होती है, क्योकि एक फसल पर निर्भरता कम होती है।

फसल चक्र में लगाई जाने फसलों विभिन्न फसलों में उथली जड़ वाली फसले जैसे कुछ घासें मृदा के कणों को बांधने का कार्य करती है और मृदा का संघनन कम करती ह, जबकि गहरी जड़ वाली फसले कठोर सतह तोड़ने का कार्य करती है जिससे पोषक तत्वों का वितरण मृदा की सभी प्रोफाइल में अच्छी तरीके से होता है।

3.विभिन्न गहराई की जड़ वाली विविध फसलों की प्रजातियों को बढ़ावा देना -

शोधो में बताया गया है की विभिन्न पौधों की विविधता मृदा कार्बन को स्थिर करके मृदा स्वास्थ्य का सुधार करती है। ये पौधों की जड़ें विभिन्न एन्ज़ाइम का उत्पादन करती है, जो की पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में सहायता करते है तथा कार्बनिक पदार्थ संचय करते है। पौधों की जड़ें विभिन्न प्रकार के पदार्थ (जड़ एक्सुडेटस) स्त्रावित करती है, ये पदार्थ मृदा कणो को आपस में बांधते है, जिन्हे सम्मुच्चय कहते है। जो की मृदा जल धारण क्षमता तथा अपरदन आदि के लिए महत्पूर्ण है।

4. आवरण फसलों का प्रयोग-

मृदा के स्वास्थ्य को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण सिद्धांत जड़ो की उपस्थिति अधिकतम करना है। जिससे मृदा के खाद्य वेब में कार्बन एक्सुडेटस को खिलाने वाले निरंतर जीवित पौधों की उपलब्धता हमेशा बनी रहे, जो मिटटी के खाद्य वेब के लिए प्राथमिक खाद्य स्त्रोत है। आवरण फसले इसके लिए एक अच्छा विकल्प है, आवरण फसलों के उपयोग से मृदा के स्वास्थ्य में सुधार होता है।

इसके अलावा दलहनी फसलों को आवरण फसलों के रुप में उपयोग करने से उनकी जड़ो में रहने वाला राइज़ोबियम जीवाणु वातावरण की नाइट्रोजन को पौधों के लिए उपलब्ध नाइट्रोजन में परिवर्तित कर देता है, जो की आगे लगाई जाने वाली फसलों के द्वारा उपयोग की जाती है। आवरण फसले मृदा के कणों को बांधने तथा सूक्ष्म जीवो की क्रियाओ को बढाती है।

5. संरक्षित खेती-

मृदा की गहन जुताई मृदा के क्षरण को बढ़ावा देती है तथा मृदा स्वास्थ्य, पानी की गुणवत्ता और टिकाऊ फसल प्रणाली की क्षमता को काम करती है। मृदा की जुताई को कम करें क्योंकि यह मृदा के सूक्ष्मजीवों के आवास और आबादी को बाधित करता है, जो मृदा के स्वास्थ्य को बनाये रखने और सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान देते है। अधिक जुताई मृदा के वातन में सुधार करती है।

सूक्ष्मजीवों की क्रियाएं तेज़ होती है जिससे कार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण (कार्बनिक पदार्थ हानि) की दर अधिक होती है, फलस्वरूप मृदा कार्बन, कार्बन डाई ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाती है और वातावरण में खो जाती है इससे कार्बनिक पदार्थो का ह्रास भी अधिक अधिक होता है जो रोगाणुओं के लिए भोजन और मृदा के सम्मुचय के लिए आवश्यक है।

अतः मृदा संरक्षण क्रियाएं मृदा स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए अत्यंत आवश्यक है इन मृदा संरक्षण क्रियाओं में संरक्षित खेती का एक नया तरीका है जिसकी मदद से पर्यावरण का ख्याल रखा जाता है। इस अनोखी तरह की खेती में जमीन को या तो बिलकुल भी नहीं जोता जाता है या फिर कम से कम जुताई की जाती है तथा मृदा सतह पर ३०% पौध अवशेष छोड़े जाते है इसके अलावा टेरेस बफर स्टिप्स आवरण फसल चारागाह क्षरण नियंत्रण खादों का प्रयोग और मृदा परीक्षण आदि इसमें शामिल है।

6. कार्बनिक पदार्थो का मृदा में समावेश-

मृदा के कर्बनिक पदार्थ में खनिज के सामान मात्रा की तुलना ममें 10-1000 गुना अधिक पानी और पोषक तत्व होते है। कर्बनिक पदार्थ मिटटी के सूक्ष्मजीवों और जीवों (केंचुओं आदि) द्वारा टूट जाते है और ये जीव कार्बनिक यौगिकों का स्त्राव करते है, जो की गोंद होते है जो सीमेन्टेशन बनाते है। पौधों की जड़ें भी जड़ एक्सुडेटस नामक कार्बनिक यौगिकों को स्त्रावित करके सम्मुचय निर्माण में भूमिका निभाती है।

ये जड़ क्षेत्र के पास मिटटी को एक साथ बाँधने में मदद करते है। माइकोराइज़ा फंगस कुछ प्रोटीन जैसे ग्लोमालिन आदि को स्त्रावित करती है जो मृदा के सम्मुच्चय में सहायक है। इसके अलावा इनकी द्वारा बनाई जाने वाली हाइफा संरचना का नेटवर्क छोटे तथा बड़े सम्मुचय को बांधने का कार्य करता है।

कई बैक्टीरिया सक्रिय रुप से बाह्य पोलीमेरिक पदार्थो को उत्सर्जित करते है, जो मृदा के सम्मुचय में सहायक है। उच्च सम्मुचय स्थिरता वाली मृदा में क्षरण की संभावना कम होती है। पानी की तरह विघटनकारी ताकतों के संपर्क में आने पर वे अपना आकर बनाये रखते है और आसानी से अलग नहीं होते है।

निष्कर्ष-

स्थाई फसल और पशुधन उत्पादन प्राप्त करने के लिए, प्राथमिक आवश्यकता मृदा की उर्वरता और मिटटी के स्वास्थ्य को बनाये रखना है कृषि और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए मृदा स्वास्थ्य पहली आवश्यकता है

मृदा स्वास्थ्य की रक्षा करने वाली मृदा प्रबंधन और संरक्षण प्रथाएं न केवल आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से आवश्यक है बल्कि मिटटी के लचीलेपन को बनाये रखने और बढ़ने के लिए सही दृष्टिकोण है इसे व्यवहारिक संरक्षण योजनाओं को अपनाकर प्राप्त किया जा सकता है

मृदा स्वास्थ्य का निर्माण और सुधार निरंतर उत्पादकता सुनिश्चित करेगा, किसानो की आय में वृद्धि करेगा और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देगा ।


Authors:

मेघा विश्वकर्मा1 और जी. एस. टैगोर2

1सहायक प्राध्यापक, श्री वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय इंदौर मध्य प्रदेश

2वैज्ञानिक, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर

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