Plassey borer of Sugarcane: problem and prevention

 गन्ना की फसल अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक अवधि (लगभग 10 से 12 माह) होने के कारण इसमे कीटों की समस्या भी अधिक होती है। बिहार में गन्‍ना फसल मे लगभग डेढ दर्जन से भी अधिक कीटों का प्रकोप देखा गया है। इनमें से छिद्रक कीट की समस्या रोपनी से कटाई तक पायी जाती हैं।

बिहार में प्लासी छिद्रक (plaasee borer) आर्थिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण कीट है। सर्वप्रथम यह कीट पश्‍चि‍म बंगाल के प्लासी नामक जगह में पाया गया। इस जगह के नाम पर ही इसका नामंकरण प्लासी छिद्रक किया गया। यदि समय पर इसकी रोकथाम नहीं की जाती है तो गन्‍ना उत्‍पादन मे अनुमानतः 30 - 40 प्रतिशत की हानि हो सकती है।

वर्ष 2007-08 में उपयुक्त वातावरण मिलने पर बिहार के गन्ना उत्पादन क्षेत्रों में इस कीट के द्वारा गन्ना फसल को लगभग 80 प्रतिषत तक क्षति कर एक सुनामी का रुप कर दिया था। इस वर्ष फिर उपयुक्त वातावरण मिलने पर उत्तर बिहार के जिलों में गन्ना की फसल पर क्षति करते देखा जा रहा है, अधिक दिनों तक लगातार भारी वर्षा, फसल के खेत में जल-जमाव की स्थिति एवं उच्च तापमान होने पर इस कीट के आगमन की सम्भावनाएं प्रबल हो जाती है। परपोषी पौधे जैसे मक्का, जनेरा, काँस इत्यादि पास के खेत में रहने से भी कीट के आपात में वृद्धि देखी गई है।

छिद्रक कीट के विभिन्न अवस्थाओं की पहचान

  • इस कीट की चार अवस्थायें अण्डा, पिल्लू, प्यूपा एवं वयस्क होते हैं।
  • अण्डा, आकार में चपटा तथा मटमैले सफेद रंग का होता है।
  • पिल्लू के शरीर पर चार गुलाबी रंग की स्पष्ट धारियाँ होती है जिनमें से दो उप-पृठष्ठीय तथा दो अधरीय होती है। लार्वा के आकार में अन्तर जलवायु के परिवर्तन पर आधारित होता है।
  • प्यूपा प्राथमिक अवस्था में हल्के बादामी रंग का होता है जो 4-8 दिनों के पश्चात् गहरे बादामी रंग में परिवर्तित हो जाता है। नर एवं मादा प्यूपा की माप एवं आकार में काफी अन्तर होता है।
  • नर प्रौढ़ मादा से आकार में छोटा तथा रंग में गाढ़े होते हैं। अग्र पंख का प्रतिरुप दाल चीनी या हल्की पीलिमा लिए हुए बादामी रंग के होते हैं।
 प्लासी छिद्रक वयस्क  प्लासी छिद्रक पिल्लू प्लासी छिद्रक प्यूपा

प्लासी छिद्रक वयस्क 

प्लासी छिद्रक पिल्लू 

प्लासी छिद्रक प्यूपा

 

आपात का लक्षण

  • प्राथमिक आक्रमण फसल पर नवजात पिल्लुओं द्वारा किया जाता है। गन्ने की ऊपर की तीन से चार गुल्ली के बीच नवनिर्मित लार्वा किसी एक गुल्ली में इकट्ठे होकर गन्ने को ग्रसित करते रहते हैं।
  • गन्ना को चीरने पर ऐसी गुल्लियों को देखा जाय तो 10-15 लार्वा एक ही स्थान पर पाये जा सकते हैं।
    ग्रसित गुल्लियों के छिद्रों से ताजा कीटमल गीला तथा चमकीले लाल रंग का बाहर निकलता हुआ दिखाई देता है।
  • ग्रसित गन्नों की ऊपरी पत्तियाँ कुछ समय बाद सूख जाती है।
  • ग्रसित गुल्लियाँ इस प्रकार छिद्रित हो जाती है, कि सूखे अगोले को थोड़ा सा झटका देने पर या तेज हवा चलने पर आसानी से टूटकर गिर जाते हैं।
  • इस कीट के अत्यधिक प्रकोप की अवस्था में ग्रसित गन्नों की गुल्लियों के छिद्रों से लार्वा का कीटमल प्रचुर मात्रा में लकड़ी के बुरादे की भांति निकलता हुआ स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है।
  • द्वितीय आक्रमण विकसित पिल्लुओं द्वारा आस-पास के स्वस्थ पौधों या प्राथमिक ग्रसितपौधों के निचले स्वस्थ भागों को दुवारा ग्रसण किया जाता है।

प्रबन्धन

  • 15 दिनों के अन्तराल पर फसल निरीक्षण अवष्य करना चाहिए ताकि कीटों के आपात का स-समय पता लगने पर प्राथमिक उपचार प्रारम्भ किया जा सके।
  • ग्रसित गन्ने की गुल्लियों को सप्ताहिक अन्तराल पर काटकर खेत से बाहर पूर्णरुप से नष्ट कर देना चाहिए।
  • गन्ने की पत्तियों पर यदि अण्डा नजर आये तो उनको पत्तियों समेत खेत से निकालकर नष्ट कर देना चाहिए ताकि कीट आगे की अवस्था पैदा न कर सके।
  • प्रकाषवास लगाकर नर छिद्रक कीट को आकर्षित किया जा सकता है। प्रकाषवास ऐसे स्थान पर लगानी चाहिए कि नीचे पानी की व्यवस्था हो और उसमें किरासिन तेल की कुछ बूंदे अवष्य मिला दें ताकि प्रौढ़ कीट प्रकाष पर आकर पानी में गिर कर नष्ट हो जाय।
  • प्रयास रहे कि खेत जल-जमाव की स्थिति पैदा नही होने देना चाहिए और समय-समय पर खेत से पानी को निकालते रहना चाहिए जैसा कि इस कीट की वृद्धि जल-जमाव स्थिति में अत्यधिक पाई गई है।
  • अण्ड परजीवी ट्राइकोगामा किलोनिस का 50000 अण्डा प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अन्तराल पर 3-5 बार ग्रसित फसल पर छोड़ना चाहिए।
  • एमिडाक्लोप्रीड8 एस.एल. दवा को 1 मि0ली0 मात्रा एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव 15 दिनों के अन्तराल पर कम से कम दो बार कर सकते हैं। छिड़काव करने के पूर्व आष्वस्त हो जायें कि खेत में परिजीवी उपस्थित है अथवा नहीं। परजीवी की उपस्थिति में दवा का छिड़काव कदापि नहीं करे।

Authors 

अनिल कुमार, नागेन्द्र कुमार, नवनीत कुमार एवं ललीता राणा

ईख अनुसंधान संस्थान

डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा ,समस्तीपुर- 848 125

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