Late Blight Disease of Potato

भारत में रबी में उगाई जाने वाली आलू एक महत्त्वपूर्ण फसल है| उत्तरप्रदेश के जनपद कानपुर क्षेत्र कन्नौज, फर्रुखाबाद, आगरा, इटावा, फिरोजाबाद, हाथरस, मथुरा, बदायूं, मेरठ, हापुड़, अलीगढ, आदि जनपदों आलू की खेती व्यापक तौर पर  की जाती है| आलू उत्पादन में उत्तर प्रदेश अग्रणी राज्य है, जो भारत के  कुल उत्पादन का  23.29 % है|

आलू का लगभग सभी परिवारों में किसी न किसी रूप में इस्तेमाल किया जाता है | आलू कम समय में पैदा होने वाली फसल है | इसमें स्टार्च, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन विटामिन-सी व खनिज लवण भरपूर मात्रा में होने के कारण इसे कुपोषण की समस्या के समाधान का एक अच्छा साधन माना जाता है इसलिए आलू को सब्जियों का राजा भी कहा जाता है  |

आलू की फसल जयादातर पछेती झुलसा से अधिक  प्रभावित होता  है अगर सही समय पर इसका प्रबंधन न किये जाय तो  लगभग 15 फीसदी तक कुल उत्पादन में कमी आंकी जा चुकी है |

भारत में आलू की खेती लगभग 3.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र  में की जाती है | आज के दौर में इस का वार्षिक उत्पादन 26.8 लाख टन हो गया है | इस समय भारत दुनिया में आलू के क्षेत्र के आधार पर चौथे और उत्पादन के आधार पर पांचवें स्थान पर है |

आलू का पछेती  झुलसा रोग :

आलू का पछेती  झुलसा रोग बेहद विनाशकारी है | आयरलैंड का भयंकर अकाल जो साल 1945 में पड़ा था, इसी रोग के द्वारा आलू की पूरी फसल बर्बाद  हो जाने का ही परिणाम  था | यह रोग उत्तर प्रदेश के मैदानी तथा पहाड़ी दोनों इलाकों में आलू की पत्तियों, शाखाओं व कंदों पर संक्रमण करता है |

अनुकूलता :

इस कवक के फैलाव हेतु रात का तापमान  8-10 डिग्री सेंटीग्रेट एवं दिन का 15 डिग्री सेंटीग्रेट से कम तापमान अनुकूल  होता है एवं आर्द्रता 90% से ज्यादा इसे बढ़ाने में मदद करती है एवं साथ ही साथ  बरसात से पूर्व लगातार बदली छाई रहे एवं कई दिनों तक हल्की बरसात (कम से कम 0.1 मि.मी.) हो जाय तब इसके रोगाणु के  फैलाव हेतु  अति अनुकूल समय होता है

इसका संक्रमण पत्तियों समेत तना एवं कंद आदि में तेजी से फैलता है | रात में अधिक कोहरा रहने से इस रोग की तीव्रता को बढ़ाने में सहायक होता है | अगर रोग का प्रकोप पांच दिनों तक बना रहा तो पौधों के पत्तियों, शाखाओं व कंदों कोजल्द ही  नष्ट कर देता है |

कारक एवं लक्षण :

यह रोग फाइटोपथोरा इन्फेसटेन्स नामक  कवक के कारण होता  है एवं इसके स्पोरेंजिया हवा के माध्यम से फैलते  है | इससे ग्रसित पत्तियों की निचली सतहों पर छोटे सफेद रंग के गोले (अनियमित जलमग्न धब्बे) बन जाते हैं,

पत्तियों के उपरी सतह पर शुरुआती में नियमित से अनियमित हल्का हरा से गहरा हरा रंग लिए हुए धब्बे बाद में भूरे व काले हो जाते हैं | पत्तियों के ग्रसित होने से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित हो जाती है, फलस्वरूप  आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में भारी कमी भी आ जाती है |

समेकित प्रबंधन :

  • बोआई हेतु स्वस्थ कंदों का ही प्रयोग करे |
  • फसल की सतत निगरानी करते रहे |
  • संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करे, नत्रजन युक्त अधिक खादों का प्रयोग रोग की तीव्रता को बढाता है |
  • खेत की हल्की सिंचाई करे,अधिक नमी रोग की तीव्रता को बढाता है  |
  • रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन करे जैसे कुफरी गिरधारी,कुफरी हिमालिनी,कुफरी शैलजा,कुफरी अंलकार, कुफरी बादशाह, कुफरी आनंद कुफरी चिप्सोना-1,2 कुफरी ललित ,कुफरी पुखराज ,कुफरी मेघा,कुफरी कंचन,,कुफरी ज्योती आदि ।

संक्रमण दिखने पर सी.आई.बी.आर.सी. फरीदाबाद, हरियाणा द्वारा अनुसंशित पछेती झुलसा के रोकथाम हेतु निम्नलिखित फफुद्नाशकों का प्रयोग सही समय पर एवं सही विधि से करे :

  • एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 23% एस.सी.@ 500 ग्राम / 500 लीटर पानी या केप्टान 50% डब्लू.जी.@1500 ग्राम / 500 लीटर पानी या केप्टान 50% डब्लू.पी.@2.5 किग्रा / 750 लीटर पानी या केप्टान 75% डब्लू.पी.@1.7 किग्रा. / 750 लीटर पानी या क्लोरोथलोनील 75% डब्लू.पी.@1.0 किग्रा / 600 लीटर पानी या कॉपर ओक्सीक्लोराइड 50% डब्लू.पी.@2.5 किग्रा. / 750-1000 लीटर पानी या हेक्साकोनाजोल 2% ई.सी.@ 3 लीटर / 500 लीटर पानी या क्रिसोक्सिम मिथाइल 44.3% एस.सी. @500 मिली. / 500 लीटर पानी या मेंकोजेब 75% डब्लू.पी. @1.5 -2.0 किग्रा / 750 या मेटीरम 70% डब्लू.जी. @2.0 किग्रा / 500-700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिडकाव करे |
  • आलू की पत्तियों पर कवक का प्रकोप रोकने के लिए कारबेंडाजिम 1.92% + मेंकोजेब08% GR या मेटालेक्सिल M 4% + मेंकोजेब 64% WP या मेटालेक्सिल 18% + मेंकोजेब 64% WP का छिड़काव करना चाहिए |

आई.टी.के. के तौर पर बचाव के  निम्नलिखित उपाय किये जा सकते है :

  • बचाव के तौर पर देसी गाय का मूत्र @ 1 लीटर +15-20 लीटर पानी + उचित मात्रा में स्टीकर मिलाकर शाम के समय में  छिडकाव करना चाहिए |
  • बचाव के तौर पर दिसंबर के तीसरे सप्ताह या फसल की 50 से 60 दिन की अवस्था पर प्रति एकड़ 10 से 12 किग्रा. लकड़ी की राख का बुरकाव करे |

पछेती झुलसा से ग्रसित आलू की फसल

झुलसा से ग्रसित पत्तियांझुलसा से ग्रसित पत्तियांPotato leaves with late blight

झुलसा से ग्रसित पत्तियां

झुलसा से ग्रसित कंदlate blight in potatojhulasa se grasit kand

झुलसा से ग्रसित कंद


झुलसा से ग्रसित सम्पूर्ण खेतjhulasa se grasit sampoorn khet

झुलसा से ग्रसित सम्पूर्ण खेत

jhulasa se grasit pattee kee nichalee satah

झुलसा से ग्रसित पत्ती की निचली सतह


लेखक:

राजीव कुमार एवं प्रदीप कुमार

क्षेत्रीय केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र,

जैविक भवन,सेक्टर-ई. रिंग रोड,जानकीपुरम, लखनऊ (उ.प्र.) - 226021

ई.मेल: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

New articles

Now online

We have 201 guests and no members online